Sunday, October 18, 2009
बित्ते भर की पट्टी.....
गांधारी आपने ये क्या अपना लिया
नेत्र रहते हुए स्वयं को नेत्रहीन बना लिया
माना कि आप पर गूलर का अभिशाप था
और सत्य है आपने किया नहीं कोई पाप था
नेत्रहीन से व्याह हुआ नियति बहुत क्रूर थी
बाँध पट्टी आँख पर जताया बिरोध साफ़ था
पर क्या यह कहीं से भी एक उचित कार्य था
निर्बल पति को अधिक निर्बल बताना अनिवार्य था ?
पट्टी जो न होती आँख पर तो आप सब देखतीं
दुर्योधन दुह्शाशन के दुष्कर्मों को भी रोकतीं
आँखें गर खुली रहतीं तो बहुत कुछ नही होता
और शायद हस्तिनापुर सिंहासन भी कलंकित नहीं होता
पाँचाली की लाज न लुटती, न जाते पांडव अज्ञातवास
भीष्म पितामह भी नहीं लेते शर-शैय्या पर अंतिम श्वास
कहाँ कभी रोका आपने दुर्योधन की मनमानी को
इसीलिए तो प्रश्रय मिला अनाचारी अज्ञानी को
दुर्योधन शकुनी दुह्शाशन ने मचाया घोर उत्पात था
परन्तु आपका विवेक तो बंधा पट्टी के साथ था
युधिष्ठिर को राज्य मिलना, यह उनका अधिकार था
लेकिन आपको भी राज्य से कुछ अधिक ही प्यार था
ध्रितराष्ट्र नेत्रहीन होकर भी थे बहुत ही विवेकी
युधिष्ठिर को राज्य सौंपने की पहल उन्होंने ने ही की
पर आपको यह सब भला तब कहाँ मंजूर था
आपके साथ ही तो खडा दुर्योधन का गुरूर था
जब माँ जान बूझ कर आंखों पर पट्टी लगाती हैं
तब संतान ग़लती नही, ग़लती संतान बन जाती हैं
बित्ते भर की इस पट्टी की कीमत बहुत ही थी भारी
बिना बात के इस पट्टी ने महाभारत ही रचा डारी थी
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जब माँ जान बूझ कर आंखों पर पट्टी लगाती हैं
ReplyDeleteतब संतान ग़लती नही, ग़लती संतान बन जाती हैं
आधुनिक सन्दर्भ मे भी सटीक
बहुत सुन्दर आख्यान और दृष्टिकोण
जब माँ जान बूझ कर आंखों पर पट्टी लगाती हैं
ReplyDeleteतब संतान ग़लती नही, ग़लती संतान बन जाती हैं....
bilkul sahi kaha Shri. Vermaji ne....
bahut hi sunder post..... with wide standpoints.....
gr8
जय हो महाभारतेय रचना के लिए .....
ReplyDeleteध्रितराष्ट्र नेत्रहीन होकर भी थे बहुत ही विवेकी
ReplyDeletehamne jyaadaa nahi padhaa hai..
par hamein ye baat hajam nahi ho rahi hai...
hamein ye carrectar kabhi bhi imaandaar nahi lagaa...
यही हैं आंख के अंधे नाम नयनसुख.
ReplyDeleteshochniya hai aDaDi....
ReplyDelete..Ye to gandahari ki bewkoofi hi kahi jaiyegi na ?
"जब माँ जान बूझ कर आंखों पर पट्टी लगाती हैं
तब संतान ग़लती नही, ग़लती संतान बन जाती हैं "
bahut accha virodhabaas hai....
.waise mujhse is line se ek shararti chutkula yaad aa raha hai.
(you know i can't help)
"ग़लती संतान बन जाती हैं"
hahahaha
ab aap kahogwe...
ReplyDelete"Bachwa hum jaan rahein hain tumko kaunsa chutkula yaad aa raha hai?"
hahaha
Aur ye topi wala character kaun hai?
ReplyDeleteHumein bhi ye kabhi imanadar nahi laga, do baar ko chor ke....
Ek jub saans andar li,
Aur doosri jab chori !!
Love you Lily !!
Wa wa Wa wa !!
