जानो-दिल औ’रूह तक अब खुश्क होने को हुए
छीटें वो संदल के बन मेहराब में आ जाते हैं
किसकी बातों का बुरा कब मानेंगे अब क्या पता
बात कुछ भी है नहीं वो ताब में आ जाते हैं
साँझ की बाती सरीखे हम तो अब जलने लगे
हो नमाज़ी सा असर यूँ सबाब में आ जाते हैं
डोर बातों की पकड़ कर दूर तक चलते रहे
चुप्पियों का दौर बन सैलाब में आ जाते हैं
अदा जी नमस्कार !
ReplyDeleteबहुत ही खुबसूरत रचना
आभार
किसकी बातों का बुरा कब मानेंगे अब क्या पता
ReplyDeleteबात कुछ भी है नहीं वो ताब में आ जाते हैं ...
wah aDaDi kya khoob likha hai...
"mujhe gussa dikhaya ja raha hai,
tabssum ko chabaya ja raha hai"
डोर बातों की पकड़ कर दूर तक चलते रहे
ReplyDeleteचुप्पियों का दौर बन सैलाब में आ जाते हैं
jazbaaton ka sunder sailab waah bahut khub.
डोर बातों की पकड़ कर दूर तक चलते रहे
ReplyDeleteचुप्पियों का दौर बन सैलाब में आ जाते हैं.......
KHOOBSOORAT KHYAAL HAI ...ZAZBAATON KO BAAKHOOBI UTAARA HAI NAZAM MEIN ...
Sundar rachana..badhayi
ReplyDeleteकिसकी बातों का बुरा कब मानेंगे अब क्या पता
ReplyDeleteबात कुछ भी है नहीं वो ताब में आ जाते हैं ....khuda ka shuker hai wo nraz to hote hai....warna agar koee rutthna,shikayat karna chhodh de to mohabbat nazar nahi aati.....bahut achha likha aapne....
bahut acche.. jagjit singh yaad aa gaye..
ReplyDeletechalte rahte hain ki chalna hai musafir ka naseeb....
डोर बातों की पकड़ कर दूर तक चलते रहे
ReplyDeleteचुप्पियों का दौर बन सैलाब में आ जाते हैं........
दी पहले सोचा सबसे पहले क्या ज़रूरी हैं , ज़रा शाम की कोई खबर पढ़ लू , रोज़ा खोलू, भोले की आरती कर लू ,पर दिल से ख्याल आया अब्बल तो दीदी की महफ़िल में ज़रा सज़दा कर लू ..................................अब क्या बोलू .......................................................? ? ? ........................बिंदास गुज़रता रहा ...................
जानो-दिल औ’रूह तक अब खुश्क होने को हुए
ReplyDeleteछीटें वो संदल के बन मेहराब में आ जाते हैं
किसकी बातों का बुरा कब मानेंगे अब क्या पता
बात कुछ भी है नहीं वो ताब में आ जाते हैं
साँझ की बाती सरीखे हम तो अब जलने लगे
वो नमाज़ी का असर बन सबाब में आ जाते हैं
डोर बातों की पकड़ कर दूर तक चलते रहे
चुप्पियों का दौर बन सैलाब में आ जाते हैं
lagta hai pichli ghazal ka continuation hai ye
mujhe best laga hai:
किसकी बातों का बुरा कब मानेंगे अब क्या पता
बात कुछ भी है नहीं वो ताब में आ जाते हैं
lekin kiski himmat hai jo aisa kare ?
bahut khoobsurat likh deti hain aap ada
ab ham to tareef ke liye word bhi nahi dhundh paa rahe hain.
khair ye hamari kami hai aap to bas likhti rahein aur ham aate rahenge.
जानो-दिल औ’रूह तक अब खुश्क होने को हुए
ReplyDeleteछीटें वो संदल के बन मेहराब में आ जाते हैं
किसकी बातों का बुरा कब मानेंगे अब क्या पता
बात कुछ भी है नहीं वो ताब में आ जाते हैं
साँझ की बाती सरीखे हम तो अब जलने लगे
वो नमाज़ी का असर बन सबाब में आ जाते हैं
डोर बातों की पकड़ कर दूर तक चलते रहे
चुप्पियों का दौर बन सैलाब में आ जाते हैं
lagta hai pichli ghazal ka continuation hai ye
mujhe best laga hai:
किसकी बातों का बुरा कब मानेंगे अब क्या पता
बात कुछ भी है नहीं वो ताब में आ जाते हैं
lekin kiski himmat hai jo aisa kare ?
bahut khoobsurat likh deti hain aap ada
ab ham to tareef ke liye word bhi nahi dhundh paa rahe hain.
khair ye hamari kami hai aap to bas likhti rahein aur ham aate rahenge.
