Sunday, September 13, 2009
रिटर्न ऑफ़ ए ग़ज़ल
मेरी ये नामुराद रचना अब ग़ज़ल बन गयी है, एक अजीम-ओ-शान ग़ज़लगो के हाथों....
इस मुई रचना ने कब सोचा था, कि इसे भी कोई सँवारने वाला मिल जाएगा, वो भी यहाँ से हजारों मील दूर जाने किस वादी में हजारों दिलों पर राज़ करने वाले 'श्री मेजर राजरिशी' के हाथों !!!
श्री मेजर राजरिशी को भला कौन नहीं जानता है. ये वो शख्शियत हैं जो फौलाद के हैं पर फूलों सा दिल रखते हैं...बन्दूक और कलम का ऐसा सामंजस्य बिरले ही देखने को मिलता हैं...
जहाँ गज़लकारों की दुनिया में इनकी पहचान है वहीँ सरहद की वादियाँ भी इनके नाम से गूँजतीं हैं...
मेजर साहब, बहुत-बहुत शुक्रिया आपका..
जी हां 'श्री मेजर गौतम राजरिशी' ने इसे दुरुस्त कर दिया है और मैं इसे फिर से पेश करने की हिमाक़त कर रही हूँ.....
क्यूंकि अब ये बाकायदा ग़ज़ल हैं !!!
जब कभी भी हम किसी आजाब में आ जाते हैं
बाहें फैलाए हुए वो ख़्वाब में आ जाते हैं
ढ़ूँढ़ते-फिरते हो तुम जितने सवालों के जवाब
सब के सब ही मेरे पेचोताब में आ जाते हैं
डूबने की कोशिशें मेरी करें नाकामयाब
जाल कसमों की लिये तालाब में आ जाते हैं
कुंद होने चल पड़े दिल के अंधेरों में 'अदा'
नूर की झुरमुट लिए महताब में आ जाते हैं
ये तो है जी after की तस्वीर
और ये रही before की :
जब कभी हम किसी अजाब में आ जाते हैं
बाहें फैलाए हुए वो ख़्वाब में आ जाते हैं
ढूंढ़ते फिरते हैं हम कितने सवालों का जवाब
जाने कैसे वो ख़ुदा की क़िताब में आ जाते है
कोशिशें मेरी डूबने की कर गए नाक़ामयाब
जाल कसमों के लिए तालाब में आ जाते हैं
कुंद होने चल पड़े दिल के अंधेरों में 'अदा'
नूर की झुरमुट लिए महताब में आ जाते हैं
सारी तसवीरें गूगल के सौजन्य से ....
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mezar saahib......!!!!
ReplyDeleteaap....?
sab se pahle aapko pranaam...
pahlaa comment meraa hi ho..
isi liye roman mein likh rahaa hoon..
ghazal ki baat bad mein..
:)
'Roman','hindi', 'urdu' wale comment karte hi reh gaye,
ReplyDeleteaur ghazal wale ghazal kehke so gaya pine ke baad...
...ya aisa hi kuch tha.
:)
badhai ho aDaDi aapko pehli ghazal pe.
जी,,,
ReplyDeleteअब आया हूँ..
दोबारा...
और अभी भी मेरा ही कमेन्ट है यहाँ पर..
क्या बांधा है मेजर साहिब ने अदा जी की गजल को....!!
कमाल किया है...
हमने भी कुछ कुछ ऐसा ही सोचा था....
सोच पाते हैं सभी कब तुझे मेरी तरह
सब तो बेबस से तेरे दाब में आ जाते हैं
कमाल है मेजर साहिब..
मुबारिक हो अदा जी,,
आपको ये गजल.... (रचना नहीं ),,,,,बाकायदा गजल,,
:)
:)
मैं शर्मिंदा हो रहा हूँ, मैम....
ReplyDeleteजब कभी भी हम किसी आजाब में आ जाते हैं
ReplyDeleteबाहें फैलाए हुए वो ख़्वाब में आ जाते हैं
क्या बात है बहुत खूब
आपको हिन्दी में लिखता देख गर्वित हूँ.
