हम हैं घटायें कारी और वो हैं घनेरे बादल
न जाने कब से दोनों जल में ही जल रहे हैं
खुशियों के पाँव आये थे वो रेत पे चलके
मिटने का डर है खौफ़ है हम उनपे चल रहे हैं
चोरी से तूने मेरा वो हर दर्द चुराया है
पर हादसों के फ़ासले संग मेरे चल रहे हैं
मिल के भी कहाँ वो जी अब हमसे कभी मिलते
चेहरे के पीछे से कई चेहरे निकल रहे हैं
महफ़िल सजी है रौनके महफ़िल है उनके दम से
खुश है ज़माना कितना पर हम तो जल रहे हैं
बदली में छुप गया है वो जो चाँद हमारा है
बने हैं आफ़ताब हम फलक में ढल रहे हैं
उड़ते 'अदा' से वक्त के बेजान बगूले
जीवन के सलीके से भला क्यूँ हम टल रहे हैं
हम हैं घटायें कारी और वो हैं घनेरे बादल
ReplyDeleteन जाने कब से दोनों जल में ही जल रहे हैं
जल भी तो जलाता है. और ऐसे मे जब बादल और घटाये हो तो ---
बहुत खूब
बदली में छुप गया है वो जो चाँद हमारा है
ReplyDeleteबने हैं आफ़ताब हम फलक में ढल रहे हैं
-बहुत सुन्दर!! आनन्द आ गया.
चोरी से तूने मेरा वो हर दर्द चुराया है
ReplyDeleteपर हादसों के फ़ासले संग मेरे चल रहे हैं
मिल के भी कहाँ वो जी अब हमसे कभी मिलते
चेहरे के पीछे से कई चेहरे निकल रहे हैं
idhar bahut dino se nahi tha, kafi saari posts han aapki araam se dekhunga,
filhaal ye dono sher bahut acche lage.
चोरी से तूने मेरा वो हर दर्द चुराया है
ReplyDeleteपर हादसों के फ़ासले संग मेरे चल रहे हैं
मिल के भी कहाँ वो जी अब हमसे कभी मिलते
चेहरे के पीछे से कई चेहरे निकल रहे हैं
idhar bahut dino se nahi tha, kafi saari posts han aapki araam se dekhunga,
filhaal ye dono sher bahut acche lage.
चोरी से तूने मेरा वो हर दर्द चुराया है
ReplyDeleteपर हादसों के फ़ासले संग मेरे चल रहे हैं
एक बार फिर से दिल के अन्दर तक जाकर दर्द के तारों को हिला देने वाली ग़ज़ल लिखी आपने..... बधाई दी..
यह तो टाईम पास है आपका मौलिक टैलेंट है भारतीय मिथक पात्रों के चरित्र चित्रण की अभिनव दृष्टि -हमें तो उसी की तलाश यहाँ लाती रहेगी -जब तक वह काव्यमय कार्य सम्पन्न नहीं हो जाता !
ReplyDeleteमिल के भी कहाँ वो जी अब हमसे कभी मिलते
ReplyDeleteचेहरे के पीछे से कई चेहरे निकल रहे हैं ...moukhote odhe hue duniya jab ji chahe pahn leti hai nya chehra......
बदली में छुप गया है वो जो चाँद हमारा है
ReplyDeleteबने हैं आफ़ताब हम फलक में ढल रहे हैं
बहुत भावपूर्ण अश्आर है!
धनतेरस, दीपावली और भइया-दूज पर आपको ढेरों शुभकामनाएँ!
सावन जो अगन लगाए,
ReplyDeleteउसे कौन बुझाए...
दीवाली आपके और घर पर सभी के लिए मंगलमयी हो...
