Wednesday, September 23, 2009
गुमशुदा
क्या तुमने देखा है ?
एक श्वेतवसना तरुणी को,
जो असंख्य वर्षों की है,
पर लगती है षोडशी
इस रूपबाला को देखे हुए
बहुत दिन हो गए,
मेरे नयन पथराने को आये
परन्तु दर्शन नहीं हो पाए
मैंने सुना है,
उस बाला को कुछ भौतिकवादियों ने
सरेआम ज़लील किया था
अनैतिकता ने भी,
अभद्रता की थी उसके साथ
बाद में भ्रष्टाचार ने उसका चीरहरण
कर लिया था
और ये भी सुना है,
कि कोई बौद्धिकवादी,
कोई विदूषक नहीं आया था
उसे बचाने
सभी सभ्यता की सड़क पर
भ्रष्टाचार का यह अत्याचार
देख रहे थे
कुछ तो इस जघन्य कृत्य पर खुश थे,
और कुछ मूक दर्शक बने खड़े रहे
बहुतों ने तो आँखें ही फेर ले उधर से
और कुछ ने तो इन्कार ही कर दिया
कि ऐसा भी कुछ हुआ था
तब से,
ना मालूम वो युवती कहाँ चली गयी
शायद उसने अपना मुँह
कहीं छुपा लिया है,
या कर ली है आत्महत्या,
कौन जाने ?
अगर तुम्हें कहीं वो मिले,
तो उसे उसके घर छोड़ आना
उसका पता है :
सभ्यता वाली गली,
वो नैतिकता नाम के मकान में रहती है
और उस युवती को हम
"मानवता" कहते हैं
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बहुत ही बढिया...उम्दा रचना ...
ReplyDeleteतालियाँ
दी ... मुझे ऐसा लग रहा है की ये रचना मैंने आपके ही ब्लॉग पे पढ़ी है |
ReplyDeleteजो भी हो, यदि repeat भी हुआ है तो भी बहुत अच्छा है |
प्रिय राकेश,
ReplyDeleteयह रचना पहले भी हम डाल चुके हैं ..
लेकिन आज फिर से सोचा डालने का कुछ नए पाठक हैं जिन्होंने शायद न पढ़ा हो...
एक नई रचना लिख तो ली थी लेकिन आज पुरानी से ही काम चलाने का सोचा..
अच्छा लगा जान कर तुम्हें याद है..
दीदी
प्रिय राकेश,
ReplyDeleteयह रचना पहले भी हम डाल चुके हैं ..
लेकिन आज फिर से सोचा डालने का कुछ नए पाठक हैं जिन्होंने शायद न पढ़ा हो...
एक नई रचना लिख तो ली थी लेकिन आज पुरानी से ही काम चलाने का सोचा..
अच्छा लगा जान कर तुम्हें याद है..
दीदी
jute ko miss call marte maarte , cab ki call ka intzaar karte karte ek haath se muh main toast thoons raha hoon aur doosre haath se....
ReplyDelete...khatar patar !!
...zindagi ka tempo subah thoda fast hi hota hai....
:)
...ek aisi hi kahani padhi thi di kabhi gulzaar ne likhi thi shayad wo ahani nahi preface tha ya introduction tha .agar kisi ne pukhraaj padhi ho to shayad wo recall kar paiye....
...aur jo kriti gulzaar ki yaad dila de wo apne mein swyam kaaljaiyi hai !!
निरंतर परिवर्तनशील संसार में भी कुछ विचार हमेशा समसामयिक लगते हैं समय की धूल उन्हें धुंधला नहीं सकती..ये कविता भी बहुत कुछ ऐसी ही है..
ReplyDeleteनैतिकता नामक मकान में सभ्यता फिर से सुरक्षित लौटे..बहुत शुभकामनायें..विचारोतेजक रचना प्रस्तुत करने का बहुत आभार ..!!
पुनः प्रस्तुत की लेकिन पुनः उतना ही आन्नद दे गई. बहुत बधाई.
ReplyDeleteबहुत बढ़िया लिखा है आपने!
ReplyDeleteलेखनी को नमस्कार।
बधाई!
बहुत सुन्दर रचना. भावोत्प्रेरक और संवेदनाओ से भरपूर.
ReplyDeleteकविता मेरे लिए तो नई ही है आज पहली बार जो पढ़ रहा हूँ.
ReplyDeleteकविता इस समकालीन समाज में शाश्वत मूल्यों के विस्मृत किये जाने को अभिव्यक्त करती है जिन्हें फिर से याद करने, खोजने की ज़रुरत है.
कविता हौले से हमारे सामने खुलती है,अपने अर्थ स्पष्ट करती हुई.
शुक्रिया.
ऐसी हालत मानवता की चित्रण है कुछ खास।
ReplyDeleteशब्द-चित्र है अदा 'अदा' की लेखन में विश्वास।।
शुभकामनाएँ बहन मंजूषा।
बहुत लाजवाब.
ReplyDeleteरामराम.
