यूँ हीं....
ख्याल आते रहे
सोहबत में
ज़रुरत के
ज़िन्दगी गुज़रती रही
इशारों को कैसे
जुबां दे दें हम
मोहब्बत बच जाए
दुआ निकलती रही
रेत के बुत से
खड़े रहे सामने
पत्थर की इक नदी
गुज़रती रही
रूह थी वो मेरी
लहू-लुहान सी
बदन से मैं अपने
निकलती रही
बेवजह तुम
क्यों ठिठकने लगे हो
मैं अपने ही हाथों
फिसलती रही
आईना तो वो
सीधा-सादा था 'अदा
मैं उसमें बनती
संवरती रही
इस कविता को फिर से पढ़ना अच्छा लगा । साथ में जो तस्वीरें दी हैं, वे भी मनभावन हैं । लेकिन इतनी जल्दी यह कविता फिर से क्यों परोसी गई ?
ReplyDeleteयूँ भी आपकी कविताएँ कितनी भी बार पढ़ो ... हर बार कुछ नया अर्थ मिल ही जाता है ।
https://gunjanugunj.blogspot.com
अदा जी
ReplyDeleteअभिवंदन
" यूं ही " एक बेहतरीन रचना है,अंदाजे बयां एक दम जुदा लगा.
बेवजह तुम
क्यों ठिठकने लगे हो
मैं अपने ही हाथों
फिसलती रही
- विजय
अदा दीदी, यह रचना बहुत ही अच्छी लगी । बहुत हीं सुन्दर भावाभिव्यक्ति । आभार
ReplyDeleteइशारों को कैसे
ReplyDeleteजुबां दे दें हम
मोहब्बत बच जाए
दुआ निकलती रही
wah! is line ne to kamaal kar diya....
बेवजह तुम
क्यों ठिठकने लगे हो
मैं अपने ही हाथों
फिसलती रही....
kai baar thithakna bhi majboori hoti hai......
सुंदर... अति सुंदर भावप्रधान कविता ।
ReplyDeleteउम्दा व खूबसूरत रचना।
ReplyDeleteइशारों की जुबाँ पुरजोर असर रखती है..दुआ की तरह..बस दोनो के लिये कुछ खास कान मखसूस होते हैं
ReplyDeleteपत्थर की नदी और अपने हाँथ से फ़िसलने का बिम्ब नया और अछूता लगा..
बेहतरीन रचना..सशक्त भावचित्रण.
रेत के बुत से खड़े रहे सामने
ReplyDeleteपत्थर की इक नदी गुज़रती रही
उलटी बह रही है गंगा यहाँ..अनुपम उपमा ..
बहुत शुभकामनायें ..!!
hi aDaDi
ReplyDeleteoffice jate hue micro tippani(as always )
wah Wah !!
waapis aata hoon office se....
...official tippani ke liye !!
ye to shayda pehle bhi padhi hai nahi kya?
ReplyDeleteबेहतरीन अभिव्यक्ति । आभार ।
ReplyDeleteएक बेहतरीन रचना!! आनन्द आ गया.
ReplyDeleteरेत के बुत से
ReplyDeleteखड़े रहे सामने
पत्थर की इक नदी
गुज़रती रही
Waah !!
bahut hi sundar abhivyakti,
सुन्दर कविता के साथ लगी पेंटिंग ... मानो दोनों एक दूसरे के लिए बने हों
ReplyDeleteखूबसूरत
बहुत अच्छी लगी यह रचना
ReplyDeleteबहुत लाजवाब रचना.
ReplyDeleteरामराम.
'..रूह थी मेरी वह लहूलुहान सी,बदन से मै अपने निकलती रही '........क्या बात कही है... Excellent expression
ReplyDeleteसुन्दर रचना अदा जी आभार आपका हम तक पहुचाने के लिए
ReplyDeleteअति सुंदर कविता.
ReplyDeleteधन्यवाद
ख्याल आते रहे
ReplyDeleteसोहबत में
ज़रुरत के
ज़िन्दगी गुज़रती रही
ji haan zaroorat ke sohbat mein hi zindagi guzar rahi hai..aur khayal wo to bas saath saath hain.
रेत के बुत से
खड़े रहे सामने
पत्थर की इक नदी
गुज़रती रही
pattha ki nadi ki tasveer bahut hi sateek lagi in panktiyon ke liye aur kavita mein yah bimb bahut hi naya laga. bahut khoob likha aapne
रूह थी वो मेरी
लहू-लुहान सी
बदन से मैं अपने
निकलती रही
iske saath ki bhi tasveer khoobsurat aur janch gayi. shab to mujhe nishabd kar gaye. behad sundar abhivyakti.
kul mila kar ek atisundar prastuti.
ख्याल आते रहे
ReplyDeleteसोहबत में
ज़रुरत के
ज़िन्दगी गुज़रती रही
ji haan zaroorat ke sohbat mein hi zindagi guzar rahi hai..aur khayal wo to bas saath saath hain.
रेत के बुत से
खड़े रहे सामने
पत्थर की इक नदी
गुज़रती रही
pattha ki nadi ki tasveer bahut hi sateek lagi in panktiyon ke liye aur kavita mein yah bimb bahut hi naya laga. bahut khoob likha aapne
रूह थी वो मेरी
लहू-लुहान सी
बदन से मैं अपने
निकलती रही
iske saath ki bhi tasveer khoobsurat aur janch gayi. shab to mujhe nishabd kar gaye. behad sundar abhivyakti.
kul mila kar ek atisundar prastuti.
बेवजह तुम
ReplyDeleteक्यों ठिठकने लगे हो
मैं अपने ही हाथों
फिसलती रही
बहुत सुन्दर अदा जी.
bahut sundar abhivyakti.
ReplyDeletehamesha ki tarah.