जब कभी हम किसी अज़ाब में आ जाते हैं
बाहें फैलाए हुए वो ख़्वाब में आ जाते हैं
ढूंढ़ते फिरते हैं हम कितने सवालों का जवाब
जाने कैसे वो ख़ुदा की क़िताब में आ जाते है
कोशिशें मेरी डूबने की कर गए नाक़ामयाब
जाल कसमों की लिए तालाब में आ जाते हैं
कुंद होने चल पड़े दिल के अंधेरों में 'अदा'
नूर की झुरमुट लिए महताब में आ जाते हैं
सारी तसवीरें गूगल का सौजन्य से ....
कोशिशें मेरी डूबने की कर गए नाक़ामयाब
ReplyDeleteजाल कसमों के लिए तालाब में आ जाते हैं
वाह-वाह क्या पंक्ति है। बेहतरिन। आपने जो तस्विर लगा रखी है इस रचना के लिए उसके तो क्या कहनें, बहुत सुन्दर
कोशिशें मेरी डूबने की कर गए नाक़ामयाब
ReplyDeleteजाल कसमों के लिए तालाब में आ जाते हैं
...खूबसूरत!!!!!
बहुत सुन्दर रचना है
ReplyDeletewah kya baat hai
ReplyDeleteWaah ! bas hamesh ek hee shabd hota hai...!
ReplyDeletehttp://shamasansmaran.blogspot.com
जब कभी हम किसी अजाब में आ जाते हैं
ReplyDeleteबाहें फैलाए हुए वो ख़्वाब में आ जाते हैं
ढूंढ़ते फिरते हैं हम कितने सवालों का हल
जाने कैसे वो ख़ुदा की क़िताब में आ जाते है
कोशिशें मेरी डूबने की कर गए नाक़ामयाब
जाल कसमों के लिए तालाब में आ जाते हैं
कुंद होने चल पड़े दिल के अंधेरों में 'अदा'
नूर की झुरमुट लिए महताब में आ जाते हैं
saare sher zabardast hain. kisi ek ko chunkar uski baat karna mere liye sambhav nahi hai. ada ji aapne mere baare mein poochha sir se ? mujhe aapse baat karne ki bahut iccha hai kaise kar sakta hun bataiyega. aapke bhai kahan hain ab ? Please ada ji main request kar raha hun, itne saalon baad kisi bachpan ke jaan pahchaan waale se milna kaisa lagta hain ye main hi mahsoos kar raha hun. mujhe bahut ummeed hain aap baat karoge. thank you very much.
अदा जी, अदा जी, अदा जी,
ReplyDeleteक्या करती हैं आप !!
इतनी खुबसूरत रचनाएँ पढ़ा-पढ़ा कर आप हमारी आदत ख़राब कर चुकी हैं
अब तो जैसे ही नेट पर बैठते हैं सीधे आपकी पोस्ट पर पहुँच जाते हैं
कोशिशें मेरी डूबने की कर गए नाक़ामयाब
जाल कसमों के लिए तालाब में आ जाते हैं
इस शेर ने कमाल कल दिया है, मेरे पास शब्द नहीं है तारीफ के लिए.
इतनी अच्छी रचनाएँ आप रोज कैसे लिखती हैं
इसका राज क्या हैं ? मैं आपसे पहले भी पूछ चूका हूँ.
लोग महीने भर में भी नहीं लिख पाते हैं और यह मैं ब्लॉग में घूम-घूम कर देख चूका हूँ.
और आप रोज लिख देतीं हैं इसकी तारीफ जितनी भी करूँ कम है
और इस बात को सभी मानेंगे. ये पक्की बात है.
कोशिशें मेरी डूबने की कर गए नाक़ामयाब
ReplyDeleteजाल कसमों के लिए तालाब में आ जाते हैं
वाह ...बहुत बढ़िया ...!!
आपकी लेखनी को मेरा नमन स्वीकार करें.
