Tuesday, October 13, 2009
पुरुषोत्तम...
त्याग दिया वैदेही को
और जंगल में भिजवाया
एक अधम धोबी के कही पर
सीता को वन वन भटकाया
उस दुःख की क्या सीमा होगी
जो जानकी ने पाया
कितनी जल्दी भूल गए तुम
उसने साथ निभाया
उसने साथ निभाया
जब तुम कैकेयी को खटक रहे थे
दर दर ठोकर खाकर,
वन वन भटक रहे थे
अरे, कौन रोकता उसको !!
कौन रोकता उसको !!
वह रह सकती थी राज-भवन में
इन्कार कर दिया था उसने
तभी तो थी वह अशोक-वन में !
कैसे पुरुषोत्तम हो तुम !
क्या साथ निभाया तुमने !
जब निभाने की बारी आई
तभी मुँह छुपाया तुमने ?
छोड़ना ही था सीता को
तो खुद छोड़ कर आते
अपने मन की उलझन
एक बार तो उसे बताते !
तुम क्या जानो कितना विशाल
ह्रदय है स्त्री जाति का
समझ जाती उलझन सीता
अपने प्राणप्रिय पति का
चरणों से ही सही, तुमने
अहिल्या का स्पर्श किया था
पर-स्त्री थी अहिल्या
क्या यह अन्याय नहीं था ?
तुम स्पर्श करो तो वह 'उद्धार' कहलाता है
कोई और स्पर्श करे तो,
'स्पर्शित' !
अग्नि-परीक्षा पाता है
छल से सीता को छोड़कर पुरुष बने इतराते हो !
भगवान् जाने कैसे तुम 'पुरुषोत्तम' कहलाते हो
एक ही प्रार्थना है प्रभु !
इस कलियुग में मत आना
गली गली में रावण हैं
मुश्किल है सीता को बचाना
वन उपवन भी नहीं मिलेंगे
कहाँ छोड़ कर आओगे !
क्योंकि, तुम तो बस,
अहिल्याओं का उद्धार करोगे
और सीताओं को पाषाण बनाओगे
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भगवान् जाने कैसे तुम 'पुरुषोत्तम' कहलाते हो
ReplyDeleteबहुत सुन्दर आख्यान को सन्दर्भित किया है
सार्थक प्रश्न
नये तेवर की कविता । युग धर्म के प्रति राम जैसे चरित्र को सचेत करती रचना । सच है आज बिना मांगे रोटी नहीं मिलती । अधिकार मिले तब न ...।
ReplyDeleteहमें तो एकदम नई लगी और बहुत भाई..
ReplyDeleteअहिल्याओं का उद्धार करोगे
ReplyDeleteऔर सीताओं को पाषाण बनाओगे
वाजिब प्रश्न है ..!!
राम के उदात्त चरित्र , भ्रात्र प्रेम आदि गुणों को याद करते हुए भी सीता का परित्याग भुलाये नहीं भूलता है ...
अपने संस्कारों के चलते राम मेरे आराध्य हैं.. वे हमारे लिए अपने माता पिता की तरह ही है...हम उनकी बहुत सी आदर्शों और कार्यों से से सहमत नहीं होते ...मगर उन्हें प्यार करना ...आदर देना नहीं छोड़ सकते ....!!
बेचारे राम के पीछे काहें डंडा झउवा लेकर पड़ी हैं। मेरी यह पोस्ट और उसमें दिए लिंक देख लीजिए।
ReplyDeletehttp://girijeshrao.blogspot.com/2009/10/blog-post_04.html
_________________-
ऐसे ही कह रहा हूँ। दूसरा पक्ष भी सामने आना चाहिए। रचना अति उत्तम है। 'अहिल्या के उद्धार और सीता को पाषाण 'अच्छा प्रयोग है। सोचने वाली बात है।
हमारी महाकाव्य परम्परा ऋतम्भरा है।
राम जी भी आसमान से जब जमीं पर देखते होंगे...
ReplyDeleteअदा जी को हमने '
काहे' बनाया, सोचते होंगे...
कुच्छ ज्यादा ही हाथ धोके पीछे पड़े हो जी आप तो राम जी के...
:)
लेकिन इसमें कोई दो राय नहीं के सीता , उर्मिला के साथ कुछ अच्छा नहीं हुआ...
एक ही प्रार्थना है प्रभु !
ReplyDeleteइस कलियुग में मत आना
गली गली में रावण हैं
मुश्किल है सीता को बचाना
वन उपवन भी नहीं मिलेंगे
कहाँ छोड़ कर आओगे !
क्योंकि, तुम तो बस,
अहिल्याओं का उद्धार करोगे
और सीताओं को पाषाण बनाओगे
प्रार्थना भी है, आक्रोश भी है और वर्तमान का जायज़ा भी है, जो पुरुषोत्तम है वही स्त्री उद्धारक भी और स्त्री मारक भी है... हे प्रभु ! कितने चेहरे तुम्हारे !!!
