Friday, October 23, 2009
गा दिए हैं हम.... 'ये है रेशमी जुल्फों का अँधेरा'......
एक तो हम लड़की पैदा हुए, दूसरे मध्यमवर्गीय परिवार में, तीसरे ब्रह्मण घर, चौथे बिहार में और पांचवे थोडा बहुत टैलेंट लिए हुए, तो कुल मिला कर फ्रस्ट्रेशन का रेसेपी अच्छा रहा. याद है हॉल में सिनेमा देखने को मनाही रही......काहे कि उहाँ पब्लिक ठीक नहीं आती है.... सिनेमा जाओ तो भाइयों के साथ जाओ....तीन ठो बॉडीगार्ड ...और पक्का बात कि झमेला होना है...कोई न कोई सीटी मारेगा और हमरे भाई धुनाई करबे करेंगे....बोर हो जाते थे...सिनेमा देखना न हुआ पानीपत का मैदान हो गया...इ भी याद है स्कूल से निकले नहीं कि चार गो स्कूटर और मोटर साईकिल को पीछे लग जाना है...हम रिक्शा में और पीछे हमरी पलटन...स्लो मोसन में .... घर का गली का मुहाना आवे और सब गाइब हो जावें....एक दिन एक ठो हिम्मत किया था गली के अन्दर आवे का....आ भी गया था...और बच के चल भी गया.....बाकि मोहल्ला प्रहरियों का नज़र तो पड़िये गया था.... दूसर दिन उन जनाब की हिम्मत और बढ़ी ....फिर चले आये गल्ली में......हम तो अपना घर गए .....बाद में पता चला उनका वेस्पा गोबर का गड्ढा में डूबकी लगा गया ......निकाले तो थे बाद में ....बाकि काम नहीं किया शायिद ......काहे की उ नज़र आये ....वेस्पा नहीं.....
हम गाना गाते थे .....और हमरे बाबू जी रोते थे ...इसका बियाह कैसे होगा इ गाती है !!!....आईना के आगे २ मिनट भी ज्यादा खड़े हो जावें तो माँ तुरंते कहती थी ''इ मेन्जूर जैसे का सपरती रहती हो'' माने इ कहें कि चारों चौहद्दी में पहरा ही पहरागीत गावे में भी रोकावट था, खाली लता दीदी को गा सकते थे....और हमको आशा दीदी से ज्यादा लगाव था....कभी गाने को नहीं मिला आशा दीदी का चुलबुला गीत सब......सब बस यही कहते रहे....इ सब अच्छा गीत नहीं है......अच्छा घर का लड़की नहीं गाती है इ सब.....हम आज तक नहीं समझे कि गीत गाने में अच्छा घर का लड़की बुरी कैसे हो जाती है....गीत गावे से चरित्र में धब्बा कैसे लगता है...उस हिसाब से तो आशा जी का चरित्र सबसे ख़राब है...फिर काहे लोग उनका गोड़ में बिछे हुए हैं... बस यही बात पर आज हम गाइए दिए हैं इ गीत ....अब आप ही बताइए.....इसको गाकर हम कोई भूल किये हैं का .....का हमरी प्रतिष्ठा में कोई कमी आएगी आज के बाद ????
फिल्म : मेरे सनम
आवाज़ : आशा भोंसले
गीतकार : मजरूह सुल्तानपुरी
संगीतकार : ओ.पी. नैय्यर
ये है रेशमी
जुल्फों का अँधेरा न घबराइये
जहाँ तक महक है
मेरे गेसुओं के चले आइये
सुनिए तो ज़रा जो हकीकत है कहते हैं हम
खुलते रुकते इन रंगीं लबों कि कसम
जल उठेंगे दिए जुगनुओं कि तरह २
ये तब्बस्सुम तो फरमाइए
ला ला ला ला ला ला ला ला
प्यासी है नज़र ये भी कहने की है बात क्या
तुम हो मेहमाँ तो न ठहरेगी ये रात क्या
रात जाए रहे आप दिल में मेरे २
अरमाँ बन के रह जाइए.
