क़र्ज़ और वजूद इकतार हो गए हैं
नींव हिल गयी घर बिखर ही गया
सारी उम्र दोनों अब सो न सकेंगे
बेटी का भाग अब सँवर ही गया
कई दिन से रोटी मिली ही नहीं थी
सपने में देख रोटी डर ही गया
हुआ क्या बहू जो जल कर मरी है
अख़बार का रंग निखर ही गया
काली सी गाड़ी का पहिया चढ़ा था
लाल रंग आपको अखर ही गया
आपका क्या आप चढ़ जाएँ कुर्सी
भरोसा हमारा उतर ही गया
agar sahi samajh raha hun to.. raajneeti par chot ki hai aapne shayad...
ReplyDeleteagar sahi samajh raha hun to.. raajneeti par chot ki hai aapne shayad...
ReplyDeletebahut hi depth mein likha gaya hai.. bahut khoob.. bahut khoob..
इसे कहते हैं जनवादी गज़ल .आप तो ऐसे ही लिखा कीजिये बकौल जीवन यदु .."पहले गीत लिखूंगा रोटी पर फिर लिखूंगा तेरी चोटी पर " बधाई
ReplyDeleteसामाजिक और आर्थिक माहौल को को क्या खूब कलमबद्ध किया है कविता में .. राग रंग प्यार मुहब्बत से अलहदा यह रंग भी है ..
ReplyDeleteउम्दा ख्याल ..!!
कई दिन से रोटी मिली ही नहीं थी
ReplyDeleteसपने में देख रोटी डर ही गया
हुआ क्या बहू जो जल कर मरी है
अख़बार का रंग निखर ही गया
ada ji,
aaj to aapka alag hi rang dekhne ko mila.
behtareen rachna.
samaj ko aaina dikahti hui. jaari rahein..
कई दिन से रोटी मिली ही नहीं थी
ReplyDeleteसपने में देख रोटी डर ही गया
हुआ क्या बहू जो जल कर मरी है
अख़बार का रंग निखर ही गया
ada ji,
aaj to aapka alag hi rang dekhne ko mila.
behtareen rachna.
samaj ko aaina dikahti hui. jaari rahein..
बिलकुल अलग सी बात है आज आपकी रचना में जिसने मन को छू लिया.
ReplyDeleteबहुत खूबसूरत.
बधाई आपको !!
बहुत अच्छे भाव .. सुंदर रचना .. बधाई !!
ReplyDeleteकितना मार्मिक कर दिया आपने !
ReplyDeleteहुआ क्या बहू जो जल कर मरी है
अख़बार का रंग निखर ही गया
बहुत खूब -- तारीफ से बाहर
क़र्ज़ और वजूद इकतार हो गए हैं
ReplyDeleteनींव हिल गयी घर बिखर ही गया
सारी उम्र दोनों अब सो न सकेंगे
बेटी का भाग अब सँवर ही गया
कई दिन से रोटी मिली ही नहीं थी
सपने में देख रोटी डर ही गया
हुआ क्या बहू जो जल कर मरी है
अख़बार का रंग निखर ही गया
पहिये के नीचे वो आ तो गया है
लाल रंग आपको अखर ही गया
आपका क्या आप चढ़ जाएँ कुर्सी
भरोसा हमारा उतर ही गया
ada ji,
aaj to aapne poorigazal hi kamal ki likhi hai.
samajik paripeksh mein bahut hi sateek aur marmik prastuti hai aapki.
badhai.
क़र्ज़ और वजूद इकतार हो गए हैं
ReplyDeleteनींव हिल गयी घर बिखर ही गया
सारी उम्र दोनों अब सो न सकेंगे
बेटी का भाग अब सँवर ही गया
कई दिन से रोटी मिली ही नहीं थी
सपने में देख रोटी डर ही गया
हुआ क्या बहू जो जल कर मरी है
अख़बार का रंग निखर ही गया
पहिये के नीचे वो आ तो गया है
लाल रंग आपको अखर ही गया
आपका क्या आप चढ़ जाएँ कुर्सी
भरोसा हमारा उतर ही गया
ada ji,
aaj to aapne poorigazal hi kamal ki likhi hai.
samajik paripeksh mein bahut hi sateek aur marmik prastuti hai aapki.
badhai.
बहुत लाजवाब और सटीक रचना.
ReplyDeleteरामराम.
अदा जी सादर प्रणाम !!!
