Tuesday, October 20, 2009

ओ मन मेरे !! कुछ तो बोल.....


ओ मन मेरे !! कुछ तो बोल
क्यूँ चुप बैठा है लब तो खोल

हर चीज़ की कीमत होती है
बस साँसें होतीं हैं अनमोल

बातें कर ले जी भर कर के
बोलने से पहले शब्द को तोल

सीधी सच्ची बात कही थी
बेवजह इनमें जहर न घोल

बंद मुट्ठी तू बन जा 'अदा'
अपने दिल के राज न खोल

24 comments:

  1. बहुत सुन्दर भाव है बधाई।

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  2. सीधी सच्ची बात कही थी
    बेवजह इनमें जहर न घोल
    ग़ज़ल के कई शे’र दिल में घर कर गए।

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  3. आदरणीय अदा जी,

    बंद मुट्ठी तू बन जा 'अदा'
    और अपने दिल के राज न खोल

    ये ऊँची बात आप ही कह सकती थीं
    आज की पेशकश हमेशा की तरह लाजवाब रही। मालिक आपको बुलंदियाँ बख्शे, इसी दुआ के साथ।

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  4. बंद मुट्ठी तू बन जा 'अदा'
    अपने दिल के राज न खोल

    band mutthi lakh ki khul gayi to khaak ki !!

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  5. सीधी सच्ची बात कही थी
    बेवजह इनमें जहर न घोल

    बंद मुट्ठी तू बन जा 'अदा'
    अपने दिल के राज न खोल

    अदा जी एक तरफ आप कह रही है मन कुछ तो बोल और दूसरी तरफ राज ना खोल , क्या बात है :)

    सुन्दर कविता आभार आपका

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  6. बंद मुट्ठी तू बन जा 'अदा'
    और अपने दिल के राज न खोल
    सच कहा है, बहुत गहरे भाव.
    धन्यवाद

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  7. ओ मन मेरे !! कुछ तो बोल
    क्यूँ चुप बैठा है लब तो खोल
    ispar last mein aata hun....
    हर चीज़ की कीमत होती है
    बस साँसें होतीं हैं अनमोल
    sab kuch bikaau hota ja raha hai, so sad!!!
    बातें कर ले जी भर कर के
    पर बोलने से पहले शब्द को तोल
    shabdon ko tolne lag jaayein to kahan ho paati hai jee khar ke baat...
    सीधी सच्ची बात कही थी
    बेवजह इनमें जहर न घोल
    kaun kambakhat zahar gholne ki himakat kar raha hai..
    बंद मुट्ठी तू बन जा 'अदा'
    अपने दिल के राज न खोल
    chaho to lab khaamosh kar lein, par aankhein to khol hi dengi saare raaz...

    back to ओ मन मेरे !! कुछ तो बोल
    क्यूँ चुप बैठा है लब तो खोल
    kuch bol bhi, lab bhi khol, par raaz na khol!!! koi kaise kare bolne se pahle itna tol mol!!!

    is rachna ke baare mein aapke agyanusaar naap tol kar bol raha hun (dil ke raaz khul jaayein to dosh na dein!!!)- ULTIMATE rachna hai di!!!

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  8. बातें कर ले जी भर कर के
    पर बोलने से पहले शब्द को तोल

    बहुत ही सही कहा आपने...हमेशा तोल के ही बोलना चाहिए...


    सुन्दर...प्रभावी रचना

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  9. बंद मुट्ठी तू बन जा 'अदा'
    अपने दिल के राज न खोल

    यह किस को समझाया जा रहा है :

    सीधी सच्ची बात कही थी
    बेवजह इनमें जहर न घोल

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  10. "बंद मुट्ठी तू बन जा 'अदा'
    अपने दिल के राज न खोल".
    ये पंक्तियाँ याद दिलातीं हैं निम्नांकित लाइनें -
    " बंद मुट्ठी लाख की,
    खुल गयी तो खाक की. "
    सुन्दर रचना के लिए बधाई

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  11. साधारण शब्दों में 'असाधारण' कहने की 'अदा'...वाह जी वाह...

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  12. "पर बोलने से पहले शब्द को तोल.. ।" इस पंक्ति से या तो' पर' हटा दें या 'को' । वज़न ठीक हो जायेगा ।

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  13. Sharad ji,
    Maine sudhaar diya hai..
    Apka hriday se dhanywaad..

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  14. सीधी सच्ची बात कही थी
    बेवजह इनमें जहर न घोल

    सहजता से कही गयी बातों में भी जहर घोलता है कौन ...!!

    बातें कर ले जी भर कर के
    बोलने से पहले शब्द को तोल
    जी भर के की गयी बातों को अगर तौल कर कहा जाये तो सहज स्वाभाविक कहाँ रह पाएंगी मगर ऐसा करना होगा ...दस्तूर -ए -दुनिया निभाना होगा ...

    दो विरोधाभासी वक्तव्य हैं .....कल की उलझन सुलझी नहीं अब तक ....!!!!

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  15. हर चीज़ की कीमत होती है
    बस साँसें होतीं हैं अनमोल
    सही कहा है साँसे तो अनमोल है.
    पर बेचने वाले इनको भी तो बेच देते है.

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  16. बातें कर ले जी भर कर के
    बोलने से पहले शब्द को तोल

    सीधी सच्ची बात कही थी
    बेवजह इनमें जहर न घोल

    बंद मुट्ठी तू बन जा 'अदा'
    अपने दिल के राज न खोल
    sabhi sher nayab hain ada ji,
    badhai.

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  17. बवाल जी का आदरणीय अदा जी कहना बड़ा दिलचस्प लगा...लेकिन आपकी शायरी की रवानगी देखकर मुझे लगता नहीं कि बरसों-बरसों तक आपके नाम के साथ ऐसे किसी संबोधन की ज़रूरत पड़ेगी..

    जय हिंद...

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  18. पर रे मन!
    करना बातें ऐसी प्यारी
    जग में दे जो खुशियाँ घोल।
    खुद को और औरों को सुख दे
    ऐसी वाणी है अनमोल।

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  19. सीधी सच्ची बात कही थी
    बेवजह इनमें जहर न घोल

    seedhi sachhi baat aapne kahi
    dil mein bas gayi

    -Sheena

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  20. सीधी सच्ची बात कही थी
    बेवजह इनमें जहर न घोल

    पर इसको समझता कौन है जी :) बहुत पसंद आई यह पंक्तियाँ और गजल तो अच्छी है ही ..शुक्रिया

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  21. kya mazboori jahir ki hai! thankx!

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  22. उस वक्त आया था कुछ लिखने ही, फिर रहने दिया...अब सोचता हूँ, आपसे इतनी लिबर्टी तो ली ही जा सकती है। लय-प्रवाह कई जगह खटक रहा है।

    ग़ुलाम अली की गायी एक ग़ज़ल है "अपनी धुन में रहता हूँ, मैं भी तेरे जैसा हूँ"---सुनी ही होगी आपने?

    अब जा रहा हूँ वो गाना सुनने "तुम्हें देखती हूँ तो लगता है ऐसे..."

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