हकीक़त के ईंटों के नीचे दबे हैं वो
सपने जो पानी से गलने लगे हैं
सजीं हैं क़रीने से कीलें वफा की
टंगा है मन काम चलने लगे हैं
फर्जों के साहुल से कोना बना जो
अरमां वहीं पर पिघलने लगे हैं
जुड़तीं हैं जब-जब पथरीली यादें
अश्कों के मोती फिसलने लगे हैं
ख्वाबों का गारा क्या खुशबू उड़ाए
मन-मन्दिर में वो ढलने लगे हैं
तोरण है गुम्बज है घंटी बेलपाती
प्राणों के दीपक अब जलने लगे हैं
साहुल - ये एक छोटा सा यंत्र होता है जिसे राज-मिस्त्री प्रयोग में लाते हैं , सीधी लाइन देखने के लिए.सारी तसवीरें गूगल का सौजन्य से ....
हकीक़त के ईंटों के नीचे दबे हैं वो
ReplyDeleteसपने जो पानी से गलने लगे हैं
Waah, Ati Sundar Bhav..naye tarike ki sundar kavita padhane ko mili..dhanywaad..
ववफ़ा की कीलें ...फर्जों का साहुल ...ख्वाबों का गारा ...एक पूरी मजबूत इमारत का अक्स नजर आ रहा है ...!
ReplyDeleteअद्भुत शब्द प्रयोग और ग़ज़ब के भाव...वाह...बहुत बहुत बधाई...
ReplyDeleteनीरज
waapis aata hoon....
ReplyDeletesahul ki zaroorat hai shayad !!
:)
कीक़त के ईंटों के नीचे दबे हैं वो
ReplyDeleteसपने जो पानी से गलने लगे हैं
ये रूह का महल है शायद बहुत खूब्
सजीं हैं क़रीने से कीलें वफा की
ReplyDeleteकई काम इक साथ चलने लगे हैं
अदा जी नमस्कार !
बेहतर लेखनी !!
फर्जों के साहुल से कोना बना जो ,अरमाँ वहीँ पर पिघलने लगे हैं ' .. भावपूर्ण एवं व्यावहारिक अभिव्यक्ति ..सुन्दर एवं गंभीर रचना ..
ReplyDelete"जब कुछ रिश्तों की दीवारें ढह गयीं ,
ReplyDeleteउस मलबे के नीचे क्या ,क्या ,दबा गयीं "
और क्या कहूँ? आपकी टक्कर का तो कभी ना कह पाउंगी...
ख्वाबों का गारा क्या खुशबू उड़ाए
ReplyDeleteमन-मन्दिर में वो ढलने लगे हैं
बहुत सुंदर कविता धन्यवाद
waah bahut hi khub .........utkrisht rachana.........
ReplyDeleteप्राणों के दीपक अब जलने लगे हैं
ReplyDeleteबहुत खूब हाल बयाँ किया है आपने
aDaDi ye aankhein kiski hain?
ReplyDeleteGoogle uncle ki?
फर्जों के साहुल से कोना बना जो
ReplyDeleteअरमां वहीं पर पिघलने लगे हैं |
गजब की कशीदाकारी है ।
आभार ।
अदा जी
ReplyDeleteबहुत खूबसूरत ख्याल,
हम तो ऐसा सोच ही नहीं पाते.
अदा जी
ReplyDeleteबहुत खूबसूरत ख्याल,
हम तो ऐसा सोच ही नहीं पाते.
e photuwa to bahut hi bhaya !!
ReplyDeleteka kamal ka ladki jhai bhai !!
ek dumaaiye patthar !!
हकीक़त के ईंटों के नीचे दबे हैं वो
ReplyDeleteसपने जो पानी से गलने लगे हैं
सजीं हैं क़रीने से कीलें वफा की
टंगा है मन काम चलने लगे हैं
waah !!
lajwaab baat kahi hai.
फर्जों के साहुल से कोना बना जो
अरमां वहीं पर पिघलने लगे हैं
ham sabhi yahi kar rahe hain.
जुड़तीं हैं जब-जब पथरीली यादें
अश्कों के मोती फिसलने लगे हैं
bahut marmik !!
ख्वाबों का गारा क्या खुशबू उड़ाए
मन-मन्दिर में वो ढलने लगे हैं
तोरण है गुम्बज है घंटी बेलपाती
प्राणों के दीपक अब जलने लगे हैं
be-hadd-khoobsurat.
aaj bahut dino baad 'sahul' shabd sun kar man asmanjas aur khushi se bhar gaya.
हकीक़त के ईंटों के नीचे दबे हैं वो
ReplyDeleteसपने जो पानी से गलने लगे हैं
सजीं हैं क़रीने से कीलें वफा की
टंगा है मन काम चलने लगे हैं
waah !!
lajwaab baat kahi hai.
फर्जों के साहुल से कोना बना जो
अरमां वहीं पर पिघलने लगे हैं
ham sabhi yahi kar rahe hain.
जुड़तीं हैं जब-जब पथरीली यादें
अश्कों के मोती फिसलने लगे हैं
bahut marmik !!
