तुम्हारी हर दगाबाज़ी हमें जी भर रुलाती है
सबेरा जब भी होता है तो हम सब भूल जाते हैं
यहाँ ये कैसी दुनिया है जिसे आभासी कहते हैं
अगर पत्थर वो झूठे हैं, क्यूँ सच्चे चोट खाते हैं ?
ये दिल इस दर्द के जज़्बात से जब भी लरजता है
पकड़ कर डाल हम ख़ामोशियों के झूल जाते हैं
बड़ा है कौन यां ग़र तुम, कभी इस बात को सोचो
चमारों के छुए पर ये बिरहमन क्यूं नहाते हैं..?
चमारों के छुए पर ये बिरहमन क्यूं नहाते हैं..?
सभी देवर से क्यूँ बनकर के भाभी जाँ बुलाते हैं ?
दिल दर्द के जज्बात से लरजता है ...खामोशियाँ अख्तियार होती ही हैं ....
ReplyDeleteआभासी दुनिया के झूठे पत्थर सच्ची चोट पहुंचाते हैं .....बहुत
दगाबाजी किसी की रुलाये मगर उसे भूल नहीं पाने की मजबूरी ....
चमारों के छूने पर ब्रह्मण नहाते थे ...अब सब समान हैं
हाँ ...गरीब की लुगाई आज भी सबकी भोजाई जान होती है ...यही अंतिम कडवा सत्य है .....
एक ही प्रविष्टि कितने मोती समेट लाई .....भाव देखूं ...प्रवाह देखूं ...दिल देखूं ...दिमाग देखूं ...बता मेरे मन क्या देखूं क्या ना देखूं ....तू ही बता कुछ ....:):)
यहाँ ये कैसी दुनिया है जिसे आभासी कहते हैं
ReplyDeleteअगर पत्थर वो झूठे हैं, क्यूँ सच्चे चोट खाते हैं ?
-यही हाल होता है सच्चों का और यही जमाना है.
ग़ज़ल बेहद पसंद आई।
ReplyDeleteकतिपय युगीन सच्चाईयों को समेटे अच्छी रचना
ReplyDeleteबड़ा है कौन यहाँ ग़र तुम, कभी इस बात को सोचो
ReplyDeleteचमारों के छुए पर ये बिरहमन क्यूं नहाते हैं..?
अच्छी ग़ज़ल, जो दिल के साथ-साथ दिमाग़ में भी जगह बनाती है।
लौकिकता के बड़े भेद हैं
ReplyDeleteतरह-तरह के बुनावट का सामना करना ही होता है
"यहाँ ये कैसी दुनिया है जिसे आभासी कहते हैं
अगर पत्थर वो झूठे हैं, क्यूँ सच्चे चोट खाते हैं"
बहुत ही मारक अभिव्यक्ति है
जिसका कोई जवाब नहीं...।
आभार...!
सच्ची बात कही थी मैंने... लोगों ने सूली पे चढ़ाया...
ReplyDeleteजय हिंद...
"कभी सोचा 'अदा' तुमने, गरीबों की ही बीवी को
ReplyDeleteसभी देवर से क्यूँ बनकर के भाभी जाँ बुलाते हैं?"
वाह! "गरीब की लुगाई सभी की भौजाई" लोकोक्ति को क्या काव्यमय सुन्दर रूप दिया है!
यकीनन एक उम्दा रचना...!
ReplyDeleteयहाँ ये कैसी दुनिया है जिसे आभासी कहते हैं
ReplyDeleteअगर पत्थर वो झूठे हैं, क्यूँ सच्चे चोट खाते हैं ? ..
बहुत जान दार शे'र है अदा जी...
हालांकि पूरी ग़ज़ल को देखते हुए..आभासी शब्द ज़रा खटका था...लेकिन..इस के बिना शायद इस शे'र में वो बात आती ही नहीं ..जो आई है....
अभी ज़रा जल्दी में हैं...बाकी एक बार फिर आते हैं..फुर्सत से..
ओह हो , आज आपकी रचना कहीं ना कहीं दिल में उतर गयी , बहुत गजब लिखा है आज आपने । बधाई
ReplyDeleteचलते चलते इस सुन्दर से मक्ते पर कहना चाहेंगे.....कि...हमने तो अमीर आदमी की बीवी को भी गरीबों द्वारा भाभी जी कहते सुना है..
ReplyDeleteएक किस्सा याद आ गया..पर फिर कभी...
दुनिया बनाने वाले, काहे को दुनिया बनाई,
ReplyDeleteकाहे बनाए तूने माटी के पुतले,
गुपचुप तमाशा देखे सारी खुदाई,
काहे को दुनिया बनाई...
