Friday, September 18, 2009
अब मिल के भी कहाँ हमें वो मिलते हैं
अब मिल के भी कहाँ हमें वो मिलते हैं
इक चेहरे में पशेमाँ कई लोग मिलते हैं
महफ़िल में रौनक है उनके ही दम से
खुश हैं लोग सभी और हम जलते हैं
रात भर का है मेहमाँ ये चाँद भी सुनो
अब घर से हम बहुत कम निकलते हैं
वो मर गया 'अदा' और दफन हो गया
अब किससे ये कहें के हम रोज़ मरते हैं
रिश्तों की एलास्टिक
तुम हर बार मुझे
ऐसे ही सताते हो
पहले करीब लाते हो
फिर दूर हटाते हो
जानती हूँ तुम्हें
अच्छा लगता है
मुझे रुलाना
और बाद में
मनाना
अपनी मर्ज़ी के
इल्ज़ाम लगाना
उनके वजूद को
ज़बरन पुख्ता बनाना
ये अच्छा नहीं है
कहे देती हूँ
इस तरह बार-बार
खींचोगे तो
रिश्तों की एलास्टिक
ख़राब हो जायेगी
फिर वो ज़रबंद के भी
काम नहीं आएगी
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रात भर का है मेहमाँ ये चाँद भी सुनो
ReplyDeleteअब घर से हम बहुत कम निकलते हैं
एक तरफ इतनी नाजुक ख्याली दूसरी तरफ रिश्तों की इलास्टिक का फलसफा ....
क्या बात है अदा जी..आये तो हम बस आपकी ग़ज़ल पढने थे मगर कुछ कहे बगैर नहीं रह सके बहुत उम्दा..रिश्तों की इलास्टिक..वाह..क्या बात है..!!
ReplyDeleteमहफ़िल में रौनक हैं उनके ही दम से
खुश हैं लोग सभी और हम जलते हैं
पर ये क्या बात है ..
सब को खुश देखकर आप भी खुश हो लीजिये ना
बहुत बढ़िया अदा..कल की अधूरी नज़्म की कमी पूरी हो गयी..
ऐसे भी बढ़िया लिखती रहो ..बहुत शुभकामनायें..!!
क्या बात है अदा जी..आये तो हम बस आपकी ग़ज़ल पढने थे मगर कुछ कहे बगैर नहीं रह सके बहुत उम्दा..रिश्तों की इलास्टिक..वाह..क्या बात है..!!
ReplyDeleteमहफ़िल में रौनक हैं उनके ही दम से
खुश हैं लोग सभी और हम जलते हैं
पर ये क्या बात है ..
सब को खुश देखकर आप भी खुश हो लीजिये ना
बहुत बढ़िया अदा..कल की अधूरी नज़्म की कमी पूरी हो गयी..
ऐसे भी बढ़िया लिखती रहो ..बहुत शुभकामनायें..!!
महफ़िल में रौनक हैं उनके ही दम से
ReplyDeleteखुश हैं लोग सभी और हम जलते हैं
waah bahut khub.
बेहतरीन....
ReplyDeleteकिस मौसम में हैं आज कल ? ग़ज़लों और नज़्मों में एक नई खुशबू ने जगह बना रखी है.
ReplyDeletewaah ek saath do-do kavita bahoot khoob
ReplyDeleteअब मिल के भी कहाँ हमें वो मिलते हैं
ReplyDeleteइक चेहरे के पशेमाँ कई लोग मिलते हैं
"वही जहाँ कोई आता जाता नहीं"
अच्छी रचना आभार.
दोनों ही रचनायें बहुत अच्छी हैं
ReplyDeleteरिश्तों की एलास्टिक...
ReplyDeletekya baat hai.. aapne to permanent deformation kara diya...
रात भर का है मेहमाँ ये चाँद भी सुनो
ReplyDeleteअब घर से हम बहुत कम निकलते हैं
वो मर गया 'अदा' और दफन हो गया
अब किससे ये कहें के रोज़ हम मरते हैं
kya baat hai.
Rishton ki elastic sahi mein kabi kabhi zarband ke bhi kabil nahi reh jaati hai.
bahut khoob kaha hai.
rishton ki ilastic..........gazab ka likha hai.rishton ko itna bhi nhi khinchna chahiye...........ek achcha sandesh deti rachna........badhayi
ReplyDeletepls read my new blog also......
http://ekprayas-vandana.blogspot.com
htto://vandana-zindagi.blogspot.com
महफ़िल में रौनक हैं उनके ही दम से
ReplyDeleteखुश हैं लोग सभी और हम जलते हैं
बहुत खूब, शायर का दर्द नहीं आपने तो शयारिनी का दर्दे-दिल बहुत सहजता से उजागर कर दिया.
हार्दिक बधाई.