ReplyDeleteआपकी काव्य-विधा को जबसे पढ़ना शुरु किया है, दिल में एक उमंग सी जगी है । हर रोज आप जो एक बेहतर रचना बिना नागा हमें परोसे जा रहीं हैं, वह काबिले-तारीफ़ है ।
आज की यह ग़ज़ल तो ग़ज़ब की है । समाज और राजनीति पर गहरे व्यंग्य से आपने जो चोट की है, उम्मीद है उससे मृत और संवेदनहीन हो गए समाज में जान आएगी और संवेदना बढ़ेगी ।
बहुत-बहुत बधाई ।।।
आजकल गूंजअनुगूंज पर आप अपने हस्ताक्षर नहीं दे रहीं हैं । आशा है मेरा उत्साह भंग नहीं होने देंगी । धन्यवाद सहित
शरद भाई ने उचित ही कहा है ये ग़ज़ल तो सच में जनवादी ज़मीं पर खिली हुई है
ReplyDeleteअदा जी एक और लाजवाब प्रस्तुती बधाई
ReplyDeleteदीदी प्रणाम! सादर चरण स्पर्श! ................भरोसा मेरा आप पर सदा के लिए ....................आज हनुमान (जी) बन गया .................भक्त का नमन हैं आपको ...........................संकट दूर करों ........................नवरात्रि में आपकी रूह देवी-दुर्गा हो गयी हैं ..................संभल कर रहिये ज़रा ................त्रशुल मेरी ज़ानिब ही रखना ..................महीसा सुर का पता बताउगा ................सीक्रेट हैं ...............
ReplyDeleteहुआ क्या बहू जो जल कर मरी है
ReplyDeleteअख़बार का रंग निखर ही गया ..bahut kadwi magar sachi baat kahi aapne...
नमस्कार
ReplyDeleteदीदी
अच्छी रचना है, परन्तु समझ नहीं पाया कि, ये है किसके लिए।
घटनाएं होती ही हैं बेनागा.
ReplyDeleteबहुत सुन्दर समाज और राजनीती पर करारी चोट इस गज़ल के लिये बधाई
ReplyDeleteहुआ क्या बहू जो जल कर मरी है
ReplyDeleteअख़बार का रंग निखर ही गया ।
सच ही कहा । एक तीर से दो दो निशाने ।
सही है । कहीं से कोई कमी नहीं ।
आभार ।
aaj ki rajniti par badhiya kataksh hai...........aaj ke halat ko bahut hi khoobsoorti se bhara hai............badhayi aage bhi aise hi likhti rahein.
ReplyDeleteकई दिन से रोटी मिली ही नहीं थी
सपने में देख रोटी डर ही गया
हुआ क्या बहू जो जल कर मरी है
अख़बार का रंग निखर ही गया
har shabd apne aap bol raha hai.aur yahi lekhan ki safalta hai.
plz visit my new blgo also:
http://ekprayas-vandana.blogspot.com
कई दिन से रोटी मिली ही नहीं थी
ReplyDeleteसपने में देख रोटी डर ही गया
बहुत खुब बहुत अच्छी कविता लिखी आप ने
जनवादी कविता........हकिकत को आइना दिखाती रचना ......जिसे नही भी दिखे वह इस रचना से गुजर कर देख सकता है .......नतमस्तक है हम......
ReplyDeleteक़र्ज़ और वजूद इकतार हो गए हैं
ReplyDeleteनींव हिल गयी घर बिखर ही गया
बहुत सुन्दर.
Again a WOW aDaDi.....
ReplyDeleteकई दिन से रोटी मिली ही नहीं थी
सपने में देख रोटी डर ही गया
&
आपका क्या आप चढ़ जाएँ कुर्सी
भरोसा हमारा उतर ही गया
are 2 sher which i like most !!
rest are also fine !!
काली सी गाड़ी का पहिया चढ़ा था
लाल रंग आपको अखर ही गया
Salman khan prakaran ki yaad dila gaya ....
काली सी गाड़ी का पहिया चढ़ा था
ReplyDeleteलाल रंग आपको अखर ही गया
बहुत खूब.
कितनी शालीनता बख्शी है................
चन्द्र मोहन गुप्त
जयपुर
www.cmgupta.blogspot.com
वाह बहुत ही सटीक दे मारा है आपने.....
ReplyDeleteबधाई.....
सारी उम्र दोनों अब सो न सकेंगे
ReplyDeleteबेटी का भाग अब सँवर ही गया
कई दिन से रोटी मिली ही नहीं थी
सपने में देख रोटी डर ही गया
bahut marmik aur sateek aaj ke sandarbh mein.
सारी उम्र दोनों अब सो न सकेंगे
ReplyDeleteबेटी का भाग अब सँवर ही गया
कई दिन से रोटी मिली ही नहीं थी
सपने में देख रोटी डर ही गया
bahut marmik aur sateek aaj ke sandarbh mein.
आपका क्या आप चढ़ जाएँ कुर्सी
ReplyDeleteभरोसा हमारा उतर ही गया
१००% सही ...