जोड़कर टुकड़े कई आईने के आज तक
अपने ही अक्स से दरारें मैं भरती रही
सामने मेरे खड़ी है ताबूत सी मेरी ज़िन्दगी
शोर कर रहा है जिस्म पर रूह उतरती रही
दोस्ती है हौसले से और यारी बे-बाकपन से
रोज इनका साथ है पर मन ही मन डरती रही
बह गईं रातें कई और घुल गए कितने ही दिन
पास थे पत्थर के शरर मैं इंतज़ार करती रही
अश्क कुम्हला गए 'अदा' दीद की थी कोटर वहीँ
याद तेरी किरकिरी बन बिंदास गुजरती रही
दोस्ती है हौसले से और यारी बे-बाकपन से
ReplyDeleteरोज इनका साथ है पर मन ही मन डरती रही..!!
सच है ...लाख बेबाकी बिंदासपन और हौसला हो मन के किसी कोने में डर डूब कर बैठा रहता है..
मन के डर को दूर हटा कर ऐसी ही हौसले और बेबाकी से जिंदगी के सफ़र में आगे बढती रहे.. बहुत शुभकामनायें ..!!
याद तेरी किरकिरी बन बिंदास गुजरती रही...।
ReplyDeleteआभार ।
बहुत सही..बेहतरीन रचना!
ReplyDeleteबहुत बहुत ही सुंदर ग़ज़ल है, बधाई!
ReplyDeleteबहुत लाजवाब. शुभकामनाएं.
ReplyDeleteरामराम.
सामने मेरे खड़ी है ताबूत सी मेरी ज़िन्दगी
ReplyDeleteशोर कर रहा है जिस्म पर रूह उतरती रही
......................बहुत ताकत आ गयी ग़ज़ल के बाद .बिंदास! .................मैं भी बिंदास इंटरव्यू से guzrunga अब .................दी जॉब छुट गयी हैं ...................जा रिया हु रोज़ी-रोटी वास्ते ....................
दोस्ती है हौसले से और यारी बे-बाकपन से
ReplyDeleteरोज इनका साथ है पर मन ही मन डरती रही
हौसले से दौस्ती है और बे-बाकपन से अपनी बात भी रखते हो, रोज इनका साथ भी है, फिर डरना किस बात का और फिर याद किरकिरी बन गई...
मन के कितने चेहरे
आपकी हर रचना जितनी बार पढ़ो...उतने ही अर्थ दे जाती है । यह शब्दों का जादू है या उन्हें पिरोने वाली रुह का करिश्मा ????
धन्यवाद
बहुत खूब !!!
ReplyDeleteसामने मेरे खड़ी है ताबूत सी मेरी ज़िन्दगी
ReplyDeleteशोर कर रहा है जिस्म पर रूह उतरती रही |
बहुत सुन्दर |
दी आपकी कल्पनाशीलता को सलाम करता है ये अनुज |
आदित्य,
ReplyDeleteतुमने खबर तो अच्छी नहीं सुनाई लेकिन जिस हौसले से सुनाई तारीफ-ए-काबिल है..
नौकरी ही तो है ..मिलनी है तुम्हें...मेरा आशीर्वाद है तुम्हारे साथ...
और सबकी शुभकामनाएँ भी......
दीदी
सामने मेरे खड़ी है ताबूत सी मेरी ज़िन्दगी
ReplyDeleteशोर कर रहा है जिस्म पर रूह उतरती रही
waah gazab,lajaeab
बहुत खुब दीदी क्या कहूँ , आपकी हर रचना सोचने को मजबुर कर देती है कि आपको ऐसे शब्द मिलते कैसे है जिसे पढ कर एक नयी स्फुर्ति आ जाती है। लाजवाब लिखा है आपने..........
ReplyDeletebahut achha aise hi likhte rahiye
ReplyDeleteदोस्ती है हौसले से और यारी बे-बाकपन से
ReplyDeleteरोज इनका साथ है पर मन ही मन डरती रही
वाह... इस सुंदर ग़ज़ल के लिये बधाई
दोस्ती है हौसले से और यारी बे-बाकपन से
ReplyDeleteरोज इनका साथ है पर मन ही मन डरती रही
क्या बात है! बहुत सुन्दर.
सामने मेरे खड़ी है ताबूत सी मेरी ज़िन्दगी
ReplyDeleteशोर कर रहा है जिस्म पर रूह उतरती रही
VAAH ...... JISM AUR ROOH SE BATIYAATI RACHNA ...... LAJAWAAB HAI ...