अदा जी ! आपकी यह पुरुषोत्तम गाथा भी पसंद आई ।
गहन भाव! अति सुन्दर रचना!!
ReplyDeleteपुरूषों में थे उत्तम , तभी पुरुषोत्तम कहलाये,
ReplyDeleteइसलिये ही किंचित स्त्री पीडा समझ न पाए,
किंतु प्रश्न बडा ये भी मन को है अकुलाए,
राजधर्म और पतिधर्म साथ साथ कैसे निभाए।
अंगूठे स्पर्श का उद्देश्य, उसे शापमुक्त करना था,
रावण का उद्देश्य अलग ,सीता को हरना था,
है यदि यही प्रश्न कि सीता पर क्यों उठी उंगली,
तो ये प्रश्न तो इतिहास को धोबी से ही करना था।
हैं बहुत प्रश्न अनुत्तरित, इसमें कोई संदेह नहीं,
किंतु तब मांगा जाता, यदि होते वो मानव देह नहीं
जी तो बहुत कर रहा है अदा जी कि लिखता जाऊं मगर फ़िर कभी.....आपके उठाये प्रश्नों का उत्तर इस समाज को ढूंढना ही होगा..मगर अभी तो स्थितियां और भी अपरिपक्व हो गयीं हैं। वैसे मैं किसी का पक्ष नहीं ले रहा, मगर उस युग में जब पिता दशरथ ने भी चार चार विवाह किये थे,....राम जी का अपनी एक मात्र पत्नी के प्रति समर्पण भी तो सोचने वाली बात है। आपने लिखा..पुरानी कविता..यानि जो धार आज दिख रही है कलम की उसे तो आपने बहुत पहले सान पर चढाया हुआ है
स्नेह बनाये रखें।
जैसे राम का सन्दर्भ कभी पुराना नहीं होता वैसे ही आपकी रचना कैसे पुरानी हो सकती है। खैर..।
ReplyDeleteवैदेही को त्यागना। आप क्या समझती है कि त्यागना बहुत आसान है? किसे त्यागा जाता है? जो आपका सिर्फ आपका अपना हो। और अपने को त्यागना...। एक पुरुषार्थ है यह। बहुत कठीन है, सिर्फ राम-श्याम के बस की बात है। फिर दुख किसे है? जो त्याज्य है उसे या जिसने त्यागा उसे? गम्भीर विषय है जी। मैं इसके अंतर में नहीं जाता और आपकी रचना का आनन्द लेता हूं। पौराणिक सन्दर्भों को आधार बना कर रचना करना कठिन होता है, और आप बखूबी निभा ले जाती हैं, कमाल की कल्पना शक़्ति हे और कमाल की शब्दशक़्ति। वैसे यह विषय सूई की नोंक पर रहता है।
aapki ye rachana mere man ko bhaya
ReplyDeleteRam ka ye nirnay main bhi samajh na paya
गहरे किंतु विचारणीय भाव।
ReplyDelete----------
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छल से सीता को छोड़कर पुरुष बने इतराते हो !
ReplyDeleteभगवान् जाने कैसे तुम 'पुरुषोत्तम' कहलाते हो
कितनी सही और सार्थक बात कही है । शुभकामनायें दीपावली की भी शुभकामनायें
कविता मे कथ्य का अपना महत्व होता है इसलिये उस पर बात की जाती है । इन विषयों पर लगातार कवितायें लिखी गई है और रामकथा भी तो कथा के शिल्प मे कविता ही है । जो इसे इतिहास समझते हैं वे तथ्यों को लेकर बहस कर सकते है लेकिन मिथ्कीय चरित्रों को हर कवि अपनी तरह से ट्रीट करता है । पहले हम इस बात को भलिभांति समझ ले यह ज़रूरी है । इस कविता मे पुरुष सत्ता के अनेक आयाम हैं इसलिये भी कि इन पात्रों को पुरुष ने रचा है मान लीजिये कि कोई स्त्री राम कथा लिखती तब भी क्या यही ट्रीटमेंट होता ? बहरहाल अच्छी रचना के लिये बधाई और इसी तरह प्रयास करे ।
ReplyDeleteHi aDaDi....
ReplyDelete"छल से सीता को छोड़कर पुरुष बने इतराते हो !
भगवान् जाने कैसे तुम 'पुरुषोत्तम' कहलाते हो"
aajkal khoob taang khachai ho rahi hai ek vishesh Tabke (?) ki....
...waise mujhe to usx din ki chat yaad ho aie....
...ahilya aur katrin wali !!
hahaha
Ek vinti: Kabhi hindu dharm par accha bhi likh do....
