तू प्यार मुझे तन्हाई कर
बढ़ के शाने पर रख दे सर
बढ़ के शाने पर रख दे सर
तू साथ है तो सब है गौहर
वर्ना है सब कंकर पत्थर
अब कौन ग़मों का हिसाब करे
बस खुशियों पर ही रक्खो नज़र
तेरा प्यार सुलगता है दिल में
आँखों में खुशनुमा है मंजर
इक सच्ची बात कही थी कल
सो आज चढ़ूँगी सूली पर
बस खुशियों पर ही रक्खो नज़र
तेरा प्यार सुलगता है दिल में
आँखों में खुशनुमा है मंजर
इक सच्ची बात कही थी कल
सो आज चढ़ूँगी सूली पर
बोला ही नहीं तू कितने दिन
पर बैठा रहा सिरहाने पर
पर बैठा रहा सिरहाने पर
गौहर = मोती
"अब कौन ग़मों का हिसाब करे
ReplyDeleteबस खुशियों पर ही रक्खो नज़र"
सुन्दर आशावादी भाव!
प्यार इसे ही तो कहते हैं..... जो नाराज़ हो कर भी साथ रहे.... वो प्यार ही क्या.... जो ज़रा सी बात पर रूठ कर चला जाये.... जिस प्यार में जिस दिन शिकायत ख़त्म हो जाये... तो समझ जाओ कि उस दिन प्यार ख़त्म.... नाराज़गी, मान-मनौवल , रूठना.... रूठ कर फिर प्यार करना .... यही तो प्यार है.... चंद दिन बात करने का मतलब यह नहीं है कि प्यार ख़त्म... हाँ! जिस दिन शिकायतें ख़त्म हो जाएँगी.... तो उस दिन प्यार ख़त्म.... नाराज़गी के दिनों में भी जो प्यार साथ रहे .... वही सच्चा प्यार है....
ReplyDeleteमैं तो आजकल सच्चे प्यार में हूँ.... अब किससे हूँ..... यह तो आपको पता ही है.....
बोला ही नहीं तू कितने दिन
ReplyDeleteपर बैठा रहा सिरहाने पर ....
यह आस जिन्दा रखने को काफी है ना ....
ग़मों का हिसाब कौन रखे ...हम तो खुशियों पर ही नजर रखते हैं हमेशा ...गम तो बस कुछ देर के मेहमान होते हैं ....बाँटने के लिए तो खुशियाँ ही हैं ...!!
बहुत बेहतरीन रचना, वाह!
ReplyDelete"बैठा रहा सिरहाने पर ..."ये किसका जादू सर पर चढ़ बोल रहा है भाई ज़रा मैं भी तो जानू !
ReplyDeleteबढियां कविता
बैठा रहा सिरहाने पर ...ये किसका जादू सर पर चढ़ बोल रहा है भाई ज़रा मैं भी तो जानू !
ReplyDeleteबढियां कविता ....
अदा जी !
ReplyDeleteअंतिम दोनों शेरों ( डर रहा हूँ कि महफूज भाई शेर कहने पर
नाराज न हो जांय ! ) में सूफियाना अहसास भर दिया आपने ! कुछ
याद आने लगा ---
@ इक सच्ची बात कही थी कल
सो आज चढ़ूँगी सूली पर ''
--- '' तू की बाग़ दी मूली हुसैना !
मंसूर कबूली सूली हुसैना ! ''
.
@ बोला ही नहीं तू कितने दिन
पर बैठा रहा सिरहाने पर
--- '' सिरहाने मेरे के आहिस्ता बोलो
अभी टुक रोते - रोते सो गया है | ''
.
आभार ,,,
सोरी ... टाइपिंग मिस्टेक से 'मेरे' हो गया है ,,, वहां '' मीर '' होगा वह उन्हीं
ReplyDeleteमहान शायर का शेर है ...
तू प्यार मुझे तन्हाई कर
ReplyDeleteबढ़ के शाने पर रख दे सर
waah ..........bahut hi sundar ptastuti.
अब कौन ग़मों का हिसाब करे
ReplyDeleteबस खुशियों पर ही रक्खो नज़र
बहुत सुन्दर अदा जी यही जीने का ढंग होना चाहिये बधाई
hnm....
