मिथिलेश
,
ब्लॉग जगत के छुटकू ब्लॉगर ने बहुत प्यार से कहा था, दीदी बहुत दिनों से आपकी आवाज़ नहीं सुनी...और फिर अमरेन्द्र
ने भी उसके सुर में सुर मिला दिया, अरे बाबा एक नाम नहीं लिया तो मेरा गला दबा देगी वो वाणी, सबसे पहले उसने ही कहा था गाने के लिए ..सॉरी, भूल हो गई देवी, वाणी ने भी कहा था बाबा, लेकिन क्या करें समय ही नहीं मिल पाता है, और अगर मिल भी जाए तो मूड की बात है.....
समीर
जी, ने कब से कहा है एक गीत गाने को बस उनको झांसा दिए जा रहे हैं हम, यह थोड़ी पहले की पोस्ट है आज इसी से काम चलाते हैं, वैसे भी आप सभी तो लाल गुलाब लेकर ना जाने कहाँ-कहाँ दौड़ रहे होंगे, कोई लाल गुलाब लेने में बीजी होगा कोई देने में, फुर्सत किसे होगी आज पोस्ट पढने की, प्यार-प्रीत पर कुछ लिखने की हिम्मत हम नहीं कर पाते, काहे की उस मामले में हमरा हाथ तनी तंग है, इसलिए ये चलेबुल पोस्ट हमरे काम आ जायेगी...पोस्ट कुछ इस तरह है.....एक तो हम लड़की पैदा हुए, दूसरे मध्यमवर्गीय परिवार में, तीसरे ब्राह्मण घर, चौथे बिहार में और पांचवे थोडा बहुत टैलेंट लिए हुए, तो कुल मिला कर फ्रस्ट्रेशन का रेसेपी अच्छा रहा. याद है हॉल में सिनेमा देखने को मनाही रही, काहे कि उहाँ पब्लिक ठीक नहीं आती है, सिनेमा जाओ तो भाइयों के साथ जाओ, तीन ठो बॉडीगार्ड, और पक्का बात कि झमेला होना है, कोई न कोई सीटी मारेगा और हमरे भाई धुनाई करबे करेंगे, बोर हो जाते थे, सिनेमा देखना न हुआ पानीपत का मैदान हो गया...
इ भी याद है स्कूल से निकले नहीं कि चार गो स्कूटर और मोटर साईकिल को पीछे लग जाना है, हम रिक्शा में और पीछे हमरी पलटन, स्लो मोसन में, घर का गली का मुहाना आवे और सब गाइब हो जावें....
एक दिन एक ठो हिम्मत किया था गली के अन्दर आवे का, आ भी गया था...और बच के चल भी गया, बाकि मोहल्ला प्रहरियों का नज़र तो पड़िये गया था....
दूसर दिन उन जनाब की हिम्मत और बढ़ी, फिर चले आये गल्ली में, हम तो गए अपना घर बाद में पता चला उनका वेस्पा गोबर का गड्ढा में डूबकी लगा गया, निकाले तो थे बाद में, बाकि काम नहीं किया शायिद, काहे की उ नज़र आये ....वेस्पा नहीं.....
हम गाना गाते थे, और हमरे बाबू जी रोते थे, इसका बियाह कैसे होगा इ गाती है !!! आईना के आगे २ मिनट भी ज्यादा खड़े हो जावें तो माँ तुरंते कहती थी "इ मेन्जूर जैसे का सपरती रहती हो" माने इ कहें कि चारों चौहद्दी में पहरा ही पहरा, गीत गावे में भी रोकावट था, खाली लता दीदी को गा सकते थे, और हमको आशा दीदी से ज्यादा लगाव था, कभी गाने को नहीं मिला आशा दीदी का चुलबुला गीत सब, सब बस यही कहते रहे, इ सब अच्छा गीत नहीं है, अच्छा घर का लड़की नहीं गाती है इ सब, हम आज तक नहीं समझे कि गीत गावे से अच्छा घर का लड़की बुरी कैसे हो जाती है, गीत गावे से चरित्र में धब्बा कैसे लगता है, उस हिसाब से तो आशा जी का चरित्र सबसे ख़राब है, फिर काहे लोग उनका गोड़ में बिछे हुए हैं, बस यही बात पर आज हम गाइए दिए हैं इ गीत, अब आप ही बताइए, इसको गाकर हम कोई भूल किये हैं का.....का हमरी प्रतिष्ठा में कोई कमी आएगी आज के बाद ????