ये है रेशमी
जुल्फों का अँधेरा न घबराइये
जहाँ तक महक है
मेरे गेसुओं के चले आइये
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mujhe nahin pata tha ki meri di itni khoobsurat awaz ki swamini hain, mujhe lagta tha ki sirf apne likhe geet ko hi swarbaddh karti hain lekin aapne to kamaal hi kar diya di...
ReplyDeleteमध्यमवर्गीय ब्राह्मिन कन्याओं की व्यथा को इतने रोचक तरीके से प्रस्तुत किया है ...क्या कहें ...हम भी इसी व्यवस्था के मारे हैं ...
ReplyDeleteये गलती से कही आशा भोंसले की आवाज में ही तो नहीं पेश कर दिया है ...
सुबह सुबह इतनी सुरीली आवाज़ और ये गीत ...दिन खुशनुमा बन गया आज का तो...
कितना चलचित्रीय ढंग से आपने जीवन के उन दिनो के यथार्थ का वर्णन किया है. कितना निकट का लगने लगता है.
ReplyDeleteआपके सुरो के हम कायल है ही
वाह....!
ReplyDeleteअपने ज़माने का गीत पढ़कर अच्छा लगा!
इसे प्रस्तुत करने के लिए बधाई!
आशा ताई का मैं भी जबरदस्त फैन हूं...
ReplyDeleteउनका किशोर दा के साथ गाया ये गाना मेरा ऑलटाइम फेवरिट है...
आंखों आंखों में हम तुम
हो गए दीवाने...
(फिल्म महल, 1968)
जय हिंद...
sur saadhanaa se ,,
ReplyDeletesarswati ko poojaane se...
kaise kami aa sakti hai pratishthaa mein...?
"....इ सब अच्छा गीत नहीं है......अच्छा घर का लड़की नहीं गाती है इ सब....."
ReplyDeleteकहीं आप भी तो नहीं कहतीं हैं ऐसा ही अपनी बेटी से? :-)
ओ.पी. नैयर जी और राहुलदेव बर्मन जी के संगीत से सजी आशा भोसले के गाये गीत हर संगीतप्रेमी को मदमस्त कर देते हैं!!
पहले ज़माना(कुछ साल पहले तक) कुछ और था...अब ज़माना कुछ और है...
ReplyDeleteवक्त के साथ-साथ सारे मायने...सारे आदर्श बदल जाते हैँ
आपकी आवाज़ में इस गीत को सुन कर बहुत अच्छा लगा
Kab padh gayee ek saans me pata hee nahee chala! Geet kee baat alag...aalekh ne ek tasveer kheench dee nigahon ke saamne!
ReplyDeleteबधाई आपके स्वर के लिए भी और कलम के लिए भी, माँ शारदा आप कृपा बनाये रखें...
ReplyDeleteअरे! मैंने तो सिर्फ आशा भोंसले जी की ही तारीफ की और आपको को तो भूल ही गया।
ReplyDeleteयह गाना आपकी मधुर आवाज में सुनकर बहुत ही अच्छा लगा!!!
वाह बहुत लाजवाब आलेख के साथ इतना सुंदर गीत सुनकर आनंद आगया. बहुत शुभकामनाएं.
ReplyDeleteरामराम.
अच्छा लगा आप की आवाज़ में इस गीत को सुनना.
ReplyDeleteजबरदस्त लिखा आपने, गीत भी बहुते मधुर है.
ReplyDeleteअदा जी बड़ी आत्मीयता से लिखी है आपने , पढ़कर मजा आ गया और अब किसी रिक्से का पीछा नहीं करेगे मै नहीं भाई जो जो करत होगे और इहवा पढ़ लिए होगे ......
