सीने में इक सुराख है दर्दों के फौवारे
उठी है हूक दिल में ज्यूँ भरते हैं गुब्बारे
उनकी साफगोई के कायल हुए हैं हम
आँखों में झाँक कर कहा के तुम हो हमारे
न जाने कब उठे हैं, कितनी बार गिरे हैं
जीते हैं कितनी बार कितनी बार हम हारे
कुछ कह रही थीं आपके सीने की धड़कनें
नज़रें तो कर रहीं थी कोई और इशारे
थी रात जहाँ पर वही पर धूप खड़ी थी
जल जाएँ के बुझे बड़े हैरान हैं तारे
चेहरों का क्या है वो हैं सवालों की इक किताब
हम पढ़े तो बहुत समझे नहीं ठहरे बेचारे
सभी तसवीरें गूगल के सौजन्य से......
चेहरों का क्या है वो हैं सवालों की इक किताब
ReplyDeleteपढ़ा तो बहुत समझे नहीं हम ठहरे बेचारे
बहुत सुंदर रचना.
लेकिन दिल का सुराख थोडा बडा नही :)
धन्यवाद
शब्द संयोजन सुन्दर है । मेरे खयाल से हूँक की जगह हूक होना चाहिये ? - बधाई । चित्र भी बढ़िया है ।
ReplyDeleteचेहरों का क्या है वो हैं सवालों की इक किताब
ReplyDeleteपढ़ा तो बहुत समझे नहीं हम ठहरे बेचारे
-बहुत बढ़िया. सुराख गहरे के बदले बड़ा चौड़ा लगा है. :) रिपेयर मुश्किल ही समझो.
सीने में इक सुराख है दर्दों के फौवारे
ReplyDeleteउठी है हूँक दिल में ज्यूँ भरे हैं गुब्बारे
उनकी साफगोई के कायल हुए हैं हम
आँखों में झाँक कर कहा के तुम हो हमारे
दिलदार रचना कहू तो कोई अतिशयोक्ति वाली बात नही
अक्सर ऐसे सुराख देखने को मिल ही जाऐगे।
अति सुन्दर पाठ जो हर एक इन्सान ने कभी ना कभी महसुस किया होगा।
mumbai tiger
the first picture is... bruuuuuuutal
ReplyDeleteHail from the north mountains of Aragon
http://www.rock-brarbe.blogspot.com/
ReplyDeleteबेख़ुदी के करीब न आओ औ’ प्यार भी इतना न करो
डरते हैं, ग़र तुम माँग बैठी हमसे जो हौसला ज़ुदाई का
हँस पड़ी बेबाक तसल्ली से, कि छूट ही जायेगा दामन से
हमारी आरज़ू को बस समझा कि एक धब्बा रोशनाई का
हम तो अरसे से इसी साफ़ग़ोई के घायल हैं !,
चेहरों का क्या है वो हैं सवालों की इक किताब
ReplyDeleteहम पढ़े तो बहुत समझे नहीं ठहरे बेचारे
चेहरों पर पड़े नकाब जो इतने है पढ़ना इतना आसान भी तो नहीं है ...
दिल की तस्वीर अच्छी लगी ...इन सुराखो में जो दर्द है ...वही तो ग़ज़ल बन कर उतरता है ...
अच्छी नज़्म ...बहुत बढ़िया ..!!
खड़ी जहाँ थी रात वहीं धूप थी खड़ी
ReplyDeleteजलें के बूझें सोचें औ हैरान हैं तारे
बेहतरीन रचना. दिल का सुराख भी देखा वाकई दर्द का फौवारा उठा.
न जाने कब उठे हैं, कितनी बार गिरे हैं
ReplyDeleteजीते हैं कितनी बार कितनी बार हम हारे
बढ़िया ग़ज़ल.
गाँधी जी की आत्मकथा में इस हार-जीत का भी बेबाक विवरण मिल जाता है.
गाँधी जयंती की हार्दिक शुभकामनाएं............
चन्द्र मोहन गुप्त
जयपुर
www.cmgupta.blogspot.com
उनकी साफगोई के कायल हुए हैं हम
ReplyDeleteआँखों में झाँक कर कहा के तुम हो हमारे
न जाने कब उठे हैं, कितनी बार गिरे हैं
जीते हैं कितनी बार कितनी बार हम हारे
कुछ कह रही थीं आपके सीने की धड़कनें
नज़रें तो कर रहीं थी कोई और इशारे
थी रात जहाँ पर वही पर धूप खड़ी थी
जल जाएँ के बुझे बड़े हैरान हैं तारे
चेहरों का क्या है वो हैं सवालों की इक किताब
हम पढ़े तो बहुत समझे नहीं ठहरे बेचारे
इस नज़्म के कथा-सूत्र को समझने की कोशिश कर रहा हूँ । अधिक कुछ नहीं कहूँगा कहीं नजर न लग जाए । अदा को दुआ की सदा ।
वाह लाजवाब. शुभकामनाएं.
ReplyDeleteरामराम.
चरण स्पर्श दीदी
ReplyDeleteशब्दो को पिरोना तो कोई आपसे सीखे। बहुत ही लाजवाब रचना रही।
आदरणीय शरद जी,
ReplyDeleteशायद आप ठीक हैं 'हूँक' न हो के 'हूक' ही होगी.
इस त्रुटी की ओर घ्यान आकृष्ट करने की लिए
ह्रदय से आपका धन्यवाद..
उनकी साफगोई के कायल हुए हैं हम
ReplyDeleteआँखों में झाँक कर कहा के तुम हो हमारे ....hum to unke hai jo hmare hai..behad khoobsurat...
aDaDi, kavita ki baat baad main pehle anant se liye gaye chitr ki baat,
ReplyDeletekuch mah pehle jab ise dekha tha to is chitr ne bada prabhavit kiya tha,
jal, thal, nabh, vriksh, barf, raat din.....
sab kuch to hai ismein ....
....aur haan vigyaan aur kala ka adbhoot sangam....
vaise hi jaise makdi ke jaale main padi os ki sundarta sushmdarshi se....
ya kisi bhujte taare ki doordarshi se....
bada adbhoot sangam hai ye !!
aur us par aapki kavit treveni si banati hai....
...ye photo share karne ke liye kotisah dhanyavaad !!
सुंदर रचना है जी,
ReplyDeleteचित्र में सुराख कुछ ज्यादा ही बड़ा है ..
इसे भी ठीक कीजिये जी,,
न जाने कब उठे हैं, कितनी बार गिरे हैं
ReplyDeleteजीते हैं कितनी बार कितनी बार हम हारे
कुछ कह रही थीं आपके सीने की धड़कनें
नज़रें तो कर रहीं थी कोई और इशारे
अदा जी सुन्दर रचना
न जाने कब उठे हैं, कितनी बार गिरे हैं
ReplyDeleteजीते हैं कितनी बार कितनी बार हम हारे
- इसी गिरने उठने और हार जीत का नाम जीवन है
दीदी,
ReplyDeleteरचना के कुछ शे'रों को तो लेमिनेसन कराके दीवारों पर टांगने का मन हो रहा है, जैसे कि जब भी निकालें या घर में घुन्से तो इन्हें पढ़ ही लें.
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हिंदी ब्लोग्स में पहली बार Friends With Benefits - रिश्तों की एक नई तान (FWB) [बहस] [उल्टा तीर]
है जुबां को काटने का शौक़, मेरी काटिये
ReplyDeleteबख्श भी दीजै रकीबों को, के कुछ मैं भी सुनूं..