Friday, October 2, 2009
दूध....दूध...और दूध...
गाँधी जयंती की शुभकामना !!!
इधर बहुत दिनों से बस एक ही राग अलापते रहे हैं, वही दिल का रोना, दिल में छेद होना, अश्क, आहट, गम, दर्द और न जाने क्या-क्या मन कुछ उकता सा गया इन बातों से भी....
अब रोज-रोज शायरी भी कहाँ हो पाती है..वैसे भी हम रोज एक कविता लिख देते हैं तो लोगों को लगता है पता नहीं ..कहीं कोई कारू का खजाना तो नहीं मिल गया है गडा हुआ कविताओं का...अरे नहीं बाबा इ सब हम ही करते हैं....विश्वास कर लीजिये...
हाँ तो आज सोचे कुछ अलग हो जावे... बस इसी बहाने पहुँच गए बचपन में...जब हमारे घर गाय बियाई थी...
सुबह-सुबह ग्वाला आता था गाय दुहने और हम होते थे उनके पीछे पीछे ...नन्हा सा बछड़ा और हमरा हाथ उसकी गर्दन पर सहलाता हुआ...ग्वाला का नाम था 'करुवा'...अब करुवा गाय दुह रहा था ..हमको मालूम था कि कुछ दिन तक उ गाय का दूघ हम लोग नहीं पी सकते हैं ..नई बियाई थी न..उसके दूध से 'खिरसा' बनेगा....
हम बस लटके रहे बछा के साथ और देखते रहे गाय दुहना कि हमरा मन कैसा-कैसा तो हो गया देख कर...दूध की जगह लहू की धार निकल गयी थी....करुवा रुक गया ..का जानी का किया फिर दुहने लगा और अब दूध ही निकला...
लेकिन उ लहू की धार हमरे मन में ऐसा बैठी की बस हमरा दूध पीना बंद..और जो उस दिन हुआ उ आज तक बंद ही है...
इ बात हम सोचते-सोचते अब बुड्ढे होने लगे हैं फिन आज सोचे बोल ही देवें....
सोचिये...गाय किसके लिए दूध देती है...अपने बच्चे के लिए लेकिन हम मनुष्य उस बछडे के मुंह से दूध छीन कर पी लेते हैं क्या यह सही है ?
क्या यह पाप नहीं है ?
भगवान् ने हम मनुष्यों को भी माँ का दूध दिया है लेकिन एक उम्र तक के लिए ही....अगर दूध पीना इतना ही ज़रूरी होता तो हर माँ सारी उम्र दूध देती और हम सब सारी उम्र दूध पीते.. लेकिन ऐसा नहीं है....इसका मतलब यह हुआ कि दूध सिर्फ एक उम्र तक ही ज़रूरी है...फिर भी हम दूध पीते हैं वो भी किसी और के हिस्से का दूध छीन कर...
अब आते हैं इस बात पर कि क्या वो दूध सही है हमारे शरीर के लिए....गौर कीजिये....यह दूध गाय या भैस या किसी भी जानवर का है ...उस दूध में उस जानवार के जीवाणु हैं और उसी प्रजाति के लिए होने चाहए लेकिन हम उसे जान-बूझ कर अपने शरीर में डाल लेते हैं क्या यह हमारे स्वस्थ्य के लिए ठीक होता होगा...?? आप बताइए आप क्या सोचते हैं ???
अब बात करते हैं...क्या दूध....शाकाहारी है ???
अगर है तो क्यूँ और कैसे ????
सोचिये और आप जवाब दीजिये न.....
तो हो गए तीन प्रश्न ...
१. क्या किसी जानवर के बच्चे के हिस्से का दूध उससे छीन कर हम मनुष्यों का पीना सही है ?
क्या Animal Protection Act इसके लिए काम करेगा...?
२. दूध पीने से क्या दूसरे जानवर के जीवाणु हमें नुक्सान पहुंचा सकते हैं ?
