Monday, October 12, 2009
राधा का संताप .....
हे माधव !!
क्या समझ पाए तुम राधा का संताप
तुम सर्वज्ञ दीनबंधु हर लेते हो हर पाप
किस दुविधा में डाला उसको, कैसा दिया यह ताप
यह अलौकिक प्रेम तुम्हारा, बन गया उसका शाप
राधा घर से बे-घर हो ली
तुमने अपनी दुनिया संजो ली !
कभी सोचा क्या हुआ उसका ?
जो करती रही बस हरी जाप !
यह अलौकिक प्रेम तुम्हारा बन गया उसका शाप
जब तक चाहा प्रेम जताया
वन-कानन में रास रचाया
ऐसे उड़ा दिया ह्रदय से
जैसे जल बने भाप
यह अलौकिक प्रेम तुम्हारा बन गया उसका शाप
कान्हा तुम भी अलग नहीं हो
पुरुष वर्ग से विलग नहीं हो
खेल-खेल कर ठुकराया है
राधा-मीरा सब एक माप
यह अलौकिक प्रेम तुम्हारा बन गया उसका शाप
भामा, रुक्मणी, मीरा या राधा
जीव-ब्रह्म का रिश्ता है साधा
सबने तुमको ह्रदय बसाया
और तुम करते रहे मजाक
यह अलौकिक प्रेम तुम्हारा बन गया उसका शाप
क्या कहा ?
राधा का दुःख था ही कितना ?
अरे ! सम्पूर्ण भुवन में दुःख है जितना
सोच के देखो कभी कृष्ण तो
ह्रदय जायेगा काँप
यह अलौकिक प्रेम तुम्हारा बन गया उसका शाप
सोचा कभी ?
कहाँ गयी, क्या हुआ होगा उसको
कभी ह्रदय बसाया जिसको
बौरा गयी तुम्हें ढूंढ़ ढूंढ़
निगल गया मरू-ताप
यह अलौकिक प्रेम तुम्हारा बन गया उसका शाप
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This comment has been removed by the author.
ReplyDeleteक्या कहा ?
ReplyDeleteराधा का दुःख था ही कितना ?
अरे ! सम्पूर्ण भुवन में दुःख है जितना
राधा के संताप को बहुत सुन्दरता से उकेरा है.
वाकई राधा तो विरह की ही भागीदार रही
जिन बातों को लोग नहीं सोचते
ReplyDeleteउन पर आपकी कलम का जादू मोह लेता है
वाह जी वाह
ReplyDeleteआप तो रोj एक ना एक पात्र की दुःख वया कर रही है
सुन्दर अभिव्यक्ति!!!
ReplyDeleteअदा जी, कभी कभार नारी को असन्तप्त, अव्यथित, सन्तुष्ट, आल्हादित भी बताइये ना अपनी रचनाओं में। हमेशा नहीं तो कभी कभार तो वे भी प्रसन्न होती हैं। :-)
नीरज गोस्वामी said...
ReplyDeleteअद्भुत रचना रच डाली है आपने...कितना सच लिखा है आपने...राधा और मीरा का दुःख किसने देखा है...सबसे अधिक त्रासद अवस्था में तो राधा रही जिसे कृष्ण के प्यार से क्या मिला...कृष्ण के अयोध्या से जाते ही उसे बिसरा दिया गया...बहुत ही मार्मिक कविता है ये आपकी...बहुत बहुत बधाई..
कृष्ण के अयोध्या से जाते ही????
waise kavita to acchi hai... par radha ke sath anyay kishan ji ne kiya ya hamare pauranik lekhako ne.. ye batana to thoda mushkil hai...
श्रधेय अवधिया जी,
ReplyDeleteअब कल से कुछ अच्छा लिखने का प्रयास करेंगे...
हम जानते हैं डोस थोडा ज्यादा हो गया है...
Bahut hi sundar rachna rach daali aapne.
ReplyDeletesachmuch Radha ka dukh koi nahi samajh paaya, Krishn bhi nahi.
अपनी पहली टिपण्णी में हुई त्रुटी के लिए मैं क्षमा प्रार्थी हूँ...कृपया इसे यूँ पढें...