फिल्म : मेरे सनम
आवाज़ : आशा भोंसले
गीतकार : मजरूह सुल्तानपुरी
संगीतकार : ओ.पी. नैय्यर
सिनेमा के परदे पर गायीं हैं 'मुमताज़'
और ईहाँ आवाज़ है हमारी.....स्वप्न मंजूषा 'अदा' ...
ये है रेशमी
जुल्फों का अँधेरा न घबराइये
जहाँ तक महक है
मेरे गेसुओं के चले आइये
सुनिए तो ज़रा जो हकीकत है कहते हैं हम
खुलते रुकते इन रंगीं लबों कि कसम
जल उठेंगे दिए जुगनुओं कि तरह २
ये तब्बस्सुम तो फरमाइए
ला ला ला ला ला ला ला ला
प्यासी है नज़र ये भी कहने की है बात क्या
तुम हो मेहमाँ तो न ठहरेगी ये रात क्या
रात जाए रहे आप दिल में मेरे २
अरमाँ बन के रह जाइए.
ये है रेशमी
जुल्फों का अँधेरा न घबराइये
जहाँ तक महक है
मेरे गेसुओं के चले आइये
खूब गाओ..नजर में है ही..भूला नहीं हूँ न पैन्डिंग काम. :)
ReplyDeleteबढ़िया गाया है, अच्छा लगा.
अम्मा बाबू जी को कितना परेशान की होंगी, सब समझ आ रहा है...
बाकी सब पर तो कुछ नहीं कहना लेकिन 'ब्रह्मण' को ब्राह्मण कर लीजिए। वैसे इस शब्द का उच्चारण 99.99% लोग ग़लत ही करते हैं। जाने क्या सूझता था हमारे पुरखों को जो ऐसे शब्द गढ़ देते थे !
ReplyDeleteआप से भी अनुरोध है कि अपनी सुरीली आवाज़ में इस शब्द का दस बार उच्चारण कर ऑडियो पोस्ट कीजिए।
...मुस्कुरा रहे हैं और एक छोटा सा कोस्चन दिमाग में आ रहा है - ये बताइए घर के भीतर ढेले नहीं गिरते थे? खत में लिपटे हुए?
तुम्हारे लिए चाँद तारे तोड़ लाऊँगा। जहाँ को आग लगा दूँगा ... जवाब दो नहीं तो अगली चिठ्ठी अपने खून से लिख भेजूँगा - टाइप ?
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ReplyDeleteइ भी याद है स्कूल से निकले नहीं कि चार गो स्कूटर और मोटर साईकिल को पीछे लग जाना है, हम रिक्शा में और पीछे हमरी पलटन, स्लो मोसन में, घर का गली का मुहाना आवे और सब गाइब हो जावें....
ReplyDeleteगाना हमेशा की तरह ज़ोरदार...
अदा जी, इन स्कूटर और मोटर साईकिल वालों में से किसी एक का पता भी कहीं से मिल सकता है...मुझे उनका सम्मान करना है...वो कोई साधारण इनसान नहीं बल्कि दूरदृष्टा थे, पहुंची हुई आत्मा थे...उन्होंने इतनी पहले ही आपकी नेतृत्व योग्यता को पहचान लिया था...वो बेचारे तो बस इतना कहना चाहते थे...हमारी नेता कैसी हो, अदा जी जैसी हो...जान हथेली पर लेकर बेचारे आपके पीछे हो लेते थे, बेचारों को कैसी जली-कटी सुननी पड़ती होगी...लेकिन समाजसेवा के जज़्बे से मजाल हैं कि पीछे हट जाएं...इस मौके पर गाने के दो बोल हमसे भी सुन लीजिए...
मैदान में अगर हम डट जाएं,
मुश्किल है के पीछे हट जाएं...
@पाबला जी, @निर्मला जी,
वेख लयो ऐदकि कोई पंगा नहीं ले रेया...
जय हिंद...
आपकी आवाज क्या कहने
ReplyDeleteबहुत अच्छा लगा
हमारे कहने से तो आपका मूड बन नहीं रहा ...कब से कह रहे थे ...