ReplyDeleteजब कभी हम किसी अजाब में आ जाते हैं
ReplyDeleteबाहें फैलाए हुए वो ख़्वाब में आ जाते हैं
ख्वाबो मे ख्वाब आ जाये तो ---
बेहतरीन रचना
कोशिशें मेरी डूबने की कर गए नाक़ामयाब
ReplyDeleteजाल कसमों के लिए तालाब में आ जाते हैं....bahut achha laga ye....
ada ji,
ReplyDeleteabhi kuchh nayaa post mat kijiyegaa....
dhyaan se baar baar padhne kaa man hai abhi...
कोशिशें मेरी डूबने की कर गए नाक़ामयाब
ReplyDeleteजाल कसमों के लिए तालाब में आ जाते हैं
बहुत नायाब संप्रेषण है. शुभकामनाएं.
रामराम.
बहुत खूबसूरती से आपने भावो को गजल का रूप दिया है..बधाई..मेरे ब्लॉग पे आपका स्वागत है
ReplyDelete"जब कभी हम किसी अजाब में आ जाते हैं
ReplyDeleteबाहें फैलाए हुए वो ख़्वाब में आ जाते हैं"
अजी ख्वाबों में वो कैसे न आयें....ख्वाब उन्हीं के लिये तो बने हैं...बहुत सुन्दर रचना....बहुत बहुत बधाई....
उफ़, इतने अच्छे मिस्रों में सजी ये रचना....
ReplyDeleteजाल कसमों की लिये....ख्यालों की उड़ान अचंभित करती हैं।
जब कभी हम किसी अजाब में आ जाते हैं
ReplyDeleteबाहें फैलाए हुए वो ख़्वाब में आ जाते हैं
bhaut hi khubsoort rachana.........
jab misre bemisaal ho to gazal ka mazaa kuchh alag hi hota he-
ReplyDeletemanuji ne sahi likha he.../
abhi nahi..baar baar padhhne ka man hota he ise/
ढूंढ़ते फिरते हैं हम कितने सवालों का हल
ReplyDeleteजाने कैसे वो ख़ुदा की क़िताब में आ जाते है
कोशिशें मेरी डूबने की कर गए नाक़ामयाब
जाल कसमों के लिए तालाब में आ जाते हैं
अदा जी लाजवाब गज़ल है बहुत बहुत बधाई
अदा जी, अदा जी, अदा जी,
ReplyDeleteक्या करती हैं आप !!
इतनी खुबसूरत रचनाएँ पढ़ा-पढ़ा कर आप हमारी आदत ख़राब कर चुकी हैं
अब तो जैसे ही नेट पर बैठते हैं सीधे आपकी पोस्ट पर पहुँच जाते हैं
कोशिशें मेरी डूबने की कर गए नाक़ामयाब
जाल कसमों के लिए तालाब में आ जाते हैं
इस शेर ने कमाल कल दिया है, मेरे पास शब्द नहीं है तारीफ के लिए.
इतनी अच्छी रचनाएँ आप रोज कैसे लिखती हैं
इसका राज क्या हैं ? मैं आपसे पहले भी पूछ चूका हूँ.
लोग महीने भर में भी नहीं लिख पाते हैं और यह मैं ब्लॉग में घूम-घूम कर देख चूका हूँ.
और आप रोज लिख देतीं हैं इसकी तारीफ जितनी भी करूँ कम है
और इस बात को सभी मानेंगे. ये पक्की बात है
maante hain...
maante hain..
maante hain....
परिमल जी और मनु जी,
ReplyDeleteसादर प्रणाम,
ऐसा हरगिज भी नहीं है, मुझे जैसे लिखने वाले सैकडों हैं ब्लॉग जगत में..
ये आप लोगों का बड़प्पन है और कुछ नहीं..
आप दोनों की आभारी हूँ मैं..
धन्यवाद.
सारी तसवीरें गूगल का सौजन्य से ...
ReplyDelete...Thank You Google Uncle!!
कोशिशें मेरी डूबने की कर गए नाक़ामयाब
ReplyDeleteजाल कसमों के लिए तालाब में आ जाते हैं
सुन्दर अभिव्यक्ति |