जय हिंद...
यहाँ ये कैसी दुनिया है जिसे आभासी कहते हैं
ReplyDeleteअगर पत्थर वो झूठे हैं, क्यूँ सच्चे चोट खाते हैं ?
wah! kya baat hai....!!
http://kavyamanjusha.blogspot.com/
ग़ज़ल ने बहुत से भावों को समेटा हुआ है....अपनी व्यथा के साथ साथ जातिवाद और रिश्तों पर अच्छा कटाक्ष है....
ReplyDeleteकभी सोचा 'अदा' तुमने, गरीबों की ही बीवी को
ReplyDeleteसभी देवर से क्यूँ बनकर के भाभी जाँ बुलाते हैं ?
बहुत खूब अदा जी
क्या कहें, सिवा ये के वाह शानदार अभिव्यक्ति!
ReplyDeleteवाकई शानदार!
बड़ा है कौन यहाँ ग़र तुम, कभी इस बात को सोचो
ReplyDeleteचमारों के छुए पर ये बिरहमन क्यूं नहाते हैं..
बहुत खूबसूरत गज़ल. बधाई.
कभी सोचा 'अदा' तुमने, गरीबों की ही बीवी को
ReplyDeleteसभी देवर से क्यूँ बनकर के भाभी जाँ बुलाते हैं शायद इसी लिए यह लोकोक्ति बनी है "निर्धन की पत्नि सबकी भाभी" अथवा "a light purse is a heavy curse".
कुछ तो कशिश है तेरे लेखन में
ReplyDeleteवरना हम क्यों चले आते हैं।
कभी सोचा 'अदा' तुमने, गरीबों की ही बीवी को
ReplyDeleteसभी देवर से क्यूँ बनकर के भाभी जाँ बुलाते हैं ?
ufffffffffff Ada ji ! aaz to gazab kar dia...kya likh dala hai...
wah wah wah...dil se nikalkar seedhe dil tak jati hain panktiyan.
जवाब नहीं !!!.......बहुत सुन्दर रचना ..
ReplyDelete"हमारी जिंदगी में भी कई बे-नाम रिश्ते हैं
ReplyDeleteउन्हें हमइतनी शिद्दत से न जाने क्यूँ निभाते हैं"
पहले तो
मतले ने ही सोचने पर
मजबूर कर दिया है ......
रिश्तों की शिद्दत ही
दिल को खींचे चली जाती है...शायद
और
"सबेरा जब भी होता है तो हमसब भूल जाते हैं"
जी हाँ .....
इंसान की फ़ित्रत कुछ इसी तरह की ही है
शिद्दत यहाँ भी काम कर जाती है
"ये दिल इस दर्द के जज़्बात से
जब भी लरजता है
पकड़ कर डाल हम ख़ामोशियों ki,
झूल जाते हैं..."
ये शेर अपनी शिद्दत का एहसास करवा कर
जज़्बात में बहा ले गया मुझे.....
कुछ कहते नहीं बनता है .........
और "सभी देवर ....."
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रचना अच्छी है
प्रभावशाली है
खुद पुकारती है
पढ़े जाने के लिए .
b a d h a a e e .
यहाँ ये कैसी दुनिया है जिसे आभासी कहते हैं
ReplyDeleteअगर पत्थर वो झूठे हैं, क्यूँ सच्चे चोट खाते हैं ?
Kya kahun harek pankti aapne aapme mukammal hai...sochnepe majboor karti hai!
खूबसूरत ग़ज़ल
ReplyDeleteसमाज से परिचय करवाती, उसे ताने देती और निर्बल के पक्ष में खड़ी ग़ज़ल.
bahut khoobsurat gazel he jo bata rahi he lekhak ki kalam me kamaal to hai hi aur shabdo ki shamsheer ki dhaar bhi tez hai..bahut khoob. badhayi.
ReplyDeleteगिरिजिश जी उवाच ....
ReplyDeleteसुबह व्यस्त था, देख नहीं पाया।
पहली दो पंक्तियों को व्याकरण की दृष्टि से देखें तो इस रचना को ग़ज़ल नहीं कह सकते लेकिन 'कविता' इतनी उत्कृष्ट है कि पूछिए मत।
मैं तो बस सहज प्रवाह देख कर आप से ईर्ष्या करने लगा हूँ।
किसी पारलौकिक विभूति का आप के उपर आशीर्वाद है। ऐसा लग रहा है।
ऐसे ही नेट पर हिन्दी को समृद्ध करते रहिए।
आभार,
गिरिजेश
This comment has been removed by the author.
