Saturday, February 13, 2010

टाँग अड़ाने की अदा...


कल से एक एक कहावत है या मुहावरा मेरे दिमाग में उमड़ घुमड़ रहा है....'टाँग अड़ाना' ..सुनने  में कितना आसान लगता है...सोचो तो एक दृश्य सामने आता है ...किसी ने अपनी टाँग आड़ी कर के लगा दी...अब ऐसा है कि किसी की टाँग अगर हमारे सामने आ जाए तो ज़ाहिर सी बात है ..हमारी गति रुक जायेगी.....अब आप कल्पना करके देखिये ज़रा ...आपने अपनी टाँग किसी के  सामने कर तो उसकी तो  ऐसी की तैसी हो जायेगी ना....!!
 

ज़रा एक बार फिर इसे सोचें ...आपके दिमाग में एक शारीरिक भंगिमा उभर आएगी...एक बिम्ब बनेगा.....इसे सोचने से दृश्य सामने आया कि आपने अपनी टाँग किसी के सामने कर दी...लेकिन क्या सचमुच ऐसा है...दृश्य और अर्थ  में काफी फर्क  है...कोई तालमेल नहीं....यह सिर्फ सुनने में ही आसान लगेगा लेकिन इसका अर्थ बहुत गहन है...इसी  से मिलता जुलता  एक और दृश्य अभी अभी दृष्टिगत हुआ है...लंगी मारना....इसकी अगर विवेचना करें तो जो दृश्य सामने आता है...उसमें एक ने दूसरे  की टाँग में अपनी टाँग  फ़सां दी और दूसरा व्यक्ति चारों खाने चित्त...अब ज़रा दोनों कहावतों पर गौर करें तो पायेंगे कि...टाँग अड़ाना एक स्थिर प्रक्रिया  है जबकि लंगी मारना एक गतिमान प्रक्रिया...
 

अब इस महाशास्त्र की विवेचना को जरा आगे लिए चलते  हैं और सोचते हैं कि आखिर इस 'टाँग अड़ाने'  का सही अर्थ क्या  है...तो इसका सार्वजनिक अर्थ है... अनावश्यक हस्तक्षेप करना...आप चाहे न चाहें और ज़रुरत हो कि न हो....आपने अपनी टाँग अड़ा दी.....यह  प्रक्रिया व्यक्ति विशेष की पसंद-नापसंद पर भी निर्भर है...अब कोई ज़रूरी नहीं कि आप जिस विषय को 'टाँग अडाऊ' सोच रहे हैं ..मैं भी उसे वैसा ही सोचूं...यह पूरी तरह टाँग अड़ाने वाले की इच्छा, सुविधा और ज़रुरत पर निर्भर करता है....


कोई ज़रूरी नहीं है कि... यह एक ज़रुरत हो, यह एक शौक़ भी हो सकता है...या फिर आदत या फिर बिमारी...हाँ शौक़ जब हद से बढ़ जाए तो यह एक बीमारी का रूप ले लेता है...और तब बिना टाँग अड़ाए... उस व्यक्ति को आराम ही नहीं मिल पाता है....


कुछ लोग तो टाँग अड़ाना अपनी राष्ट्रीय, या सामाजिक जिम्मेवारी भी समझते हैं...बल्कि इस काम के लिए वो अपना काम-धाम छोड़ कर पूरी तन्मयता के साथ 'टाँग अड़ाने' की नैतिक जिम्मेवारी निभाते हैं...


टाँग अड़ाने की भी अपनी एक शैली  है...कुछ तो सीधा अपनी टाँग अड़ा देते हैं और फिर उनकी ख़ुद की टाँग अथवा  शरीर के अन्य अंगों पर भी मुसीबत आ जाती है....इसलिए इस प्रक्रिया में सावधानी की बहुत आवश्यकता होती है....

कुछ लंगी मारने में विश्वास करते हैं...लंगी मारना ज्यादा दिमागी प्रक्रिया है ...इसकी सफलता के चांस भी बहुत ज्यादा होते हैं....लंगी मारना एक स्वार्थ परक प्रक्रिया है....और बहुत कम लोग लंगी मारने  में पारंगत होते हैं....लेकिन टाँग अड़ाना एक कलात्मक प्रक्रिया है...और इसमें अधिक कलाबाजी देखने को मिलती है...
टाँग अड़ाना विशुद्ध मानवीय वृति है ...और जैसा मैंने बताया ...यह एक कला है....और अधिकांश इस कला के कलाबाज़....जब यह अपनी सीमा पार कर जाए तो लोग यही कहते हैं ...'इसे तो टाँग अड़ाने की बीमारी है' ...अब  ज़रा  सोचिये.... आप क्या है  ??? कलाबाज़ या बीमार ????

