जामी मस्जिद
चौदहवीं शताब्दी के मध्य में भारत की सल्तनत फ़िरोज़ शाह तुगलक (१३५१-१३८८) के कुशल हाथों में रही ...इस्लाम के आगमन से लगभग डेढ़ शताब्दी तक देश का माहौल बड़ा ही अनिश्चित और हिंसा पूर्ण रहा ...लेकिन फ़िरोज़ शाह तुगलक के सैतीस वर्ष का शासनकाल अपेक्षाकृत शांतिमय था....फ़िरोज़ शाह ने यह शासन प्रखर बुद्धिवाले मोहम्मद बिन तुगल से प्राप्त किया था ...१३२७ में दिल्ली की आबादी दौलताबाद में... जो अब महाराष्ट्र में है...स्थान्तरित कर दी गई थी लेकिन...इस समय लोग दिल्ली वापिस आ गए थे...
फ़िरोज़ अत्यंत ही धर्मपरायण व्यक्ति था ...लेकिन मदिरापान का शौक रखता था ...उसे शिकार का बहुत शौक था और निर्माण के काम के प्रति रुझान भी...फ़िरोज़ ने किसी भी तरह की यंत्रणा पर प्रतिबन्ध लगाया हुआ था ...परन्तु धर्म-परिवर्तन को उनकी मान्यता थी...बल्कि धर्म-परिवर्तन करवाने वालों, और करने वालों को वो जज़िया कर से मुक्ति दे दिया करता था....इससे धर्म-परिवर्तन को प्रोत्साहन ही मिला था....इस्लाम के प्रति आगाध निष्ठा ने ही फ़िरोज़ को मंदिरों के स्थान पर मस्जिदों का निर्माण करने के लिए प्रेरित किया....उसकी शिक्षा और उसके परिवेश ने उसे धार्मिक असहिष्णुता से उबरने नहीं दिया....हिन्दुओं और मुसलामानों को सामान दृष्टि से देखने का अवसर २०० वर्ष बाद ही आया... जब शहंशाह अकबर ने गद्दी सम्हाली...
हौज़ ख़ास
फ़िरोज़ शाह को वास्तुकला से बहुत प्रेम था ...और उसके ही शासनकाल में प्राचीन निर्माणों का जीर्णोद्धार हुआ ...फ़िरोज़ ने नए निर्माणों की अपेक्षा पुराने निर्माणों को ठीक करने को वरीयता दी...
खलजी काल के जलाशय 'हौज़-ए-अलाई' का जीर्णोद्धार किया गया ..औए इसे 'हौज़ ख़ास' कहा गया...जो फ़िरोज़ शाह की कब्रगाह बना....
जामी मस्जिद का प्रवेश द्वार
एक नया नगर ..दिल्ली का पांचवा शहर 'फिरोजशाह कोटला' १३५४ में बनाया गया ....यमुना के तट पर निर्मित चतुर्भुजों का यह नगर हौज़ ख़ास से पीर ग़ायब (कहा जाता है किएक पीर ॰गायब हो गए थे ) तक फैला हुआ था.....'पीर ग़ायब' इलाका अब हिंदूराव अस्पताल परिसर में आता है .....इस नगर की दीवारें तो बहुत पहले ही ग़ायब हो गयी लेकिन महल 'कुश्क-ए-फ़िरोज़' का मलबा अब भी शेष है ...इसके उद्यानों में अब क्रिकेट मैच आयोजित होते हैं.....तीन आयताकार क्षेत्रों में बसा यह महल अब अवशेष मात्र रह गया है... लेकिन इसी में महल-ए-बड़ी, दीवान-ए-ख़ास, निजी महल, जामी मस्जिद और हवा महल हुआ करता था.....अब कुछ भी बाकी नहीं रहा...न दर्पण कक्ष, न भित्ति चित्र.....तैमूर के प्रहारों से जा बच पाया है उसमें जामी मस्जिद और हवा महल के ऊपर अशोक स्तम्भ शामिल है....