३. क्या दूध वास्तव में शाकाहारी है ?
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विचारणीय मुद्दा -- विचारणीय सवाल
ReplyDeleteगाँधी जयंती के दिन सार्थक प्रश्न
1. मनुष्य दूसरों के हिस्सों दूध ही नहीं बल्कि और भी बहुत कुछ छीनता आया है क्योंकि उसे अहसास है कि उसे मरना है, और मरने से पहले वह अपनी अहम बुद्धि के बल से दुनिया के सब सुख, फिर चाहे वे प्राकृतिक हों या नहीं पा लेना चाहता है और इसी प्रवृत्ति के चलते शुरु होती है उसकी शोषण वृत्ति । पशु और मानव में एक अंतर यह भी है कि पशु को मरने का कोई पहले से संज्ञान नहीं होता, जबकि मनुष्य को संज्ञान होता है कि वह मरेगा ।
ReplyDelete2. क्या Animal Protection Act इसके लिए काम करेगा...? नहीं , क्योंकि मनुष्य की क्षुद्र सोच ने ही कानून बनाएँ हैं ।
3. दूध वस्तुत: उसी बच्चे के लिए बना है, जिसने उस जानवर से जन्म लिया है और उसी के लिए हर तरह से पौष्टिक और उत्तम भी है, लेकिन मनुष्य जो चौपायों का दूध पीता है,वह उसके लिए और उसके स्वास्थ्य के लिए पौष्टिक व स्वास्थ्यवर्धक तो नहीं कहा जा सकता, मैं एक ऐसे डॉक्टर को जानता हूँ जिनका शोध कहता है कि दूध पीने से हड्डियाँ कमजोर होती हैं और मनुष्य जिस चौपाया का दूध पीता है, उस चौपाया के कुछ गुण उसमें भी आ जाते हैं ।
दूध को शाकाहारी कैसे कहा जा सकता है ? दूसरे जानवर के शरीर से आए द्रव्य को शाकाहारी तो कतई नहीं कहा जा सकता ।
अरे आप तो मेरे बेटे की ही बाते करने लगी,इस बात क जबाब तो हमारे पास नही है, अब क्या कहे??
ReplyDeleteदुसरे लोगो के जबाब का इंतजार है,शायद ताऊ बता दे
आपके पहले सवाल का जवाब जहाँ तक मुझे लगता है कि अगर हम गाय का दुध नहीं पीते तो गाय बिमार हो जाती है क्यों कि जितना दुध गाय के थन में होता है अगर वह न निकला गया तो इसके विपरीत परिणाम देखने को मिलता है। और अगर सारा दुध उसके बच्चे को पिला दिया जाये तो वह भी बिमार हो सकता है क्योकी बच्चे में उतनी पाचन शक्ति नही होती।
ReplyDeleteआपके दुसरे सवाल का जवाब यह है कि दुध में होने वाले जीवाणु हमारे लिए फायदे मंद होते है। और ये बता पाना की दुध शाकाहारी है या मांसाहारी है जरा मुश्किल होगा लेकिन अगर वैज्ञानिक नजरिये से देखा जाये तो मांसाहारी ही होगा , ।
सीधे सादे दूध पर कितने सवाल खड़े कर दिये आपने .. मेरे देश मे करोड़ो बच्चों को दूध क्या पीने का साफ पानी तक नही मिलता ।
ReplyDeleteका! रे करुवा ...दुधवा दुहे के बा के नाही?
ReplyDeleteसोचिये...गाय किसके लिए दूध देती है...अपने बच्चे के लिए लेकिन हम मनुष्य उस बछडे के मुंह से दूध छीन कर पी लेते हैं क्या यह सही है ?
क्या यह पाप नहीं है ?
हाँ! यह पाप तो है ही....... पर क्या करें? प्रकृति ने ऐसा ही उसूल बनाया है..... और इसमें भी घबराने की बात नहीं है..... अब तो आज के ग्वाले सिंथेटिक दूध पिला रहे हैं.....भारत में......