चन्द्र मोहन गुप्त
जयपुर
अब मिल के भी कहाँ हमें वो मिलते हैं
ReplyDeleteइक चेहरे के पशेमाँ कई लोग मिलते हैं
महफ़िल में रौनक हैं उनके ही दम से
खुश हैं लोग सभी और हम जलते हैं
ada ji,
aapke pahle sher ko padh kar ek poorana gana yaad aa raha hai 'ek chhere pe kayi chehre laga lete hain log'
aur aapki baat bilkul sahi hai ham mil kar bhi kahan mil paate hain kisi se !!
aur doosra sher khoosurat bana hai !!
elasticity rishton mein baaki rehni chahiye, doori itni bhi na badhe ki wapis aana hi na ho paaye.
apki dono rachnayein shaandar hain hamesha ki tarah.
अब मिल के भी कहाँ हमें वो मिलते हैं
ReplyDeleteइक चेहरे के पशेमाँ कई लोग मिलते हैं
महफ़िल में रौनक हैं उनके ही दम से
खुश हैं लोग सभी और हम जलते हैं
ada ji,
aapke pahle sher ko padh kar ek poorana gana yaad aa raha hai 'ek chhere pe kayi chehre laga lete hain log'
aur aapki baat bilkul sahi hai ham mil kar bhi kahan mil paate hain kisi se !!
aur doosra sher khoosurat bana hai !!
elasticity rishton mein baaki rehni chahiye, doori itni bhi na badhe ki wapis aana hi na ho paaye.
apki dono rachnayein shaandar hain hamesha ki tarah.
बहुत लाजवाब रचना.
ReplyDeleteरामराम.
रिश्तों की एलास्टिक ....बहुत खूब ..बहुत बढ़िया लगी यह
ReplyDeleteतुम हर बार मुझे
ReplyDeleteऐसे ही सताते हो
पहले करीब लाते हो
फिर दूर हटाते हो
जानती हूँ तुम्हें
अच्छा लगता है
मुझे रुलाना
और बाद में
मनाना....mujhe laga ye maine likha hai...achhi baat hai wo mnate to hai...rutth to jaye hum bhi par unhe mnana bhi to aaye..wo pal bhi to aaye wo zmana bhi to aaye....
matle mein kaafiye nahi mil rahe hain ji....
ReplyDeletebahar mein bhi khatakaa hai...
itnaa ke satkaa nahi jaa rahaa...
:)
रिश्तों की एलास्टिसी ने मन लुभाया है।
ReplyDeleteऔर एक विनती है कि एक बार में एक ही रचना लगायें...मन इधर एलास्टिक हो कर विभक्त होने लगता है दो खूबसूरतियों में, मैम ।
और ऊपर वाली रचना पे मनु जी ने कह ही दिया है, शेष अपनी मेल में निबट रहा हूं इससे।
इस तरह बार-बार
ReplyDeleteखींचोगे तो
रिश्तों की एलास्टिक
ख़राब हो जायेगी
बहुत खूब ! वज़ूद जबरन मजबूत करने के चक्कर मे और खोखला होता जाता है.
Economics ka chapter yaad ho aaiya....
ReplyDelete"Elasticity of demand...."
aDaDi aapki pehli ghazal se zayada ye accha laga
रिश्तों की एलास्टिक
ख़राब हो जायेगी
फिर वो ज़रबंद के भी
काम नहीं आएगी
Naada Hai na......
महफ़िल में रौनक है उनके ही दम से
खुश हैं लोग सभी और हम जलते हैं ....
...WOW !!
aur ye waala sher bahut gehre tak utar gaya....
वो मर गया 'अदा' और दफन हो गया
अब किससे ये कहें के हम रोज़ मरते हैं
अरे बचवा का बात है ?
ReplyDeleteआज कल तुम्हों फ़रारी का ज़िन्दगी जी रहे हो का ?
लवकते नहीं हो ....
अब मिल के भी कहाँ हमें वो मिलते हैं
ReplyDeleteइक चेहरे में पशेमाँ कई लोग मिलते हैं
महफ़िल में रौनक है उनके ही दम से
खुश हैं लोग सभी और हम जलते हैं
BAHUT KHOOBSURAT ASHAAR..
इस तरह बार-बार
खींचोगे तो
रिश्तों की एलास्टिक
ख़राब हो जायेगी
फिर वो ज़रबंद के भी
काम नहीं आएगी
KYA BAAT HAI..
KITNI SAHI BAAT LIKHI HAI AAPNE ADA JI...
रिश्तों की एलास्टिक
ReplyDeleteख़राब हो जायेगी
फिर वो ज़रबंद के भी
काम नहीं आएगी.........बहुत सुन्दर रचना
di rishto ka elastik is kavita pr meri tippni elastik ki tarah ho gayee ......................abhi vaapas aata hun ghante bhar mein .............
ReplyDeleteमहफ़िल में रौनक है उनके ही दम से
ReplyDeleteखुश हैं लोग सभी और हम जलते हैं
accha hai..
इस तरह बार-बार
खींचोगे तो
रिश्तों की एलास्टिक
ख़राब हो जायेगी
फिर वो ज़रबंद के भी
काम नहीं आएगी
ye bahut hi accha hai.
jarband ke bhi kaam nahi a
ayegi. bilkul theek kharab hui elastik kisi kaam ki kahan hoti hai. tu bhi na kya kya sochte hai ?
lekin badhiya hai.