Wednesday, October 28, 2009
लिखना हमारे होने का अहसास दिलाता है....
ये किसके लिए लिखती हो ?
ये किसके लिए गाती हो ?
तुमने ऐसी टिपण्णी क्यूँ दी ?
उसने ऐसी टिपण्णी क्यूँ दी ?
इतना समय क्यूँ बिताती हो ब्लॉग पर ?
इससे क्या मिलने वाला है ?
ये कौन है ? वो कौन है ?
ऐसे अनगिनत सवालों के बीच उलझती है आज की महिला ब्लाग्गर ....हर दिन ,
एक पोस्ट लिखना यूँ समझिये कि हल्दीघाटी का मैदान हो जाता है ....
आप कहेंगे क्या ज़रुरत है फिर लिखने कि ?? क्यूँ लिखती हैं आप ?
सम्हालिए न अपना घर और अपने बच्चे.....
लेकिन हम क्यूँ न लिखें !!
हम भी पढ़े-लिखे हैं...हम भी सोच सकते हैं....इतनी पाबंदियों के बावजूद सोच सकते हैं....उसे कागज़ पर उतार भी सकते हैं ...हमें भी आत्मसंतुष्टि चहिये...अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता चाहिए....इसलिए हम लिखते हैं ....नींद में भी लिखते हैं.....लिखना हमारे होने का अहसास दिलाता है....
शायद कुछ कमियाँ रहती होंगी हमारे लेखन में लेकिन जब भी आप किसी भी लेख, कविता या संस्मरण को देखें तो एक बार यह ज़रूर सोचें की पुरुषों से कई गुना ज्यादा जद्दो-जहद के बाद वो लिखी गयी है...
हम यह नहीं कह रहे कि आपकी सहानुभूति चाहिए...बिलकुल नहीं सहानुभूति की कोई अपेक्षा नहीं है और सहानुभूति जैसे कमजोर शब्द से दूर ही रहना चाहते हैं हम...... बस हम इतना ही चाहते हैं कि जब भी आप किसी भी महिला ब्लाग पर जाएँ तो एक नज़र अपनी, माँ, बहन , पत्नी, चाची, नानी, बेटी पर डालें उनके जीवन को देखें और फिर सोचें कि इस रचना को लिखने के लिए लेखिका ने कैसे समय निकाला होगा, ऑफिस की झिकझिक, रसोई के ताम-झाम, पति कि फरमाइश, बच्चों कि चिल्ल-पों के बीच से....कितनी मुश्किल से यह कृति मुकम्मल हो पायी होगी......बस इतना ही निवेदन है....
और आपकी एक टिपण्णी किसी 'अमृता' किसी 'शिवानी' की पहली सीढ़ी हो सकती है....या फ़िर आखरी...!!
चलते चलते ये गीत भी सुन ही लीजिये...,,जीत ही लेंगे बाज़ी हम तुम खेल अधूरा छूटे न...
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Sochne ko vivash kar diya aapne Di..
ReplyDeleteJai Hind
एकदम सही लिखा है सचमुच महिला लेखिका या महिला ब्लॉगर सब को यही जद्दो-जहद करनी पडती है ।
ReplyDeleteऔर सिर्फ आपकी उम्र में ही नही हमारी तरह बडे उम्र वालों का भी यही हाल है । दो घंटे हो गये हैं कम्यूटर पे अब कुछ और भी करो यह सुनना पडता है ।
बहुत ही सुंदर शब्दों में प्रस्तुत किया है आपने इस लिखने की ललक को ।
ReplyDeleteएक टिपण्णी किसी 'अमृता' किसी 'शिवानी' की पहली सीढ़ी हो सकती है....या फ़िर आखरी...!!'
ReplyDeleteवाकई आप ठीक कहती है. और फिर जिन्होने कलम उठाई है उसकी ताकत तो यही से है.
एक टिपण्णी किसी 'अमृता' किसी 'शिवानी' की पहली सीढ़ी हो सकती है....
ReplyDeleteवैसे जद्दो जहद यहाँ भी कम नहीं, और हम भी ’प्रेम चन्द’ वाली पहली सीढ़ी के जुगाड़ में मूँह लटकाये खाना बनाने जा रहे हैं अब!!!