ReplyDeleteअब जिसके कहने से बना है उसका नाम काहे नहीं ले रही हैं ...जो तू गा दे संग ...:)
मैं गीत कोई गा लेती जो तू गुनगुना जरा देता
मैं हंस देती खिलखिला कर जो तू मुस्कुरा जरा देता .. मेरी बहुत पुरानी तुकबंदी ...आजकल बताना बहुत जरुरी हो गया है कि मेरा लिखा हुआ सब बहुत पुराना है ...पुरानी डायरी से है आदि आदि ....:):)
अरे! भारतीयम वाली टिप्पणी यहाँ हो गई थी - दूसरी वाली। हटा रहा हूँ। क्षमा करें।
ReplyDelete"हम आज तक नहीं समझे कि गीत गावे से अच्छा घर का लड़की बुरी कैसे हो जाती है, गीत गावे से चरित्र में धब्बा कैसे लगता है,"-
ReplyDeleteयह तो हम भी नहीं समझ पाये अब तक !
और ये गिरिजेश भईया तो जबसे मुस्कियाता हुआ फोटो लगाये हैं प्रोफाइल में बुद्ध को हटाय के तब से बहुते कोस्चन उनके दिमाग में आ रहा है ।
गद्य- गीत इक तार हो गया है-अंदाजे बयाँ दिल के पार हो गया है
ReplyDeleteगायकी का फिर जो तड़का लगा तो वैलेंटायींन हजार हो गया है
सुबह के सात बजने वाले हैं और दिन निकलते-निकलते अंधेरा फ़िर से छाने लगा है: या ईलाही ये माजरा क्या है? शायद ये इसी गाने का कमाल है।
ReplyDeleteबहुत खूब....
गीत अभी सुन नही पा रहे हैं जी..
ReplyDeleteवैसे हमें लाल गुलाब लेकर कहाँ जाना है...?
कहीं नहीं....!!
और गीत सुन लिया ! आशा दीदी को बहुत ही तरन्नुम से गाकर निबाहा है आपने ।
ReplyDeleteशानदार ।
क्या कहने।
ReplyDeleteक्या कहूँ...सोने पे सुहागा।
ReplyDeleteसंगीत कैसे तैयार किया....आवाज तो भगवान ने आपको एकदम अव्वल दर्जे की बख्सी है। आज गीत सुनकर लगा...ब्लॉगवुड की इस हस्ती की बॉलीवुड को भी जरूरत है।
बाकी सब तो सुना-पढ़ा है पहले, बढ़िया है
ReplyDeleteअब बारी खुशदीप जी की
कह रहे हैं -इन स्कूटर और मोटर साईकिल वालों में से किसी एक का पता मिल सकता है?
ऊपर से मुझे कह रहे हैं कि
वेख लयो ऐदकि कोई पंगा नहीं ले रेया...
अजी 'अदा' से पूछ देखें हमने आधी रात पंगा लिया था कि नहीं :-)
हा हा हा
बी एस पाबला
nice
ReplyDeleteअदा जी ,आप ने तो उनको भी प्रेम दिवस मनाने के लिये प्रेरित कर दिए हैं ..जो राम-राम करते फिरते होंगे ..मजा आ गया ..बधाई
ReplyDeleteगीत सुनकर तो मजा आ गया।
ReplyDeleteग्लोबलाइजेशन का यही फ़ायदा है कि अगर कुछ गलत टीप भी दो तो पहलवान अरे वो तीन बाडीगार्ड कुछ बिगाड़ नहीं सकते :)
पता नहीं कितनों पर बिजली गिराई होगी, और बेचारे कितने आहें भरते होंगे।
मन है मेरा कभी इस संदर्भ में अपने पोस्ट लिखने के लिये।
आपकी बातों ने पुराने दिन याद दिला दिये :) अपने कालेज के दिनों के...
भांजी के विवाह में व्यस्त होने के कारण माइक्रो टिप्पणी कर रहे हैं कि पोस्ट पढ़कर और गाना सुनकर आनन्द आया! अगले दो तीन दिन शायद टिप्पणी करने का समय भी न मिल पाये पर समय निकाल कर पोस्ट तो अवश्य ही पढ़ते रहेंगे।
ReplyDeleteअदा जी, आपकी इस अदा पर तो हम फिदा हो गए। विश्वास ही नहीं हो रहा कि इतना मधुर गीत आपने गाया है। मैंने पहली बार जो सुना है, मन कर रहा है अब तो आप हम सब की फरमाइश पर कुछ न कुछ सुना ही दिया करो। लिखा भी क्या गजब का है? दिल कुर्बान आप पर।
ReplyDeleteजी हाँ पाबला साहब याद है मुझे, और संतोष जी ने आपकी क्लास ले ली थी...हा हा हा हा
ReplyDeleteविवेक जी,
ReplyDeleteइस खुशफहमी में मत रहिएगा...ग्लोबलाइजेशन का फायदा दूसरी तरफ से भी है :)
अदा जी , इन्डियन पेरेंट्स होते ही ऐसे हैं , बेटी के मूंह से ऐसे गाने सुनकर बिदक जाते हैं। शायद वो शब्दों पर ज्यादा ध्यान देते हैं।
ReplyDeleteआपकी सुरीली आवाज़ सुनकर अच्छा लगा। आभार।
आपकी आवाज पहली बार सुनी,
ReplyDeleteशुभान अल्लाह, बेहद सुरीली और मनमोहक आवाज
आपको गाते सुना तो मुझे पीनाज मसानी की याद आ गई
एक फ़रमाइश है ---- "खाली हाथ शाम आयी है" सुना दिजिय़े अपनी आवाज में
बहुत ही सुरीली आवाज़ ... इस नशीले गीत को और भी नशीला बना दिया है आपने .... क्या आवाज़ है .... शुक्रिया अदा जी ...
