Wednesday, September 16, 2009

साँझ की बाती


जानो-दिल औ’रूह तक अब खुश्क होने को हुए
छीटें वो संदल के बन मेहराब में आ जाते हैं

किसकी बातों का बुरा कब मानेंगे अब क्या पता
बात कुछ भी है नहीं वो ताब में आ जाते हैं

साँझ की बाती सरीखे हम तो अब जलने लगे
हो नमाज़ी सा असर यूँ सबाब में आ जाते हैं

डोर बातों की पकड़ कर दूर तक चलते रहे
चुप्पियों का दौर बन सैलाब में आ जाते हैं

28 comments:

  1. अदा जी नमस्कार !
    बहुत ही खुबसूरत रचना
    आभार

    ReplyDelete
  2. किसकी बातों का बुरा कब मानेंगे अब क्या पता
    बात कुछ भी है नहीं वो ताब में आ जाते हैं ...


    wah aDaDi kya khoob likha hai...
    "mujhe gussa dikhaya ja raha hai,
    tabssum ko chabaya ja raha hai"

    ReplyDelete
  3. डोर बातों की पकड़ कर दूर तक चलते रहे
    चुप्पियों का दौर बन सैलाब में आ जाते हैं
    jazbaaton ka sunder sailab waah bahut khub.

    ReplyDelete
  4. डोर बातों की पकड़ कर दूर तक चलते रहे
    चुप्पियों का दौर बन सैलाब में आ जाते हैं.......

    KHOOBSOORAT KHYAAL HAI ...ZAZBAATON KO BAAKHOOBI UTAARA HAI NAZAM MEIN ...

    ReplyDelete
  5. किसकी बातों का बुरा कब मानेंगे अब क्या पता
    बात कुछ भी है नहीं वो ताब में आ जाते हैं ....khuda ka shuker hai wo nraz to hote hai....warna agar koee rutthna,shikayat karna chhodh de to mohabbat nazar nahi aati.....bahut achha likha aapne....

    ReplyDelete
  6. bahut acche.. jagjit singh yaad aa gaye..
    chalte rahte hain ki chalna hai musafir ka naseeb....

    ReplyDelete
  7. डोर बातों की पकड़ कर दूर तक चलते रहे
    चुप्पियों का दौर बन सैलाब में आ जाते हैं........
    दी पहले सोचा सबसे पहले क्या ज़रूरी हैं , ज़रा शाम की कोई खबर पढ़ लू , रोज़ा खोलू, भोले की आरती कर लू ,पर दिल से ख्याल आया अब्बल तो दीदी की महफ़िल में ज़रा सज़दा कर लू ..................................अब क्या बोलू .......................................................? ? ? ........................बिंदास गुज़रता रहा ...................

    ReplyDelete
  8. जानो-दिल औ’रूह तक अब खुश्क होने को हुए
    छीटें वो संदल के बन मेहराब में आ जाते हैं

    किसकी बातों का बुरा कब मानेंगे अब क्या पता
    बात कुछ भी है नहीं वो ताब में आ जाते हैं

    साँझ की बाती सरीखे हम तो अब जलने लगे
    वो नमाज़ी का असर बन सबाब में आ जाते हैं

    डोर बातों की पकड़ कर दूर तक चलते रहे
    चुप्पियों का दौर बन सैलाब में आ जाते हैं

    lagta hai pichli ghazal ka continuation hai ye

    mujhe best laga hai:
    किसकी बातों का बुरा कब मानेंगे अब क्या पता
    बात कुछ भी है नहीं वो ताब में आ जाते हैं
    lekin kiski himmat hai jo aisa kare ?

    bahut khoobsurat likh deti hain aap ada
    ab ham to tareef ke liye word bhi nahi dhundh paa rahe hain.
    khair ye hamari kami hai aap to bas likhti rahein aur ham aate rahenge.

    ReplyDelete
  9. जानो-दिल औ’रूह तक अब खुश्क होने को हुए
    छीटें वो संदल के बन मेहराब में आ जाते हैं

    किसकी बातों का बुरा कब मानेंगे अब क्या पता
    बात कुछ भी है नहीं वो ताब में आ जाते हैं

    साँझ की बाती सरीखे हम तो अब जलने लगे
    वो नमाज़ी का असर बन सबाब में आ जाते हैं

    डोर बातों की पकड़ कर दूर तक चलते रहे
    चुप्पियों का दौर बन सैलाब में आ जाते हैं

    lagta hai pichli ghazal ka continuation hai ye

    mujhe best laga hai:
    किसकी बातों का बुरा कब मानेंगे अब क्या पता
    बात कुछ भी है नहीं वो ताब में आ जाते हैं
    lekin kiski himmat hai jo aisa kare ?

    bahut khoobsurat likh deti hain aap ada
    ab ham to tareef ke liye word bhi nahi dhundh paa rahe hain.
    khair ye hamari kami hai aap to bas likhti rahein aur ham aate rahenge.