ReplyDeleteकभी शायर की नज़र से ग़ज़ल जैसी इस शानदार रचना को देख रहे हैं...
तो कभी चित्रकार की नज़र से इन दो लाजवाब पेंटिंग्स को....
और कभी इन दोनों के अलावा एक तीसरी नज़र से इन दोनों को देख रहे हैं.....
तू प्यार मुझे तन्हाई कर
ReplyDeleteबढ़ के शाने पर रख दे सर
बहुत खुबसूरत नज़्म और कमाल की तस्वीरें..
मनोमस्तिष्क पर प्रेम ही सिर चढ़ के बोलता है ।
ReplyDeleteगहरी अभिव्यक्ति ।
आभार...!
अब कौन ग़मों का हिसाब करे
ReplyDeleteबस खुशियों पर ही रक्खो नज़र
Bahut khoob!
हम तो नि:शब्द हैं....
ReplyDeleteअब कौन ग़मों का हिसाब करे
ReplyDeleteबस खुशियों पर ही रक्खो नज़र
सच कहा,बिलकुल... ख़ूबसूरत रचना
ख़ूबसूरत रचना।
ReplyDeleteचौंक मत गर कहूँ कि
ReplyDeleteतू जो गा दे संग
तो फाग होली गुलाल हो
इस वक़्त न दिखा ये अंदाजे बयाँ
कि कल दिल में मलाल हो -
जो कहना था जिस वक़्त न कहे
शेर कहते रहे जब लगाने थे कहकहे।
माना कि बहुत रंग हैं तेरी इबारत में
हर्फ ही न रंगे इस मौसम तो क्या कहें।
इन मुक्तछ्न्दी बिखरे शेरों (अमरेन्द्र, महफ़ूज और गौतम राजरिशि जैसों से क्षमा सहित)के बारे में अपनी राय बताइए और इनमें कही गई बात को समझिए।
पेश किया है एक बेहूदी सी पैरोडी - तर्ज़ आल्हखंड (अब कह सकता हूँ क्यों कि सीरियस टाइप के लोग महफिल में हाजिरी बजा चुके हैं)
बारह बरस ले कुकुर जिएँ औ तेरह ले जिएँ सियार
एक महीना कविवर जिएँ आगे करते मरन बिचार।
..भाग जोगीरा फागुन है।
ha ha ha .. mahfooj ko khushee kyonki ustaad maan liye gaye .......
ReplyDeletebaau ko umar beetne ka afsos --- जो कहना था जिस वक़्त न कहे
शेर कहते रहे जब लगाने थे कहकहे ''
@ पूर्वोक्त पैरोडी ---
'' कविवर - मृत्यु - घोषणा कैसे कर सकता कोई , धिक्कार !
/ हे बाऊ ! तुम हर्फ़ ही रंगों कठिन है अर्थों का व्यापार || ''
ek aur behtareen prastuti.
ReplyDeleteek aur behtareen prastuti.
ReplyDeleteअदा साहिबा, आदाब
ReplyDeleteतू साथ है तो सब है गौहर
वर्ना है सब कंकर पत्थर...
अब कौन ग़मों का हिसाब करे
बस खुशियों पर ही रक्खो नज़र..
हर शेर दिल को छू गया.
bahut sundar ghazal !
ReplyDeletebahut sundar ghazal !
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ReplyDeletesari gazal hi achchhee thi di..
ReplyDeletelekin ye sher sabse jyada naya aur achchha laga..
बोला ही नहीं तू कितने दिन
पर बैठा रहा सिरहाने पर
तेरा साथ है तो मुझे क्या कमी है,
ReplyDeleteअंधेरों में रह कर भी मिल रही रौशनी है,
तेरा साथ है तो...
जय हिंद...
जरूर ही सूफियाना टच दे दिया है आपने !-
ReplyDelete"सच्ची बात कही थी कल
सो आज चढ़ूँगी सूली पर"
याद आ रहे जगजीत सिंह गाते हुए -
"जिसको सूली पे लटकते हुए देखा होगा
वक़्त आयेगा वही शख़्स मसीहा होगा..."
बेहतरीन रचना ! गिरिजेश भईया की उलटी बानी समझ रहा हूँ अब ! साफ भी करूँ - "हम न मरैं मरिहैं संसारा !"
बहुत बेहतरीन रचना, वाह!
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