बहुत सुंदर कहा, एक नारी ही घर बार, इस संसार को बनती है, एक मां अगर वोही आंखो पर पट्टी बांध ले तो... बेटे की गलतिय़ो पर पर्दे डाले तो... संतान ही गलती का रुप धारण कर लेती है
ReplyDeleteधन्यवाद
जब माँ जान बूझ कर आंखों पर पट्टी लगाती हैं
ReplyDeleteतब संतान ग़लती नही, ग़लती संतान बन जाती हैं....
सटीक चित्रण
पूरा महाभारत ही रच दिया...सुन्दर.
ReplyDeleteजब माँ जान बूझ कर आंखों पर पट्टी लगाती हैं
ReplyDeleteतब संतान ग़लती नही, ग़लती संतान बन जाती हैं
बित्ते भर की इस पट्टी की कीमत पड़ी बहुत ही भारी
बिना बात के इस पट्टी ने महाभारत रचा डारी
wah! kya khoob likha aapne..
संतान कलयुगी हो तो गांधारी का आंखों पर पट्टी बांधे रहना ही सही है...
ReplyDeleteजय हिंद...
इस पट्टी को अब खोल देना चाहिये ।
ReplyDeleteबित्ते भर की इस पट्टी की कीमत बहुत ही थी भारी
ReplyDeleteबिना बात के इस पट्टी ने महाभारत ही रचा डारी
-बताईये!!! क्या कहें..बस इतना..रचना अच्छी है. :)
आँखें गर खुली रहतीं तो बहुत कुछ नही होता
ReplyDeleteऔर शायद हस्तिनापुर सिंहासन भी कलंकित नहीं होता
अदा जी सच पूछिये तो आप के पास कुछ दिन रहकर कविता सीखने का मन हो रहा है आपकी लेखनी अद्भुत है
महाभारत रच गया ...बच्चों के लालन पालन को लेकर इतिहास से मिला इतना बड़ा सबक भी अभी लोग सीख नहीं पाए हैं...रोज नए महाभारत की नींव रखी जा रही है ....
ReplyDeleteबहुत गंभीर चर्चा हो गयी ...अब जरा मुस्कुरा लें ...एक बात बताएं ...आप एक एक करके इन पुराण कालीन नारियों के पीछे क्यों पड़ गयी हैं ...
sunder likhaa hai...
ReplyDeletebehtreen.........!!!!!!!!!!!!
इससे अधिक क्या कहूँ कि मुझे कविता की कुछ विशेष समझ नहीं है फिर भी आपकी कविताएँ पढ़ने यहाँ आता हूँ।
ReplyDeleteकमाल की कविता । महाभारत का ये भी कारण है एक आँखों पर बंधी पट्टी
ReplyDeleteवाकई कमाल की रचना है।
ReplyDeleteगूलर के शाप की चर्चा पढ़कर अच्छा लगा। बहौत कम लोगों को जानकारी होगी इस बात की...
ReplyDeleteऔर मुझे चिंता होने लगी है मैम आपकी, इन सारे सवालों को पढ़कर..ऊपर वाणी गीत के कमेंट के सुर-में-सुर मिलाऊँ तो...
वो तो मजाक कर रहा था मैं, लेकिन इन मिथकों से उपजे ऐसे तमाम सवालों पर आप यकीनन एक काव्य-ग्रंथ तो लिख ही सकती हैं।
kya baat kah di aapne..........bahut hi gahrayi se socha .........sach kaha..........maa ka to dosh hota hi hai agar wo apne sneh ki patti apni aankhon par laga le to aulaad ka bigadna pakka hota hai.........ek sabak deti hai aapki ye rachna.........badhayi sweekarein.
ReplyDeleteजब माँ जान बूझ कर आंखों पर पट्टी लगाती हैं
ReplyDeleteतब संतान ग़लती नही, ग़लती संतान बन जाती हैं
बित्ते भर की इस पट्टी की कीमत बहुत ही थी भारी
बिना बात के इस पट्टी ने महाभारत ही रचा डारी
बेहतरीन !
BAHUT HI SUNDAR PRASTUTI ......WICHAARANIYA RACHANA!
ReplyDeleteबेहतरीन काव्य रचना. शुभकामनाएं.
ReplyDeleteरामराम.
गांधारी की उदात्तता से उपजी विषम स्थितियों का इतना गहन विवेचन और अभिव्यक्ति -बहुत बढियां !
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