ReplyDeleteभाषा की सेवा एवं उसके प्रसार के लिये आपके योगदान हेतु आपका हार्दिक अभिनन्दन करता हूँ.
दिलेशिरी को अजाब से फुरसत न मिली।
ReplyDeleteमेरी पलकों को, तेरे ख़्वाब से फुरसत न मिली।
चाहते तो हम भी होते, आज कहीं और,
पर तेरे सवाल से, फुरसत न मिली।
डुबने को क्या समंदर कम पड़ा था,
तेरी आंखों के तलाब से, फुरसत न मिली।
दिल अंधेरों में जलाना, छोड़ दें ऐसी अदा
पर सोचा ही था, फरियाद से फुरसत न मिली।
गुस्ताखी तो कर रहा हूं, पर अदा जी माफ कर दीजिएगा...
be-bahr hai sandeep ...
ReplyDeleteढ़ूँढ़ते-फिरते हो तुम जितने सवालों के जवाब
ReplyDeleteसब के सब ही मेरे पेचोताब में आ जाते हैं
बेहतरीन. उम्दा शेर कहे हैं.
any mouse 7:
ReplyDelete@any mouse: ghazal be behar hai ya sandeep ji,
jo bhi accha hai....
yani dono hi behrey nahi hai....
behron ke is desh main koi to sun sakta hai...
Once again Great ghazal aDaDi,
Great behar Gautam sir,
Great comment Manu ji,
Great after Comment Darpan ji.
(and no marks for guessing who is any mouse 7)
ada ji,
ReplyDeletepahle to main samajh hi nahi paaya aapne apni ghazal dobara kyun post ki, ab samajh mein aaya hai.
ye bahut acche baat hai Gautam ji ise apni sarparasti mein liya. aapki ghazal nayab to thi hi ab bemisaal ho gayi.
bas is shabd ka matlab nahi maloom hai पेचोताब. bataiyega
देखो जी हमारे लिये तो जो सरल तरीके से ग्नगुनाई जा सके वो ही गीत गजल है. अब दो दो उस्तादों के हाथ लग गये तो यह नायाब रचना होगई. बधाई जी आप दोनो को और आज हिंदी दिवस की रामराम.
ReplyDeleteरामराम.
जो कच्चे भाव होते हैं, उनकी तो कोई बात ही नही है...! वो तो बस महसूस करने की चीज़ हैं। अदा जी आपने जो गज़ल कही थी वो बेहतरीन थी।
ReplyDeleteऔर फिर श्री मेजर गौतम राजरिशी जी की फिनिशिंग...निखार आ गया..!
ढूंढ़ते फिरते हैं हम कितने सवालों का जवाब
जाने कैसे वो ख़ुदा की क़िताब में आ जाते है
कोशिशें मेरी डूबने की कर गए नाक़ामयाब
जाल कसमों के लिए तालाब में आ जाते हैं
ये दोनो शेर विशेष रूप से अच्छे लगे....!
बधाई मिट्टी और कुम्हार दोनो को...!
नमस्कार अदा जी , आपने तो समा बाध दिया है गजलो का !!
ReplyDeleteअदा जी, मुझे कवितओ कि इतनी समझ नही, लेकिन जब दो महान हस्तियां मिल कर लिखे तो वो कविता तो खास होगी ना.
ReplyDeleteकुंद होने चल पड़े दिल के अंधेरों में 'अदा'
नूर की झुरमुट लिए महताब में आ जाते हैं
बस आप के सारे शेर बहुत पसंद आए आप का ओर गोतम जी का धन्यवाद, आप का ब्लांग पता हम ने नोट कर लिया है,
Very nice. The thoughts, the words, the imagination,a sense of belonging...
ReplyDeleteKeep writing.