ReplyDeleteअदा जी प्रणाम माफ़ी चाहता हूँ ,, बहुत दिनों बाद आप के ब्लॉग पर आया और आते ही आप की आवाज सुनने को मिल गयी मै धन्य हो गया
ReplyDeleteसादर
प्रवीण पथिक
9971969084
@अदा जी, @पाबला जी
ReplyDeleteये क्या खिचड़ी पक रही है, मेरा ही पोपट बनाया जा रहा है...ये पंगे वाला क्या मामला है...संतोष जी ने पाबला जी की क्लास ली थी...या इलाही...खुदा खैर करे...
इक गल जाण लो...
मैं तुआणु जाणदा वां, मैं तुआणु पहचाणदा वां...
जय हिंद..
ओह ये जुल्फ़ों का अंधेरा ......कमाल है जी हर अदा आपकी ...ई दुधरिया लिए डोलती हैं कभी लिखती हैं , कभी बोलती हैं ...कौन टिकेगा ..पीछे पीछे चलने वाला सब गिरबे करेगा न गड्ढा में ...एतना अंधेरा करिएगा त ...उ का कहती हैं आप ....हां नहीं तो ...
ReplyDeleteअजय कुमार झा
क्यूँ मैं आज आपकी पोस्ट पढ़ते - पढ़ते भाव-विभोर हो गया , खुद ही
ReplyDeleteनहीं जानता , शायद नीले नीले में जो गद्य लिखा है वह ज्यादा ही
प्रभावकारी है .. .
आपने उन सारे पहरों(रुकावटों) को कम में ही बता डाला जो एक लडकी को
बड़े होने के साथ झेलने पड़ते हैं - पहरा जो ,
घर से बाहर तक है !
आँगन से पानीपत तक है !
.
हाँ , जाने क्यों समाज स्त्री के गाने को इतना ज्यादा नकारात्मक रूप में लेता
है और इसकी शुरुवात परिवार से ही होती है , जो कि समाज की ही एक इकाई है |
अभी हाल में ही दिवंगत महान शाश्त्रीय गायिका गंगूबाई हंगल का ध्यान आ रहा है
जिनकी गायकी की शुरुआत इसी तरह समाज - प्रदत्त कंटकाकीर्ण रास्तों से हुई !
.
आशा-वत सुरसाधना बहुत अच्छी लगी !
वैसी ही खनकती आवाज , चांदी के सिक्के सी !
.
इतने अच्छे गाने सुनाकर मुझ जैसों को मत परकाइये(लल्चाइये) , नहीं तो
फरमाइसों को न पूरा कर पाने का अफ़सोस आपको भी होगा और हम तो
बस नटखट-पन में ही कान खोले बैठे रहेंगे !
..................... आभार !