दूध शाकाहारी है...... क्यूंकि हम घास खाने वाले जानवरों का दूध पीते हैं...... शेरनी और कुतिया का नहीं...... जो मांस खाते हैं..... इसलिए दूध शाकाहारी है..... अब यह बात अलग है की उस दूध के निकलने का रसता मांस से हो के जाता है....
हाँ! जानवर के हिस्से का दूध हम इंसान को इसलिए पीना चाहिए..... क्यूंकि जानवर का बच्चा एक लिमिट में पीता है..... और जो दूध स्तन में बच जाता है ...अगर वो बचा रहे..... तो जानवर में सिस्ट पैदा कर देता है.... जो ट्यूमर का रूप ले सकता है.... इसलिए हमें जानवर का दूध पीना चाहिए.... दुसरे जानवर के जीवाणु हमारे शरीर में नहीं आयेंगे.... क्यूंकि..... मनुष्य की शारीरिक संरचना इस प्रकार से है..... की वो उन जीवाणुओं को ख़त्म कर देता है.....
१. बछडे के हिस्से का दूध छीन कर पीना तो पाप ही है | गाय के दिध पर बछडे का अधिकार पहला है | कम से कम ३०-४०% दूध बछडे को मिलना ही चाहिए | हाँ उसके बाद जो बचे वो हमारे लिए है और इसमें कोई गलती नहीं |
ReplyDeleteलेकिन आज जो दूध हम पीते हैं उसमे १०% ही बछडे को दिया जाता है बाकी ९०% से business चालु | इतना ही नहीं अब तो बछडे को जन्म के समय ही मार दिया जाता है और injection डाल कर दूध निकाल लेते हैं | modern साइंस भी injection वाली दूध को घातक मानता है |
बछडे को उसके हिस्से का दूध ना देना एक ऐसा जटिल समस्या है की Animal Protection Act वाले भी इसपे कुछ कर नहीं पायेंगे ...
२. अभी तक माडर्न साइंस भी यही मानता आया है की दूध को अच्छी तरह गर्म कर पीने से कोई हानी नहीं | ना ही इनके जीवाणु हमें कोई नुकसान पहुचा सकते हैं | दही की तरह ही यदि कोई जीवाणु होते भी हैं तो वो शायद अच्छे वाले ही होते होंगे |
३. किसी भी जीव को मार कर खाना मांसाहार है, चुकी दूध मैं हम किसी जीव को प्रतक्ष्य रूप से नहीं मारते तो ये मांसाहार मैं नहीं आता | बराबर हम देखते हैं की फलों मैं सब्जियों मैं छोटे छोटे कीडे आदि रहते हैं जो कभी निकल जाता है कभी नहीं | हम खाते फल सब्जी हैं उसके साथ गलती से यदि कोई कीडा आ गया तो इसे मांसाहार नहीं माना जा सकता | यही नियम दूध पे भी लागू होता है | वैसे मैंने कई शाकाहारियों (उनमें से एक मेरी नानी थी) को दूध या दूध से बनी चीजों का त्याग करते हुए देखा है |
अदाजी
ReplyDeleteबछडे के मुंह से दूध छीन कर पी लेते हैं क्या यह सही है ?
