Monday, February 8, 2010

पर बैठा रहा सिरहाने पर



तू प्यार मुझे तन्हाई कर
बढ़ के शाने पर रख दे सर
 
तू साथ है तो सब है गौहर 
वर्ना है सब कंकर पत्थर
 
अब कौन ग़मों का हिसाब करे
बस खुशियों पर ही रक्खो नज़र

तेरा प्यार सुलगता है दिल में
आँखों में 
खुशनुमा है मंजर

इक सच्ची बात कही थी कल
सो आज चढ़ूँगी सूली पर
 
बोला ही नहीं तू कितने दिन
पर बैठा रहा सिरहाने पर


गौहर = मोती

29 comments:

  1. "अब कौन ग़मों का हिसाब करे
    बस खुशियों पर ही रक्खो नज़र"

    सुन्दर आशावादी भाव!

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  2. प्यार इसे ही तो कहते हैं..... जो नाराज़ हो कर भी साथ रहे.... वो प्यार ही क्या.... जो ज़रा सी बात पर रूठ कर चला जाये.... जिस प्यार में जिस दिन शिकायत ख़त्म हो जाये... तो समझ जाओ कि उस दिन प्यार ख़त्म.... नाराज़गी, मान-मनौवल , रूठना.... रूठ कर फिर प्यार करना .... यही तो प्यार है.... चंद दिन बात करने का मतलब यह नहीं है कि प्यार ख़त्म... हाँ! जिस दिन शिकायतें ख़त्म हो जाएँगी.... तो उस दिन प्यार ख़त्म.... नाराज़गी के दिनों में भी जो प्यार साथ रहे .... वही सच्चा प्यार है....

    मैं तो आजकल सच्चे प्यार में हूँ.... अब किससे हूँ..... यह तो आपको पता ही है.....

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  3. बोला ही नहीं तू कितने दिन
    पर बैठा रहा सिरहाने पर ....

    यह आस जिन्दा रखने को काफी है ना ....

    ग़मों का हिसाब कौन रखे ...हम तो खुशियों पर ही नजर रखते हैं हमेशा ...गम तो बस कुछ देर के मेहमान होते हैं ....बाँटने के लिए तो खुशियाँ ही हैं ...!!

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  4. बहुत बेहतरीन रचना, वाह!

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  5. "बैठा रहा सिरहाने पर ..."ये किसका जादू सर पर चढ़ बोल रहा है भाई ज़रा मैं भी तो जानू !
    बढियां कविता

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  6. बैठा रहा सिरहाने पर ...ये किसका जादू सर पर चढ़ बोल रहा है भाई ज़रा मैं भी तो जानू !
    बढियां कविता ....

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  7. अदा जी !
    अंतिम दोनों शेरों ( डर रहा हूँ कि महफूज भाई शेर कहने पर
    नाराज न हो जांय ! ) में सूफियाना अहसास भर दिया आपने ! कुछ
    याद आने लगा ---
    @ इक सच्ची बात कही थी कल
    सो आज चढ़ूँगी सूली पर ''
    --- '' तू की बाग़ दी मूली हुसैना !
    मंसूर कबूली सूली हुसैना ! ''
    .
    @ बोला ही नहीं तू कितने दिन
    पर बैठा रहा सिरहाने पर
    --- '' सिरहाने मेरे के आहिस्ता बोलो
    अभी टुक रोते - रोते सो गया है | ''
    .
    आभार ,,,

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  8. सोरी ... टाइपिंग मिस्टेक से 'मेरे' हो गया है ,,, वहां '' मीर '' होगा वह उन्हीं
    महान शायर का शेर है ...

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  9. तू प्यार मुझे तन्हाई कर
    बढ़ के शाने पर रख दे सर

    waah ..........bahut hi sundar ptastuti.

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  10. अब कौन ग़मों का हिसाब करे
    बस खुशियों पर ही रक्खो नज़र
    बहुत सुन्दर अदा जी यही जीने का ढंग होना चाहिये बधाई

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  11. hnm....