    ReplyDelete
  10. अदा जी !
    प्रणाम !!!

    न करो इस रुह को खुश्क
    उन्हें मेहराब में आने दो

    कौन कब किसका बुरा मानेगा
    उन्हें ताब में आने दो

    खुद को बाती जो बना लिया है
    तो उन्हें तो आना ही होगा

    बातों की डोर भी पकड़ में आ गई
    चुप्पियों के दौर को सैलाब बनने दो

    उन्हें आना ही होगा ....

    ...जलो मगर दीपक की तरह, उक्ति याद आ गई और साथ ही बुद्ध का प्रसिद्ध वचन अप्प दिपो भव: ।

    ReplyDelete
  11. Ada ji,
    साँझ की बाती सरीखे हम तो अब जलने लगे
    वो नमाज़ी असर बन सबाब में आ जाते हैं
    bahut sundar panktiyan hain
    किसकी बातों का बुरा कब मानेंगे अब क्या पता
    बात कुछ भी है नहीं वो ताब में आ जाते हैं
    jawaab nahi hai is sher ka
    bahut khoob.

    ReplyDelete
  12. दीदी जी नमस्कार।

    बहुत खुब, आप के द्वारा शब्दो का चयन व उसका मिश्रण लाजवाब होता है। इस सुन्दर गजल के लिए बहुत-बहुत बधाई......

    ReplyDelete
  13. बहुत सुन्दर रचना । मनभावन । आभार ।

    ReplyDelete
  14. Your blog is very cute and sweet. Greetings from Argentina.

    ReplyDelete
  15. "saanjh kee baatee kabhee to seher dekhe..." yahee dua hai..warna subah kaun batee ko yaad karta hai..

    ReplyDelete
  16. adaji bahut achi rachna
    साँझ की बाती सरीखे हम तो अब जलने लगे
    वो नमाज़ी सा असर ज्यूँ सबाब में आ जाते हैं

    man ko jhnkrt kar gye aapke jajbat

    do line aapke liye
    dosto jmana ye kya ho gya
    jise chaha vhi bevfa ho gya .
    abhar

    ReplyDelete
  17. डोर बातों की पकड़ कर दूर तक चलते रहे
    चुप्पियों का दौर बन सैलाब में आ जाते हैं
    bahut khoobsurat !!

    ReplyDelete
  18. किसकी बातों का बुरा कब मानेंगे अब क्या पता
    बात कुछ भी है नहीं वो ताब में आ जाते हैं


    Bahut khob

    ReplyDelete
  19. किसकी बातों का बुरा कब मानेंगे अब क्या पता
    बात कुछ भी है नहीं वो ताब में आ जाते हैं


    baat to sahi hai...... pata nahi kaahe taav meinaa jate hain.....? hehehehehe


    डोर बातों की पकड़ कर दूर तक चलते रहे
    चुप्पियों का दौर बन सैलाब में आ जाते ......

    ......khaamoshi mein bahut taaqat hai........ jab khaamoshi bolti hai........ to shabdon ka ambaar lag jata hai....... bahut hi khoobsoorat........

    ReplyDelete
  20. खफा 'बे-तखल्लुस' हैं उन से, तो फिर
    जमाने से क्यों मुंह बनाकर चले....?

    ReplyDelete
  21. किसकी बातों का बुरा कब मानेंगे अब क्या पता
    बात कुछ भी है नहीं वो ताब में आ जाते हैं
    अब जाने भी दे ताब में आने वालो को ...दुआ कुबूल करे ..!!

    ReplyDelete
  22. himmat kar ke kah rahaa hoon ji....

    ek jagah par esmein bhi hai,,,

    KHATKAA....!
    :)
    :)

    ReplyDelete
  23. वाह.........
    बहुत ख़ूब !

    ReplyDelete
  24. किसकी बातों का बुरा कब मानेंगे अब क्या पता
    बात कुछ भी है नहीं वो ताब में आ जाते हैं
    bahut khoob...

    ReplyDelete
  25. सोचता हूँ कि शेर गढ़ने की "अदा" पर दाद दूँ या मिस्‍रों की बुनाई पए ताली बजाऊँ...?

    और कोई मुझसे कहता है कि उनके पास शब्द-भंडार कम है...!!!!

    ReplyDelete
  26. जानो-दिल औ’रूह तक अब खुश्क होने को हुए
    छीटें वो संदल के बन मेहराब में आ जाते हैं
    Kaun aa jaate hain ?

    किसकी बातों का बुरा कब मानेंगे अब क्या पता
    बात कुछ भी है नहीं वो ताब में आ जाते हैं
    Kaun aa jaate hain ?

    साँझ की बाती सरीखे हम तो अब जलने लगे
    हो नमाज़ी सा असर यूँ सबाब में आ जाते हैं
    Kaun aa jaate hain ?

    डोर बातों की पकड़ कर दूर तक चलते रहे
    चुप्पियों का दौर बन सैलाब में आ जाते हैं
    Kaun aa jaate hain ?

    ReplyDelete