जोड़कर कर टुकड़े कई आईने के आज तक
ReplyDeleteअपने ही अक्स से दरारें मैं भरती रही
सामने मेरे खड़ी है ताबूत सी मेरी ज़िन्दगी
शोर कर रहा है जिस्म पर रूह उतरती रही
kya khoob likha hai...........seedhe dil mein utar gayi ye panktiyan.........tarif ke liye shabd kam pad rahe hain...............bahut badhayi.
जोड़कर कर टुकड़े कई आईने के आज तक
ReplyDeleteअपने ही अक्स से दरारें मैं भरती रही
kamal ka sher likha hai apne bahut hi umda
अश्क कुम्हला गए 'अदा' दीद की थी कोटर वहीँ
याद तेरी किरकिरी बन बिंदास गुजरती रही
aur ye bhi yaad teri kirkiri ban bindas gujarti rahi iska jawab nahi.
apki rachna jitni baar bhi padho bas padhte hi raho. bahut hi jyada accha likhti hain aap. har bar nayi baat milti hai.
जोड़कर कर टुकड़े कई आईने के आज तक
ReplyDeleteअपने ही अक्स से दरारें मैं भरती रही
सामने मेरे खड़ी है ताबूत सी मेरी ज़िन्दगी
शोर कर रहा है जिस्म पर रूह उतरती रही
अदा जी,
आपका बस जवाब नहीं. मैं जब भी एक दो दिन बाद आता हूँ आपकी पोस्ट में कई नई रचना पढने को मिल जाती है.
आज के सभी शेर लाजवाब हैं बहुत ही खूबसूरत हैं
हैरानी होती है आपकी कल्पनाशीलता पर. हर दिन ऐसा लिखना आसान काम नहीं है
आपके टैलेंट को सलाम करता हूँ. बहुत कम होंगे जो ऐसा कर सकते हैं.
जोड़कर कर टुकड़े कई आईने के आज तक
ReplyDeleteअपने ही अक्स से दरारें मैं भरती रही
zabardast hai.
सामने मेरे खड़ी है ताबूत सी मेरी ज़िन्दगी
शोर कर रहा है जिस्म पर रूह उतरती रही
kya baat hai !!!!
दोस्ती है हौसले से और यारी बे-बाकपन से
रोज इनका साथ है पर मन ही मन डरती रही
aaj tera banda foota hai
ha ha he he ho ho
बह गईं रातें कई और घुल गए कितने ही दिन
पास थे पत्थर के शरर मैं इंतज़ार करती रही
Clear kar ???
call karungi
अश्क कुम्हला गए 'अदा' दीद की थी कोटर वहीँ
याद तेरी किरकिरी बन बिंदास गुजरती रही
ye to bindaas lagi. bahut badhiya.
bahut accha likha hai yaar
यह कम्बखत मौसम भी क्या सितम ढाता है ....दिल के गीतों को राग नया दे जाता है ..
ReplyDeleteयाद आ जाती बीती बातो की वो घडियां सुहानी ,कलम पर भी सरुर सा छा जाता है :)
शुक्रिया जी इतना खूबसूरत कॉमेंट देने के लिए
किस शे'र की तारीफ़ और कहूं...और क्या कहूं...बस इक ही शब्द...वाह! जारी रहें.
ReplyDelete---
आप हैं उल्टा तीर के लेखक / लेखिका? [उल्टा तीर] please visit: http://ultateer.blogspot.com
बहुत सुंदर
ReplyDeleteऔर शब्द सूझ नहीं रहे
बहुत सही..बेहतरीन रचना!
ReplyDeletebadhaai,,,!!
:)
उत्तम रचना है
ReplyDeleteआगे बाप गे....इए आप किया कर रिये हो....??इत्ता सारा लेखन......इत्ता-इत्ता गाना......वो भी तकरीबन बढ़िया...अच्छा.....खूबसूरत.....मतलब....बढ़िया....बढ़िया....और बहुत ही बढ़िया....इसीलिए तो मुंह से निकल रिया है......आगे बाप गे....इए आप किया कर रिये हो....??
ReplyDeleteसामने मेरे खड़ी है ताबूत सी मेरी ज़िन्दगी
ReplyDeleteशोर कर रहा है जिस्म पर रूह उतरती रही
zindagi taboot se baaahar bhi to sakti hai....?
बह गईं रातें कई और घुल गए कितने ही दिन
पास थे पत्थर के शरर मैं इंतज़ार करती रही
bahut hi khoobsoorat lines.....
aur intezar bhi to khatm hosakta hai....
जोड़कर टुकड़े कई आईने के आज तक
ReplyDeleteअपने ही अक्स से दरारें मैं भरती रही
Bahut hi umda rachna.
Badhai !!
दोस्ती है हौसले से और यारी बे-बाकपन से
ReplyDeleteरोज इनका साथ है पर मन ही मन डरती रही
bahut khoobsurat sher