अदा जी !
ReplyDeleteप्रणाम !!!
न करो इस रुह को खुश्क
उन्हें मेहराब में आने दो
कौन कब किसका बुरा मानेगा
उन्हें ताब में आने दो
खुद को बाती जो बना लिया है
तो उन्हें तो आना ही होगा
बातों की डोर भी पकड़ में आ गई
चुप्पियों के दौर को सैलाब बनने दो
उन्हें आना ही होगा ....
...जलो मगर दीपक की तरह, उक्ति याद आ गई और साथ ही बुद्ध का प्रसिद्ध वचन अप्प दिपो भव: ।
Ada ji,
ReplyDeleteसाँझ की बाती सरीखे हम तो अब जलने लगे
वो नमाज़ी असर बन सबाब में आ जाते हैं
bahut sundar panktiyan hain
किसकी बातों का बुरा कब मानेंगे अब क्या पता
बात कुछ भी है नहीं वो ताब में आ जाते हैं
jawaab nahi hai is sher ka
bahut khoob.
खुबसूरत रचना
ReplyDeleteआभार
दीदी जी नमस्कार।
ReplyDeleteबहुत खुब, आप के द्वारा शब्दो का चयन व उसका मिश्रण लाजवाब होता है। इस सुन्दर गजल के लिए बहुत-बहुत बधाई......
बहुत सुन्दर रचना । मनभावन । आभार ।
ReplyDeleteYour blog is very cute and sweet. Greetings from Argentina.
ReplyDelete"saanjh kee baatee kabhee to seher dekhe..." yahee dua hai..warna subah kaun batee ko yaad karta hai..
ReplyDeleteadaji bahut achi rachna
ReplyDeleteसाँझ की बाती सरीखे हम तो अब जलने लगे
वो नमाज़ी सा असर ज्यूँ सबाब में आ जाते हैं
man ko jhnkrt kar gye aapke jajbat
do line aapke liye
dosto jmana ye kya ho gya
jise chaha vhi bevfa ho gya .
abhar
डोर बातों की पकड़ कर दूर तक चलते रहे
ReplyDeleteचुप्पियों का दौर बन सैलाब में आ जाते हैं
bahut khoobsurat !!
किसकी बातों का बुरा कब मानेंगे अब क्या पता
ReplyDeleteबात कुछ भी है नहीं वो ताब में आ जाते हैं
Bahut khob
किसकी बातों का बुरा कब मानेंगे अब क्या पता
ReplyDeleteबात कुछ भी है नहीं वो ताब में आ जाते हैं
baat to sahi hai...... pata nahi kaahe taav meinaa jate hain.....? hehehehehe
डोर बातों की पकड़ कर दूर तक चलते रहे
चुप्पियों का दौर बन सैलाब में आ जाते ......
......khaamoshi mein bahut taaqat hai........ jab khaamoshi bolti hai........ to shabdon ka ambaar lag jata hai....... bahut hi khoobsoorat........
खफा 'बे-तखल्लुस' हैं उन से, तो फिर
ReplyDeleteजमाने से क्यों मुंह बनाकर चले....?
किसकी बातों का बुरा कब मानेंगे अब क्या पता
ReplyDeleteबात कुछ भी है नहीं वो ताब में आ जाते हैं
अब जाने भी दे ताब में आने वालो को ...दुआ कुबूल करे ..!!
himmat kar ke kah rahaa hoon ji....
ReplyDeleteek jagah par esmein bhi hai,,,
KHATKAA....!
:)
:)
वाह.........
ReplyDeleteबहुत ख़ूब !
किसकी बातों का बुरा कब मानेंगे अब क्या पता
ReplyDeleteबात कुछ भी है नहीं वो ताब में आ जाते हैं
bahut khoob...
सोचता हूँ कि शेर गढ़ने की "अदा" पर दाद दूँ या मिस्रों की बुनाई पए ताली बजाऊँ...?
ReplyDeleteऔर कोई मुझसे कहता है कि उनके पास शब्द-भंडार कम है...!!!!
जानो-दिल औ’रूह तक अब खुश्क होने को हुए
ReplyDeleteछीटें वो संदल के बन मेहराब में आ जाते हैं
Kaun aa jaate hain ?
किसकी बातों का बुरा कब मानेंगे अब क्या पता
बात कुछ भी है नहीं वो ताब में आ जाते हैं
Kaun aa jaate hain ?
साँझ की बाती सरीखे हम तो अब जलने लगे
हो नमाज़ी सा असर यूँ सबाब में आ जाते हैं
Kaun aa jaate hain ?
डोर बातों की पकड़ कर दूर तक चलते रहे
चुप्पियों का दौर बन सैलाब में आ जाते हैं
Kaun aa jaate hain ?