-खैर आपकी कही मानते टिप्पणी कर देते हैं. :)
शुभकामनाएँ भी.
di.. khamosh kar diya aapne.. speechless..
ReplyDeleteaap har baar aisa karti hain. kuch aisa lekar aati hain ki ham sab achambhit rah jaate hain.. samasya to kabhi gambhir najar aati hai.. jarurat hai parivartan ki...
Jai Hind...
इस आलेख से कौन महिला ब्लोगर सहमत नहीं होगी ...घर घर की कहानी है ये ..सुबह सुबह तेरी ये पोस्ट पतिदेव को पढ़ कर सुनाई ...हंसने लगे की ये मुझे क्यों सुनाया जा रहा है ...
ReplyDeleteकमोबोश हर महिला को ऐसी जद्दोजहद का सामना करना ही पड़ता है ...मगर जिंदगी है तो मुश्किलें हैं ...मुश्किलें है तो अदा है ना...शेयर करने के लिए ...!!
खुबसुरत भाव...
ReplyDeleteबहुत ज्यादा सोचने को मजबूर करती पोस्ट....
ReplyDeleteआपकी ज्यादातर बातों से पूरी तरह सहमत हूँ.....
इतना नहीं तो इससे थोडा कमती बढती पुरुषों के लिएभी समस्याएं हैं...आपने सिर्फ महिला ब्लोगर्स की बात की..ये सही नहीं लगा..
हाँ, थोडा फर्क होता तो होता ही है..
जैसे के आप के ब्लॉग पर मोडिरेशन है.... फिर भी हम पढ़ते हैं और कमेन्ट देते हैं....कारण....!!
सिर्फ इतना है के एक शालीन महिला का ब्लॉग है....
अगर यही पाबंदी किसी पुरुष के ब्लॉग पर हो हमारे बस का नहीं है के हम रोज कमेन्ट दे और छपने या डिलीट होने का इंतज़ार करें..
और भी कुछ है जो महिला ब्लोगिंग को पुरुष ब्लोगिंग से थोडा अलग करता है.....
मगर फुर्सत या लेखन....
इन दोनों मामलों में ज़रा सा भी फर्क नहीं है..रत्ती भर भी फर्क नहीं है.महिला या पुरुष होने में....
दोनों में से कोई भी कितना भी व्यस्त या फुर्सत में हो सकता है
दोनों में से कोई भी कितना भी बेहतर या बकवास लेखक हो सकता है
कमेन्ट ज्यादा बड़ा हो गया...माफ़ी कहूंगा ...
यदि डिलीट करना हो तो पहले देख लीजियेगा के कितनी मेहनत से लिखा है..
और कुछ ज्यादा गलत तो नहीं लिखा..
:)
:)
:)
:)
"ये किसके लिए लिखती हो ?
ReplyDeleteये किसके लिए गाती हो ?
तुमने ऐसी टिपण्णी क्यूँ दी ?
उसने ऐसी टिपण्णी क्यूँ दी ?
इतना समय क्यूँ बिताती हो ब्लॉग पर ?
इससे क्या मिलने वाला है ?
ये कौन है ? वो कौन है ?"
ऐसे प्रश्न तो कोई विकृत मस्तिष्क वाला ही कर सकता है। पागल के अनर्गल प्रलाप पर क्या ध्यान देना?
अदा आप कमाल कि बात करती हैं , मन कि ही कह देती हैं ..आपसे संपर्क कैसे हों . हम आपको मित्र क्यूँ न बना लें .. बोली बानी एक ही है हमारी .. देर काहे .. हमारी कविता पर टिपण्णी का शुक्रिया .. फिर कैसे मुलाक़ात हों बताईये .. आपका कोई इमेल ?
ReplyDeleteयदि कोई महिला ब्लाग पर अपना समय दे रही है तो समझें कि उसमें अथाह जीजीविषा है। सारे संघर्षों के बाद भी वह लिख रही है। जहाँ पुरुष को लिखने के लिए सुविधा चाहिए वहीं महिलाएं दुविधा में लिखती हैं। बहुत ही अच्छी पोस्ट। बधाई।
ReplyDeleteये तो सार्वभौमिक समस्या है, महिलाओं की ही बात क्यों भई!? :-)
ReplyDeleteबी एस पाबला
यहाँ भी आपने अपनी सुन्दर लेखनी के बाण छोड़ ही दिए !