41 comments:

  1. चलो टाँग अड़ाने वालों को आपका समर्थन तो मिला.
    'लेकिन टाँग अड़ाना एक कलात्मक प्रक्रिया है...'
    और हाँ मैनें तो ऐसे टाँग अड़ाने वाले भी देखे हैं जो औरों की टाँगों के भरोसे खड़े होते हैं.

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  2. एनू कैणदे ने पंगा लैणा, कित्थे....ए पाबला जी दसणगें....

    जय हिंद...

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  3. "टाँग अड़ाना एक स्थिर प्रक्रिया है जबकि लंगी मारना एक गतिमान प्रक्रिया..." -
    क्या गज़ब परिभाषित किया आपने ! शानदार ।
    वैसे यह कहावत कल से ही आपके दिमाग में क्यों उमड़-घुमड़ रही है :)

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  4. हा हा हा

    खुशदीप जी पंगा खुद ले लेंदे ने अते जिम्मेदारी मैनूं दे दिंदे हण कि दस्सो कित्थे पंगा लेय्या :-)

    इह चंगी लत्त अड़ाई है!!!

    बी एस पाबला

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  5. मैं तो टांग खीचने वालों से तंग आ गया हूँ अरे वही अंगरेजी की लेग पुलिंग
    भारत में टांग के करतब का इतिहास बहुत पुराना है -तभी से जब अंगद ने रावण के भरे दरबार पर अपना पैर जमा दिया था
    मुहावरा जन्मा अंगद का पांव ,
    अपने टांग अडाने के व्यावहारिक पक्ष का अच्चा विवेचन किया है .

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  6. "टाँग अड़ाना" जैसे सुन्दर लेख में अब क्या टिप्पणी करें? कहीं वही टाँग अड़ाना न बन जाये।

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  7. वैसे तो जितने लोग उतनी बाते ......और विवेचना भी व्यक्तियो के हिसाब से बदलति है!
    किन्तु आपने व्याख्या अच्छी की है!
    http://kavyamanjusha.blogspot.com/

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  8. न कलाकार,न बीमार, इन्हें तो कहिये टान्गालू ।

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  9. इसे राष्ट्रीय खेल बनाने पर विचार करना चाहिए।

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  10. आप दिन ब दिन श्रेष्ठता के सोपान चढ़ती जा रही हैं। ऐसा लगता है कि जैसे श्रद्धा भाव सँजोए कोई मन्दिर की सीढ़ियाँ चढ़ रहा हो ।
    व्यंग्य और कथ्य मौलिकता लिए हुए हैं। इस मुस्कान के लिए आभार।

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  11. आज की तस्वीर पोस्ट से मैच नहीं कर रही है जी...!!
    पर है खूबसूरत....

    पोस्ट के बारे में कह नहीं सकते के कैसी लिखी है...

    हमें नहीं मालूम...दूसरों के काम में टांग अडाने की आदत नहीं है ना हमें...?
    हर किसी की तो ग़ज़ल में भी टांग नहीं अड़ाते हम..

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  12. बडी बढिया ढंग से समझाया है !!

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  13. दीदी चरण स्पर्श

    टांग अड़ाना तो बुरी बात है परन्तु कुछ लोगो को मजा भी बहुत आता है इसमे ,
    और हाँ दीदी मेरी फरमाईस का क्या हुआ ????????????????????????????????????????????????????????????????????????????????????????????????????????????????????????????????????????????????????????????????????????????????????????????????????????????????????????????????????????????????????????????????????????????????????????????????????????????????????????????????????????????????????????????????????????????????????????????????????????????????????????????????????????????????????????????????????????????????????????????????????????????????????????????????????।

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  14. वाह !!.....रोचक लगा आपका ये लेख ......अक्सर लोगो की आदत होती है टांग अडाने की

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  15. हम सोच रहे हैं कि हमें कौन टांग अड़ाता है और कौन लंगी मारता है, अभी चिंतन प्रक्रिया में हैं,

    वैसे चिंतन के बाद का विश्लेषण उपलब्ध नहीं होगा !!!

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  16. बहुत अच्छी तरह से बताया इस मुहावरे का अर्थ....हम तो हाथ अड़ा कर ताली बजा देते हैं....

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  17. ए खुशदीप हर जगह टंग अडा के पिच्छे हट जाँदे ने ते दूजियाँ नू अगे कर देंदे हन असली पंगेवाज कौण होइया फेर? ह्ह्हा

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  18. हम आपकी किसी भी बात पर टाँग नहीं अड़ा रहे हैं। बस इतना बता दीजिए कि जो फोटो आपने लगाया है वह गाजर जैसी फैमिली का लग रहा है, तो क्‍या गाजर ही है या और कुछ? वैसे अक्‍सर इस मुहावरे का प्रयोग नासमझ व्‍यक्ति के लिए भी किया जाता है जो बिना समझे ही किसी के बीच में बोलता है तब कहते हैं कि क्‍यों अपनी टाँग अड़ा रहा है?