ReplyDeleteअद्भुत रचना रच डाली है आपने...कितना सच लिखा है आपने...राधा और मीरा का दुःख किसने देखा है...सबसे अधिक त्रासद अवस्था में तो राधा रही जिसे कृष्ण के प्यार से क्या मिला...कृष्ण के वृन्दावन से मथुरा से जाते ही उसे बिसरा दिया गया...बहुत ही मार्मिक कविता है ये आपकी...बहुत बहुत बधाई..
नीरज
"कान्हा तुम भी अलग नहीं हो
ReplyDeleteपुरुष वर्ग से विलग नहीं हो
खेल-खेल कर ठुकराया है
राधा-मीरा सब एक माप
यह अलौकिक प्रेम तुम्हारा बन गया उसका शाप"
गलत बात है ,कृष्ण को माध्यम बना कर बेचारे
पूरे पुरुष वर्ग को लपेटे में ले लेना रंगभेद और नस्लवाद से कम नहीं है !
कान्हा तुम भी अलग नहीं हो
ReplyDeleteपुरुष वर्ग से विलग नहीं हो
खेल-खेल कर ठुकराया है
राधा-मीरा सब एक माप
यह अलौकिक प्रेम तुम्हारा बन गया उसका शाप
kya baat kahi hai bilkul pate ki....vaise krishan purush varg se vilag ho hi kaise sakte the...unhone avtar hi sadharan purush ke taur par hi lia tha.....radha ,mira ke prem or dasha ka adhbhut chitran kia hai aapne.
radha ke santap ki bahut hi sundar vyakhya ki hai aapne magar radha aur krishna do the hi kab sirf dikhte hi to do sharir the magar wahan to aatma ek hi thi jo santap krishna viyog mein radha ne saha usse kahin kam na tha krishna ka bhi santap magar wo yahan manviya leela karne aaye the isliye kabhi darshaya nhi aur jab bhi darshaya to radha ke prem ko sarvochch dikhaya .........ye thi unki divyata.
ReplyDeleteपौराणिक नारी पात्रों का नयी दृष्टि से मूल्यांकन करने का प्रयास उल्लेखनीय है आपका । यद्यपि राधा और कृष्ण के अनन्य संबंध के बारे में बहुत कुछ कहा जा सकता है , पर यहाँ आपकी नवोन्मेषी दृष्टि का ही उल्लेख किया जाना चाहिये । आभार ।
ReplyDeleteबहुत सुन्दर रचना दीदी, पढ़कर मन मुग्ध है !!!
ReplyDeleteyeh dekh kar achha laga ki kisi ne to radha ki peeda ko shabdo ke maadyam se sab tak pahuchaane ki koshish ki..
ReplyDeletethanks for choosing this topic
-Sheena
बहुत से लोग कहते हैं आज
ReplyDeleteसमाज बहुत बदल गया है
नारी स्वतंत्र हो गई है आज
मैं उन्हें कहता हूँ
तो तुम स्वीकार करते हो कि
अब तक नारी परतंत्र रही है
पुरुष के बनाए नियमों पर जीती रही है
मैं समर्थन करता हूँ आप के द्वारा उठाए प्रश्नों का
स्त्री मन की परतों को खोलने का
नारी अबला नहीं सबला है
नारी परतंत्र नहीं स्वतंत्र है
कृष्ण तो निष्ठुर थे ही , बिलकुल आज के फिल्मी नायकों की तरह जो हत्याएँ भी करते हैं और प्रेम भी । इस नायक का चरित्र चित्रण बड़ा मुश्किल काम है अलग अलग लोगों ने अलग अलग रूप में देखा है इसे । लेकिन राधा का प्रेम तो निस्वार्थ है । उसके दुख को कोई कैसे अनदेखा कर सकता है ?
ReplyDeleteराधा होना आसान नहीं होता है. कृष्ण प्रेम की एक बूंद किसी महासागर से कम नहीं.विरह तो हर प्रेम की परिणिति है.