अदा जी,
ReplyDeleteआपकी ग़ज़ल दुरुस्त हो कर दोबारा आई देख कर ख़ुशी हुई. वैसे तो हमारे जसी लोगों के लिए पहले भी वो दुरुस्त ही थी. लेकिन अगर technically अभी ठीक है तो इसकी कीमत कुछ और है, गौतम जी का बहुत बहुत आभार. अब लगे हाथों इसे गा भी दीजियेगा.
अभी अभी गौतम जी के ब्लाग से भी आ रहा हूँ. बहुत अच्छा लिखते हैं.
और आप ऐसे ही लिखती रहें.
हम भी ताऊ की बातों से सहमती प्रकट करते हैं ...
ReplyDeleteGautam ji aur Ada ji,
ReplyDeleteBehad khoobrurat ghazal ban gayi hai.
badhai aap dono ko.
सारी तसवीरें गूगल के सौजन्य से ...
ReplyDeletethank you google.
हिन्दी दिवस की शुभकामनाएँ। बहुत सुन्दर ग़ज़ल है।
ReplyDelete" नूरकी झुरमुट लिए ",आपको भी हमारे ब्लॉग पे आए अरसा बीता ..!
ReplyDeleteया तो मेरा लेखन नीरस है ,या आप बेहद व्यस्त हैं ! खैर , आपके साथ मेरी कोई तुलना भी नही ...बेहद अदना -सी व्यक्ती हूँ ! अपना नमन दर्ज करने आ पहुची..कोई शिकायत नही...
http://shamasansmaran.blogspot.com
http://lalitlekh.blogspot.com
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http://baagwaanee-thelightbyalonelypath.blogspot.com
"Bikhare sitare' blog pe comment ke liye tahe dilse shukriya!
ReplyDeleteAapka comment hamsha mayne rakhta hai..hausal afzayi aur zarranawazee dono..
MEJOR SAAHAB TO KAMAAL KARTE HAIN ...... AAP BHI GAZAB KE BHAAV RAKHTI HAIN ....... LAJAWAAB GAZAL, LAJAWAAB SHERON KE SAATH
ReplyDeletesunder likhaa hai....
ReplyDeleteगौतम राजरिशी said...
ReplyDelete"पेचोताब" का अर्थ मन की उलझन या क्रोध या संताप किसी भी रूप में लिया जा सकता है। चचा गालिब ने इस काफ़िये का खूब इस्तेमाल किया है अपनी ग़ज़लों में।
hamaare bade uncle hain..
ReplyDeletemagar hamein nahi maaloom...
par matlab yehi hai..
gussaa..
krodh..
man kaa santaap............
आपकी खुशनसीबी पर रश्क़ हुआ जाता है. मेरे दोस्त ग़ज़लों के दीवानें ना थे वे सिर्फ़ गध्य लिखा करते थे जबकि मैं अपनी किशोरावस्था के उन दिनों में एक बडा़ शाईर बनना चाहता था तो हज़ार पंक्तियां लिखने के बाद भी एक न सुहाती थी. शहर भर में जो ग़ज़ल के बारे में जानते थे वे अधजल गगरी की तरह छलकते हुये जाते और मेरे हाथ कुछ ना आता. आपको तो बिना खोजे ही गौतम जी जैसा इस फ़न का धनी मिल गया है. गौतम जी की समझ का तो मैं भी दीवाना हूँ. ये जो तस्वीर आपने लगाई है वह इस रचना प्रक्रिया की पूरी कहानी है.
ReplyDeleteअब चालीस के पास उम्र आ गई है और हौसला जाता रहा वरना मैं भी मेजर साहब का शागिर्द हो जाता.
ग़ज़ल उम्दा है और फ़ेर बदल से सोना चमक उठा है. किसको अधिक बधाई दूँ.
दा जी लाजवाब गज़ल बन पडी हैगौतम राज रिशी जी की कलम और बन्दूक दोनो मुस्तैद रहती हैं दोनो को बधाई
ReplyDeletebahut khoobsurat gazal.
ReplyDeletebadhai !!
डूबने की कोशिशें मेरी करें नाकामयाब
ReplyDeleteजाल कसमों की लिये तालाब में आ जाते हैं
bahoot khubsurat.