ReplyDeleteमैं इसी ज़माने की बात कर रही हूँ...हृदय पुष्प जी...
ReplyDeleteऔर आज की ही बात है...
आप बाक़ायदा इसे देख सकते हैं...गाँव में...शहर में .....हिन्दुस्तान बदल रहा है ...बदला नहीं है...
मैं तो २००८ में ही देख कर आई हूँ...अब २०१० में बात बदल गई हो तो बात अलग है...
यहाँ ये कैसी दुनिया है जिसे आभासी कहते हैं
ReplyDeleteअगर पत्थर वो झूठे हैं, क्यूँ सच्चे चोट खाते हैं
"कभी सोचा 'अदा' तुमने, गरीबों की ही बीवी को
सभी देवर से क्यूँ बनकर के भाभी जाँ बुलाते हैं?"
अरे अदा जी आप तो गज़ब ढा रही हैं क्या अमीरों की बीबी को कह कर जेल जाना है? । हमेशा कमजोर पर ही जोर चलता है बहुत खूब बधाई
मैं छुआछुत का विरोध करता हूँ चाहे वो जातिगत हो या किसी वर्ग विशेष के प्रति तथा ग़ज़ल में प्रयुक्त जातिसूचक शब्दों की कड़े शब्दों में निंदा करता हूँ.
ReplyDeleteबड़ा है कौन यां ग़र तुम, कभी इस बात को सोचो
ReplyDeleteचमारों के छुए पर ये बिरहमन क्यूं नहाते हैं..?
मेरा यह शेर जातिवाद और छुआछूत के विरोध में ही लिखा गया है...
गौर से पढ़िए इसे...!!
bahut hi sensitive topic chuna hai Ada aur use bahut hi achhi tarah bataya bhi hai.
ReplyDeletebahut hi achha likha hai
-Sheena
के बाति के तान बनल बा के बाति के बाना
ReplyDelete?
के बाति के जाति बनल बा के बाति के दाना
?
अदा बाति के तान बनल बा जुदा बाति के बाना
बिना बाति के जाति बनल बा दिलफुलवा पगलाना।
देखs खाली दाना..
.. हा जोगीरा सरssरsर
Hello ji,
ReplyDeleteAapne itna achha likha hai, ghehraayi aur sachhai se...
Mann ko chooh gayi. Great job done :)
Just one thing... "सबेरा जब भी होता है तो हम सब भूल जाते हैं" -- is it savera or sabera? I think it should be 'savera'..
Just thought to confirm, I could be wrong :)
Regards,
Dimple
अदा साहिबा, आदाब
ReplyDeleteतुम्हारी हर दगाबाज़ी हमें जी भर रुलाती है
सबेरा जब भी होता है तो हम सब भूल जाते हैं
रिश्तों को हर हाल में
निभाने का पैगाम दिया है आपने
यहाँ ये कैसी दुनिया है जिसे आभासी कहते हैं
अगर पत्थर वो झूठे हैं, क्यूँ सच्चे चोट खाते हैं?
बडा सवाल?
शानदार ग़ज़ल
kisi shayar n4 sach hi kaha hai
ReplyDelete" yE TO PATHRON KA SHAHAR HAI.
YAHAN KIS KO APNA BANAAIE"
AAPKI KAVITA DIL KO BAHOT BHAAEE.
@Dimps,
ReplyDeleteThanks a lot for your lovely comment,
about the word, सबेरा
सबेरा = dawn
सबेरा = daybreak
सबेरा = prime
it is सबेरा...
अदा जी, आपने फ़िर दिखा दिया कि आप एक संवेदनशील ह्रदय रखती है। गजल और/या कविता की तो खैर ज्यादा समझ मुझे है नहीं, पर ऐसा लगता है कि आपका मन कुछ उद्वेलित है। यह अंदाजा इस बात से लगा रहा हूं कि ’a picture in the room is the picture of mind of the occupant', पता नही मैं सही हूं या नहीं।
ReplyDeleteहमारी जिंदगी में भी कई बे-नाम रिश्ते हैं
ReplyDeleteउन्हें हम इतनी शिद्दत से न जाने क्यूँ निभाते हैं
ये दिल इस दर्द के जज़्बात से जब भी लरजता है पकड़ कर डाल हम ख़ामोशियों के झूल जाते हैं
ye do sher dil k bahut bhaye, lekin poori ghazal bahut hi khoobsurat hai 'ada' ji !!
khoobsurat ghazal !!
ReplyDeletekavita dil men andar tak chali gayee, Aaj ke sach ki peerha kavi hriday hi samajh sakta hai.
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