मुझे क्यूँ न अपने पे गुरुर हो
मैं बस एक मुश्ते गुबार हूँ
समझूँगा मैं तेरी बात क्या
पत्थर की इक मैं दीवार हूँ
निकला था बच के ख़ुशी से मैं
मैं सोगो ग़म का बज़ार हूँ
उड़ने की है किसे जुस्तजू
मैं ऊँचाइयों का शिकार हूँ
मुझे रहमतें भी गलें लगीं
औ मैं ज़ुल्मतों का भी प्यार हूँ
मैं हूँ सौदागर हर दर्द का
मैं ग़मों का भी खरीदार हूँ
इतराऊं खुद पे न क्यूँ 'अदा'
पर चलूँ कैसे मैं लाचार हूँ
आपकी इस रचना ने एक बार फिर मुझे सोचने पर बाध्य कर दिया। शब्दों के साथ खेलना कोइ आपसे सीखे। क्या शब्दों का जाल बुनती हैं आप। आपके लिए बस इतना ही कहूंगा........
ReplyDeleteगलत नहीं कि जमाने में लाजवाब हैं आप
न समझ सके जो कोइ वो किताब हैं आप
तुझे यकीन तू दुनिया है मेरी,
ReplyDeleteमुझे पता, कि मैं तेरा संसार हूं..
तो बोल आज या मौन रह, तेरी हर भाषा,
मैं आज सुनने को तैयार हूं..
यूं लाचारियों की बातें न कर, मंजिल का पता दे,
मैं उन्हीं को अपनी मंजिल बनाने को बेकरार हूं..
its very nice !!!
ReplyDeleteउड़ने की है किसे जुस्तजू
ReplyDeleteमैं ऊँचाइयों का शिकार हूँ
बहुत उम्दा -- आपके शेर सीधे दिल मे उतरते है.
दीदी चरण स्पर्श
ReplyDeleteगले लगीं रहमतें मुझसे
मैं ज़ुल्मतों का भी प्यार हूँ
एक और दिल को छु लेने वाली लाजवाब रचना ।
Naman hai aapkee rachanaon ko....rachna saamarthya ko!
ReplyDeleteAap nistabdh kar detee hain...kya karun?
ReplyDeleteमेने आपकी दो तीन रचना पड़ी हैं,और हर रचना लाजवाब लगी।
ReplyDeleteबेहद खुबसूरत अभिव्यक्ति ...........जिसमे गहराई बहुत है ..........एक एक पंक्तियाँ दिल के करीब लगी ...........
ReplyDeletebahut sundar !
ReplyDeleteमैं 'अदा' हूँ क्यूँ न इतराऊं
ReplyDeleteपर चलने से क्यूँ लाचार हूँ ??
खूब इतराइये जी आपकी हर अदा के कायल है। शुभकामनायें
मैं 'अदा' हूँ क्यूँ न इतराऊं
ReplyDeleteपर चलने से क्यूँ लाचार हूँ ??
जरुर इतरायें..जब इतना बढ़िया रच लेती हैं तो इतराने का हक तो है ही.
सौदा किया है दर्द का
ReplyDeleteमैं ग़म का भी खरीदार हूँ
मैं 'अदा' हूँ क्यूँ न इतराऊं
पर चलने से क्यूँ लाचार हूँ ??
अदा जी ! सादर प्रणाम !!!
आप अदा हैं और अदा का अदब इतराना है
पर मेरी समझ में नहीं आया कि चलने से आप लाचार क्यों हैं ?
हर रोज की तरह एक और बेहतरीन नज्म देने के लिए शुक्रिया ।
great expressions And great feelings
ReplyDeleteअदा जी,
ReplyDeleteबहुत खूबसूरत हैं आपके सारे शेर,
आपको पढ़-पढ़ कर मैं भी अब शायरी करने लगा हूँ, कभी मेरे ब्लॉग पर भी आइये और मेरा हौसला बढाइये.
आज मन ज़रा हल्का हुआ था..
