Sunday, October 25, 2009
प्रभु मुझे शकुनी सा मामा देना
प्रभु मुझे शकुनी सा मामा देना और मंथरा सी दासी
सोचोगे तुम विक्षिप्त हूँ मैं या हूँ अविवेकी जरा सी
पर सोच के देखो तो समझोगे मैंने क्या समझाया है
उन दोनों ने पूरा जीवन बस प्रेम में ही बिताया है
शकुनी ने दुर्योधन प्रेम में अपना जीवन दैय डारि
और मंथरा कैकैये-भारत के प्रीत में हुई मतवारी
ऐसा मामा कहो कभी कहीं भी तुम्हें नज़र आया
जिसने अपना सम्पूर्ण जीवन भांजे के सुख में गँवाया
मुझे जो ऐसा मामा मिलता मैं स्वयं को धन्य कहाती
हर जन्म में यही मामा मिले ह्रदय से कामना कर जाती
गौर से गुणों महाभारत तो सबने सबको दिया है धोखा
धर्मराज युधिष्ठिर तक ने पत्नीव्रत का वचन कब रखा
कृष्ण की तो बात ही छोडो न जाने कितने छद्म चलाये
अश्वस्थामा की झूठी खबर सुन गुरु द्रोण के प्राण गँवाए
भीष्म पितामह को शिखंडी की ओट में हताहत कर दिया
और कुंती ने कर्ण से सिर्फ अर्जुन वध का प्रण ले लिया
इतने सारे पात्रों में मुझे बस एक पात्र ही भाया है
शकुनी ने हर हाल में अपनी बहन से प्रेम निभाया है
मत देखो उस प्रेम का प्रतिफल किसको क्या मिला है
बस प्रेम को देखो ऐसा प्रेम दूजा नहीं कभी खिला है
शकुनी के निश्वार्थ प्रेम को आज मलीनता से बचाऊँगी
बस यदि मेरा चल जाए मैं फ़िर महाभारत लिख जाऊँगी
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Kya baat hai Di, aapmne to ghor andhere me bhi ek sakaratmak soch ki kiran dhoondh nikaali... aapke sochne ka tareeka hi sabse hat ke hai..... ha tke achchhe sense me.
ReplyDeleteshayad Ramayan aur Mahabharat naye sire se likh rahi hain aap.. :)
badhai...
Aapka anuj
महाभारत प्रसंग में शकुनी का चरित्र वाकई अलग सा समर्पित व्यक्तित्व है.
ReplyDeleteइन पात्रो को नए नज़रिये से देखने के लिये साधुवाद
अदा जी ,आप सचमुच एक नया "अदा " महाभारत ही लिख रही हैं
ReplyDeleteमौलिक उद्भावनाओं और नयी विचार सरणियों के साथ !
और हाँ सही कह रही है न आप मन्थरा और शकुनी की एकला निष्ठां
में कही खोट नहीं है -दयनीय और अधूरे वे हैं जिन्हें एक अदद शकुनी और
मंथरा की दरकार है -आप को कहाँ उनकी जरूरत ?
ये भी एक अदा ही कहलाई..जय हो!! आमीन!!
ReplyDeleteशकुनी और कैकेयी का प्रेम व् निष्ठा जरुर एक उदहारण के रूप में प्रस्तुत किया जा सकता है ...मगर ये दोनों चरित्र आदर्श के रूप स्वीकारे जाने योग्य तो बिलकुल भी नहीं है ....
ReplyDeleteआपकी इस बात से सहमत हूँ की पूरी महाभारत ही छल प्रपंच, पाखंड, दुष्टता की मिसाल है मगर हम ये क्यों भूले की इन अवगुणों के कारण ही महाभारत रचा गया और एक उन्नत सभ्यता का अवसान हुआ ... !!
ऐसा मामा कहो कभी कहीं भी तुम्हें नज़र आया
ReplyDeleteजिसने अपना सम्पूर्ण जीवन भांजे के सुख में गँवाया.nice
waani ji se poori tarah sahmat hoon.....
ReplyDeleteis ke saath hi dhratraashtr duryodhan dushaasan jaisse paatr bhi..
hame kisi tarah manjoor nahi hain..
अदा जी,
ReplyDeleteएक मामे आजकल भारत की सड़कों पर भी नज़र आते हैं...खाकी वर्दी में नुक्कड़-चौराहों पर उगाही करते हुए...नकद नारायण के लिए इन मामों की निष्ठा के आगे शकुनि और मंथरा क्या पानी भरेंगे...