जामी मस्जिद, जो अपने समय की विशालतम मस्जिद थी नियमित रूप से प्रयुक्त होती रही थी...फ़िरोज़ शाह को इस मस्जिद से बेपनाह प्यार था....
जामी मस्जिद का बाहरी हिस्सा
१३९८ में तैमूर लंग दिल्ली आया ...अपने आतंक के बल पर उसने अपने साम्राज्य का निर्माण किया ....वह बग़दाद से होता हुआ भारत पहुंचा था...अपने पीछे उसने भयंकर विनाश का खेल खेला था ....दिल्ली को १७ दिसंबर १३९८ को इस दुर्दांत ने रौंदा और खुद को बादशाह घोषित किया ....तैमूर इसी जामी मस्जिद में इबादत किया करता था....वह जामी मस्जिद की वास्तुकला से इतना प्रभावित था... कि वह भारत के शिल्पकारों को लेकर समरकंद गया..ताकि वहां भी ऐसा ही निर्माण कर सके......एक शताब्दी और पच्चीस वर्षों के बाद उसका एक वंशज भारत लौटा (बाबर .....शायद आप लोग बताइयेगा सही है या नहीं, जिसने मुग़ल सल्तनत कि स्थापना की ) और तैमूर का अंश हमेशा के लिए भारत के इतिहास में समाहित हो गया...
हवा महल के कमरे पिरामिडनुमा है और हवा महल गुप्त गलियारों द्वारा जामी मस्जिद से जुड़ा हुआ है...यहाँ शायद स्त्रियाँ रहती थीं...यहीं अशोक स्तम्भ भी गड़ा हुआ है...
हवा महल की छत और अशोक स्तम्भ
अशोक स्तम्भ पर आलेख
बादशाह फ़िरोज़ ने शायद अनजाने में ही एक शांति के पुजारी सम्राट अशोक के चिन्ह से अपने रिहाइश को अलंकृत कर लिया था ...सबकुछ भग्नावस्था में है...लेकिन देखकर लग ही जाता है कि...इमारत बुलंद थी....!!
दिल वालों की दिल्ली के बारे में कई नयी जानकारिया दे दी आपने ....
ReplyDeleteहम तो जमा मस्जिद और जामी मस्जिद दोनों के एक ही माने बैठे थे ...
इतिहास मुझे भी बहुत प्रिय है और आपकी इन प्रविष्टियों के माध्यम से एक बार फिर से इतिहास की पुस्तकों के पन्ने पलटे जा रहे हैं ...
ऐतिहासिक स्थलों पर भ्रमण का महत्व तब और भी बढ़ जाता है जब आपको खुद को इतिहास की जानकारी भी हो ....बहुत रोचक और ज्ञानवर्धक जानकारी के लिए आभार ... ?? संभव ही नहीं है ...:)
इतिहासविद और पुरातत्ववेत्ता प्रोफेसर अदा आपका कनाडा में रहते हुए हम दिल्ली के कूपमंडूकों को दिल्ली के इतने सुंदर और गौरवशाली अतीत से रू-ब-रू कराने के लिए आभार...
ReplyDeleteजय हिंद...
हम तो इतिहास में बहुत कच्चे हैं। दिल्ली के बारे में यह जानकारी अच्छी लगी!
ReplyDeleteवाह इतिहास का चक्का घूम गया है शायद .....यहाँ तो अब इतिहास दर्शन शुरू है .....
ReplyDeletenice
ReplyDeleteफ़िरोज़ अत्यंत ही धर्मपरायण व्यक्ति था ...लेकिन मदिरापान का शौक रखता था ..
ReplyDeleteपोस्ट पढ़ रहे थे बड़े शौक से..लेकिन इस लेकिन पर आकर अटक गए..
फिलहाल तो इस 'लेकिन' का मतलब सोच रहे हैं हम...
इतिहास का बड़ा लम्बा और सुहाना सफर करा दिया जी आपने ।
ReplyDeleteसुन्दर सचित्र वर्णन ।
आभार ।
आपके रहते दिल्ली घूम ले रहे हैं मय जानकारी..अब तक तो यूँ ही घूमते थे, वाह!
