निस्तब्ध रात्रि की नीरवता सी पड़ी हूँ
कब आओगे ?
अरुणिमा की उज्ज्वलता सी पडी हूँ
कब आओगे ?
सघन वन की स्तब्धता सी पड़ी हूँ
कब आओगे ?
चन्द्र किरण की स्निग्धता सी पड़ी हूँ
कब आओगे ?
स्वप्न की स्वप्निलता सी पड़ी हूँ
कब आओगे ?
क्षितिज की अधीरता सी पड़ी हूँ
कब आओगे ?
सागर की गंभीरता सी पड़ी हूँ
कब आओगे ?
प्रार्थना की पवित्रता सी पड़ी हूँ
कब आओगे ?
हे राम ! तुमने एक अहल्या तो बचा लिया
एक और धरा की विवशता सी पड़ी हूँ
कब आओगे ?
एक और धरा की विवशता सी पड़ी हूँ
ReplyDeleteकब आओगे ?
अहिल्या तुम किसका इंतजार कर रही हो!!
विवशता की जंजीर तोड उठ खडी हो जाओ !!
अनेक उपमानों से अहिल्या की जड़ता को व्यक्त करती और उद्धारक का इंतजा़र करती नारी मन को खूबसूरती से प्रस्तुत करने के लिए आभार ।
ReplyDeleteजड़ भी चेतन होने की गहन इच्छा रखता है और इसके लिए किसी उद्धारक का उसे हमेशा इंतजार रहता है ।
इस कथा का एक आशय यह भी है ।
वाह अदा जी आपकी जितनी तरीफ़ की जाय कम है
ReplyDeleteसुन्दर
कमाल, बेमिसाल अभिव्यक्ति!
ReplyDeleteअदा जी, आज कल ’सच में’ पर नज़्रर-ए-करम नहीं हो रहा आपका.खैर बधाई सुन्दर काव्य यात्रा के लिये.लिखते पढते रहें!
बहुत सुंदर लिखी आज की कविता, कहते है ना भगति मै शक्ति है, आहिल्या की प्रतिक्षा पुरी हुयी.
ReplyDeleteधन्यवाद इस सुंदर कविता के लिये
अहिल्या के इंतज़ार को कितनी ही उपमाओं और उपमानों से सजाया है आपने ।
ReplyDeleteजड़ भी चेतन होना चाहता है और किसी उद्धारक का इंतजार उसे भी रहता है ।
एक आशय यह भी है इस कथा का ।
प्रार्थना की पवित्रता सी पड़ी हूँ
ReplyDeleteकब आओगे ?..kisi kisi raat meera ho jati hun..krishan ke birah geet gati hun..kabhi radha ban murli ki taan sunti hun kabhi ban ahalaya tera sparsh chahti hun puney jeene ke liye...
सभी उपमाओं का ज़वाब नहीं.
ReplyDeleteलाज़वाब प्रार्थना. बधाई
एक और धरा की विवशता सी पड़ी हूँ
ReplyDeleteकब आओगे ?
bhadosa rakhiye.. koi na koi raam jaroor aayenge..
behad gambeer bhav.........bahut badhiya.
ReplyDeleteआजकल रामयण चल रही है !...सुंदर है..नि:संदेह
ReplyDeleteaapki jitni bhi taareef ki jaye kam hai............
ReplyDeleteबहुत सुंदर लिखी आज की कविता,
ReplyDeletesunder kaveta "BASANTIJI"
FROM-KAKLIA
हे राम ! तुमने एक अहिल्या तो बचा लिया
ReplyDeleteएक और धरा की विवशता सी पड़ी हूँ
कब आओगे ?
सच है, कितनी ही अहिल्याएं पडी हैं किसी राम के इन्तज़ार में..बहुत सुन्दर.
मैम, लेखनी तो कयामत बरपा रही है...और इतनी सुंदर रचना के संग बकायदा मैच करती ये तस्वीरें कहाँ से ले आती हैं आप?
ReplyDelete"स्वप्न की स्वप्निलता" ने मन मोह लिया है...
अदा जी
ReplyDeleteभाव बहुत ही सुन्दर बन पड़े अहं.
- विजय
न जाने वे कब आएगें ? बहुत सुन्दर रचना दीदी ।
ReplyDeleteanginat ahilyaon ki kanthon ko awaz deti si lagti hai ye kavita Di.
ReplyDeleteAapka anuj
गजब की पुकार है ।
ReplyDeleteकायल हो गया मैं ,
आभार ।
हे राम ....कब आओगे ...आज तो ये अहिल्या उपमा अलंकारों से सजी धजी राह तक रही है ...अब आ भी जाओ राम एक और अहिल्या का उद्धार करने ...
ReplyDeleteहिंदी के अच्छे शब्दों को यथास्थान करीने से सजा रखने के कारण प्रविष्टि अनमोल बन गयी है ...बहुत बधाई ..!!
NO COMMENTS....
ReplyDeleteअरुणिमा की उज्ज्वलता सी पडी हूँ
ReplyDeleteकब आओगे ?
सघन वन की स्तब्धता सी पड़ी हूँ
कब आओगे ?
चन्द्र किरण की स्निग्धता सी पड़ी हूँ
कब आओगे ?
areeeeee.....
aDaDi....
..is patthar se hue samaj , is patthar si hu samvadena....aur is 'ahilya' roopi khushiyon ka uddhar karne asha karta hoon koi Raam jaldi hib avtarit hoonge...
behterin kavita !!
सभी लोगों के तारीफ कर लेने के बाद अब मैं और क्या तारीफ करूँ?
ReplyDeleteबेनामी जी !! और नो कमेंट्स ???
ReplyDeleteसाथ होते हैं क्या ???
बहुत अच्छे रूपक इस्तेमाल किये है आपने । कविता मे यह बहुत मायने रखता है ।
ReplyDeleteमार्मिक और सीधा संवाद करती जोरदार रचना !
ReplyDeleteराम कब लौटेगें ? स्वर्ग धरा पर आया भी है कभी ?
आकाश में कुसुम खिला भी है कभी ?
फिर भी मन तू इंतज़ार कर शायद !