(एक पुरानी प्रविष्ठी)
लड़की !
यही तो नाम है हमरा....
पूरे २० बरस तक माँ-पिता जी के साथ रहे...सबसे ज्यादा काम, सहायता, दुःख-सुख में भागी हमहीं रहे... कोई भी झंझट पहिले हमसे टकराता था फिर हमरे माँ-बाउजी से ...भाई लोग तो सब आराम फरमाते होते थे.....बाबू जी सुबह से चीत्कार करते रहते थे उठ जाओ, उठ जाओ...कहाँ उठता था कोई....लेकिन हम बाबूजी के उठने से पाहिले उठ जाते थे...आंगन बुहारना ..पानी भरना....माँ का पूजा का बर्तन मलना...मंदिर साफ़ करना....माँ-बाबूजी के नहाने का इन्तेजाम करना...नाश्ता बनाना ...सबको खिलाना.....पहलवान भाइयों के लिए सोयाबीन का दूध निकालना...कपडा धोना..पसारना..खाना बनाना ..खिलाना ...फिर कॉलेज जाना....
और कोई कुछ तो बोल जावे हमरे माँ-बाबूजी या भाई लोग को ..आइसे भिड जाते कि लोग त्राहि-त्राहि करे लगते.....
हरदम बस एक ही ख्याल रहे मन में कि माँ-बाबूजी खुश रहें...उनकी एक हांक पर हम हाज़िर हो जाते ....हमरे भगवान् हैं दुनो ...
फिर हमरी शादी हुई....शादी में सब कुछ सबसे कम दाम का ही लिए ...हमरे बाबूजी टीचर थे न.....यही सोचते रहे इनका खर्चा कम से कम हो.....खैर ...शादी के बाद हम ससुराल गए ...सबकुछ बदल गया रातों रात .....टेबुलकुर्सी, जूता-छाता, लोटा, ब्रश-पेस्ट, लोग-बाग.......हम बहुत घबराए.....एकदम नया जगह...नया लोग....हम कुछ नहीं जानते थे ...भूख लगे तो खाना कैसे खाएं......बाथरूम कहाँ जाएँ.....किसी से कुछ भी बोलते नहीं बने.....
जब 'इ' आये तो इनसे भी कैसे कहें कि बाथरूम जाना है.....इ अपना प्यार-मनुहार जताने लगे और हम रोने लगे.....इ समझे हमको माँ-बाबूजी की याद आरही है...लगे समझाने.....बड़ी मुश्किल से हम बोले बाथरूम जाना है....उ रास्ता बता दिए हम गए तो लौटती बेर रास्ता गडबडा गए थे ...याद है हमको....
हाँ तो....हम बता रहे थे कि शादी हुई थी......बड़ी असमंजस में रहे हम .....ऐसे लगे जैसे हॉस्टल में आ गए हैं....सब प्यार दुलार कर रहा था लेकिन कुछ भी अपना नहीं लग रहा था.....
दू दिन बाद हमारा भाई आया ले जाने हमको घर......कूद के तैयार हो गए जाने के लिए...हमरी फुर्ती तो देखने लायक रही...मार जल्दी-जल्दी पैकिंग किये... बस ऐसे लग रहा था जैसे उम्र कैद से छुट्टी मिली हो.....झट से गाडी में बैठ गए ..और बस भगवान् से कहने लगे जल्दी निकालो इहाँ से प्रभु.......घर पहुँचते ही धाड़ मार कर रोना शुरू कर दिए ....माँ-बाबूजी भी रोने लगे ...एलान कर दिए की हम अब नहीं जायेंगे .....यही रहेंगे .....का ज़रूरी है कि हम उहाँ रहें.....रोते-रोते जब माँ-बाबूजी को देखे तो ....उ लोग बहुत दूर दिखे........माँ-बाबूजी का चेहरा देखे ....तो परेसान हो गए ...बहुत अजीब लगा......ऐसा लगा उनका चेहरा कुछ बदल गया है.......थोडा अजनबीपन आ गया है.....रसोईघर में गए तो सब बर्तन पराये लग रहे थे......सिलोट-लोढ़ा, बाल्टी....पूरे घर में जो हवा रही....उ भी परायी लगी ...अपने आप एक संकोच आने लगा.......जोन घर में सबकुछ हमरा था ....अब एक तिनका उठाने में डरने लगे.... लगा इ हमारा घर है कि नही !..........ऐसा काहे ??? कैसे ??? हम आज तक नहीं समझे....
यह कैसी नियति ??......कोई आज बता ही देवे हमको ....कहाँ है हमरा घर ??????
और अब एक गीत ...असल में इस गीत को गाया रफी साहब ने है...लेकिन आज हम कोशिश कर रहे हैं..और बताइयेगा ज़रूर कैसा लगा !!
'आपके हसीं रुख पर आज नया नूर है, मेरा दिल मचल गया तो मेरा क्या कुसूर है'
'आपके हसीं रुख पर आज नया नूर है, मेरा दिल मचल गया तो मेरा क्या कुसूर है'
बहुत सुंदर गायन.
ReplyDeletebahut khoob..