ReplyDeleteअच्छी जानकारी !!
ReplyDeleteबहुत अच्छी जानकारी....आभार!!
ReplyDeletehttp://kavyamanjusha.blogspot.com/
दिल्ली के बारें में एतिहासिक जानकारी देने के लिए बहुत बहुत शुक्रिया .
ReplyDeleteaapakee pichalee post bhee kafee jaankaree de gayee itihaas kee......
ReplyDeleteअच्छी जानकारी दी।आभार।
ReplyDeleteइतिहास का बड़ा लम्बा और सुहाना सफर करा दिया जी आपने ।
ReplyDeleteसुन्दर सचित्र वर्णन ।
आभार ।
क्या बात है आजकल इतिहास की खुदाई चल रही है अदा जी ! :) बढ़िया जानकारी अच्छा लगा पढना
ReplyDeleteअदा जी ,
ReplyDeleteटाइपिंग की गलतियाँ है , जिसे गिरिजेश जी गंभीरता से लेते हैं , अतः
इस तरफ सुधार की जरूरत है ..
हाँ यह सही है की बाबर ( मुग़ल साम्राज्य का संस्थापक ) में नस्ल - तैमूर
का लहू था और वह (पिता-पक्ष से )तुर्क और सुन्नी मुसलमान था |
.... और आज तथ्यात्मक गलतियाँ नहीं हैं ... यह अच्छा लग रहा है ... इतिहास
को सरस बना कर लिख रही हैं , यह सराहनीय है ...
दिल्ली पर जानकारी अच्छी लगी ...
दिल्ली - लूट पर बी.बद्र जी का एक शेर याद आ रहा है :
'' दिल की बस्ती पुरानी दिल्ली है ,
जो भी गुजरा उसी ने लूट लिया | ''
................................. आभार ,,,
शानदार पोस्ट
ReplyDeleteस्मारकों का चयन भी सार्थक है। दिल्ली की नींव हैं ये इमारतें। एक चिथड़ा सुख में निर्मल कहते हैं कि बिना खंडहरों के शहर वैसे ही है जैसे बिना नींव के मकान।
यह दिल्ली दर्शन तो शानदार जा रहा है....बहुत अच्छी जानकारी
ReplyDeletedelhi ke gumbado aur monuments ko dekha karte hai...lekin inke itihas ka itna goodh gyan nahi hai...so ab jab bhi in monuments ko dekhenge aapki di gayi jankariya aur aap hamare sath honge di.
ReplyDeletethanks a lot.
आपके द्वारा दी गई जानकारी बहुत रोचक है। अब इन स्थानों को देखेंगे तो एक नई नजर से और नये नजरिये से। आभार।
ReplyDeleteदीदी चरण स्पर्श
ReplyDeleteहममममममम दिल्ली में तो हम रहते हैं परन्तु इतनी जानकारीं हमे नहीं हुई आजतक । बहुत ही बढिया पोस्ट लगी । और हाँ आपकी आवाज में कुछ सुने हुए बहुत दिंन हो गये है , अगली पोस्ट कुछ सुन्दर आवाज और गीतो के साथ ।
दी..
ReplyDeleteतैमूर लंग और चंगेज़ खान एक वंश के थे.. बाबर का तो मैंने नहीं सुना..
जय हिंद... जय बुंदेलखंड...
अदा जी, हमारी ही दिल्ली हमीं से म्याऊँ :)
ReplyDeleteमेरा मतलब है हमारी दिल्ली के इतिहास से पहचान कराने का शुक्रिया. अगली कड़ी का इंतज़ार रहेगा.
जानकारी भरी प्रविष्टि । ऐसी प्रविष्टियाँ आपकी रूचि और आपके सरोकार दोनों स्पष्ट करती हैं ब्लॉगिंग में ।
ReplyDeleteआभार ।
चित्रों सहित ऐतिहासिक वर्णन बहुत अच्छा लगा.
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