Thursday, October 15, 2009

न जाने कब से दोनों जल में ही जल रहे हैं


हम हैं घटायें कारी और वो हैं घनेरे बादल
न जाने कब से दोनों जल में ही जल रहे हैं

खुशियों के पाँव आये थे वो रेत पे चलके
मिटने का डर है खौफ़ है हम उनपे चल रहे हैं

चोरी से तूने मेरा वो हर दर्द चुराया है
पर हादसों के फ़ासले संग मेरे चल रहे हैं

मिल के भी कहाँ वो जी अब हमसे कभी मिलते
चेहरे के पीछे से कई चेहरे निकल रहे हैं

महफ़िल सजी है रौनके महफ़िल है उनके दम से
खुश है ज़माना कितना पर हम तो जल रहे हैं



बदली में छुप गया है वो जो चाँद हमारा है
बने हैं आफ़ताब हम फलक में ढल रहे हैं

उड़ते 'अदा' से वक्त के बेजान बगूले
जीवन के सलीके से भला क्यूँ हम टल रहे हैं

38 comments:

  1. हम हैं घटायें कारी और वो हैं घनेरे बादल
    न जाने कब से दोनों जल में ही जल रहे हैं
    जल भी तो जलाता है. और ऐसे मे जब बादल और घटाये हो तो ---
    बहुत खूब

    ReplyDelete
  2. बदली में छुप गया है वो जो चाँद हमारा है
    बने हैं आफ़ताब हम फलक में ढल रहे हैं

    -बहुत सुन्दर!! आनन्द आ गया.

    ReplyDelete
  3. चोरी से तूने मेरा वो हर दर्द चुराया है
    पर हादसों के फ़ासले संग मेरे चल रहे हैं

    मिल के भी कहाँ वो जी अब हमसे कभी मिलते
    चेहरे के पीछे से कई चेहरे निकल रहे हैं
    idhar bahut dino se nahi tha, kafi saari posts han aapki araam se dekhunga,
    filhaal ye dono sher bahut acche lage.

    ReplyDelete
  4. चोरी से तूने मेरा वो हर दर्द चुराया है
    पर हादसों के फ़ासले संग मेरे चल रहे हैं

    मिल के भी कहाँ वो जी अब हमसे कभी मिलते
    चेहरे के पीछे से कई चेहरे निकल रहे हैं
    idhar bahut dino se nahi tha, kafi saari posts han aapki araam se dekhunga,
    filhaal ye dono sher bahut acche lage.

    ReplyDelete
  5. चोरी से तूने मेरा वो हर दर्द चुराया है
    पर हादसों के फ़ासले संग मेरे चल रहे हैं
    एक बार फिर से दिल के अन्दर तक जाकर दर्द के तारों को हिला देने वाली ग़ज़ल लिखी आपने..... बधाई दी..

    ReplyDelete
  6. यह तो टाईम पास है आपका मौलिक टैलेंट है भारतीय मिथक पात्रों के चरित्र चित्रण की अभिनव दृष्टि -हमें तो उसी की तलाश यहाँ लाती रहेगी -जब तक वह काव्यमय कार्य सम्पन्न नहीं हो जाता !

    ReplyDelete
  7. मिल के भी कहाँ वो जी अब हमसे कभी मिलते
    चेहरे के पीछे से कई चेहरे निकल रहे हैं ...moukhote odhe hue duniya jab ji chahe pahn leti hai nya chehra......

    ReplyDelete
  8. बदली में छुप गया है वो जो चाँद हमारा है
    बने हैं आफ़ताब हम फलक में ढल रहे हैं

    बहुत भावपूर्ण अश्आर है!
    धनतेरस, दीपावली और भइया-दूज पर आपको ढेरों शुभकामनाएँ!

    ReplyDelete
  9. सावन जो अगन लगाए,
    उसे कौन बुझाए...

    दीवाली आपके और घर पर सभी के लिए मंगलमयी हो...

    जय हिंद...