जय हिंद...
sunder likhaa hai
ReplyDeleteहम सब तो इधर आपकी पौराणिक पात्रों की काव्यात्मक चित्र-वीथियों में ही टहल-घूम रहे थे, चिंतन को उत्सुक हो रहे थे और वैसी ही आगत रचना-प्रविष्टि को समोत्सुक हो रहे थे - पर आज आपकी इस गजल ने शायद औचक उपस्थित होकर अपने को और भी प्रभावी बना दिया है । आभार ।
ReplyDeleteमिल के भी कहाँ वो जी अब हमसे कभी मिलते
ReplyDeleteचेहरे के पीछे से कई चेहरे निकल रहे हैं
सत्य वचन ...
हम हैं घटायें कारी और वो हैं घनेरे बादल
ReplyDeleteन जाने कब से दोनों जल में ही जल रहे हैं....
और उनके जलने से और भी जल जल कर जल रहे हैं ...हा हा
आज कोई गंभीर टिपण्णी करने का मूड नहीं है ...
मस्त रहो ...अदा की मस्ती में ..!!
मिल के भी कहाँ वो जी अब हमसे कभी मिलते
ReplyDeleteचेहरे के पीछे से कई चेहरे निकल रहे हैं
wah aDaDi...
Office main pahunchte hi itna kharab mood tha aur us par ye zukaam, sinus !!
Par aapki kavita (kavita keh sakta hoon na?) ne mood fresh kar diya (Thode samay ke liye hi sahi...
aur aapki last wali line Gulzaar (?)(i know aap kya soch rahi hain?) ki yaad dila gayi :
"उड़ते 'अदा' से वक्त के बेजान बगूले
जीवन के सलीके से भला क्यूँ हम टल रहे हैं"
Ek Parvaaz dikhai di hai...
बदली में छुप गया है वो जो चाँद हमारा है
ReplyDeleteबने हैं आफ़ताब हम फलक में ढल रहे हैं
बेहद खुबसूरत पंक्तियाँ...
regards
चोरी से तूने मेरा वो हर दर्द चुराया है
ReplyDeleteपर हादसों के फ़ासले संग मेरे चल रहे हैं
waah behtarin rachana
महफ़िल सजी है रौनके महफ़िल है उनके दम से
ReplyDeleteखुश है ज़माना कितना पर हम तो जल रहे है
सुंदर अभिव्यक्त !
उत्सव के समय पर ये जलने-जलाने की बातें छोड़ों
बाहर - भीतर जल ही जल
फूटा कुंभ जल जल ही समाना
पढ़कर आनंद आ गया !!
ReplyDeleteहम हैं घटायें कारी और वो हैं घनेरे बादल
ReplyDeleteन जाने कब से दोनों जल में ही जल रहे हैं
ghata aur baadal alag alag hote hain kya? jal mein jalna... maan gaye aapko... bahut acche..
महफ़िल सजी है रौनके महफ़िल है उनके दम से
खुश है ज़माना कितना पर हम तो जल रहे हैं
arey zamana bahut kharab hai.. kabhi to hamse jalta hai, aur kabhi hamein hi rakh kar deta hai..
बदली में छुप गया है वो जो चाँद हमारा है
बने हैं आफ़ताब हम फलक में ढल रहे हैं
kya kahne.. bahut khoob..
वाह! जलने के बाद खरा सोना निकल आया है!!
ReplyDeleteउड़ते 'अदा' से वक्त के बेजान बगूले
ReplyDeleteजीवन के सलीके से भला क्यूँ हम टल रहे हैं
बहुत सुंदर रचना रची आप ने
धन्यवाद
आप को ओर आप के परिवार को शुभ दिपावली ओर शुभकामानायें
अदा जी आपकी बात निराली है ,
ReplyDeleteआपकी कविता सब पे भारी है ..
इस बार मैं सिर्फ
ReplyDeleteउड़ते 'अदा' से वक्त के बेजान बगूले
जीवन के सलीके से भला क्यूँ हम टल रहे हैं
की तारीफ़ करूंगा...शायद रोज़ ही लिखने की वजह हो...कि कुछ नया न हो. मैं तो खुद ही महीनों से कुछ नहीं लिख रहा...मगर जो भी पढता हूँ ऐसा लगता है मजा नहीं आया...यूं तो आप वाह लिखती हैं...