ReplyDeleteअदाजी
ReplyDeleteआपने तो जैसी हमारी ही कहानी कह दी हो ,हमारे बाबुजी तो कभा भी सीलोन रेडियो और बिनाका गीतमाला सुनने ही नही देते कालेज में जब लडकिया गीतों कि पायदान कि बात करती तो हमारी सुरत देखने लायक होती
और उसे देख हमारी सहेलिया ज्यादा चिढाती |आपकी सुरीली आवाज में इस गाने ने और मदहोश कर दिया और अपने वो सुनहरे दिन याद करवा दिए जो अब लगता है, सुनहरे थे ,तब तो कैद लगती थी |
आप इतनी दूर रहकर भी बहुत पास लगती हो क्योकि एक सा परिवेश बहुत कुछ कह देता है |
तो कुल मिला कर फ्रस्ट्रेशन का रेसेपी अच्छा रहा !!
ReplyDelete:)
Same here with more intensity.
उहाँ पब्लिक ठीक नहीं आती है.... सिनेमा जाओ तो भाइयों के साथ जाओ....तीन ठो बॉडीगार्ड ...और पक्का बात कि झमेला होना है...कोई न कोई सीटी मारेगा और हमरे भाई धुनाई करबे करेंगे....बोर हो जाते थे...सिनेमा देखना न हुआ पानीपत का मैदान हो गया...
ReplyDeleteab ka kijiyega.. jamanawe kharab chal raha hai.. jhamela to pura zindgiye bhar hota rahega..
badhiya gana suna diya aapne to...
shukriya...
सुन्दर संस्मरण और गीत!!!!कमाल गाया है आपने.बहुत सुन्दर
ReplyDeleteअदा जी हम आपको एक नहीं दो ठो बधाई देंगे...पूछिए काहे... वो इसलिए की पहली बधाई तो आपके लिखने के अंदाज़ की...आप क्या लिखें हैं...वाह...हंसा हंसा कर हाल बुरा कर दिए हैं हमारा... इत्ता जोरदार और रोचक वर्णन बरसों बाद पढें हैं हम...सच... जी खुस हुई गवा...दूसरा बधाई जो है वो आपके गायन पर देंगे...आप आशा ताई का गाना गा कर अपना मान खुद ही बहुत बढा लिए हैं सब की नज़रों में...ये गाना बहुत मुश्किल है लेकिन आप इसे बखूबी निभा ले गयी हैं...वाह...सच तबियत चकाचक हो गयी..
ReplyDeleteनीरज
Interesting !!
ReplyDeleteAap ne likha kaise ??
gale kee madhurta to sunee humne ..lekin lekhan ka tariqa bhee gazab dha gaya...
हई जो जगहवा का आप गुणगान किये हैं ना! मुआ इ बन्दा वोहीं का है... अ जौन-जौन तकलीफ झेले हैं... सब्हे जानते है और देखे हैं... वहां सुदर लइकी के भाई होना बड़ी गुनाह रे बाबा... अगर हो गए तो गुंडा बने के पड़ी... अपनी उमरिया में जब हम दिल फैकते थे तो यही पता करते थे पहले की 'उनका' कै गो भाई है... छोटा है की बड़ा... शरीफ है गुंडा... इ सब के लिए एक ठो खबरिया पाले थे... जो 'उनसे' दोस्ती बना कर रखता था... बहुते कहानी याद आया रे...!!!!
ReplyDeleteआपके ब्लॉग पर का प्रोफईलो देखे (सुने भी) केतना मीठा आवाज़... दुए लाइन में मन मोह लिए आप तो... कनाडा कैसे पहुंचे... अब अगर पहुँच गए तो समीर अंकल से जर्रूर मिलिएगा...
हम खुश्दीपो भैया के शुकर्गुजार हैं जाऊना से इ लिंक हमको मिला.... आशा जी गीत बचपन में मिमिक्री कर के हम भी गाते तो एक छुपी हुई साजिश घुलती थी हवा में... कुछ महिलाएं मना भी करती थी...
पर हम आजो गाते हैं... "चूमेगा वो मेरे लक्की लिप्स" आये - हाय"
अब सच बताऊँ तो यह आये - हाय" में जेतना कशिश है वैसा कहाँ मिलता है सुनने को ?