    ReplyDelete
  10. हम सब तो इधर आपकी पौराणिक पात्रों की काव्यात्मक चित्र-वीथियों में ही टहल-घूम रहे थे, चिंतन को उत्सुक हो रहे थे और वैसी ही आगत रचना-प्रविष्टि को समोत्सुक हो रहे थे - पर आज आपकी इस गजल ने शायद औचक उपस्थित होकर अपने को और भी प्रभावी बना दिया है । आभार ।

    ReplyDelete
  11. मिल के भी कहाँ वो जी अब हमसे कभी मिलते
    चेहरे के पीछे से कई चेहरे निकल रहे हैं

    सत्य वचन ...

    ReplyDelete
  12. हम हैं घटायें कारी और वो हैं घनेरे बादल
    न जाने कब से दोनों जल में ही जल रहे हैं....
    और उनके जलने से और भी जल जल कर जल रहे हैं ...हा हा
    आज कोई गंभीर टिपण्णी करने का मूड नहीं है ...
    मस्त रहो ...अदा की मस्ती में ..!!

    ReplyDelete
  13. मिल के भी कहाँ वो जी अब हमसे कभी मिलते
    चेहरे के पीछे से कई चेहरे निकल रहे हैं
    wah aDaDi...
    Office main pahunchte hi itna kharab mood tha aur us par ye zukaam, sinus !!
    Par aapki kavita (kavita keh sakta hoon na?) ne mood fresh kar diya (Thode samay ke liye hi sahi...
    aur aapki last wali line Gulzaar (?)(i know aap kya soch rahi hain?) ki yaad dila gayi :
    "उड़ते 'अदा' से वक्त के बेजान बगूले
    जीवन के सलीके से भला क्यूँ हम टल रहे हैं"
    Ek Parvaaz dikhai di hai...

    ReplyDelete
  14. बदली में छुप गया है वो जो चाँद हमारा है
    बने हैं आफ़ताब हम फलक में ढल रहे हैं

    बेहद खुबसूरत पंक्तियाँ...
    regards

    ReplyDelete
  15. चोरी से तूने मेरा वो हर दर्द चुराया है
    पर हादसों के फ़ासले संग मेरे चल रहे हैं
    waah behtarin rachana

    ReplyDelete
  16. महफ़िल सजी है रौनके महफ़िल है उनके दम से
    खुश है ज़माना कितना पर हम तो जल रहे है

    सुंदर अभिव्यक्त !

    उत्सव के समय पर ये जलने-जलाने की बातें छोड़ों

    बाहर - भीतर जल ही जल
    फूटा कुंभ जल जल ही समाना

    ReplyDelete
  17. हम हैं घटायें कारी और वो हैं घनेरे बादल
    न जाने कब से दोनों जल में ही जल रहे हैं
    ghata aur baadal alag alag hote hain kya? jal mein jalna... maan gaye aapko... bahut acche..
    महफ़िल सजी है रौनके महफ़िल है उनके दम से
    खुश है ज़माना कितना पर हम तो जल रहे हैं
    arey zamana bahut kharab hai.. kabhi to hamse jalta hai, aur kabhi hamein hi rakh kar deta hai..
    बदली में छुप गया है वो जो चाँद हमारा है
    बने हैं आफ़ताब हम फलक में ढल रहे हैं
    kya kahne.. bahut khoob..

    ReplyDelete
  18. वाह! जलने के बाद खरा सोना निकल आया है!!

    ReplyDelete
  19. उड़ते 'अदा' से वक्त के बेजान बगूले
    जीवन के सलीके से भला क्यूँ हम टल रहे हैं
    बहुत सुंदर रचना रची आप ने
    धन्यवाद
    आप को ओर आप के परिवार को शुभ दिपावली ओर शुभकामानायें

    ReplyDelete
  20. अदा जी आपकी बात निराली है ,
    आपकी कविता सब पे भारी है ..

    ReplyDelete
  21. इस बार मैं सिर्फ

    उड़ते 'अदा' से वक्त के बेजान बगूले
    जीवन के सलीके से भला क्यूँ हम टल रहे हैं

    की तारीफ़ करूंगा...शायद रोज़ ही लिखने की वजह हो...कि कुछ नया न हो. मैं तो खुद ही महीनों से कुछ नहीं लिख रहा...मगर जो भी पढता हूँ ऐसा लगता है मजा नहीं आया...यूं तो आप वाह लिखती हैं...
    जारी रहें.
    ---

    हिंदी ब्लोग्स में पहली बार Friends With Benefits - रिश्तों की एक नई तान (FWB) [बहस] [उल्टा तीर]

    ReplyDelete
  22. दिल की भावों को बहुत खूबसूरती से आपने लफजों में पिरोया है। बधाई।
    धनतेरस की हार्दिक शुभकामनाएँ।
    ----------
    डिस्कस लगाएं, सुरक्षित कमेंट पाएँ

    ReplyDelete
  23. बहुत सुंदर.

