Monday, February 15, 2010

होली के रंग ....उनकी आँखों की दुनिया.....




१.
कितने रंग-बिरंगे 
तन हैं
और मन  !!
कुछ धवल 
कुछ मटमैले 
और कुछ
कोलतार से काले...





२.
हर साल होली आती है
नए रंग लिए
और मिला देती है
कुछ रंग,
पिछले सालों के भी
चुपके से ....




३.
चौराहे पर धधक रहे हैं 
लकड़ी के टाल
फिर भी,
बच निकली, होलिका !
और प्रह्लाद, भस्म हो गया !
एक ग्लास पानी
तक गर्म नहीं कर पातीं
ये टनों लकडियाँ !
क्या मिलायेंगी ख़ाक में ....
होलिका को !




फिल्म : चिराग
संगीतकार : मदन मोहन
गीतकार : मजरूह सुल्तानपुरी
आवाज़ : लता

आवाज़ इस पोस्ट पर....स्वप्न मंजूषा शैल 'अदा'

तेरी आँखों के सिवा दुनिया में रक्खा क्या है
ये उठें सुबह चले, ये झुकें शाम ढले
मेरा जीना मेरा मरना इन्हीं पलकों के तले
तेरी आँखों के सिवा ...

ये हों कहीं इनका साया मेरे दिल से जाता नहीं
इनके सिवा अब तो कुछ भी नज़र मुझको आता नहीं
ये उठें सुबह चले ...

ठोकर जहाँ मैने खाई इन्होंने पुकारा मुझे
ये हमसफ़र हैं तो काफ़ी है इनका सहारा मुझे
ये उठें सुबह चले ...

दोनों प्लेयेर्स में से किसी में भी सुने लें...

27 comments:

  1. एक ग्लास पानी
    तक गर्म नहीं कर पातीं
    ये टनों लकडियाँ ??
    क्या ख़ाक में मिलायेंगी....
    होलिका को ??

    -बहुत उम्दा भाव!! तीनों रचना!!

    गाना भी बहुत बढ़िया गाया है.

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  2. Teenon rachnayen ek se badhkar ek... chitra holi ki yaad taza karte hain to wahin... ye gana bachpan kee.. :) Di
    Jai Hind

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  3. क्षणिकाओं पर संगीत की टाप ड्रेसिंग -मजा आ गया

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  4. अदा जी,
    आप भी होली के मोड (mood नहीं mode)में आ ही गईं...

    रंगरिजवा तू रंग ऐसी चुनरी हमार,
    अरे जाते बिजे हरजाई सैंया हमार,
    रंग ऐसा नहीं डार, करू बिनती तोहार,
    रंगरिजवा तू रंग ऐसी चुनरी हमार...

    जय हिंद...

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  5. गहन भाव..

    गाने में तो मजा आ गया।

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  6. तीसरी क्षणिका ने बहुत लुभाया ।
    खूबसूरत ।
    और गाना जो आपने गाया है, वह तो सदा की तरह अदा-बेहतरीन संकलन में स्थान पायेगा । मैंने तो अनगिन बार सुनते हुए आपके गीत अपने को ’प्रथम रश्मि’ की तरफ उन्मुख पाया है । आपके बहुत से गानों को सुनने के बाद लौट कर फिर एक बार ’प्रथम रश्मि’ सुनने का मन करता है । अभी जा रहा हूँ सुनने ।

    गाने की लाइन के अंत में "रखा क्या है" का स्वर-संयोजन खूब जमा ।

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  7. तीनों क्षणिकाएं सुन्दर..लाजवाब...
    लेकिन बीच वाली...

    कुछ रंग,
    पिछले सालों के भी
    चुपके से ....


    हम पर तो कहर बन कर टूटी है......!
    भूलते भूलते भी आपने दशकों पुरानी होली याद दिला दी...

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  8. सुन्दर सुन्दर चित्र! विशेषकर कृष्ण गोपिकाओं वाला जिसे देखकर बरबस होठ गुनगुना उठेः

    बाजत झांझ मृदंग ढोल डफ मंजीरा शहनाई ना
    हाँ प्यारे ललना मंजीरा शहनाई ना
    हिलमिल फाग परस्पर खेलैं शोभा बरनि ना जाई ना
    आज श्याम संग सब सखियन मिलि ब्रज में होली खेलैं ना


    उससे सुन्दर अभिव्यक्ति!

    और सबसे सुन्दर आपका गीत!

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  9. @ मन !!कुछ कालेकुछ और कालेऔर कुछकोलतार से काले...

    प्रभु मेरे अवगुन चित न धरो।

    @ एक ग्लास पानीतक गर्म नहीं कर पातीं ये टनों लकडियाँ !

