Sunday, September 6, 2009

आज वो "अमर" हो गया

कल !
चमचमाती बोलेरों के काफिले में,
सैकडों बाहुबली,
कभी हुंकार,
तो कभी जयनाद करते हुए,
हथियारों के ज़खीरे के बीच,
कलफ लगी शानदार, गांधीविहीन धोती
और आदर्श रहित, खद्दर के कुर्ते में
एक मुर्दे को लाकर खड़ा कर गए

जिसके विवेक, स्वाभिमान
और अंतःकरण ने बहुत पहले,
ख़ुशी से खुदकुशी कर ली थी

बिना विवेक के वो
दीन-हीन लगता था,
बिना स्वाभिमान के
उसके हाथ जुड़ गए थे,
बिना अंतःकरण के
उसकी गर्दन झुकती ही जा रही थी,
दाँत निपोरे वो याचक बना रहा

हमने वहीँ खड़े होकर,
बिना सोचे,
उसे अभयदान दे दिया,
अगले ही पल उसके दाँत
हमारी गर्दन पर धँस गए

और देखो !
आज वो "अमर" हो गया

17 comments:

  1. आज के यथार्थ का सुंदर चित्रण ।।।

    ReplyDelete
  2. गांधीविहीन धोती
    आदर्श रहित, खद्दर के कुर्ते
    बिना विवेक के दीन-हीन
    बिना स्वाभिमान के हाथ जुड़ गए
    बिना अंतःकरण के गर्दन झुकती जा रही
    हमने उसे अभयदान दे दिया

    और वह "अमर" हो गया


    बहुत खूब!

    ReplyDelete
  3. बहुत सामयिक और सटीक.

    रामराम.

    ReplyDelete
  4. सटीक यथार्थ का सुंदर चित्रण ...

    ReplyDelete
  5. अदा जी,
    कमाल का लिखा है आपने...
    हम तो बस आँखें फाड़े पढ़ते ही रह गए....!!!!!


    हमने वहीँ खड़े होकर,
    बिना सोचे,
    उसे अभयदान दे दिया,
    अगले ही पल उसके दाँत
    हमारी गर्दन पर धँस गए

    कमाल अदा जी ,
    कमाल.....!!!!!!!!!!!!

    आपकी पिछली गजलें पढ़ कर लगा भी नहीं था के आप ऐसा भी लिख सकती हैं..

    ReplyDelete
  6. kuch kehna shesh reh gaya kya?
    bus ye bata do ki wo neta tha ya vampire.

    'adwityqa abhivyakti'

    ReplyDelete
  7. सही है
    अभयदान भी कुपात्र -- सुपात्र की पहचान के बाद ही देना चाहिये. अभयदान की भी एक मर्यादा होनी चाहिये.
    बहुत सटीक और सामयिक रचना.
    गहराई तक असर करती है

    ReplyDelete
  8. आजकल ऐसे चलते फिरते ’याचक’ मुर्दों की कमी नही है यहाँ..हमारी गरदनें जिनका इंतजार करती हैं..बहुत दिनों के बाद इतनी ईमानदार रचना पढ़ने को मिली..बहुत बहुत बधाई..
    ...मगर गाँधीविहीन धोती?

    ReplyDelete
  9. इतना क्रूर
    मस्त है पोस्ट !

    ReplyDelete
  10. बहुत खुब। अति सुन्दर

    ReplyDelete
  11. हमने वहीँ खड़े होकर,
    बिना सोचे,
    उसे अभयदान दे दिया,
    अगले ही पल उसके दाँत
    हमारी गर्दन पर धँस गए

    और देखो !
    आज वो "अमर" हो गया
    संवेदनशील व्यक्ति अपने आसपास के परिवेश से बहुत लम्बे समय तक निरपेक्ष नहीं रह सकता साबित कर दिया ..
    क्या खूब लिखा है..बहुत बढ़िया..!!
    शुभकामनायें..!!

    ReplyDelete
  12. अद्बुत शैली में यथार्थ उकेरा है.

    ReplyDelete
  13. bahut hi badhiya aur arthpoorn kavita
    आपकी पिछली गजलें पढ़ कर लगा भी नहीं था के आप ऐसा भी लिख सकती हैं..

    Lagta hai Manu ji ne aapki baki ki kavitayen hani padhi hain isiliye aisa kah diya hai
    ada ji,
    aapki sabse khas baat yahi hai ap har tarh ki kavita likhti hain aur jab koi use padhta hai to use lagta hai ki ap sirf aisa hi likhti hain.
    ek aar fir ek yatharthpoor rachna ke liye badhai.

    ReplyDelete
  14. bilkul satik aur vartaman pridrishya ka jiwant chitran.
    Bahut achchi rachan.
    Navnit Nirav

    ReplyDelete
  15. हकीकत की तस्वीर है...आपकी अभिव्यक्ति

    ReplyDelete
  16. Bahut hi acchi rachna
    badhai.

    ReplyDelete
  17. हमने वहीँ खड़े होकर,
    बिना सोचे,
    उसे अभयदान दे दिया,
    अगले ही पल उसके दाँत
    हमारी गर्दन पर धँस गए

    और देखो !
    आज वो "अमर" हो गया
    waah !

    ReplyDelete