आनंद आ गया ये गाना मुझे बेहद पसंद है और ज़रा हौले हौले चलो मोरे साजना भी,वैसे भी मुझे आशा जी बहुत पसंद हैं।गाने पर तो नही हां मुझ पर भी पाबंदी ज़रूर लगी थी,वो थी सीटी बजाने पर।मुझे व्हिसलिंग का बड़ा शौक था।घर मे सब चिल्लाते थे अच्छा हुआ सब सालों से साथ रह रहे हैं वरना मार खाता जब देखों फ़ूं-फ़ूं।फ़िर रात को सीटी नही बजाते और दुनिया भर के बहाने।पड़ोस की भाभीयां भी चिल्लाती थी और पड़ोस की मम्मी,जी हां हम लोग घर मे माताजी को आई बोलते थे और पडोस के बच्चों के साथ-साथ उनकी मम्मी अपनी भी मम्मी थी,थी क्या आज भी है।बहुत मज़ा आया पढ कर पुराने दिन याद दिला दिये।तब न फ़ोन थे और न मोबाईल,उसकी एक झलक के लिये मुझे नही मेरे दोस्तों को उसके घर के कई चक्कर काटने का रिस्क लेना पड़ता था।हम लोग विनोद मेहरा या किसी कामेडियन की तरह साईड़ रोल मे रिस्क लेते थे।उसके भाई से नही मुहल्ले के निठ्ठलों से डरते थे जो उसके दिवाने हुआ करते थे। हा हा हा हा।मज़ा आ गया वेलेंटाईन डे का।
ReplyDeleteक्या बात है,लड़की (वो भी ख़ूबसूरत,कभी हमने बात की थी इस पे :)) होने की व्यथा कथा...बड़े अच्छे ढंग से कह डाली....और गाना तो बस icing on the cake hai...
ReplyDeleteDesh ke singar kaise hon.. Ada didi jaise hon...
ReplyDeleteहमममममममम मेरे कहने पर हुआ और मैं ही इतनी देर में आया, खैर छोड़िए अदा दीदी एक बार फिर से आपका तहे दिल से आभारी हूँ अपनी मधुर और प्यारी आवाज को हमारे कांनो में घोलने के लिए, आपकी आवाज जब कभी भी सुनता हूँ तो मैं सभी गायक को भूल जाता हूँ और कहता हूँ अदा दीदी इस द बेस्ट । और क्या गाना चुना है आपने लाजवाब, इतना अच्छा गाती हैं , लिखती है और उपर से केह रहीं है कि थोड़ा सा टैलेन्ट , ये तो गलत बात है ना, और हाँ अब कहना ना पड़े , आपने ही आदत खराब करवाई है अच्छे-अच्छे गांने सुनाकर, इसलिए ये नीयमित अन्तराल पर होते रहना चाहिए ।
ReplyDeleteबहुत सही पोस्ट लिखा है। अपने ज़माने की बात याद हो आई। आप तो लड़्की थीं तो वैसी पबंदियां थी। हम तो लड़्के होकर भी ओ नी सुल्तान रे नहीं गा सकते थे। सो पहले तो नन्हा मुन्ना रही हूँ गाना पड़ता था। थोड़े बड़े हुए तो ए भाई ज़रा देख के चलो। और फिर उसके बाद तो हालत ये हो गई कि मेरा जीवन कोरा क़ाग़ज़ कोरा ही रह गया।
ReplyDeleteअदा जी,
ReplyDeleteआपके ना गाने की व्यथा कथा भी रोचक लगी...और गाना तो माशाल्लाह बहुत ही पसंद आया.....
वैसे आपके ब्लॉग पर मैंने सबसे पहले गाना ही सुना था....
बहुत ही मधुर ओर सुरीली आवाज, ओर उस पर हमारा मन पसंद गीत, धन्यवाद अदा जी लेकिन अगर आप के लेख के अनुसार तो यह गीत जरुर होना चाहिये जाने वाले जरा होशियार... यहां के हम है राज कुमार... आगे पीछे हमारी....स्कूटर और मोटर साईकिल की पल्टन यहां के हम है..
ReplyDeleteअदा जी समय के संग संग यह सब चलता है,शायद हम भी कभी ऎसी बेवकुफ़िया करते होंगे, ओर अब खुद पर हंसी भी आती है
इतना ही दिन में केतना पोस्ट लगा देती हैं आप एकदमे से....उधर छिट्टा भर-भर के सैल्युट जो छोड़ आयी हैं उसका का करें हम।
ReplyDelete"इ मेन्जूर जैसे का सपरती रहती हो" ....हा! हा!!
गीतबा नहीं सुन पा रहे हैं, लेकिन ई गीत है बहुते पसंद हमको। बाकी गिरीजेश भैया की टिप्पणी पढ़के खूबे हँसे जा रहे हैं।
ReplyDeleteसँत भैलेन्टाइन सबको खुशहाल रखें
अब यह न कहना कि बछड़न में कहाँ बुढ़वन को काम
अब लगता है सपने में भी यही आवाज़ सुनाई देगी ।
ReplyDeleteमधुर आवाज़...सुन्दर पोस्ट
ReplyDeleteha ha ha ye bhi khoob rahi
ReplyDeletegeet hamesha ki tarah laajwaab
aah kya vyatha katha sunai hai ji...
ReplyDeletegana bhaut hi sundar hai hamesha ki tarah.