ReplyDeleteaur geet bhi madhur hai..
deshj bhasha ke bol bde mithe hain apni bhash me bat krna hi to apntv hai bnavt rhit hai yhi is ka saundry hai
ReplyDeleteriti nitiyan ek do din me n hi bnti hain n hi bigdti hain smy une apne aap fer bdl kr leta hai jo aap maan ke smy tha vaisa ab aisa nhi hai aur jo aap ke smy rhega vh aage nhi hoga
smy pr kisi ka jor nahi chlt hai
dr.vedvyathit@gmail.com
http://sahityasrjakved.blogspot.com
sanvednaon ka rekhchitra sarahniy hai. mujhe to aisa laga ki shayad har ladki/aurat ki yahi byatha katha hai. meri chhoti ya badi behan ya pados ki kisi bhi ladki par har akshar pura satik baithata hai. likhne wale ko meri shubhkamnayen aur mera namaskar. shivraj 09756798010
ReplyDeleteमान्यताएं अब कुछ कुछ बदल रही हैं
ReplyDeleteKya kahu di, apane is lekha ke madhyam se aapane na sirf aapki hindustaan ki har ke beti ki manodsha ko ujaagar kiya hai ...Sundar geet!
ReplyDeletePahali Pahali Hindi blogar Mohadya ..Badhai :)
’नई बोतल में पुरानी शराब’। बनाने वाले ने तो मुहावरा पता नहीं किस संदर्भ में बनाया था पर कहते हैं कि शराब जैसे-जैसे पुरानी होती जाती है, असर बढता जाता है। आज ये पुरानी पोस्ट देखकर लगता है असर और ज्यादा हो गया है।
ReplyDeleteहां नहीं तो....
और हां, आपकी पोस्ट का महत्व इस बात से भी सिद्ध हो जाता है कि हमारे जैसे सदा के बैकबेंचर्स भी शुरू में ही आपकी तारीफ़ करने आ गये।
ReplyDeleteYah post padhee thee..lekin phir ekbaar padh gayi..moh nahee rok payi..
ReplyDeleteAlways ahaa..ahaa...dearie !!:)
ReplyDeleteबहुत अच्छी प्रस्तुति।
ReplyDeleteNikhil ji ne kaha..
ReplyDeleteada ji,
bahut hi sundar aur marmik, yah har ladki ki katha hai.
apka gaayan hamesha ki tarah atisundar.
pata nhai kyon aj kal men comment nahi kar pata hun,bahut der se bhejne ki koshish kar raha hun.keripa karke ise chhap den.
abhaar
लड़की के मनोभावों को दर्शात बहुत उम्दा अभिव्यक्ति!!
ReplyDeleteरोते-रोते जब माँ-बाबूजी को देखे तो ....उ लोग बहुत दूर दिखे.
..शानदार!!
गाया तो खैर हमेशा की तरह बेहतरीन!
aap ki lekhne bahut aaci hai
ReplyDeleteअब हम अपनी घरवाली की व्यथा समझ सकते हैं, आपकी बातों से..
ReplyDeleteहम तो आपकी आवाज पर लट्टू हो चुके हैं।
Ada,
ReplyDeleteyou are really a versatile writer at your own place,and a good human being.I feel like I was there, standing besides you when you wept to your parents. I ask some times a question to myself, 'how females adopt a entire new home in so short time?Men are not that much loving and caring to them,ordinarily.'
In our 27 years of married life my wife has been offered almost every thing better then her father's house, and we strongly love each other, but I haven't yet replaced her father's place in her heart. I realized that 'you can not be a father to the girl by just providing material things or loving her, it is some thing more then that.'
Some of comment on this blog says that 'Manyata'e Kuchha Badal Rahi Hai',I disagree with it.In indian society it still has it's strong roots. Now we burden females twice,with home and job.Still, 'Bhais' to aaram hi farmate hai.
Whenever I see giggling small poor girl in my clinc, I worried,for some day her smile may fade away by male dominant society. I am happy to know that you have reached in happiness so far in your life.
Your blog made my eyes slightly moist with tears and reminds me of a song, I have never been capable to listen without shredding tears,
'Abke baras bhejo bhaia ko babaul, aake mujhe le jaaye.'
Thanks for renewing my thought process on subject.
सुंदर...
ReplyDeleteWaah Di.. dobara padha lekin abhi bhi utna hi taza laga ye lekh.. aur gane ka to kahna hi kya.. :)
ReplyDeleteJai Hind...
ये बार बार पुरानी प्रविष्टि स्वीकार नहीं की जायेगी . ...हमारा पुराना कमेन्ट रिलीज किया जाए ...:):)
ReplyDeleteहाँ...गीत आप कितनी बार भी सुनवा दें ...वैसे भी हमारे पास आपके बहुत सारे गाने हैं ...सुनते ही रहते हैं ...:):)
शानदार आलेख और बेहतरीन गीत. शुभकामनाएं.
ReplyDeleteरामराम.
अदा जी,
ReplyDeleteबहुत मर्मस्पर्शी लिखा है,
आप की पुरानी पोस्ट पढनी पड़ेगी.
एक दम से कितना बदल जाता है सब कुछ!
पढ़कर अच्छा लगा!
रऊआ का घर उहाँ है जहाँ तोहार जिया हैं । आजकी रचना बहुतय बढ़िया लगा ।
ReplyDeleteबहुत मार्मिक और यथार्थ चित्रण.... ये एक स्त्री ही सह सकती है ... एक ही जीवन में दो दो जन्म ..
ReplyDeleteबहुत हृदयस्पर्शी
har baar rulana accha lagta hai kya aapko ??
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