ReplyDeleteइस रचना को बह्र में लाने के लायक तो हो ही गया था...
पर अभी भी मूड नहीं है...
पर इतना अच्छा लिखा है के कह नहीं सकता.....
पिछली पोस्टें भी देखि हैं आज...
पर मूड नहीं है कुछ कहने का...
बस कमेन्ट दे रहा हूँ....
ऐसे ही...
मुझे होने पे अपने गुरुर है
ReplyDeleteबस एक-मुश्ते गुबार हूँ
guroor hona bhi chahiye....
समझूँगा मैं तेरी बात क्या
पत्थर की इक मैं दीवार हूँ
suna nahi kya ..... deewaron ke bhi dimaag hote hain..
उड़ने की है किसे जुस्तजू
मैं ऊँचाइयों का शिकार हूँ ....
unche log hi unchayion ka shikaar hote hain... zameen ka to zameedoz hi ho jata hai..
गले लगीं रहमतें मुझसे
मैं ज़ुल्मतों का भी प्यार हूँ
jinke upar pyar ki zulmaten hotinhain... unhi ke upar rehmaten hotin hain..
सौदा किया है दर्द का
मैं ग़म का भी खरीदार हूँ
ek dum sahi dard khareedenge to gham bhi milenge
मैं 'अदा' हूँ क्यूँ न इतराऊं
पर चलने से क्यूँ लाचार हूँ ?
hmmm adaa ka kaam hi itraana hota hai... ab choonki adaa .... adaa mein rehti hai.... isliye thoda chalne se laachaar ho jaati hai....
V gud
बहुत सुन्दर रचना दीदी । आभार ।
ReplyDeleteअजयजी और महफूज़ ने इतना कुछ कह दिया है ...उसे हमारा कहा ही मान ले..
ReplyDeleteआज तो तेरी पोस्ट बहुत कुछ कह जा रही है अदा के बारे में ...खूब इतरा पर इतराने में हमें ना भूल जा ...क्योकि तेरे इतराने में हम भी बहुत इतराते हैं ...!!
बहुत शुभकामनायें ..!!
wah aDaDi ye baat baar baar nahi kahoonga:
ReplyDeleteone of the best nazm you have ever written....
har sher main wah nikalti hai...
itni pasand aaie ye ghazal ki aaj any mouse bhi dar ke bhaag gaya...
बच के निकला था ख़ुशी से मैं
मैं सोगो ग़म का बाज़ार हूँ
wow !!
उड़ने की है किसे जुस्तजू
मैं ऊँचाइयों का शिकार हूँ
wow !!
गले लगीं रहमतें मुझसे
मैं ज़ुल्मतों का भी प्यार हूँ
सौदा किया है दर्द का
मैं ग़म का भी खरीदार हूँ
wow !!
wow !!(Safi ali khan wala nahi hai !! Dil se keh raha hoon..)
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अरे अदा जी,
ReplyDeleteअब तो हम बस मौन ही हो जाएँ तो अच्छा है. क्या लिखती हैं आप !!!!
इस गज़ल के लिए तो अब हम निशब्द तो गए हैं खास कर ये शेर तो बस कमाल का है..
उड़ने की है किसे जुस्तजू
मैं ऊँचाइयों का शिकार हूँ
इतने लोगों ने जो भी लिखा है सब सही है.और मैं तो आज कुछ कह ही नहीं पा रहा हूँ.
अरे अदा जी,
ReplyDeleteअब तो हम बस मौन ही हो जाएँ तो अच्छा है. क्या लिखती हैं आप !!!!
इस गज़ल के लिए तो अब हम निशब्द तो गए हैं खास कर ये शेर तो बस कमाल का है..
उड़ने की है किसे जुस्तजू
मैं ऊँचाइयों का शिकार हूँ
इतने लोगों ने जो भी लिखा है सब सही है.और मैं तो आज कुछ कह ही नहीं पा रहा हूँ.
बहुत बहुत ही अछि कविता है
ReplyDeleteवाह कमाल की कविता है!
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