....kyunki aise posts se ke khaas kism ke bloggers ko kuprachar karne ka bal milta hai....
Samajh gayi hogi aap !!
...aur mujhe hindu dharm ke baare main koi kuch kahe to bura lagta hai....
...Tough i don't believe in god !!
But i believe in the path which god has shown to us....
...islye hi to kehta hoon saakar ki bhakti karna hi chor do....
....gita ki pooja nahi uska manan karna hai !!
अब यह सब सवाल तो राम जी से ही जा कर पुछ सकता हुं, मै या कोई दुसरा अपनी तरफ़ से केसे जबाब दे?ओर अभी मै उन के पास अपनी मर्जी से नही जाना चाहता, अगर गया तो आप को जरुर बताऊगां इस बात का जबाब उन से पुछ के कि भाई ऎसे काम करने ही थे तो उन के जबाब भी दे जाते, देखो धरती पर लोग परेशान है,
ReplyDeleteआप को ओर आप के परिवार को दीपावली की शुभ कामनायें
दर्पण भाई, आपकी कविता को प्रवाह के साथ पड़ा, भाव उम्दा थे, जो आप कहना चाह रहे थे पूरे दम के साथ रखा।
ReplyDeleteनारी की दशा तब पर भी खराब थी और आज भी है, आज भी पुरूषोत्मो की कमी नही है, जो अपनी सीतओं को तो माफ नही करते है, किन्तु खुद पुरूषोतम बन कर अहिल्याओं को ताराने में लगे हुये है।
यहाँ धार्मिक भावनाओ को दुखाने का मकसद नही है बल्कि यार्थत को दर्शाने का प्रयास है। आज के दौर में भी राम की फौज तैयार है, सीताऐं रावण से ज्यादा राम से भयग्रस्त है।
मुझे बहुत अच्छी लगी यह कविता, दोबारा जरूर आऊँगा। वादा रहा
छल से सीता को छोड़कर पुरुष बने इतराते हो !
ReplyDeleteभगवान् जाने कैसे तुम 'पुरुषोत्तम' कहलाते हो
एक ही प्रार्थना है प्रभु !
इस कलियुग में मत आना
गली गली में रावण हैं
मुश्किल है सीता को बचाना
वन उपवन भी नहीं मिलेंगे
कहाँ छोड़ कर आओगे !
क्योंकि, तुम तो बस,
अहिल्याओं का उद्धार करोगे
और सीताओं को पाषाण बनाओगे
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aapne mere man ki peeda ko ujaagar kar diya
-Sheena
itna sab karne par bhi shree ram purshotam kahlaate hain .....bahut gahraaye ki baat kahi aapne
ReplyDeleteकविता मे कथ्य का अपना महत्व होता है इसलिये उस पर बात की जाती है ।
ReplyDeleteबहुत सुन्दर रचना । आभार
ढेर सारी शुभकामनायें.
SANJAY KUMAR
http://sanjaybhaskar.blogspot.com
छल से सीता को छोड़कर पुरुष बने इतराते हो !
ReplyDeleteभगवान् जाने कैसे तुम 'पुरुषोत्तम' कहलाते हो
waah !!
ada ji,
sabse acchi baat aapn yahan bol gayi hain.
poori kavita mein ek pravaah hai.
bahut badhiya.
@Mahashakti ji, kavita 'ada' ji ne likhi hai 'Darpan ji' ne nahi.
(यह थोड़ी पुरानी कविता है).. ooohhhh.. matlab ki aap bahut pahle se ramji ke peeche lagi hui hain...
ReplyDeletepurushottam = purush + Uttam..
waise yudhisthir bhi dharm-raj the na!!! wahi wale jinhone apni patni ko (wo bhi saajhi) jua ke khel mein daanv par laga diya tha...
अदा जी ! आपकी यह पुरुषोत्तम गाथा भी पसंद आई ।
ReplyDeleteगहरा भाव है कविता मैं .... शब्दों का संयोजन भी बढिया है ... पर पता नहीं क्यूँ ... तभी तो थी वह अशोक-वन में !
ReplyDeleteकैसे पुरुषोत्तम हो तुम !
क्या साथ निभाया तुमने !
जब निभाने की बारी आई
तभी मुँह छुपाया तुमने ?
पढ़कर थोडा अजीब सा लग रहा है? हो सकता है राम जी के प्रति मेरी धारणा मैं ही कहीं खोट हो !
ram nhi dhundhe se milte
ReplyDeleteseeta fir bhi jeeti hai,
agni pariksha hi nhi deti .
ab to har jnm me apman ki agni piti hai .
andar tk bheega diya re, bawri tune to
apni hi biradaree ki lagti hai
jiyo aur yun hi likhti raho
indu puri