जय हिंद...
आपकी ये निराली अदा भा गयी.
ReplyDeleteहास्य व्यंग के लिये ये अलग नज़रीया ठीक है, मगर वास्तविक जीवन में भी हम तर्क से हर चीज़ को सही या गलत करार दे सकते हैं क्योंकि यह सब्जेक्टिव मसला है.
However, it is the sum total of goodness v/s badness in youself which should prevail. How grey you are and how much you thrive to be towards White.
कमाल है
ReplyDeleteमिश्रा जी की बात भली लगी मुझे.
अब भाई, मामा तो मामा ही होता है, आखिर कंस भी तो मामा ही था।
ReplyDeleteऐसा मामा कहो कभी कहीं भी तुम्हें नज़र आया
ReplyDeleteजिसने अपना सम्पूर्ण जीवन भांजे के सुख में गँवाया
मुझे जो ऐसा मामा मिलता मैं स्वयं को धन्य कहाती
हर जन्म में यही मामा मिले ह्रदय से कामना कर जाती
आप ख्वाब अच्छे देख लेती है !
सुन्दर कविता !!
ReplyDeleteप्रभु मुझे अदा जी जैसी बहना देना
हे राम इस लडकी की अदायें तौबा ।पता नहीं कहाँ से नई बात निकाल लाती है। बहुत सुन्दर रचना है बधाई।ढेरों शुभकामनायें
ReplyDeleteये भी एक नई दृष्टि डली इस पात्र पर. बहुत बढिया.
ReplyDeleteरामराम.
di.. ek ek kar aap saare pauranik paatron ki vyakhya kar rahi hain aur bilkul alag andaaz mein.. ye bhi to ek naya granth hi ban jayega!!!
ReplyDeleteAda ji aapne to mahabharat ko padne ki bhi nahi ada sikhaayi hai...
ReplyDeletejinhe samajhti rahi yeh duniya galat unki galtiyo mein bhi sahi ki roshni dikhayi hai...
-Sheena
बिलकुल सही कहा अदा जी! वैसे नए परिवेश अमिन नई सोच के साथ नया महाभारत लिखा ही जाना चाहिए आप ही लिख डालिए...... मुझे पसंद आई आपकी बात.
ReplyDeleteप्रभु मुझे शकुनी सा मामा देना और मंथरा सी दासी...
ReplyDeletebahut dino baad aaiya hoon apke blog main (Any mouse 007)
waise meri bhi dili iccha hai prabhu mujhe aDaDi jaisi 'Ladaka' di mat dena....
...aisa bhi koi tippani karta hai bhala apne bhai ke blog main?
waise main us comment kitna accha feel kar raha hoon...
...aapko to pata hi hai !!
isliye apni latest post (hehehe) aapko dedicate karta hoon !!
इतने सारे पात्रों में मुझे बस एक पात्र ही भाया है
शकुनी ने हर हाल में अपनी बहन से प्रेम निभाया है
to aaj se mujhe shakuni hi kehna aDaDi....
आपका अलग अंदाज़ भी कमाल का है ....... नया दृष्टिकोण है ...
ReplyDeleteमैं आऊं और चला जाऊं ऐसा हो नहीं सकता
ReplyDeleteग़ज़ल सुनके ना टिपियाऊं ऐसा हो नहीं सकता
अदा जी आपका अंदाज़ है सब से जुदा लेकिन
सभी को मैं ही बतलाऊं ऐसा हो नहीं सकता
--योगेन्द्र मौदगिल
अदा जी,
ReplyDeleteअच्छा लगता है
जब आप पौराणिक पात्रों के चरित्र में नए नए आयाम खोजती हैं...
एक नया दृष्टिकोण देती हैं... उनके और भीतर झाँकने के लिए....
लेकिन इस शकुनी नाम के जीव से हमें कोई प्रेम नहीं है.....
आपने उसका सिर्फ एक रूप देखा ... वो ये की उसे अपनी बहन से अटूट प्रेम था... और जीवन भर रहा.....
मान लिया....
इसका मतलब ये तो नहीं ...के किसी और को किसी से कोई प्रेम नहीं था..या वो प्रेम जीवन भर नहीं रहा...
माफ़ी चाहूंगा हाथ जोड़कर...
पर मैं आपसे बिलकुल भी सहमत नहीं हो पा रहा हूँ...
इस से पहले हमने 'ध्रतराष्ट्र' पर भी आपत्ति उठाई थी...!
