Thursday, October 8, 2009
एकादशानन...
(एक पुरानी रचना है )
अक्सर मेरे विचार, बार बार जनक के खेत तक जाते हैं
परन्तु हर बार मेरे विचार, कुछ और उलझ से जाते हैं
जनक अगर सदेह थे, तो विदेह क्योँ कहाते हैं ?
क्योँ हमेशा हर बात पर हम रावण को दोषी पाते हैं ?
मेरे विचार, फिर बार बार जनक के खेत तक जाते हैं
क्योँ दशानन रक्तपूरित कलश जनक के खेत में दबाता है ?
क्योँ जनक के हल का फल उस घड़े से ही जा टकराता है ?
कैसे रावण के पाप का घड़ा कन्या का स्वरुप पाता है ?
क्योँ उस कन्या को जनकपुर सिंहासन बेटी स्वरुप अपनाता है ?
किस रिश्ते से उस बालिका को जनकपुत्री बताते हैं ?
मेरे विचार, फिर बार बार जनक के खेत तक जाते हैं
क्योँ रावण सीता स्वयंवर में बिना बुलाये जाता है ?
क्योँ उस सभा में होकर भी वह स्पर्धा से कतराता है ?
क्योँ उसको ललकार कर प्रतिद्वन्दी बनाया जाता है ?
क्योँ लंकापति शिवभक्त, शिव धनुष तोड़ नहीं पता है ?
क्योँ रावण की अल्पशक्ति पर शंकर स्वयम् चकराते हैं ?
मेरे विचार, फिर बार बार जनक के खेत तक जाते हैं
क्योँ इतना तिरस्कृत होकर भी, वह दंडकवन को जाता है ?
किस प्रेम के वश में वह, सीता को हर ले जाता है ?
कितना पराक्रमी, बलशाली, पर सिया से मुंहकी खाता है ?
क्योँ जानकी को राजभवन नहीं, अशोकवन में ठहराता है ?
क्या छल-छद्म पर चलने वाले इतनी जल्दी झुक जाते हैं ?
मेरे विचार, फिर बार बार जनक के खेत तक जाते हैं
क्योँ इतिहास दशानन को इतना नीच बताता है ?
फिर भी लंकापति मृत्युशैया पर रघुवर को पाठ पढ़ाता है
वह कौन सा ज्ञान था जिसे सुन कर राम नतमस्तक हो जाते हैं ?
चरित्रहीन का वध करके भी रघुवर क्यों पछताते हैं ?
रक्तकलश से कन्या तक का रहस्य समझ नहीं पाते हैं
इसीलिए तो मेरे विचार जनक के खेत तक जाते हैं
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बहुत बहुत बहुत ही लाजवाब लिखा है आपने..
ReplyDeleteकोई सानी नही हो सकता...
http://dunalee.blogspot.com/
जय हो रावण महाराज की ...
ReplyDeleteक्योँ इतिहास दशानन को इतना नीच बताता है ?
ReplyDeleteफिर भी लंकापति मृत्युशैया पर रघुवर को पाठ पढ़ाता है
वह कौन सा ज्ञान था जिसे सुन कर राम नतमस्तक हो जाते हैं ?
चरित्रहीन का वध करके भी रघुवर क्यों पछताते हैं ?
रक्तकलश से कन्या तक का रहस्य समझ नहीं पाते हैं
इसीलिए तो मेरे विचार जनक के खेत तक जाते है
हमारे लिये तो नई रचना ही है बहुत सुन्दरौर प्रश्न एक दन सटीक मुझे । अगर रावण का होना दुनिया मे जरूरी है तो उस जैसे रावण होते आज के रावण को क्या कहें इस पर भी एक कविता ऐसी ही लिखें ये आप ही लिख सकती हैं शुभकामनायें
बहुत ही behatareen rachna ...