ReplyDeletepranam, aapki rachnaen padhkar mann ko uthal-puthal ko shanti milti hai ki koi to hai jo is tarah se sochta hai. bahut sateek or sunder rachna hai.
ReplyDeletenaa adaa ji...
ReplyDeletewo kanhaa jaroor sochtaa hogaa...
par kah nahi paaya hogaa kabhi kisi se...
पौराणिक काल के स्त्रीमन मे झाँक कर देखने का मौका देने वाली आपकी रचनाओं मे यह अगली कड़ी है..बहुत मर्मस्पर्शी और विचारोत्तेजक..मुझे तो रत्नाकर जी का उद्धवशतक याद आता है जिसे किसी समय मैं पढ़ कर पागल हो गया था
ReplyDeleteजैसे बनि बिगरि न बारिधिता बारिधि की
बूँदता बिलहे बूँद बिबस बिचारी की
वैसे मुझे लगता है कि उस विछोह मे कृष्ण का दुख भी कही से कम नही रहा होगा..मगर पुरुष थे..सो अव्यक्त ही रहा होगा.
अदा जी प्यार तो कभी नही कुछ मांगता, बस समर्पन ही होता है प्यार मै, फ़िर राधा ओर मीरा का प्यार तो पुजा था; पुरण समर्पन, जेसे नानक देव ने तेरा ही तेरा कह कर समर्पन कर दिया था, उस भगवान के नाम सारा जीवन.
ReplyDeleteराधा ओर कृषण को तो कुछ पंडितो ने रास लीला दिखा कर आधुनिक प्रेमी बना दिया, वरना तो राधा का प्यार महान था, अब अगर पुजा या प्यार मै भी संताप हो तो वो ना तो सच्ची पुजा होगी नाही सच्चा प्यार...
यह कोई खेल नही था, एक शिक्षा थी हम लोगो के लिये. धन्यवाद
आध्यात्मिकता और प्रेम में विरह की गहराई से ले कर ऊंचाई तक की लम्बाई में आपके समस्त जिज्ञासाओं का सार है ।
ReplyDeleteफिर भी पुनर्विचार के दौर में
बेहतर रचना ।
आभार...!
सोचा कभी ?
ReplyDeleteकहाँ गयी, क्या हुआ होगा उसको
कई बार उठा यह सवाल मन मस्तिष्क में ...घर में पूजा पाठ कराने वाले पंडितजी से भी पूछा ...अपने पोथी पानी समेटे हुए बात गोलमाल कर गए ...एक बार भागवत कथा के दौरान भी यह प्रश्न पूछ लिया मगर संतोषजनक जवाब आज तक नहीं मिला ....
एक एक कर सभी व्यथित पुराणिक नारियों की व्यथा गाथा चुन कर ला रही हैं ...इतिहास के पन्नों से झांक कर आपको आशीष दे रही होंगी ...
बहुत बढ़िया अदाजी ....कितने मस्तिष्क में उठे इन सवालों को अपनी जुबान देने का बहुत आभार ...!!
ek anupmeya rachna likh dali aapne is baar to Di,
ReplyDeleteRadha ji me meri bhi bahut aastha hai aur ek kavita unpar main bhi likhne wala tha lekin jab di ne hi kaam kar diya to is chhote aalsi bhai ka kaam apne aap hi kam ho gaya. mujhe jitna bhi kuchh aata hai usme mera kuchh nahin bas aapke chhote bhai hone ka hi nateeja hai, jo bina seekhe kalam todne laga.
शरद कोकस जी बात में दम है.
ReplyDeleteसृजन बढ़िया है.
यह एक शाश्वत अनुत्तरित प्रश्न है मगर फिर भी पूंछा ही जाता रहेगा !
ReplyDeleteराधा और सीता का प्रश्न तो आज तक अनुत्तरित ही है |
ReplyDeleteराधा या मीरा के संताप की खबर लेनेवाला कोई नहीं ...
सृजन के दृष्टि कोण से यह बहुत सुन्दर सृजन है किन्तु श्री पी सी गोदियाल जी की बात भी सही है
ReplyDeletelatest postएक बार फिर आ जाओ कृष्ण।