Monday, October 26, 2009

एक बार फ़िर मैं पराधीन हो गई....


(एक पुरानी कविता )

क्या हाल है गुप्ता जी, आज कल नज़र नहीं आते हैं
कौनो प्रोजेक्ट कर रहे हैं,या फोरेन का ट्रिप लगाते हैं
गुप्ता जी काफी गंभीर हुए, फिर थोडा मुस्कियाते हैं
संजीदगी से घोर व्यस्तता का कारण हमें बताते हैं
अरे शर्मा जी राम कृपा से, ये शुभ दिन अब आया है
पूरा परिवार को कैनाडियन गोरमेंट ने,परीक्षा देने बुलाया है
कह दिए हैं सब बचवन से, पूरा किताब चाट जाओ
चाहे कुछ भी हो जावे, सौ में से सौ नंबर लाओ
एक बार कैनाडियन सिटिज़न जब हम बन जावेंगे
जहाँ कहोगे जैसे कहोगे, वही हम मिलने आवेंगे
वैष्णव देवी की मन्नत है, उहाँ परसाद चाढ़ावेंगे
बाद में हरिद्वार जाकर, गंगा जी में डुबकी लगावेंगे
कनाडा का पासपोर्ट, जब हम सबको मिल जावेगा
बस समझिये शर्माजी जनम सफल हो जावेगा
गुप्ताजी की बात ने हमका ऐसा घूँसा मारा
दीमाग की बत्ती जाग गयी और सो़च का चमका सितारा
कैनाडियन बनने को हम एतना काहे हड़बड़ाते हैं
धूम धाम से समारोह में, अपना पहचान गंवाते हैं
बरसों पहले हम भी तो, ऐसा ही कदम उठाये थे
सर्टिफिकेट और कार्ड के नीचे, खुद को ही दफनाये थे
गर्दन ऊँची सीना ताने, 'ओ कैनाडा' गाये थे
जीवन की रफ्तार बहुत थी, 'जन गण मन' भुलाये थे
जिस 'रानी' से पुरुखों ने प्राण देकर छुटकारा दिलाया था
उसी 'रानी' की राजभक्ति की शपथ लेने हम आये थे
अन्दर सब कुछ तार तार था, सब कुछ टूटा फूटा था
एक बार फिर, पराधीन ! होकर हम मुस्काए थे

25 comments:

  1. जिस 'रानी' से पुरुखों ने प्राण देकर छुटकारा दिलाया था
    उसी 'रानी' की राजभक्ति की शपथ लेने हम आये थे
    प्रवास की पीडा मुखरित है आपकी रचना में.

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  2. सच में दी दया आती है ऐसी सोच वाले लोगों पर..... गुस्सा इसलिए नहीं आता की बेचारे गुलामी की मानसिकता लिए हैं इन पर गुस्सा करें भी तो क्या....आजाद दिमाग के हों तब तो कुछ बोलें..

    जय हिंद...

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  3. यह क्या रीठेल है..ऐसा ही आपकी कलम पहले न उगल चुकी है..या मैं ही क्न्फ्यूजिया गया हूँ कहीं?? जरा बताया जाये.

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  4. सशक्त रचना ,भले ही वहां चौकीदार का काम मिल जाय !

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  5. बहुत लाजवाब. शुभकामनाएं.

    रामराम.

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  6. हमारे पूर्वजों के गुलामी के दर्द को महसूस करते प्रवासियों की घुटन और मजबूरियों को खूब बयाँ कर रही है आपकी कलम ...

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  7. हज़ार मुश्किलों में बीते दिनों के सुख दुःख किसे याद आते हैं, छोटी सी ज़िन्दगी है जैसे अच्छे से बीत जाये अच्छा है. जब घर छोड़ ही दिए तो फिर किस की इज्जत और कैसी इज्जत ?

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  8. ओ जाने वाले...
    हो सके तो लौट के आना...

    जय हिंद...

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  9. "एक बार कैनाडियन सिटिज़न जब हम बन जावेंगे
    जहाँ कहोगे जैसे कहोगे, वही हम मिलने आवेंगे
    वैष्णव देवी की मन्नत है, उहाँ परसाद चाढ़ावेंगे
    बाद में हरिद्वार जाकर, गंगा जी में डुबकी लगावेंगे"

    aDaDi ye virodhabaash (bold mian) behterin laga...

    bus yahi to dukh hai ki Baharat kyun aisa reh gaya?

    Ab aapse pooch bhi nahi sakte ye sawal (hahaha)

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  10. "वैष्णव देवी की मन्नत है, उहाँ परसाद चाढ़ावेंगे
    बाद में हरिद्वार जाकर, गंगा जी में डुबकी लगावेंगे"


    ये चीजे अब फिर से पराधीन होने के लिए ही तो रह गई हैं।

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  11. आपकी रचना में एक अलग पहलू दिखता है एक अलग तरह की सोच

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  12. तो पराधीनता तोड़ने के लिए कुछ करिए ना ,सिर्फ़ गाने से क्या ????

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  13. bahut hee dil se likhee pyaree rachana. Swadesh
    swadesh hee hai.

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  14. bahut hee dil se likhee pyaree rachana. Swadesh
    swadesh hee hai.

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  15. आपकी व्यावहारिक सूझ-बूझ की दाद देनी पड़ेगी

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  16. एक बार कैनाडियन सिटिज़न जब हम बन जावेंगे
    जहाँ कहोगे जैसे कहोगे, वही हम मिलने आवेंगे
    वैष्णव देवी की मन्नत है, उहाँ परसाद चाढ़ावेंगे..kadhwa sach...

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  17. सुंदर कविता है अदा जी,
    काफी पहले भी पढ़ी थी...उस वक्त इतनी समझ नहीं आयी थी..
    आज पूरी समझ आ गयी है..
    पुनः प्रस्तुति के लिए आभार.....

    सादर
    मनु...

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  18. इस कविता मे जो दर्द छिपा है उसे हर कोई नही समझ सकता ।

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  19. वैष्णव देवी की मन्नत है, उहाँ परसाद चाढ़ावेंगे
    बाद में हरिद्वार जाकर, गंगा जी में डुबकी लगावेंगे[
    ak dubbki purvjo se kshma mangne ki hi lga le \
    aur maa vaishnv devi bhi ab to preshan hone lgi kaisi kaisi mantaye
    mankar mujhe hi gulam bnane ki fir se taiyari??

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