ReplyDeleteये तो थी बात ravan ki .. एक और बात puchta हूँ.. meghnaad को हम किस बात की saza देते हैं उसका putala jalakar ??? pitribhakti की saza ?? या rashtrabhakti की saza .. vibheeshan को हम अच्छा क्यों batate हैं.. ये कुछ sawaal हैं jinka jawab "Mahabharat की एक saanjh " sheershak rachna में है.. भरत Bhushan Agarwal जी की rachna थी शायद.. school में padhi थी मैंने.. अगर कहीं मिली तो jaroor bhejunga..
aapke vichaar baar baar janak ke khet tak jaate hai
ReplyDeleteaur in sare questions ke sath vapas laut aate hai...
anyways.. ur all questions r genuine and i do agree..
-Sheena
itne saare kyun?
ReplyDeletekyun?
जनक अगर सदेह थे, तो विदेह क्योँ कहाते हैं?
ReplyDeleteअद्भुत है यह 'क्यो'
बहुत खूब
Itihaas ya phir kathakaro ke seene me aise hee naa jane kitane prashn dabe hai aur aaj ka maanav dharam
ReplyDeletese judee har baat ko bas aankh kan band kar maanata hai aastha rakhata hai vivek ko beech me lana hee nahee chahta !
jhakjhor dene walee acchee rachana /
कितने सारे प्रश्न है पर उत्तर किसी का नहीं पता, ऐसा क्यों ।
ReplyDeleteइतने सारे....
ReplyDeleteलाजबाब!!
वाह अदा जी ! इस तरह की रचनाओं में आपका कोई सानी नहीं है...एक आपकी पुरषोतम राम वाली ने दिल ले लिया था..एक ये है बेहद रोचक.
ReplyDeleteमेरे विचार, फिर बार बार जनक के खेत तक जाते हैं
ReplyDeleteबहुत ही शानदार कविता।बधाई
अदा जी नमस्कार ऐसा लिखा है कि क्या बोलू आप मेरे तरफ से सारे ऊपर के कमेन्ट मेरे मान लो :)
ReplyDeleteआध्यात्मिक यात्रा के प्रारंभिक प्रश्न ???
ReplyDeleteसुंदर
वह कौन सा ज्ञान था जिसे सुन कर राम नतमस्तक हो जाते हैं ?
ReplyDeleteचरित्रहीन का वध करके भी रघुवर क्यों पछताते हैं ?
रक्तकलश से कन्या तक का रहस्य समझ नहीं पाते हैं
इसीलिए तो मेरे विचार जनक के खेत तक जाते हैं
aapke saare sawal laazwaab jo uthe itihaas ke panno pe ,umda .
चरित्रहीन का वध करके भी रघुवर क्यों पछताते हैं ?
ReplyDeleteरक्तकलश से कन्या तक का रहस्य समझ नहीं पाते हैं
इसीलिए तो मेरे विचार जनक के खेत तक जाते है
बहुत सुंदरभाव लिये है आप की कविता.
धन्यवाद
आपकी यह पुरानी कविता कितने युगों तक भी नयी रहेगी ...इसके सारे सवाल शाश्वत जो हैं ...बहुत से मस्तिष्क में उठते इन सवालों को अपने शब्द देने का बहुत आभार ...!!
ReplyDeleteWahh!Ada
ReplyDeletebahut sal pahley ek anam ladki ko maiey apni diary mein 'ada' nam dia tha. kuch dino ke bad mere blog par yadi aa payengi to aapka apni us ada se parichay karvana mere liye ek sukhad anubhav hoga. ekadshanan bahut achhi rachna hai.
myth se itihas ki talash jari rakheyn.shubham.
Chandan kumar Jha ki tippni kolekar
ReplyDeletekavi swaym prshan hi hota hai.
मैम को प्रणाम है..कल आपका नंबर फ्लैश हुआ था तीन-चार बार मोबाइल के स्क्रीन पर। मन कुछ अजीब-सा हो रखा है, तो किसी का फोन रिसिव नहीं कर रहा था। आशा है, आप समझेंगी। दर्द में सुधार है, मन को ठीक होने में वक्त लगेगा तनिक...
