Thursday, October 1, 2009

सीने में इक सुराख है दर्दों के फौवारे


सीने में इक सुराख है दर्दों के फौवारे
उठी है हूक दिल में ज्यूँ भरते हैं गुब्बारे

उनकी साफगोई के कायल हुए हैं हम
आँखों में झाँक कर कहा के तुम हो हमारे

न जाने कब उठे हैं, कितनी बार गिरे हैं
जीते हैं कितनी बार कितनी बार हम हारे

कुछ कह रही थीं आपके सीने की धड़कनें
नज़रें तो कर रहीं थी कोई और इशारे

थी रात जहाँ पर वही पर धूप खड़ी थी
जल जाएँ के बुझे बड़े हैरान हैं तारे

चेहरों का क्या है वो हैं सवालों की इक किताब
हम पढ़े तो बहुत समझे नहीं ठहरे बेचारे


सभी तसवीरें गूगल के सौजन्य से......

20 comments:

  1. चेहरों का क्या है वो हैं सवालों की इक किताब
    पढ़ा तो बहुत समझे नहीं हम ठहरे बेचारे
    बहुत सुंदर रचना.
    लेकिन दिल का सुराख थोडा बडा नही :)
    धन्यवाद

    ReplyDelete
  2. शब्द संयोजन सुन्दर है । मेरे खयाल से हूँक की जगह हूक होना चाहिये ? - बधाई । चित्र भी बढ़िया है ।

    ReplyDelete
  3. चेहरों का क्या है वो हैं सवालों की इक किताब
    पढ़ा तो बहुत समझे नहीं हम ठहरे बेचारे


    -बहुत बढ़िया. सुराख गहरे के बदले बड़ा चौड़ा लगा है. :) रिपेयर मुश्किल ही समझो.

    ReplyDelete
  4. सीने में इक सुराख है दर्दों के फौवारे
    उठी है हूँक दिल में ज्यूँ भरे हैं गुब्बारे

    उनकी साफगोई के कायल हुए हैं हम
    आँखों में झाँक कर कहा के तुम हो हमारे

    दिलदार रचना कहू तो कोई अतिशयोक्ति वाली बात नही

    अक्सर ऐसे सुराख देखने को मिल ही जाऐगे।

    अति सुन्दर पाठ जो हर एक इन्सान ने कभी ना कभी महसुस किया होगा।
    mumbai tiger

    ReplyDelete
  5. the first picture is... bruuuuuuutal

    Hail from the north mountains of Aragon

    http://www.rock-brarbe.blogspot.com/

    ReplyDelete


  6. बेख़ुदी के करीब न आओ औ’ प्यार भी इतना न करो
    डरते हैं, ग़र तुम माँग बैठी हमसे जो हौसला ज़ुदाई का

    हँस पड़ी बेबाक तसल्ली से, कि छूट ही जायेगा दामन से
    हमारी आरज़ू को बस समझा कि एक धब्बा रोशनाई का


    हम तो अरसे से इसी साफ़ग़ोई के घायल हैं !,

    ReplyDelete
  7. चेहरों का क्या है वो हैं सवालों की इक किताब
    हम पढ़े तो बहुत समझे नहीं ठहरे बेचारे
    चेहरों पर पड़े नकाब जो इतने है पढ़ना इतना आसान भी तो नहीं है ...
    दिल की तस्वीर अच्छी लगी ...इन सुराखो में जो दर्द है ...वही तो ग़ज़ल बन कर उतरता है ...
    अच्छी नज़्म ...बहुत बढ़िया ..!!

    ReplyDelete
  8. खड़ी जहाँ थी रात वहीं धूप थी खड़ी
    जलें के बूझें सोचें औ हैरान हैं तारे
    बेहतरीन रचना. दिल का सुराख भी देखा वाकई दर्द का फौवारा उठा.

    ReplyDelete
  9. न जाने कब उठे हैं, कितनी बार गिरे हैं
    जीते हैं कितनी बार कितनी बार हम हारे

    बढ़िया ग़ज़ल.
    गाँधी जी की आत्मकथा में इस हार-जीत का भी बेबाक विवरण मिल जाता है.
    गाँधी जयंती की हार्दिक शुभकामनाएं............