    कभी शायर की नज़र से ग़ज़ल जैसी इस शानदार रचना को देख रहे हैं...
    तो कभी चित्रकार की नज़र से इन दो लाजवाब पेंटिंग्स को....

    और कभी इन दोनों के अलावा एक तीसरी नज़र से इन दोनों को देख रहे हैं.....

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  12. तू प्यार मुझे तन्हाई कर
    बढ़ के शाने पर रख दे सर
    बहुत खुबसूरत नज़्म और कमाल की तस्वीरें..

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  13. मनोमस्तिष्क पर प्रेम ही सिर चढ़ के बोलता है ।
    गहरी अभिव्यक्ति ।
    आभार...!

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  14. अब कौन ग़मों का हिसाब करे
    बस खुशियों पर ही रक्खो नज़र
    Bahut khoob!

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  15. अब कौन ग़मों का हिसाब करे
    बस खुशियों पर ही रक्खो नज़र
    सच कहा,बिलकुल... ख़ूबसूरत रचना

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  16. चौंक मत गर कहूँ कि
    तू जो गा दे संग
    तो फाग होली गुलाल हो
    इस वक़्त न दिखा ये अंदाजे बयाँ
    कि कल दिल में मलाल हो -
    जो कहना था जिस वक़्त न कहे
    शेर कहते रहे जब लगाने थे कहकहे।
    माना कि बहुत रंग हैं तेरी इबारत में
    हर्फ ही न रंगे इस मौसम तो क्या कहें।

    इन मुक्तछ्न्दी बिखरे शेरों (अमरेन्द्र, महफ़ूज और गौतम राजरिशि जैसों से क्षमा सहित)के बारे में अपनी राय बताइए और इनमें कही गई बात को समझिए।

    पेश किया है एक बेहूदी सी पैरोडी - तर्ज़ आल्हखंड (अब कह सकता हूँ क्यों कि सीरियस टाइप के लोग महफिल में हाजिरी बजा चुके हैं)

    बारह बरस ले कुकुर जिएँ औ तेरह ले जिएँ सियार
    एक महीना कविवर जिएँ आगे करते मरन बिचार।
    ..भाग जोगीरा फागुन है।

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  17. ha ha ha .. mahfooj ko khushee kyonki ustaad maan liye gaye .......
    baau ko umar beetne ka afsos --- जो कहना था जिस वक़्त न कहे
    शेर कहते रहे जब लगाने थे कहकहे ''
    @ पूर्वोक्त पैरोडी ---
    '' कविवर - मृत्यु - घोषणा कैसे कर सकता कोई , धिक्कार !
    / हे बाऊ ! तुम हर्फ़ ही रंगों कठिन है अर्थों का व्यापार || ''

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  18. ek aur behtareen prastuti.

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  19. ek aur behtareen prastuti.

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  20. अदा साहिबा, आदाब
    तू साथ है तो सब है गौहर
    वर्ना है सब कंकर पत्थर...
    अब कौन ग़मों का हिसाब करे
    बस खुशियों पर ही रक्खो नज़र..
    हर शेर दिल को छू गया.

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  21. This comment has been removed by a blog administrator.

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  22. sari gazal hi achchhee thi di..
    lekin ye sher sabse jyada naya aur achchha laga..
    बोला ही नहीं तू कितने दिन
    पर बैठा रहा सिरहाने पर

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  23. तेरा साथ है तो मुझे क्या कमी है,
    अंधेरों में रह कर भी मिल रही रौशनी है,
    तेरा साथ है तो...

    जय हिंद...

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  24. जरूर ही सूफियाना टच दे दिया है आपने !-
    "सच्ची बात कही थी कल
    सो आज चढ़ूँगी सूली पर"
    याद आ रहे जगजीत सिंह गाते हुए -
    "जिसको सूली पे लटकते हुए देखा होगा
    वक़्त आयेगा वही शख़्स मसीहा होगा..."

    बेहतरीन रचना ! गिरिजेश भईया की उलटी बानी समझ रहा हूँ अब ! साफ भी करूँ - "हम न मरैं मरिहैं संसारा !"

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  25. बहुत बेहतरीन रचना, वाह!

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