ख्वाबों का गारा क्या खुशबू उड़ाए
मन-मन्दिर में वो ढलने लगे हैं
तोरण है गुम्बज है घंटी बेलपाती
प्राणों के दीपक अब जलने लगे हैं
be-hadd-khoobsurat.
aaj bahut dino baad 'sahul' shabd sun kar man asmanjas aur khushi se bhar gaya.
जुड़तीं हैं जब-जब पथरीली यादें
ReplyDeleteअश्कों के मोती फिसलने लगे हैं
ख्वाबों का गारा क्या खुशबू उड़ाए
मन-मन्दिर में वो ढलने लगे हैं
तोरण है गुम्बज है घंटी बेलपाती
प्राणों के दीपक अब जलने लगे हैं
बहुत ह्रदय-स्पर्शी होती हैं रचनाएँ अदा की
कोई बता दे मेरे स्पर्शित ह्रदय को
किसने रचा अदा को
जो हर रोज एक खूबसूरत अहसास
इस दिल में छोड़ जाती हैं ।।।
धन्यवाद
बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति...साहुल भी जान गये कि क्या होता है. :)
ReplyDeleteबेहतरीन!!
सजीं हैं क़रीने से कीलें वफा की .....................................................प्राणों के दीपक अब जलने लगे हैं.........और बताइये ....................सपने ,हकीक़त की इंटों के नीचे पानी से गलने लगे हैं ,...................,सच ज़रूरत हैं ,और दर्पण बिलकुल ठीक साहुल लेने गया हैं लौटा नहीं दी अब तलक ....................
ReplyDeleteबहुत सुन्दर अभिव्यक्ति...साहुल भी जान गये कि क्या होता है....
ReplyDelete:(
बेहतरीन!!
सजीं हैं क़रीने से कीलें वफा की
ReplyDeleteटंगा है मन काम चलने लगे हैं
ये मुझे सबसे अच्छी लगी है
तेरे को साहुल याद है क्या बात है
मुझे अब याद आया जब मैंने पढ़ा
बहुत.....अच्छा लिखती है
जुड़तीं हैं जब-जब पथरीली यादें
ReplyDeleteअश्कों के मोती फिसलने लगे हैं
bahut khoob .main ek mahine bahar rahi aur sabki rachnaye miss karti rahi ,par man blog se hi juda raha .
बहुत लाजवान रचना.
ReplyDeleteरामराम.
adaa ji.. ye thik se samajh mein nahi aaya.. kripya ye samjhane ka kasht karengi..
ReplyDeleteआपके शब्द चयन और भावाभिव्यक्ति ने मंत्रमुग्ध कर दिया....
ReplyDeleteबहुत बहुत बहुत ही सुन्दर रचना..
प्रिय अम्बुज,
ReplyDeleteखुश रहो,
हकीक़त के ईंटों के नीचे दबे हैं वो
सपने जो पानी से गलने लगे हैं
इसका मतलब है..वो सपने जो हमने देखे थे वो हकीकत रुपी इंत के नीचे दब गए हैं और अब तो पानी से गलने भी लगे हैं...अर्थात इंसान यथार्थ में इस तरह उलझ जाता है कि सपनों के लिए कुछ भी नहीं कर पता हैं...
सजीं हैं क़रीने से कीलें वफा की
टंगा है मन काम चलने लगे हैं
कसमें-वफायें सभी अपनी जगह धरी रह जातीं हैं, मन उनमें उलझा रहता है फिर भी अपना काम हम करते रहते हैं..
फर्जों के साहुल से कोना बना जो
अरमां वहीं पर पिघलने लगे हैं
अरमानों के सामने फ़र्ज़ ज्यादा बड़े हो जाते हैं....
जुड़तीं हैं जब-जब पथरीली यादें
अश्कों के मोती फिसलने लगे हैं
जब भी यादें आतीं हैं आंसू बहते हैं....
ख्वाबों का गारा क्या खुशबू उड़ाए
मन-मन्दिर में वो ढलने लगे हैं
ख्वाब में ही सही मन में किसी की तस्वीर बनने लगी है....
तोरण है गुम्बज है घंटी बेलपाती
प्राणों के दीपक अब जलने लगे हैं
ह्रदय में मंदिर का तोरण है गुम्बज है घंटी और बेल की पट्टी है
और मेरे प्राण दीपक की तरह जलने लगे हैं...
हमेशा की तरह सुन्दर रचना .
ReplyDeleteअपने देश मैं साहुल का प्रयोग तो होता है पर इधर तो साहुल भी नहीं चलता |
यहाँ वो गारा भी अलग है ...
जुड़तीं हैं जब-जब पथरीली यादें
ReplyDeleteअश्कों के मोती फिसलने लगे हैं
भावनाओ का और शब्दो का सशक्त सम्मिश्रण
बहुत सुन्दर
Bahut bahut shukriya.. itni acchi tarah se matlab samjhane ke liye..
ReplyDeletebahut hi sunder arth hai.. jeevan ka sach hai ye to..
aasha karte hain aisi aur bhi rachnayein milti rahengi..