जारी रहें.
---
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दिल की भावों को बहुत खूबसूरती से आपने लफजों में पिरोया है। बधाई।
ReplyDeleteधनतेरस की हार्दिक शुभकामनाएँ।
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डिस्कस लगाएं, सुरक्षित कमेंट पाएँ
बहुत सुंदर.
ReplyDeleteआपको दीपावली पर्व की हार्दिक शुभकामनाएं.
रामराम.
हम हैं घटायें कारी और वो हैं घनेरे बादल
ReplyDeleteन जाने कब से दोनों जल में ही जल रहे हैं
khoobsurat panktiyan
बदली में छुप गया है वो जो चाँद हमारा है
ReplyDeleteबने हैं आफ़ताब हम फलक में ढल रहे हैं
wah! bahut hi khoobsoorat lines hain yeh to.........
poori kavita bahut achchi lagi............
aapko deepawali ki haardik shubhkaamnayen......
Rachna to rachna...saath aisee tasveer...sone pe suhaga..'jal' ka kya gazab istemaal...rachna aur tasveer dono me...!
ReplyDeleteबदली में छुप गया है वो जो चाँद हमारा है
ReplyDeleteबने हैं आफ़ताब हम फलक में ढल रहे हैं
भावपूर्ण ...... आनंद आ गया
DIWAALI KI SHUBH KMNAAYEN ....
पता है मैम, आप कई-कई बार हैरान कर देती हैं मुझे। इतना कैसे लिख लेती हैं आप और वो भी इतनी सहजता से...?
ReplyDelete"हम हैं घटायें कारी और वो हैं घनेरे बादल/न जाने कब से दोनों जल में ही जल रहे हैं" इन दो पंक्तियों के छुपे भाव और कहने के अंदाज ने तालियां बजाने पर विवश किया। लेकिन अब अपने ठीक-ठाक इकलौते हाथ से ताली कैसे बजाऊँ, तो सोचा कि यहां लिख कर आपको बता दूँ ये बात।
मिल के भी कहाँ वो जी अब हमसे कभी मिलते
ReplyDeleteचेहरे के पीछे से कई चेहरे निकल रहे हैं
बहुत खूब.....आनन्द आ गया.
मिल के भी कहाँ वो जी अब हमसे कभी मिलते
ReplyDeleteचेहरे के पीछे से कई चेहरे निकल रहे हैं ...
दीदी आपके कविता तो छा गई है | लाजवाब लिख रही हैं ....
पहले और पाँचवे शेर मे :जल रहे हैं" का जवाब नहीं ।
ReplyDeleteDoobara aaiya hoon comment karne...
ReplyDeleteपहले और पाँचवे शेर मे :जल रहे हैं" का जवाब नहीं ।
....
Rahiman 'Paani' raakhiye main paani ke arth the...
yahan 'Jal' ke...
Aur co-incident dekho...
Dono hi water !!
"Ma'am aap to kabhi Kabhi hairaan kar deti hain...
main bhi taali bajata par mera ek haat naak saaf karne main laaga hai..."
aaankkkkkk.... chuooooooo.... !!
Ufff ye Sinus !!
Hello,
ReplyDeleteखुश है ज़माना कितना पर हम तो जल रहे हैं
Dil ko chooh gayi aapki rachna...
Regards,
Dimple
दीपावली, गोवर्धन-पूजा और भइया-दूज पर आपको ढेरों शुभकामनाएँ!
ReplyDeleteदीपावली, गोवर्धन-पूजा और भइया-दूज पर आपको ढेरों शुभकामनाएँ!
ReplyDeleteबहुत ही अच्छी कविता लिखी है
आपने काबिलेतारीफ बेहतरीन
SANJAY KUMAR
HARYANA
http://sanjaybhaskar.blogspot.com
मिल के भी कहाँ वो जी अब हमसे कभी मिलते
ReplyDeleteचेहरे के पीछे से कई चेहरे निकल रहे हैं