मेरे सपने
हिम्मत के
दरवाज़े पर
टंगी
उम्मीद की
पोटली
इंतज़ार की साँकल से
बार-बार टकराती है !
यकीन को
थपथपाती है !
खवाब..
ख्यालों की
कुण्डी खोल कर
अन्दर आ गए हैं
आंखों की सूखी नदी
जाग गयी
अब तय है कि
तूफ़ान बा-दस्तूर
आएगा
मेरे सपने
या डूबेंगे
या फिर किनारे
लग जायेंगे
देखते हैं क्या
होता है
नज़र न लग जाए
इसलिए खामोशी का
एक ढीठौना
तो लगा दिया है मैंने....
हिम्मत के
ReplyDeleteदरवाज़े पर
टंगी
उम्मीद की
पोटली
इंतज़ार की छागल से
बार-बार टकराती है !
himmat hai to sab kuch hai....
नज़र न लग जाए
इसलिए खामोशी का
एक ढीठौना
तो लगा दिया है मैंने...
bahut sahi kaha aapne......
khamoshi dhithauna to laga hi diya hai.....
अदा जी नमस्कार !
ReplyDeleteहिम्मत के
दरवाज़े पर
टंगी
उम्मीद की
पोटली
इंतज़ार की छागल से
बार-बार टकराती है !
आपके पास शब्दों की भण्डार है . सुन्दर रचना
waaqai mein aapke paas shabdon ka bhandar hai............
ReplyDeleteनज़र न लग जाए
ReplyDeleteइसलिए खामोशी का
एक ढीठौना
तो लगा दिया है मैंने....
बहुत लाजवाब। क्या लिखा है आपा आपने। आपको ईद और दशहरा की ढेर सारी बधाइयां। देर से बधाई इसलिए दे रहा हूं, क्योंकि मैं काम से बाहर गया था। नेट या ब्लॉगिंग से एकदम दूर। और सुनायें कैसी हैं आपा आप।
अब तय है कि
ReplyDeleteतूफ़ान बा-दस्तूर
आएगा
मेरे सपने
या डूबेंगे
या फिर किनारे
लग जायेंगे
देखते हैं क्या
होता है...aisa laga ye kavita maine likhi ya fir mere emotions aapne padh liye...ya wo khud aayenge ya bhejnge paigam mujhe aisee hi kuchh kashmkash c hai kavita me...
बहुत हीं खूबसूरत रचना । आभार
ReplyDeleteवाह लाजवाब रचना. शुभकामनाएं.
ReplyDeleteरामराम.
हिम्मत के
ReplyDeleteदरवाज़े पर
टंगी
उम्मीद की
पोटली
इंतज़ार की छागल से
बार-बार टकराती है !
अदा जी मुझे लगता है कि ये कविता मैने पहले पढी है बहुत सुन्दर रचना है बधाइ जरा जल्दी मे हूँ हा हा हा
शानदार बिम्बो ने
ReplyDeleteएहसास को छुआ है
बेहतरीन और भावनात्मक बहुत खूबसूरत रचना
नज़र न लग जाए
ReplyDeleteइसलिए खामोशी का
एक ढीठौना
तो लगा दिया है मैंने....
waah bahut khub
dheethunaa bole to...???
ReplyDeleteढीठौना बोले तो !!
ReplyDeleteनज़र बट्टू ...
तूफान गर बा-दस्तूर आते हैं
ReplyDeleteतो आएंगे ही
सपने डूबेंगे या किनारे लगेंगे
ये तो वक्त ही बताएगा
पर जबरन लाई गई खामोशी का
तकाज़ा बनता है क्या
ये तो खुद अदा ही अर्ज करें !!!
उम्दा नज़्म !!! बधाई स्वीकार करें
नज़र न लग जाए
ReplyDeleteइसलिए............
अति सुन्दर शब्द रचना.
भावों का अतिरेक.
हार्दिक बधाई.
चन्द्र मोहन गुप्त
जयपुर
www.cmgupta.blogspot.com
This comment has been removed by a blog administrator.
ReplyDeleteखवाब..
ReplyDeleteख्यालों की
कुण्डी खोल कर
अन्दर आ गए हैं
आंखों की सूखी नदी
जाग गयी .....
ऐसी रचनाएं सोचने पे मजबूर कर देती है की मनुष्य की संवेदनाएं शायद सागार से भी गहरी हैं ....
अदा जी !
ReplyDeleteआप बहुत दिनों से गूंजअनुगूंज पर नहीं आ रही, ऐसी मुझसे क्या भूल हो गई है?
उम्मीद करता हूँ; आपके आशीर्वचन और आशीष दोनों बने रहेंगे ।
अहोभाव सहित
मनोज भारती
Madhuri Says:
ReplyDeleteनज़र न लग जाए
इसलिए खामोशी का
एक ढीठौना
तो लगा दिया है मैंने....
ada ji,
agar tujhe nazar lagegi to ham kis marz ki dawa hain ji. jab tak ham jaise dost hai tere ko kya sochna hai.
bahut accha likha hai..
आंखों की सूखी नदी
ReplyDeleteजाग गयी
अब तय है कि
तूफ़ान बा-दस्तूर
आएगा
मेरे सपने
या डूबेंगे
या फिर किनारे
लग जायेंगे
नज़र ना लगे सपनों को ...
बहुत सुन्दर ग़ज़ल ...
हिम्मत के
ReplyDeleteदरवाज़े पर
टंगी
उम्मीद की
पोटली
इंतज़ार की छागल से
बार-बार टकराती है !
himmat aur ummeed ho ta kuch bhi kiya jaa sakta hai
अब तय है कि
तूफ़ान बा-दस्तूर
आएगा
मेरे सपने
या डूबेंगे
या फिर किनारे
लग जायेंगे
toofan ki kise parwaah hai aur sapne to poore hokar hi rahnege bas man mein thaan lene ki zaroorat hai.
sunadr kavita.
हिम्मत के
ReplyDeleteदरवाज़े पर
टंगी
उम्मीद की
पोटली
इंतज़ार की छागल से
बार-बार टकराती है !
himmat aur ummeed ho ta kuch bhi kiya jaa sakta hai
अब तय है कि
तूफ़ान बा-दस्तूर
आएगा
मेरे सपने
या डूबेंगे
या फिर किनारे
लग जायेंगे
toofan ki kise parwaah hai aur sapne to poore hokar hi rahnege bas man mein thaan lene ki zaroorat hai.
sunadr kavita.
bahut sundar prastuti.
ReplyDeletebahut hee sunder rachana hai.pahalee var aana hua bada acha laga.badhaisweekare sabhee achee rachanao ke srujen kee .
ReplyDeleteहै जुबां को काटने का शौक़, मेरी काटिये
ReplyDeleteबख्श भी दीजै रकीबों को, के कुछ मैं भी सुनूं..