गैरों का वो हुजूम औ सनम खड़े मिले
माणिक कोई अंगूठी में जैसे जड़े मिले
निकल पड़े थे हम तो यूँ ही आज सरे-आम
नुक्कड़ पर ही तो वो मेरे मकसद खड़े मिले
कितना तो मर गए हैं जी हम एक ही दिन में
न जाने फिर भी कैसे हम सीधे खड़े मिले
ये आपने बताया तो हम जान पाए हैं
आँखों में आपके मेरे सपने पड़े मिले
कहते हैं मेरा ज़िक्र किसी और से न कर
रकीबों से कहीं कोई रक़ीब जुड़े मिले
कश्ती भी पुरानी है ,पुराने से हैं ये पाल
डर थामे हुए हाथ है संग हम खड़े मिले
waah..
ReplyDeletepahlaa comment hamaaraa....!!!!!!!!!!
:)
ghazal ki baat baad mein ji..
:)
bahut hee sunder gazal .
ReplyDeleteगैरों का वो हुजूम औ सनम खड़े मिले
ReplyDeleteमाणिक कोई अंगूठी में जैसे जड़े मिले
बहुत खूब है आपके यह कहने का अन्दाज़.
ये आपने बताया तो हम जान पाए हैं
ReplyDeleteआँखों में आपके मेरे सपने पड़े मिले
Bahut khoob.
कहते हैं मेरा ज़िक्र किसी और से न कर
ReplyDeleteक्या जाने किस रक़ीब से रक़ीब जुड़े मिले
waah gazab
कितना तो मर गए आज एक ही दिन में
ReplyDeleteजाने फिर भी कैसे हम सीधे खड़े मिले
ये आपने बताया तो हम जान पाए हैं
आँखों में आपके मेरे सपने पड़े मिले
सुंदर ... अति सुंदर,
एक-एक शे'र लाजवाब !!!
जितनी बढ़िया रचना उतनी ही खूबसूरत अभिव्यक्ति।
ReplyDeleteWaah! Kya baat, aur saath tasveer...din-b-din aapkee qayal bantee hee ja rahee hun!
ReplyDeleteशे'र लाजवाब हैं...सुंदर
ReplyDeleteये आपने बताया तो हम जान पाए हैं
ReplyDeleteआँखों में आपके मेरे सपने पड़े मिले
khoobsurat sher..
ada ji, kya khoob likhti hain aap. main us rachna ki baat kar raha hun, jo aapne mere blog MANODASHA par bheji hai. aksar meri is vishay par bahas ho jati hai ki jab ram ne sita ko ghar se nikal diya tha to wo maryadapurshottam kaise hue? khair, jis baat ka jikr main apni agli post main karne wala tha, wo apne bahut hi marmik tarike se kavita ke madhyam se kah di... shukriya. agar aitraaz na ho to aap mujhe meri id raviirawat@gmail.com par apni email id bhej dijiye.
ReplyDeleteRavi.
निकल पड़े थे हम तो यूँ ही आज सरे-आम
ReplyDeleteनुक्कड़ पर ही तो वो मेरे मकसद खड़े मिले....
behterin sher !!
@main ji
wah !! last comment hamara !! ghazal ki baat baad main bhi nahi ji nahi to second last ho jiayega !!
@aDaDi ek link bhejah hai is comment main kahin chupa hai...
...padh lena !! Mera Gaon (Ranikhet) ! Mera desh ( hindustaan !!naam to suna hi hoga?).
hahahaha....
ये आपने बताया तो हम जान पाए हैं
ReplyDeleteआँखों में आपके मेरे सपने पड़े मिले
कहते हैं मेरा ज़िक्र किसी और से न कर
रकीबों से कहीं कोई रक़ीब जुड़े मिले ..
haan! kahin na kahin koi raqeeb to zaroor juda milega.....
waise ! bheed mein main apna chehra talaash raha tha....
hahahahahaha
कहते हैं मेरा ज़िक्र किसी और से न कर
ReplyDeleteरकीबों से कहीं कोई रक़ीब जुड़े मिले .
laazwaab ,kya baat kahi hai aapne .umda.
बहुत सुन्दर रचना और बहुत हीं सुन्दर भाव दीदी । आभार
ReplyDeleteकितना तो मर गए हैं जी हम एक ही दिन में
ReplyDeleteन जाने फिर भी कैसे हम सीधे खड़े मिले
सही कहा आपने... मेरी भी सुन लें..
"मर मर कर भी ज़िंदा हूँ,
तेरे साथ की उम्मीद में,
हाथ बढ़ा रखा है अब तक,
तेरे हाथ की उम्मीद में..."
ये आपने बताया तो हम जान पाए हैं
आँखों में आपके मेरे सपने पड़े मिले
कोई कोई तो बता भी नही पाता..
"बताना भी चाहो तो इतनी आसानी से,
बात इन होठों तक आ नही पाती..
उसी का ख़याल हर पल दिल में मेरे,
वो तस्वीर आँखों से मेरी जा नही पाती..."
ये आपने बताया तो हम जान पाए हैं
ReplyDeleteआँखों में आपके मेरे सपने पड़े मिले
कहते हैं मेरा ज़िक्र किसी और से न कर
रकीबों से कहीं कोई रक़ीब जुड़े मिले ..
रफीकों से रकीब अच्छे जो जलकर नाम लेते हैं ..
गुलों से खार बेहतर हैं जो दामन थाम लेते हैं ..
क्या कहती हो अदा ..!!
निकल पड़े थे हम तो यूँ ही आज सरे-आम
ReplyDeleteनुक्कड़ पर ही तो वो मेरे मकसद खड़े मिले
वाह वाह वाह अदा जी, एक और नगीना । अब हम इस ख़ूबसूरत ग़ज़ल को क्या कहें ? दरिया-ए-नूर। तस्वीरों से रब्त रखते ये अश’आर होशरुबा हैं।
गैरों का वो हुजूम औ सनम खड़े मिले
ReplyDeleteमाणिक कोई अंगूठी में जैसे जड़े मिले
बहुत खूब है आपके यह कहने का अन्दाज़.
निकल पड़े थे हम तो यूँ ही आज सरे-आम
ReplyDeleteनुक्कड़ पर ही तो वो मेरे मकसद खड़े मिले
Waah !!
behtareen sher !!
sachaa to thaa yahi
ReplyDeletek na jaaooN abhi udhar ,
lekin jb a gaya to
nageene jarhe mile..
waah-wa !!
achhee rachnaa
kamaaaaaal !!!
डर थामे हुए हाथ है संग हम खड़े मिले । यह सच है भय भी शक्ति देता है ।
ReplyDeletehi .. ada...
ReplyDeletejust wow..
such a nice poem..
aakhiri ki panktiyan to vakai lajawab hai ..
kuch ek lines mujhe samjh nahi aayi.. :(
but poem me jo flow hai.. wo kahi bhi rukne nahi deta... :)
keep writing.. :)