ReplyDeleteवैसे बुरा न माने तो एक बात कहू, जो पेंटिंग लेख के साथ लगाईं है उसमे प्रतिभा पाटिल नजर आ रही है आप :)
आपकी बात भी बड़ी सटीक थी और गीत भी....!
ReplyDeleteबहुत हीं सशक्त लेखन दीदी !!!!
ReplyDeleteलिखना खुद को साबित करना है -अपने वजूद को प्रमाणित करते रहना है ! अभिव्यक्ति के कई आयाम हैं ,उसमे लिखना भी है ! सब लिख नहीं सकते और कुछ लिखे बिना रह नहीं सकते .हमारी प्रजाति ऐसे ही बाद वालों की है -हम लिखते हैं तो हम मानव समुदाय से जुड़ते हैं -मनुष्य साथ रहने जीने खाने और अनुभूतियों को बाटने वाली स्पीशीज है -आज वह धरा को जीत कर सौर मंडल को माप लेने को उद्यत है -यह बिना साझे प्रयास के संभव नहीं हुआ -लिखना हमारे साझे अस्तित्व के लिए सीमेंट बन जाता है -इस लिखने के कारणों पर एक पूरा काव्य लिखा जा सकता है अदा जी !
ReplyDeleteलिखने की ललक को आपने बहुत अच्छे से लिखा है
ReplyDeleteजद्दोजहद तो बहुत है !!
क्या कमाल बात कही है आपने. सौ प्रतिशत सच. हर महिला ब्लॉगर की बात.
ReplyDeleteक्या कमाल बात कही है आपने. सौ प्रतिशत सच. हर महिला ब्लॉगर की बात
ReplyDeleteकलम तो डूबती साँसों को लय देती है......कोई कैसे न जिए
ReplyDeleteक्या बता है अदा जी ! हर महिला लेखक के दिल की बात कह दी आपने बहुत शुक्रिया.
ReplyDeleteअब मै क्या कहू ?आपने तो मेरे अंतर मन कि बात ही कह दी और सब सखिया भी इससे सहमत है क्यों नहो? आपबीती जो है |
ReplyDeleteपता नही अदाजी आपको सबके मन कि बात इतनी जल्दी कैसे पता चल जाती है? वो भी इतने दूर रहकर |
बहुत अच्छी पोस्ट
धन्यवाद
Bahut bahut bahut hi sahi......pata nahi kitne ke dil kee aapne apne shabdon me yahan kah di...aabhaar.
ReplyDeleteसार्थक लक्ष्य की ओर बढते कदम को हमारा सलाम.
ReplyDeleteक्या सचमुच हर महिला ब्लौगर{या लेखिका} ऐसे प्रश्नों का सामना करती हैं...???
ReplyDeleteमैं नहीं मानता।
यहाँ मैं भी मनु जी से सहमत हूँ। अब यदि कुछ महिलाओं से समक्ष ऐसे प्रश्न उठते हैं तो यकीन मानिये कुछ पुरूषों के लिये भी इसी किस्म के प्रश्न उठते हैं।
पुरूषों से कई गुणा जद्दो-जहद...? सोचा कि बहस को आगे बढ़ाऊं, फिर चुप रह जाता हूँ। मार थोड़ी ना खानी है मुझे... :-)
अब हमारी भी जद्दोजहद देखिये, भारत कितने दिनों बाद तो इतना अच्छा खेल रहा है। अभी-अभी रिकी पौंटिंग आउट हुआ है और हम वो छोड़ कर आपकी इस अप्रतिम पोस्ट पर टिप्पिया रहे हैं- कोई और अमृता, कोई और शिवानी, कोई और महादेवी और कोई और "स्वप्न मंजुषा" को देखने की चाह लिये।
ज्यादातर महिलाओं को इन सवालों से जूझना होता है लेकिन यह समस्या पुरुषों की भी है। लेकिन इनसे पार जाकर लिखते रहना ही तो सचमुच अपने होने का अहसास है न।
ReplyDeleteये किसके लिए लिखती हो ?
ReplyDeleteये किसके लिए गाती हो ?