कल को आप दुर्योधन, कंस पे लिखोगे तो उस पर भी उठाऊंगा..
आशा है आप माफ़ करेंगी...
सादर..
मनु....
आदरणीय मनु जी,
ReplyDeleteप्रणाम,
अच्छा हुआ आपने यह प्रश्न उठाया है....
आपकी ही बात लेते हैं.....शकुनी शायद बहुत ही बुरे होंगे... लेकिन वो एक श्रेष्ठ 'मामा' थे...और मेरी कविता सिर्फ एक उसी रिश्ते की बात कर रही है.....उनके जैसा 'मामा' संसार में दूसरा शायद 'कंस' हुए हों.....और हमारे अगले 'नायक' भी वही है.....
कितनी अजीब बात है.....क्यूंकि हमारे ग्रंथों में उनको खलनायक कहा गया है इसका अर्थ यह नहीं कि उनमें अच्छाई नहीं थी.....कितनी आसानी से राम कि गलतियों को, कृष्ण कि बेईमानियों को ...'अभिनय' 'लीला' जैसे शब्दों का जामा पहना कर हमलोग उन्हें सही करार देने में जुट जाते हैं वहीँ दूसरे किसी पात्र विशेष को ऐसा कोई मौका भी देने के लिए तैयार नहीं रहते हैं.....मैं जब इन पत्रों के विषय में सोचती हूँ तो खुद को उनके स्थान पर रखती हूँ...और सोचती हूँ क्या मैं ऐसा करती.....जब हर तरफ से मान लेती हूँ कि जो उन्होंने ने किया वो अदम्य था.....सर्वथा स्वार्थहीन था......तब ही लिखती हूँ....
आप की असहमति कोई नयी नहीं है......यह असहमति तो सर्वत्र है .....शुरुआत तो सहमतियों की हुई है....चाहे वो मात्र एक ही क्यों न हो.....
और हाँ...दुर्योधन और दुह्शाशन पर लिखने की मेरी हरगिज भी मंशा नहीं है.....लेकिन 'कंस' जी हाँ ...मेरे विचार से उसका चरित्र भी काफी ऊँचा था.......
शकुनी मामा कि खासियत आपने बखूबी बताई क्योकि वो कही तो एकनिष्ठ था उसने जो ठाना और अपने लक्ष पर ध्यान दिया और जिनके लिए किया उन्हें कभी नही छला
ReplyDeleteनई महाभारत हमको तो भाई |
इनदोनो पात्रों पर पूरा उपन्यास लिखा जा सकता है ।
ReplyDeleteसकुनी तो दुर्योधन को हमेशा गलत रास्ता दिखाता रहा | दुर्योधन प्रेम मैं द्रौपदी का वस्त्र हरण, ये प्रेम तो नहीं हो सकता, क्या इसे प्रेम कह सकते हैं ?| सकुनी अच्छी तरह जानता था पांडव वस्त्र हरण का बदला ले के रहेंगे ... फिर भी वस्त्र हरण करवाया ... मतलब साफ़ सकुनी वास्तव मैं दुर्योधन का विनाश कर रहा था ... क्या सकुनी जैसा कुटिल ये नहीं नहीं जानता था की वो क्या कर रहा है ... ?
ReplyDeleteअदा जी एक टीवी सीरियल की तरह आपने यदि ये कविता लिखी है तो सही है ... | पर इतिहास के संधर्भ मैं किसी भी द्रिस्तिकों से सकुनी का दुर्योधन के प्रति प्रेम नहीं था ...
वैसे आज के युग मैं ... लोगों को सकुनी का कुटिल प्रेम(?) ही चाहिए ... उस हिसाब से कविता ठीक है |
Anonymous Ji,
Deleteजिस स्त्री को उसका पति ही जूए में दांव पर लगा दे, उस पत्नी के प्रति उसके पति के हृदय में कितना सम्मान था, ये समझने वाली बात है। सम्मान हरण तो युधिष्ठिर कर चुके थे, वस्त्रहरण की बात तो बाद में आती है।
Vakai Me Bahut hi achha likha hai Aapne, Aapne sabse Alag Hatke Sochne ka najariya Pesh kiya hai, aapke is lekh se ek Bahut badi Seekh mili hai Koi Achha hai ya bura Ye us baat Par Nirbhar hai ki Hum usko Kis najariye se Dekhte hai. aapne sakuni mama ki achhayi ke bare me soch kar usko ahha bana diya. aapke next message ka intzar rahega.
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