    आपको दीपावली पर्व की हार्दिक शुभकामनाएं.

    रामराम.

    ReplyDelete
  24. हम हैं घटायें कारी और वो हैं घनेरे बादल
    न जाने कब से दोनों जल में ही जल रहे हैं
    khoobsurat panktiyan

    ReplyDelete
  25. बदली में छुप गया है वो जो चाँद हमारा है
    बने हैं आफ़ताब हम फलक में ढल रहे हैं


    wah! bahut hi khoobsoorat lines hain yeh to.........

    poori kavita bahut achchi lagi............






    aapko deepawali ki haardik shubhkaamnayen......

    ReplyDelete
  26. Rachna to rachna...saath aisee tasveer...sone pe suhaga..'jal' ka kya gazab istemaal...rachna aur tasveer dono me...!

    ReplyDelete
  27. बदली में छुप गया है वो जो चाँद हमारा है
    बने हैं आफ़ताब हम फलक में ढल रहे हैं

    भावपूर्ण ...... आनंद आ गया

    DIWAALI KI SHUBH KMNAAYEN ....

    ReplyDelete
  28. पता है मैम, आप कई-कई बार हैरान कर देती हैं मुझे। इतना कैसे लिख लेती हैं आप और वो भी इतनी सहजता से...?
    "हम हैं घटायें कारी और वो हैं घनेरे बादल/न जाने कब से दोनों जल में ही जल रहे हैं" इन दो पंक्तियों के छुपे भाव और कहने के अंदाज ने तालियां बजाने पर विवश किया। लेकिन अब अपने ठीक-ठाक इकलौते हाथ से ताली कैसे बजाऊँ, तो सोचा कि यहां लिख कर आपको बता दूँ ये बात।

    ReplyDelete
  29. मिल के भी कहाँ वो जी अब हमसे कभी मिलते
    चेहरे के पीछे से कई चेहरे निकल रहे हैं
    बहुत खूब.....आनन्द आ गया.

    ReplyDelete
  30. मिल के भी कहाँ वो जी अब हमसे कभी मिलते
    चेहरे के पीछे से कई चेहरे निकल रहे हैं ...

    दीदी आपके कविता तो छा गई है | लाजवाब लिख रही हैं ....

    ReplyDelete
  31. पहले और पाँचवे शेर मे :जल रहे हैं" का जवाब नहीं ।

    ReplyDelete
  32. Doobara aaiya hoon comment karne...
    पहले और पाँचवे शेर मे :जल रहे हैं" का जवाब नहीं ।

    ....

    Rahiman 'Paani' raakhiye main paani ke arth the...
    yahan 'Jal' ke...
    Aur co-incident dekho...
    Dono hi water !!

    "Ma'am aap to kabhi Kabhi hairaan kar deti hain...
    main bhi taali bajata par mera ek haat naak saaf karne main laaga hai..."
    aaankkkkkk.... chuooooooo.... !!

    Ufff ye Sinus !!

    ReplyDelete
  33. Hello,

    खुश है ज़माना कितना पर हम तो जल रहे हैं

    Dil ko chooh gayi aapki rachna...

    Regards,
    Dimple

    ReplyDelete
  34. दीपावली, गोवर्धन-पूजा और भइया-दूज पर आपको ढेरों शुभकामनाएँ!

    ReplyDelete
  35. दीपावली, गोवर्धन-पूजा और भइया-दूज पर आपको ढेरों शुभकामनाएँ!



    बहुत ही अच्‍छी कविता लिखी है
    आपने काबिलेतारीफ बेहतरीन


    SANJAY KUMAR
    HARYANA
    http://sanjaybhaskar.blogspot.com

    ReplyDelete
  36. मिल के भी कहाँ वो जी अब हमसे कभी मिलते
    चेहरे के पीछे से कई चेहरे निकल रहे हैं

    ReplyDelete