आईने में जब भी हम अपना चेहरा देखें हैं
तेरे चेहरे से क्यों लिपटा नज़र आता है
खुशनसीबी ढूंढ़ते फिरते हैं हम हाथों में
बदनसीबी का क्यों पहरा नज़र आता है
लगा डाले हैं कई पैबंद हमने नासूरों पर
जाने क्यूँ फिर भी कुछ उधड़ा नज़र आता है
इश्क में लुटने का ग़म कौन कमबख्त करता है
ग़म ये है तू मेरा है, पर उसका नज़र आता है
नाखुदा से भी अब हम लगाये क्या उम्मीद
वो ख़ुद ही लहरों से जब डरा नज़र आता है
भीड़ की भीड़ गुम गयी है इस शहर में आज
और ये शहर भी अब लापता नज़र आता है
अब 'अदा' पीछा करे तो कहो किसका करे
वक़्त जब ख़ुद ही यहाँ ठहरा नज़र आता है
भीड़ की भीड़ गुम है गयी इस शहर में
ReplyDeleteऔर ये शहर भी अब लापता नज़र आता है
-ओह!! आह!! वाह!!
क्या बात है, बहुत खूब!!
भीड़ की भीड़ गुम गयी है आज इस शहर में
ReplyDeleteऔर ये शहर भी अब लापता नज़र आता है
शहर का लापता हो जाना --
बहुत खूब
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ReplyDeleteइश्क में लुटने का ग़म कौन कमबख्त करता है
ReplyDeleteग़म ये है तू मेरा है, पर उसका नज़र आता है
Waah...bahut hi umda sher 'ada' ji..
इन गहरे भावों से आपने सराबोर कर दिया ।आभार ।
ReplyDeleteइश्क में लुटने का ग़म कौन कमबख्त करता है
ReplyDeleteग़म ये है तू मेरा है, पर उसका नज़र आता है
बहुत सुन्दर अदाजी ..सुन्दर भावाभिव्यक्ति..!!
बेहतरीन रचना... बधाई,
ReplyDelete:)
भीड़ की भीड़ गुम गयी है इस शहर में आज
ReplyDeleteऔर ये शहर भी अब लापता नज़र आता है
बहुत खूब
अब 'अदा' पीछा करे तो कहो किसका करे
ReplyDeleteवक़्त जब ख़ुद ही यहाँ ठहरा नज़र आता है
"chupata raha wqut apna umr,
iski ho gayi fitrat janana"
इश्क में लुटने का ग़म कौन कमबख्त करता है
ग़म ये है तू मेरा है, पर उसका नज़र आता है
"qutl kar ke kaat li zaban meri,
nahi chahta shikayat ki jagah banana"
इश्क में लुटने का ग़म कौन कमबख्त करता है
ReplyDeleteग़म ये है तू मेरा है, पर उसका नज़र आता है
भीड़ की भीड़ गुम गयी है इस शहर में आज
और ये शहर भी अब लापता नज़र आता है
अब 'अदा' पीछा करे तो कहो किसका करे
वक़्त जब ख़ुद ही यहाँ ठहरा नज़र आता है
क्या बात है. बहुत खूब.
एक एक शेर बेहतरीन है। लाजबाब
ReplyDeleteइश्क में लुटने का ग़म कौन कमबख्त करता है
ReplyDeleteग़म ये है तू मेरा है, पर उसका नज़र आता है
waah behtarin
इश्क में लुटने का ग़म कौन कमबख्त करता है
ReplyDeleteग़म ये है तू मेरा है, पर उसका नज़र आता है
क्या बात है, बहुत खूब,,,,,,,,,,,,
ayene me chehra ke chehre me ayena maloom nahi kon kise dekh raha hai....nice one...
ReplyDeleteवाह रस आ गया, बहुत सुन्दर प्रस्तुति
ReplyDeleteइश्क में लुटने का ग़म कौन कमबख्त करता है
ReplyDeleteग़म ये है तू मेरा है, पर उसका नज़र आता है
बहुत खूब
आप हमेशा मन की बात कैसे भाँप लेती हैं ? ये हुनर हमें आता तो क्या बात थी ...शायद हम भी' अदा' कहलाते...!
ReplyDeleteआगे बाप गे....इए आप किया कर रिये हो....??इत्ता सारा लेखन......इत्ता-इत्ता गाना......वो भी तकरीबन बढ़िया...अच्छा.....खूबसूरत.....मतलब....बढ़िया....बढ़िया....और बहुत ही बढ़िया....इसीलिए तो मुंह से निकल रिया है......आगे बाप गे....इए आप किया कर रिये हो....??
ReplyDeleteनाखुदा से भी अब हम लगाये क्या उम्मीद
ReplyDeleteवो ख़ुद ही लहरों से जब डरा नज़र आता है
bahut khoobsurat sher.
अदा जी,
ReplyDeleteसारे के सारे शेर एक से बढ़ कर एक हैं
भीड़ की भीड़ क्यों गुम गयी इस शहर में
और ये शहर भी अब लापता नज़र आता है
अब 'अदा' पीछा करे तो कहो किसका करें
वक़्त जब ख़ुद ही यहाँ ठहरा नज़र आता है
आप इतना खूबसूरत कैसे लिख लेती हैं, कभी ये भी बता दीजिये !!!
खुशनसीबी ढूंढ़ते फिरते हैं हम हाथों में
ReplyDeleteबदनसीबी का क्यों पहरा नज़र आता है
khushnaseebi ko dhoondhna nahi padta .....wo to hamesha se hi aapke saath hai..... dhyan se dekhiye to..... badnasibi..... ka pehra bhi nahi hoga.....
आईने में जब भी हम अपना चेहरा देखें हैं
तेरे चेहरे से क्यों लिपटा नज़र आता है
bahut hi uttam rachna...
ishq mein lutne kaa gam kambakhat ab kartaa hai kaun..?
ReplyDeletegam ye too mera hai par uskaa nazar aayaa hamein...
khoobsurat she'r hai adaa ji....
बहुत बढिया .. गजब लिखा है !!
ReplyDeleteअब 'अदा' पीछा करे तो कहो किसका करे
ReplyDeleteवक़्त जब ख़ुद ही यहाँ ठहरा नज़र आता है
wah adaji wah !
भीड़ की भीड़ गुम गयी है इस शहर में आज
ReplyDeleteऔर ये शहर भी अब लापता नज़र आता है
बहुत खूब
भीड़ की भीड़ गुम है गयी इस शहर में
ReplyDeleteऔर ये शहर भी अब लापता नज़र आता है
Khoobsurat !!