    कनाडा में बहुत ठंड पड़ती है न ।
    ... हा हा सर र र र र र र

    'प्रहलाद' को 'प्रह्लाद' कीजिए।

    क्षणिकाओं में एक परिचित सी लय होती है। आज तक अबूझ ही रही यद्यपि प्रयोग करता रहा हूँ। आप जरा जोर लगाइए - शायद गुथ्थी सुलझ जाय।

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  10. अरे वाह दीदी क्या बात है , बैक टू बैक गाना मजा आ गया , वैसे अबकी मेरा होली बहुत ही बुरा बितने वाला है क्योंकि अबकी होली पर घर नहीं जा पा रहाt । आपकी कविता भी बहुत अच्छी लगी ।

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  11. bahut gahare bhav liye thee aapkee ye rachana.acchee lagee

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  12. लेख , चित्र , और गीत ...तीनो बहुत खूब .

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  13. teenon chhanikaayein lajwaab hain, aur geet ki to baat hi kya, bahut madhur,

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  14. तीनो क्षणिकाएं बहुत सुन्दर हैं....और गाना तो हमेशा की तरह ख़ूबसूरत

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  15. तीनो अति सुन्दर ---चित्र , क्षणिकाएं और गीत।
    होली के रंग देखकर मज़ा आ गया अदा जी।

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  16. हर साल होली आती है
    नए रंग लिए
    और मिला देती है
    कुछ रंग,
    पिछले सालों के भी
    चुपके से ....
    बहुत सुन्दर.

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  17. एक ग्लास पानी
    तक गर्म नहीं कर पातीं
    ये टनों लकडियाँ !
    क्या मिलायेंगी ख़ाक में ....
    होलिका को
    jabardastt
    baki kashanikayen bhi bahut umda bhav liye hain adaji

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  18. तीसरी क्षणिका को पढ़ते हुए आपकी मिथकों - पौराणिक
    चरित्रों के साथ नयी संवेदना को रखने की विशेषता का
    अहसास मिलता है ....
    आज का गीत भी गजब का रहा .. आवाज का जादू आप चढ़ाती
    जा रहीं .. एक दिन सर चढ़ कर बोलने लगेगा ! ... याद है कुछ !

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  19. अदा जी इतने सुंदर सुंदर रंग थालो मै भरे है, लेकिन हमारे यहां तो मिलते नही थोडा थोडा रंग हमे भेज दो, हम ने होली मनानी है ६ मार्च को, सच मै मजा आ जायेगा, आप का गीत भी बहुत सुंदर लगा आप की आवाज मै

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  20. अदा साहिबा, आदाब
    होली के रंगों की ये भी अलग छटा बिखेरी है आपने

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  21. bhai me to chup hi rahungi..kuchh nahi bolungi...coz mujhe to gane sunNe se hi fursat nahi mil rahi...kya karu ada di...ab aapne itte acchhe acchhe gane sunNe ko diye he to hame aur kuchh nahi akkil me aa raha....bas in ankho k sive.....
    aur ye he reshmi julfo ka dhua....waaaaaaaaaaaaaaaaaaah
    waaaaaaaaaaaaaaaah
    waaaaaaaaaaaaaaaaaah
    bas aur kuchh nahi...sunNe do mujhe.

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  22. माफ किजिये २ दिन से बहार गई थी .....आज पडी आपकी यह रचना, अच्छी है! गाना तो और भी अच्छा है!

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  23. अभी होली आयी भी नहीं और आप रंगों में रंग गयी?

    दर असल आपका मन एक रंगों से भरा थाल है, और साल भार आप आपने कवित्व से, व्यंग से और कोमल स्वरों से अलग अलग रंगों के फूल भिखेरते हो.

    ये गाना हमेशा की तरह अच्छा लगा. इसपर अलग से लिखा जा सकता है.

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  24. अभी होली आयी भी नहीं और आप रंगों में रंग गयी?

    दर असल आपका मन एक रंगों से भरा थाल है, और साल भार आप आपने कवित्व से, व्यंग से और कोमल स्वरों से अलग अलग रंगों के फूल भिखेरते हो.

    ये गाना हमेशा की तरह अच्छा लगा. इसपर अलग से लिखा जा सकता है.

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  25. आपकी आवाज़ में कोमलता है, जो संवेदना भरे, रूहानी एहसास लिये गीतों के लिये एकदम माफ़िक है.

    दर्द भरे गीतों में आपके स्वर की मासूमियत एक अलग पेथोस निर्माण कर सकती है. कभी ऐसा ही कोई गीत गायियेगा.

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