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  19. मैं तो आजकल टांग अड़ाने से ज्यादा टांग बचाने मे विश्वास करने लगा हूं।

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  20. विचारों की गतिशीलता यहां तक आ पहुंची...!
    बेहतर विवेचन ..!
    आभार..!

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  21. लीजिये हमने भी टांग अदा दिया.).).)
    (कमेन्ट करके रूप में )

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  22. डॉ. अजित जी,
    जी हाँ ये गाजर ही है...
    हम ने सोचा अब असली टाँग लगा कर कौन अपनी जान जोखिम में डाले..:):)

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  23. बढ़िया थी अदा जी यह अदा भी :) पुराने शब्द सुनकर अच्चा लगा हम लोग बचपन में लंगी मारना को लंगडी देना कहते थे !

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  24. नहीं नहीं ये बिल्कुल नहीं चलेगा जी ब्लोग्गिंग में भला टांग का क्या काम , और कौन मुआं अडा सकता है ...जब आप सारा कर्म कांड इहां उंगलिया से करते हैं तो फ़िर ...कहिए न उंगलिया करना , तनिक एकरो विवेचन हो जाए अदा जी ...ओईसे भी ससुरा एक ठो उंगली वाला ब्लोग पता नहीं कईसन कईसन पोल खोले दे रहा है ..अगली किस्त में उंगलियों पर ध्यान दिया जाए जी ,,,और हां गाजरवा की जगह मूली का फ़ोटो चलेगा उसके लिए ...का कहते हैं आप
    अजय कुमार झा

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  25. हम तो जी बीमार हैं, और वो भी सीरियस टाईप के। लंगी मारना सचमुच कुछ गतिमान क्रिया है इसलिये अपन तो टांग अडाने वाला काम ही पसंद करते हैं।
    इस कला को नया आयाम देने में आपका योगदान (इसको अपनी पोस्ट का विषय बनाना) सराहनीय है, जब इसे राष्ट्रीय खेल बनाया जायेगा तब आपको भी सम्मानित किया जायेगा।
    पोस्ट बहुत अच्छी लगी, भीतर तक गुदगुदाहट महसूस हो रही है।

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  26. इसी को तो कहा जाता है--बैठे ठाले ।

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  27. टांग अडाना और लंगड़ी मारना दो विभिन्न प्रकार की क्रिया हैं ...प्रतिक्रिया भी क्या ??....जिसके लिए आपको नोबल और हमको ऑस्कर मिलना चाहिए ...!!

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  28. अरे ! मुझे तो आजतक पता ही नहीं था कि टांग अड़ाने का कोई दूसरा मतलब भी होता है :)

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  29. खुशदीप जी ने पाबला जी,
    मैनूं लत्त अड़ाई दा लगया रोग....
    मेरे बचने दी नइयो उम्मीद....:)

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  30. "टाँग अड़ाना एक स्थिर प्रक्रिया है जबकि लंगी मारना एक गतिमान प्रक्रिया..."

    क्या बात है..

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  31. सुन्दर विवेचन ..
    राव साहेब तो श्रेष्ठ-सोपान-अवगाहन की बात कर ही गए हैं , हम उससे
    सहमत हैं ..
    पोस्ट के बाद जब टीपों को देखने लगा तो एक भारी मात्रा में
    प्रश्नवाचक चिह्न दिखे ....... देवी जी ! डूबे जी की फरमाईस पूरी कर दें ! :)
    बाकी कल से अपनी टांग ही देख रहा हूँ :)

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  32. बड़ी अच्छी तरह से समझाया है..इसका मतलब....हर कोण से ..क्या बात है...बहुत खूब

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  33. आदाब,
    इस मुद्दे पर इतना पठनीय भी लिखा जा सकता है.
    वाह
    और ये तस्वीर भी खूब बनाई है

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  34. मांग ऐसी मांग जिस मांग ने दिल मांग लिया
    टांग ऐसी टांग जिस टांग ने दिल टांग दिया

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  35. अजी छोड़िये भी, दिमाग को ब्लॉगिंग में लगाइये और टाँगों को अपना काम करने दीजिये ।
    वह ब्लॉगर ही क्या, जिसने कभी किसी के फटे में टाँग न अड़ाया हो ?
    ऎसी टाँगों को खूँटी पर टाँगिये और चिढ़ौना ब्लॉगिंग को समझिये !
    मॉडरेशन है, फिर भी अपनी टिप्पणी टाँग कर जा रहा हूँ !

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  36. hee hee hee ..tasveer dekh kar hansi nahi ruk rahi...rukegi tab taang adane aaungi...
    badhiya lekh.

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