तुमने ऐसी टिपण्णी क्यूँ दी ?
उसने ऐसी टिपण्णी क्यूँ दी ?
इतना समय क्यूँ बिताती हो ब्लॉग पर ?
इससे क्या मिलने वाला है ?
ये कौन है ? वो कौन है ?
yeh kaun kahta hai aisa? abki baar koi aisa kahe to mujhe bataiyega....
अदा जी
ReplyDeleteमेरा मानना तो ये है कि जब लिखने को ..सब चुक जाता है ..और लिखने की अनिवार्यता सी लगती है..तब कुछ बेहतर विकल्पों के रहते हुए भी कई...इसी को चुनते हैं..मगर सच तो यही कहा आपने कि
लिखना हमारे होने का अहसास दिलाता है...औरों को भी ....और खुद हमें भी...
इसी एहसास के लिये तो जीते मरते हैं..
... कोई टोके तो कहिए कि:
ReplyDeleteजाने कितने वजूदों को मैं साँस दे रही हूँ/
जाने कितने पुरुषों को चुप हौले संस्कार दे रही हूँ/मै इस की बोर्ड से सकार दे रही हूँ।...
बिलकुल अदा जी आपने हमारे दिल की बात कह दी। कितनी मेहनत करनी पडती है धन्य्वाद कोई तो है हमारा ख्याल रखने वला धन्यवाद्
ReplyDeleteकुछ तो ये पोस्ट ज्यादा ही विचारणीय है...
ReplyDeleteकुछ सुबह जल्दी में आधा ही कमेन्ट दिया था...
जहां तक कमेन्ट की बात है....
हमारा मानना है के पोस्ट से कम महत्त्व नहीं रखता है कमेन्ट,,,
५००० कहानियां/कवितायें/संस्मरण पढ़ के भी जिस को नहीं जाना जा सकता
उसे उसके ५० कमेंट्स पढ़कर जाना जा सकता है....
जितना हम यहाँ लिख चुके हैं..और शायद और भी लिखें...उस से भी कम मेहनत से हम अपने ब्लॉग पर पोस्ट डाल सकते थे....
कुछ दिन से डाली भी नहीं है....
पर हमसे कही जाकर ये नहीं होता के मेरे ब्लॉग पे इसे पढें.... कमेन्ट में अक्सर हम इस तरह का विज्ञापन पसंद नहीं करते....
कमेन्ट को कमेन्ट की तरह समझते हैं..
भले ही वो रचना पे हो या उस से हटकर हो....
दोनों ही हालत में कमेन्ट का महत्त्व बराबर है...
वो बात और के अब महत्त्व संख्या का रह गया है...
मुझे उस दिन बड़ा अजीब सा लगा था..जब हिंद-युग्म पे एक गजल पर ९० से अधिक कमेन्ट आने पर
बधाइयों के फोन आ रहे थे ... हमारी उलझन क्या थी और लोग कमेंट्स को गिन कर बस हमें बधाई दे रहे थे..
जबकि सब लोग जानते थे,,,
आपकी बात से सहमत हूं.
ReplyDeleteये बात तो महिला और पुरुष ब्लोगर्स दोनों के लिये लागू होती है, कि अपने अपने काम से छूट कर ये सब करना पडताभै. मगर आज़ादी की बात में महिलाओं को ज़्यादा तकलीफ़ होती है, और परेशानी का सामना करना पडता है.
गाना अछा गाया. गाते रहियेगा....
bahut sunder tareeke se aapane sacchaai se sabhee ko ujagar kar diya . Isake liye bahut bahut badhai.
ReplyDeleteaDaDi,
ReplyDeleteShivaniyo, Mahadevi vermaoon aur amritaoon ke dil ka dard to ho gaya...
.aur wakai kaafi prabhavshali bhi tha.
But !!
Bhavishya ke Gulzaaron aur Premchandro ki mazbooriyon ka kya?
:)
HaHa....
Maine ek she'r padha tha kabhi....]
is sher main tum ko kavita ya kriti maanein jo badi mushkil se milti hai....
Gulzar ko bhi aur Amrita ko bhi...
Ye duniya bhar ke jhagde, Ghar ke kisse,Kaam ki baatein,
Bala har ek tal jaaiye agar TUM milne aa jao.