बिल्कुल भी नही धर्म शास्त्र, चिकित्सा शास्र, आयुर्वेद तीनो ही इस मामले मे एक मत है- जब तक सन्तान दूध पीती है तब तक दोहन व्रजित है, हानिकारक है, अमानविय है।
किन्तु उस पहलू के बाद उसका दुसरा पक्ष अलग है। घर्मशास्त्र मे दुध को कही व्र्जित नही कहा गया है। आयुषवेद एवम चिकित्सा शास्त्र ने दुध को मानव के लिए हीतकारी बताया।
प्राचीनकाल मे दुध कि बहुत कीमत थी। किसी अतिथि को सस्नेह दूध पिलाया जाता और काहवत थी कि-"दूध और पूत को बेचा नही जाता।"
पर आज तो भर बाजार मे दूध और पूत की बिक्री कर करोडपति बनना चाहते है।
काली गो का दूध सर्वोतम माना गया है। यह वात नाशक एवम अधिक लाभप्रद माना गया है। पीली गाय का धूध पित्तनाशक होता है। श्वेत गाय का दूध कफकारक एवम भारी होता है। चितकबरी गाय का दूध भी वात नाशक होता है। तरुणी गाय का दूध त्रिदोष नाशक एवम रसायन होता है। वृद्ध गाय का दूध दुर्बलताजनक होता है। भैस का दूध बल कारक,वर्ण को सुन्दर करने वाला, निन्द्रा जनक, शुक्रजनक, कफ कारक, पोष्टिक भरा होता है। बकरी का दुध कसेल,शीतल,मलाअवरोधक, हल्का, खासी, क्षय रक्तातिसार मे हितकारी एवम त्रिदोषनाशक है।
शरीर को पोषण करने वाले सारे तत्व दुध मे प्रचुर मात्रा मे प्राप्त होते है। सबसे महत्व की बात शरीर सरक्षण के लिऍ जितने एनिमल प्रोटीन की जरुरत है वह उसे दूध, धी के अतिरिक्त किसी अन्य प्रदार्थ मे उपलब्ध नही है। दूध मे विटामिन ए बी और डी बहूत मात्रा मे पाया जाता है।
मेरे ज्ञान अनुरुप दूध को मासाहारी नही कहा जा सकता। क्यो की इसमे प्राण के तत्व मोजुद नही है, यह मात्र द्रव्य है। चुकी गाय को हम इसलिऍ माता कहते है कि हम भी उसकी सन्तान है वह हमे अपने दुध से पालती है। चुकी कृष्ण भगवान तो दुध दही घी का बडे ही चाव से सेवन करते थे।
हॉ अदाजी, एक बात जरुर है की कुछ व्यवसायिकरण की अन्धी दोड मे मुख प्राणीयो पर किऍ जा रहे अत्याचार अमानविय है, घोर पाप है। यहा पर मै आपसे सहमत हू। ( जैसे अधिक दूध प्राप्ति हेतु इन्जेक्शनो का साहरा लेना)
क्षमा करे पसन्द वाला विषय था- तो मोका भी था- दस्तुर भी- तो लगे हाथ आपसे पन्गा लेने की गुस्ताखी कर बैठा हू क्षमा कर ही देना क्यो कि हम तो आपके फैन है।
हिन्दी ब्लोगिग मे प्रदुषण का लेवल बढा
हे! प्रभु यह तेरापन्थ
मैं बचपन में जिस ग्वाले से दूध लेने जाया करता था उसका नाम गोसांई था । जो भी हो खिरसा खाने में मजा बहुत आता है । सुन्दर चर्चा के लिये आभार ।
ReplyDeleteYe 'ada' niralee hai,
ReplyDeleteis jagat me akelee hai,
Na aisee doosaree koyee,
Ye dilkee gawahee hai..
aalekh pe bahas nahee,lekin gaay aur bchhade kee tasveer dekh meree aakhen sajal ho gayeen...
आप की बात सही है पर एक बात कहना चाहूंगा-
ReplyDelete"वृक्ष कबहु नहि फल भखै,नदी न संचै नीर ।
परमारथ के कारनै , साधू धरा शरीर ॥"
समस्यायें कहां नहीं हैं आखें खोल कर देखिये जी नहीं सकेंगे हम !
इन सब के बीच मध्यमार्गी होना ही होता है ।
अदाजी ,
ReplyDeleteआपके सवाल का सही जवाब मिथिलेश दुबे और महफूज अली ने दे दिया है ....
बछडे के पीने के बाद बच दूध पीना कोई पाप नहीं है ....