ReplyDeleteआपकी ये रचना अप्रतिम है। कुछेक सवाल तो पहले भी उठे हैं, लेकिन आपका अंदाज निराला है। जहां तक जनक के "विदेह" कहलाने का है, तो मेरे ख्याल से ये उपनाम उन्हें सीता की उत्पत्ति के बाद प्राप्त हुआ। वैदेही सीता से विदेह जनक...और एक तर्क ये भी है कि वो राजा होते हुये भी और गृहस्थ होते हुये भी, सब कुछ का परित्याग किये हुये थे.... शायद इसलिये।
किंतु ये विचारों का "जनक के खेत" तक जाने का उद्गार बहुत ही सुंदर बन पड़ा है।
बधाई एक अनूठी रचना के लिये....
bit busy ....
ReplyDeletein office....
abhi padhi nahi hai...
waapis aata hoon....
One recommendedation:
http://dafaatan.blogspot.com/
आपने कहा है यह आपकी बहुत पहले की लिखी रचना है......मैं उत्सुक यह जानने के लिए हूँ कि आपके जिज्ञासाओं का समाधान आजतक हुआ है या नहीं ?????
ReplyDeleteप्रस्तुत रचना में काव्य सौन्दर्य बहुत ही सुन्दर है, चिन्तन आध्यात्मिक मार्ग का पड़ाव है...इसमें गहरे उतरने पर आपको ऐसे ऐसे खजाने मिलेंगे कि बस......
बड़ा ही अच्छा लगा आपकी चिंतन धरा देख कर.....
मेजर साहिब,
ReplyDeleteसैलूट, प्रणाम, खुश रहिये,
कोई बात नहीं....
आपकी टिपण्णी की लम्बाई बता रही है की आपका हाथ ठीक है और टिपण्णी के भावः बता रहे हैं की मन भी ठीक होने की दिशा में शनै-शनै बढ़ रहा है.....
शेर कितना भी घायल हो घास नहीं खाता है .....ठीक वैसे ही मेजर साहिब ने बात नहीं की तो क्या टिपण्णी तो देखिये .... !!!!!
रंजना जी,
ReplyDeleteसबसे पहले आपका आभार.....हौसला बढा जी हमारा......
जी हाँ यह कविता पुरानी है.....और विश्वास कीजिये वो दिन और आज का दिन आज तक मेरे प्रश्नों को उत्तर मुझे नहीं मिला है....और आज भी...अभी तक ......उत्तर नहीं मिला है.....
ख़ुशी है की अब मेरे साथ मेरे पाठक भी है प्रश्न पूछते हुए....
मेजर साहिब ने एक प्रश्न का उत्तर देने की अवश्य कोशिश की है....धन्यवाद गौतम जी......
अच्छी रचना!
ReplyDeleteआपके सारे प्रश्नों के उत्तर में सिर्फ इतना ही कहूँगा कि समय, काल और परिस्थिति के अनुसार मान्यताएँ और आदर्श बदल जाते हैं। आपने किसी अन्य काल की घटनाओं पर आज की मान्यताएँ और आदर्शों को ध्यान में रखकर प्रश्न उठाए हैं इसीलिए ये अनुत्तरित रह जाते हैं।
फिर भी मैं समझता हूँ कि मैं आपके सारे प्रश्नों का नहीं तो कम से कम कुछ प्रश्नों का उत्तर तो दे सकता हूँ किन्तु वह यहाँ पर टिप्पणी में सम्भव नहीं है। वाल्मीकि रामायण का अध्ययन कीजिए, आपके बहुत से प्रश्नों का उत्तर मिल जायेगा और शायद आपको भी यह भी आभास होने लगेगा कि आपके कुछ प्रश्न गलत हैं जैसे कि क्यों "हमेशा हर बात पर हम रावण को दोषी पाते हैं?" रावण अपने समय का प्रकाण्ड पण्डित था पर उसमें सिर्फ एक ही दोष था और वह था उसका अहंकार।
काश सीता का दी एन ये टेस्ट हो पाता -सब उजागर हो जाता -जनक और दशानन से उनका सम्बन्ध !
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