क्यूँ अश्क बहते-बहते यूँ आज थम गए हैं
इतने ग़म मिले कि, हम ग़म में रम गए हैं
तुम बोल दो हमें वो जो बोलना तुम्हें है
फूलों से मार डालो हम पत्थर से जम गए हैं
रंगीनियाँ लिए हैं ग़मगीन कितने चेहरे
अफ़सोस के रंगों में वो सारे रंग गए हैं
तकतीं रहेंगी तुमको ये बे-हया सी आँखें
जीवन भी रुक रहा है कुछ लम्हें थम गए हैं
हम थे ऐसे-वैसे तुम सोचोगे कभी तो
जब सोचने लगे तो हम खुद ही नम गए हैं
जीने का हौसला तो पहले भी 'अदा' नहीं था
मरने के हौसले भी मेरे यार कम गए हैं
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ReplyDeleteतुम बोल दो हमें वो जो बोलना तुम्हें है
ReplyDeleteफूलों से मार डालो पत्थर से जम गए हैं
लाजवाब है
halkaa saa bahar se khatak rahaa hai ji....
ReplyDeletepar be-bahri nahi kahoongaa aapko..
:)
फूलों से मार डालो हम पत्थर से जम गए हैं
ReplyDeleteनाज़ुद एहसास को नाज़ुकी से बयाँ किया है -- बहुत खूबसूरती से.
बहुत सुन्दर
क्यूँ अश्क बहते-बहते यूँ आज थम गए हैं
ReplyDeleteइतने ग़म मिले कि, हम ग़म में रम गए हैं( इतने मिले हैं गम के ..)
तुम बोल दो हमें वो जो बोलना तुम्हें है
फूलों से मार डालो हम पत्थर से जम गए हैं.(फूलों से मारो हम तो पत्थर से जम...)
रंगीनियाँ लिए हैं ग़मगीन कई चेहरे (..कितने चिह्रे)..
अफ़सोस के रंगों में वो सारे रंग गए हैं
तकतीं रहेंगी तुमको ये बे-हया सी आँखें
जीवन भी रुक रहा है कुछ लम्हें थम गए हैं
हम थे ऐसे-वैसे तुम सोचोगे कभी तो ,,( हम थे ही ऐसे-वैसे...)
जब सोचने लगे तो हम खुद ही नम गए हैं
जीने का हौसला तो पहले भी 'अदा' नहीं था (जीने का हौसला भी पहले कहाँ अदा था..)
मरने के हौसले भी मेरे यार कम गए हैं
halkaa fulkaa badi jaldi mein theek kiyaa hai ada ji.....
ReplyDeleteबहुत लाजबाब!!
ReplyDeleteजीने का हौसला तो पहले भी 'अदा' नहीं था
ReplyDeleteमरने के हौसले भी मेरे यार कम गए हैं
वाह लाजवाब, शुभकामनाएं.
रामराम.
तुम बोल दो हमें वो जो बोलना तुम्हें है
ReplyDeleteफूलों से मार डालो हम पत्थर से जम गए हैं
बहुत सुन्दर
अदा जी,
ReplyDeleteलाजवाब लिखा है जी आपने, एक-एक शेर नायाब है.
बस आज कुछ अलग सी बात लगी है आपकी रचना में
मुझे कोई अटका, झटका, खटका नहीं लगा, और बे-बहरी तो कोई बोल ही नहीं सकता आपको
बेहद शानदार ग़ज़ल बनी है आपकी
आज मैं रांची आपके शहर में हूँ
अदा जी,
ReplyDeleteलाजवाब लिखा है जी आपने, एक-एक शेर नायाब है.
बस आज कुछ अलग सी बात लगी है आपकी रचना में
मुझे कोई अटका, झटका, खटका नहीं लगा, और बे-बहरी तो कोई बोल ही नहीं सकता आपको
बेहद शानदार ग़ज़ल बनी है आपकी
आज मैं रांची आपके शहर में हूँ
तुम बोल दो हमें वो जो बोलना तुम्हें है
ReplyDeleteफूलों से मार डालो हम पत्थर से जम गए हैं
-Kavya Manjusha 'aDaDi'
jaage hai der se humein kuch der sone do,
thodi si saans baaki hai subah to hone do.
-Gulzar.
Sorry for 2-3 days break . And advance sorry for next 2-3 days break.