तमाम उम्र का हिसाब मांगती है जिंदगी
यह मेरा दिल कहे तो क्या खुद से शर्मसार है.
'ada ji'
ReplyDeleteaaj aap ki ik aur adaa se ru.b.ru hua hooN....aur ab mushkil ye aan padee hai k lafz nahi mil paa rahe haiN jinse k taareef kar sakooN
kitni saadgi se aisa mushkil geet ga diyaa hai aapne...Ashaji ke geet gaana vaise bhi aasaan nahi hai
bahut bahut mubarakbaad . . .
kabhi Ashaji ka wo geet bhi ga kr sunaayiye to...
"yaadteri aayi maiN to...."
film:- Faulaad
अदा जी,
ReplyDeleteआपको और आपके पूरे परिवार को छठ पर्व की दिल से शुभकामनायें..
बहुत सुन्दर प्रस्तुतिकरण है ,हमारे समाज मे लड़कियो की स्थिति पर । गीत गाना एक स्वाभाविक प्रक्रिया है लेकिन इसे इस तर्ह से कहा जाता था कि यह अपमान जनक लगता था । अरे लडकियो को नाचने गाने का शौक नही होना चाहिये । मै एक संगीत विद्यालय का समिति सदस्य हूँ । हमारे स्कूल मे आनेवाली लड़कियो से बात करो तो मालूम होता है स्थितियाँ अभी भी बदली नहीं हैं । सभी को लगता है लड़की गाना सीखकर क्या करेगी ।
ReplyDeleteअब आशा जी की बात ..क्या कहूँ मै खुद कराओके मे उनके गीत गाता हूँ ..कॉलेज के दिनो मे तो.. अब छोड़िये यह किस्सा फिर कभी ..।
This comment has been removed by the author.
ReplyDeleteachchh laga git..aur aapki aapbiti kamobesh sare hindi patti ki ladkoin ki kahani hai.
ReplyDeleteऊपर जो पाँच ठो बात सब एक लाईन से गिनवायी हैं आप, तो उनमें से पहले वाले को छोड़ कर बाकी चार तो हम पे भी लागु हैं...लेकिन उस पहले वाले प्वाइंट के बिना भी ई फ्रस्टेशन वाला रेसिपी खूब चखें हैं।
ReplyDeleteसच कहा है आपने, सहरसा में अपनी दोनों बहनों के साथ घरवालों का ऐसा ट्रीटमेंट देख चुका हूं~।
...और गाना मेल नहीं करतीं तो हम कमेंट भी करने नहीं आते। सुन ही नहीं पाते हैं अपने इस नेट से।
क्या कहूं कि अच्छा गाया है?...उम्हूहू...खूबे अच्छा गाया है, मैम!
बचपन में लगे इस घाव की टीस अभी भी बाकी है. आपके जैसे संवेदनशील मन के लिये कितना कठिण हुआ होगा वह सब सहना.
ReplyDeleteआपकी लेखन शैली और बिहारी डायलेक्ट नें कमाल का रंग भर दिया इस पोस्ट में और हमें उसी परिप्येक्ष में ले गया.
गीत सुन नही पाया. प्लेयर ही नहीं दिख रहा.
ReplyDeleteएक तो हम लड़की पैदा हुए, दूसरे मध्यमवर्गीय परिवार में, तीसरे ब्रह्मण घर, चौथे बिहार में और पांचवे थोडा बहुत टैलेंट लिए हुए, तो कुल मिला कर फ्रस्ट्रेशन का रेसेपी अच्छा रहा.
ReplyDeleteAur ye laga chakka....
..aDaDi fir champoin
Kya koi kisi ke lihne se pehle bhi koi cheez chura sakta hai?
Meri lines mujhe waapis chahiye !!
Please.......(gussa)
accha Pleaseeeeeeeeeeeeee.....(pyaar cute wala)
uuuuuuuuuuuuu......
hu hu (rona)
aapki aawaz toh gajab hai .. bihar ki hain to aawaz ko mithaa toh hona hi hai
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