अगर तुम्हें कहीं वो मिले,
ReplyDeleteतो उसे उसके घर छोड़ आना
उसका पता है :
सभ्यता वाली गली,
वो नैतिकता नाम के मकान में रहती है
और उस युवती को हम
"मानवता" कहते हैं
सच है आज मानवता सभ्यता की गली में अपने ही घर में खो गई है । क्या खूब अभिव्यक्ति दी है आपने मानवता की ।
बधाई व धन्यवाद !!!
ये रिविजन वाली क्लास भी अच्छी है
ReplyDeleteचलो कुछ दिनों बाद ही सही कविअताओं का धरातल तो बदला, आप अच्छा लिख रही हैं !
रचना में आनन्द आ गया..........
ReplyDeleteदीदी चरण स्पर्श
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर व लाजवाब रचना। बहुत-बहुत बधाई........
अगर तुम्हें कहीं वो मिले,
ReplyDeleteतो उसे उसके घर छोड़ आना
उसका पता है :
सभ्यता वाली गली,
वो नैतिकता नाम के मकान में रहती है
और उस युवती को हम
"मानवता" कहते हैं
अपने कसे विचारों से बांध दिया आपने !
आभार !
बहुत सुन्दर रचना,
ReplyDeleteलेकिन अफ़सोस कि अब वो स्त्री ढूंढें नहीं मिलगी, क्योंकि उसका अस्तित्व ही मिट गया धरा से !
अच्छा किया आपने दुबारा पोस्ट करके क्युकी मै तो अभे नया नया आया हु इस जगत में तो मुझे फिर से पढ़ने के लिए मिल गया .
ReplyDeleteआपने सही लिखा है हमारी मानवता कही गम होती जा रही है उसे वापस लाना जरुरी है .
अगर तुम्हें कहीं वो मिले,
ReplyDeleteतो उसे उसके घर छोड़ आना
उसका पता है :
सभ्यता वाली गली,
वो नैतिकता नाम के मकान में रहती है
और उस युवती को हम
"मानवता" कहते हैं....abhi zinda hai..kahi na kahi mil jayegi...behtreen rachna...
main bhi doond raha hun ..........kahi mil jaye vo श्वेतवसना तरुणी ,jise हम
ReplyDelete"मानवता" कहते हैं,.................
mujhe pahle laga ki bharatmaata kahte hain.. par padhne par pata chala ki ise to manavta kahte hain..
ReplyDeletebahut accha likha hai.. aisi rachnaayein to repeat honi hi chahiye...
excellent poetry . It is difficult to search humanity now-a-days.
ReplyDeleteअदभूत है अन्दाजे ब्याँ/भावानाये जो शब्द से मिलकर सरस ही बही जा रही है/बहुत बहुत खुबसूरत रचना!
ReplyDeleteबहुत सुन्दर रचना.
ReplyDeleteवाह वाह क्या बात कही आप ने अपनी कविता मै जबाब नही, बहुत सुंदर धन्यवाद
ReplyDeletebehtreen..............shayad pahle bhi padhi hai magar jitni baar padho sach kab badalta hai.
ReplyDeleteise main pahle bhi padh chuka hoon....ek baar puanah padh kar achchha laga
ReplyDeleteअगर तुम्हें कहीं वो मिले,
ReplyDeleteतो उसे उसके घर छोड़ आना
उसका पता है :
सभ्यता वाली गली,
वो नैतिकता नाम के मकान में रहती है
और उस युवती को हम
"मानवता" कहते हैं
behtareen.
mere liye to brand new kavita hai ada ji aur hairaan hun aapke shabd samarthy par
koi bhi baat aap itni asaani se kaise bol deteen hain
अगर तुम्हें कहीं वो मिले,
ReplyDeleteतो उसे उसके घर छोड़ आना
उसका पता है :
सभ्यता वाली गली,
वो नैतिकता नाम के मकान में रहती है
और उस युवती को हम
"मानवता" कहते हैं.......
mil to gayi hai.........
par address aapne wrong likha hai....... na to yeh makaan hai....... na hi is naam ki koi gali..... bahut khoja........ par yeh addres wrong hi nikla........
filhaal wo yuvti mere paas hai....... aur main usse pareshan hoon......... baar baar kah rahi hai ki ghar jaana hai......... par ghar hai ki milta hi nahi....... ab agar ghar nahi milega,,,,.......... to soch raha hoon........ki us yuvti ko apne paas hi rakh loonga.......... kya pata ........ main bhi maanav ban jaun???????
phle bhi padhi thi yh rachna ab aur prasngik ho gai hai
ReplyDeletebahut achhi rachna
badhai
phle bhi padhi thi yh rachna ab aur prasngik ho gai hai
ReplyDeletebahut achhi rachna
badhai
sunder rachanaa...
ReplyDeletebadhaayee..,,,!!!
कभी कभी दिखाई देती है ।
ReplyDeleteada ji,
ReplyDeleteaapki is rachna ko main pahle bhi padh chuka hun aur vishwaas kijiye aaj tak nahi bhool paaya hun.
aapki yah kaaljayi rachna hai shayd yah rachna aapki puraskrit bhi ho chuki hai jahan tak mujhe maloom hai.
aapki shreshthatam rachnao mein se ek hai.
ek baar fir padh kar bahut hi accha laga. bas aap likhte rahiye.
dhanyawaad.