    चन्द्र मोहन गुप्त
    जयपुर
    www.cmgupta.blogspot.com

    ReplyDelete
  10. उनकी साफगोई के कायल हुए हैं हम
    आँखों में झाँक कर कहा के तुम हो हमारे

    न जाने कब उठे हैं, कितनी बार गिरे हैं
    जीते हैं कितनी बार कितनी बार हम हारे

    कुछ कह रही थीं आपके सीने की धड़कनें
    नज़रें तो कर रहीं थी कोई और इशारे

    थी रात जहाँ पर वही पर धूप खड़ी थी
    जल जाएँ के बुझे बड़े हैरान हैं तारे

    चेहरों का क्या है वो हैं सवालों की इक किताब
    हम पढ़े तो बहुत समझे नहीं ठहरे बेचारे


    इस नज़्म के कथा-सूत्र को समझने की कोशिश कर रहा हूँ । अधिक कुछ नहीं कहूँगा कहीं नजर न लग जाए । अदा को दुआ की सदा ।

    ReplyDelete
  11. वाह लाजवाब. शुभकामनाएं.

    रामराम.

    ReplyDelete
  12. चरण स्पर्श दीदी


    शब्दो को पिरोना तो कोई आपसे सीखे। बहुत ही लाजवाब रचना रही।

    ReplyDelete
  13. आदरणीय शरद जी,
    शायद आप ठीक हैं 'हूँक' न हो के 'हूक' ही होगी.
    इस त्रुटी की ओर घ्यान आकृष्ट करने की लिए
    ह्रदय से आपका धन्यवाद..

    ReplyDelete
  14. उनकी साफगोई के कायल हुए हैं हम
    आँखों में झाँक कर कहा के तुम हो हमारे ....hum to unke hai jo hmare hai..behad khoobsurat...

    ReplyDelete
  15. aDaDi, kavita ki baat baad main pehle anant se liye gaye chitr ki baat,

    kuch mah pehle jab ise dekha tha to is chitr ne bada prabhavit kiya tha,

    jal, thal, nabh, vriksh, barf, raat din.....

    sab kuch to hai ismein ....
    ....aur haan vigyaan aur kala ka adbhoot sangam....
    vaise hi jaise makdi ke jaale main padi os ki sundarta sushmdarshi se....
    ya kisi bhujte taare ki doordarshi se....

    bada adbhoot sangam hai ye !!

    aur us par aapki kavit treveni si banati hai....

    ...ye photo share karne ke liye kotisah dhanyavaad !!

    ReplyDelete
  16. सुंदर रचना है जी,
    चित्र में सुराख कुछ ज्यादा ही बड़ा है ..
    इसे भी ठीक कीजिये जी,,

    ReplyDelete
  17. न जाने कब उठे हैं, कितनी बार गिरे हैं
    जीते हैं कितनी बार कितनी बार हम हारे

    कुछ कह रही थीं आपके सीने की धड़कनें
    नज़रें तो कर रहीं थी कोई और इशारे


    अदा जी सुन्दर रचना

    ReplyDelete
  18. न जाने कब उठे हैं, कितनी बार गिरे हैं
    जीते हैं कितनी बार कितनी बार हम हारे

    - इसी गिरने उठने और हार जीत का नाम जीवन है

    ReplyDelete
  19. दीदी,
    रचना के कुछ शे'रों को तो लेमिनेसन कराके दीवारों पर टांगने का मन हो रहा है, जैसे कि जब भी निकालें या घर में घुन्से तो इन्हें पढ़ ही लें.

    ---
    हिंदी ब्लोग्स में पहली बार Friends With Benefits - रिश्तों की एक नई तान (FWB) [बहस] [उल्टा तीर]

    ReplyDelete
  20. है जुबां को काटने का शौक़, मेरी काटिये
    बख्श भी दीजै रकीबों को, के कुछ मैं भी सुनूं..

    ReplyDelete