ये अलग बात है की इसका पूर्णतः व्यवसायीकरण होने के कारण आज कल दूध बछडे के मुंह से छीन कर ज्यादा लाभ कमाने का प्रयास किया जाता है जो की निंदनीय है ...
बहुत सार्थक और विचारनीय रही आज की प्रविष्टि...
आपने उस शाश्वत विचारधार को घेरे में ले लिया, जो आदिकाल से हमारे पुरखों, कथा, कहानियों द्वारा हमें अमृत रूप में उपरवाले द्वारा प्रचुर मात्र मेंउप्लाब्ध कराया गया है.
ReplyDeleteभला बताइए, दूध नहीं होता तो क्या कृष्ण माखन खा पाते, गायों को मुरली की धुन सुनते...
कथा में भगवान को दूध और घृत का स्नान कराया जाता.
चरनामृत भी दूध से ही बनता है जिसे सर्वाधिक पवित्र मन जाता है.
हलके लाल रंग का दूध निकलते देख अगर आपने दूध पीना छोड़ दिया तो शायद माएं अगर किसी बच्चे का होना देख लें तो शायद वे भी बच्चे जनना छोड़ डिगी.
जहाँ तक शाकाहारी और मांसाहारी की बात है, तो शाकाहारी लीगों को आवश्यकता पड़ने पर खून का एक कतरा भी अपने शारीर में लेने से इंकार कर देना चाहिए. शायद इसी से उनके शाकाहारी होने की पहचान को बक मिले.
गांधीजी अपने संग बकरी रखते थे, वो उसके बच्चे को भी उसका दूध पिलाते थे और खुद भी पीते थे.
क्योंकि यह एक बहस का मुद्दा है, इसलिए ज्यादा मैं बहस में उलझाना नहीं चाहता, बस इतनी ही इल्तिजा है शाश्वत भावनाओं के साथ चंद तर्कों के साथ खिलवाड़ नहीं किया जाना चाहिए, एक आद घटना से मन में जन्में नफ़रत का खात्मा कर जीने की कोशिश करनी चाहिए......
चन्द्र मोहन गुप्त
जयपुर
www.cmgupta.blogspot.com
अदा जी जानकारी कम है इस माममले में माफ़ करिएगा
ReplyDeletepedon main jeevan hone ke baare main kya khaya hai aapka aDaDi...
ReplyDelete...lamba answer Monday ko doonga...
abhi bahut busy cahl raha hoon !!
Filhaal mithelesh dubey ji ka jawab hamara maana jaave !!
हे भगवान
ReplyDeleteअब दूध से भी गए !
बहुत ही जायज सवाल उठायें हैं आपने, अनबोलों की बात सुनी जानी चाहिये।
ReplyDeleteपहले प्रश्न का उत्तर - किसी जानवर के बच्चे के हिस्से का दूध पीना तो ग़लत है पर जो हम पीते हैं वो किसी के हिस्से का नही होता.. वो दूध निकलना ज़रूरी होता है जानवर के स्वस्थ रहने के लिए.. जहाँ तक Animal Protection Act का सवाल है, वो तो violate ही नही होता क्योंकि किसी जानवर को कोई नुकसान नही पहुँचाया जा रहा है..
ReplyDeleteदूसरे प्रश्न का उत्तर - ये एक science सिद्ध सत्य है कि दूध से इंसानो को किसी प्रकार का कोई ख़तरा नही है..
तीसरे प्रश्न का उत्तर - दूध शाकाहारी है या नही, इस के लिए हमें पहले शाकाहारी भोजन किसे कहते हैं ये पारिभाषित करना पड़ेगा क्योंकि अलग अलग विद्वांो ने अलग अलग परिभाषायें दी है.. उदाहरण के लिए कुछ लोग अंडा भी शाकाहारी बताते हैं ( जो कि मुझे कतई लॉजिकल नही लगता). मेरे व्यक्तिगत विचार दूध को शाकाहारी बताते हैं..
शुक्रिया...