लाजवाब है
ReplyDeleteक्यूँ अश्क बहते-बहते यूँ आज थम गए हैं
ReplyDeleteइतने ग़म मिले कि, हम ग़म में रम गए हैं
तुम बोल दो हमें वो जो बोलना तुम्हें है
फूलों से मार डालो हम पत्थर से जम गए हैं
बेहतरीन ...
क्या कहूँ आज पढ़ते-पढ़ते यूँ शब्द थम गए हैं
शब्द कम पड़ गए कि, हम एक एक शे'र में रम गए हैं
तकतीं रहेंगी तुमको ये बे-हया सी आँखें
ReplyDeleteजीवन भी रुक रहा है कुछ लम्हें थम गए हैं
हम थे ऐसे-वैसे तुम सोचोगे कभी तो
जब सोचने लगे तो हम खुद ही नम गए हैं
जीने का हौसला तो पहले भी 'अदा' नहीं था
मरने के हौसले भी मेरे यार कम गए हैं
ada ji,
har din ek nayi rachna aur wo bhi be-misaal.
kamaal hai kamaal.
bahut badhia lajwaab
तुम बोल दो हमें वो जो बोलना तुम्हें है
ReplyDeleteफूलों से मार डालो हम पत्थर से जम गए हैं
Wah ! Fantastic, Adaji!!
तुम बोल दो हमें वो जो बोलना तुम्हें है
ReplyDeleteफूलों से मार डालो हम पत्थर से जम गए हैं
ये पंक्तियाँ कमाल की है .......शब्द नही है कि बयान करु .....अतिसुन्दर
ada ji,
ReplyDeleteaapki is gazal ki rawaani kamal ki hai
ek ek shbd dil ke kareeb lag raha hai jawaab nahi aapka
आदरणीय मनु जी,
ReplyDeleteसादर प्रणाम,
आपने अपने आप ही ठीक कर दिया इस मुई कविता को जिसे अब हम 'ग़ज़ल' कह सकते हैं. जो भी समय आपने इसे दिया हम ह्रदय से आभारी हैं आपके.
हम समझ नहीं पा रहे हैं की आपका corrected version कैसे डालें, इसीलिए चुपचाप रहे.
पुनः आपका धन्यवाद.
जीने का हौसला तो पहले भी 'अदा' नहीं था
ReplyDeleteमरने के हौसले भी मेरे यार कम गए हैं
aapki inhi ada par to hum mar hi gaye hai..
-Sheena
अदा जी,
ReplyDeleteआपकी इस ग़ज़ल में दर्द उभर कर आया है.
रंगीनियाँ लिए हैं ग़मगीन कितने चेहरे
अफ़सोस के रंगों में वो सारे रंग गए हैं
'अफ़सोस के रंग' को आप ऐसा लिखें, ये बहुत ही उम्दा शेर है
तकतीं रहेंगी तुमको ये बे-हया सी आँखें
जीवन भी रुक रहा है कुछ लम्हें थम गए हैं
आपके शब्द सामर्थ्य को सलाम करता हूँ, और भावपक्ष को क्या कहूँ शब्द मूक हो गए
रोज पढता हूँ बस कमेन्ट नहीं करता हूँ, लेकिन आज बिना कुछ कहे जा नहीं पाया
राजीव रंजन
मुंबई
हर पंगती बेमिशाल है |
ReplyDeleteBahut din ke baad aaya hun ada ji.
ReplyDeletebahut khoobsurat gazal bani hai ye.
तुम बोल दो हमें वो जो बोलना तुम्हें है
फूलों से मार डालो हम पत्थर से जम गए हैं
रंगीनियाँ लिए हैं ग़मगीन कितने चेहरे
अफ़सोस के रंगों में वो सारे रंग गए हैं
तकतीं रहेंगी तुमको ये बे-हया सी आँखें
जीवन भी रुक रहा है कुछ लम्हें थम गए हैं
पत्थर से जमे को फूलों से मारना ...क्या बात है
ReplyDeleteजीने का हौसला तो पहले भी 'अदा' नहीं था
मरने के हौसले भी मेरे यार कम गए हैं
पर यह ठीक नहीं है...हौसला तो बस जीने का ही रखिये ...
बहुत शुभकामनायें ..!!
क्यूँ अश्क बहते-बहते यूँ आज थम गए हैं
ReplyDeleteइतने ग़म मिले कि, हम ग़म में रम गए हैं
तुम बोल दो हमें वो जो बोलना तुम्हें है
फूलों से मार डालो हम पत्थर से जम गए हैं
KYA BAAT HAI ADA JI..