उन दिनों भारत-पकिस्तान के बीच क्रिकेट मैच ज़ोरों पर था ...अब ये मत पूछियेगा किस साल की बात है, मुझे याद नहीं है बस इतना याद है सारा भारत मुँह जोहे मैच ही देख रहा था , सारा आस, विश्वास, आस्था , ना जाने क्या-क्या वहीं लगा हुआ था, कहीं यज्ञं हो रहे थे कहीं पूजा और कहीं लोग अरदास कर रहे थे, और कहीं नमाज़ कि भगवान् भारत जीत जाए बस...अजीब सा माहौल था, कोई कुछ काम ही नहीं कर रहा था , सब क्रिकेट के रंग में रंगे हुए, टी.वी. के सामने बैठे ही हुए थे...घर-बाहर, ऑफिस सड़क हर जगत क्रिकेट का ही नशा था हवाओं में,
मैं भारत में थी ...और रांची में अपने माँ-पिता जी के घर में थी, घर का भी माहौल खुशनुमा और क्रिकेटमय था...उस दिन फाइनल मैच था, सब उत्तेजना से भरे हुए टी.वी. के सामने बैठे थे...उत्तेजना की पराकाष्ठा ऐसी थी कि मेरे पिताजी कुर्सी के छोर पर ही बैठे हुए थे....और मेरे फूफाजी, ऐसे बैठे हुए थे जैसे किसी ने काँटों से बनी कुर्सी में उनको जबरन बिठाया हो...
ख़ैर, मैच चल रहा था और हमेशा की तरह मैच उसी जगह पहुँच चुका था ...जहाँ २ बाल और ६ रन वाली हालत होती है....कुल मिला कर माहौल बड़ा ही नाज़ुक था, सबके चेहरे परेशान, पूरा माहौल टेंशन से भरा, रुख़ पर हवाइयाँ उड़ रहीं थी ....
औरर्रर्रर्रर...... सबका डर सच हो गया भारत की हार हुई... सबके चेहरे लटक गए, पिता जी बिना खाए ही बिस्तर पर चले गए ..मैं भी अपने दुखी फूफा जी को खाने के लिए मनाने लगी....इतने में पटाखों की आवाज़ से चौंक गई....मैंने पूछा ये कैसी आवाज़ है ...फूफा जी ने बताया की घर से कुछ दूर पर जो बस्ती है, वहां कुछ धर्म विशेष के लोग रहते हैं, वो पकिस्तान के जीतने की ख़ुशी में ज़श्न मना रहे हैं ...थोड़ी देर में पटाखों की आवाज़ तेज़ होने लगी ...अब दूसरी बस्ती में भी खुशियाँ मनाई जा रही थी...
मेरा घर राँची में रातू रोड में है...हमारे घर से ही लगी हुई राँची पहाड़ी है, जिसकी चोटी पर शिव मंदिर हैं , पहाड़ी के दूसरी तरफ, नीचे ही जलील शाह का बारूद का कारखाना और साथ ही धर्म विशेष का मोहल्ला, पटाखों की आवाज़ और ज़श्न भी यहीं मन रहा था, राँची में ही एक और बहुत बड़ा इलाका है हिंदपीढ़ी जहाँ, इसी धर्म विशेष के लोग रहते हैं, जब भी पकिस्तान क्रिकेट में जीतता है, यहाँ रहने वाले कुछ लोग ऐसा ज़श्न मनाते हैं, यहाँ खुशियों का ऐसा माहौल होता है कि शायद पकिस्तान में भी ना हो, मेरे फूफा जी बताने लगे कि यह हमेशा ही होता है...
मैं आज तक इस मानसिकता को नहीं समझ पायी हूँ इसलिए यह आलेख लिख रही हूँ....आखिर क्या वजह है कि ये मुट्ठी भर लोग हमारे अपने होते हुए भी, हमारे साथ उठते-बैठते, खाते-पीते, जीते हुए भी, भारत के सामाजिक तंत्र का हिस्सा होते हुए भी, यहाँ कि हर सुविधा का लाभ उठाते हुए भी, इस मामले में हमारे साथ नहीं होते है...आखिर क्यूँ ??? जब भी क्रिकेट का मैच होता है, विशेषकर भारत और पकिस्तान के बीच, हमें भारत के हर हिस्से में छोटे-छोटे पाकिस्तान देखने को क्यूँ मिल जाते हैं ....जो हर क्रिकेट मैच के बाद, खुल कर सामने आ जाते हैं....मानो हमें चिढ़ा रहे हों ...आखिर इसकी वजह क्या है ..??? ज़हन में एक बात और आती है..ये तो महज़ क्रिकेट है , क्या देश की सुरक्षा पर अगर कभी आंच आ जाये तो क्या ..?? ईश्वर ना कर कभी पकिस्तान घुस-पैठ कर जाए तो क्या ये कुछ लोग पकिस्तान के ही हो जायेंगे...??
कोई कह सकता है कि यह अपनी-अपनी पसंद है, किसी को भी कोई टीम पसंद आ सकती है, इसमें बुराई क्या है, जैसे एम्.ऍफ़. हुसैन कि तसवीरें, कहा जा सकता है यह कला की अभिव्यक्ति है, लेकिन कला की अभिव्यक्ति तो ब्लू फिल्म्स में भी होती है, तो क्या उसे भी मान्यता मिल जाए ??
क्रिकेट एक बहुत अच्छा मापदंड बन जाता है, किसी व्यक्ति विशेष के देश के प्रति निष्ठां को मापने का ... यह भी एक उदाहरण हो सकता है, भावनात्मक आतंकवाद का, मैं कनाडा में रहती हूँ, अगर कनाडा और भारत के बीच में कोई मैच हुआ, तो निःसंदेह मुझे बहुत ख़ुशी होगी अगर भारत जीत जाए तो, लेकिन कनाडा की हार को मैं 'सेलेब्रेट' नहीं करुँगी, क्यूंकि भारत मेरी जन्मभूमि है तो कनाडा मेरी कर्मभूमि और मेरी निष्ठां कुछ कनाडा के प्रति भी है...
लेकिन यहाँ जिनकी बात हो रही है, उनके साथ ऐसा रिश्ता भी नहीं है, फिर यह क्या है ?? क्या इसे दूर किया जा सकता है..? क्या यह सोच बदली जा सकती है ?? अगर हाँ तो क्या हमलोग कुछ कार सकते हैं ??
कभी ये भी सोचती हूँ ...क्या पकिस्तान में भी ऐसा ही होता है ??? क्या जब-जब भारत जीतता है, वहाँ भी भारत के प्रति अनुराग रखने वाले, खुशियाँ मनाते होंगे ??? क्या वहाँ भी ये पटाखा छोड़ पाते होंगे ??? मैं सचमुच जानना चाहती हूँ....
या फिर सिर्फ़ भारत ही एक ऐसा देश है जो सचमुच बहुत सहनशील है....???
नोट : सबसे पहली बात किसी भी धर्म या जाति में सभी लोग अच्छे या बुरे नहीं होते, मेरी यह बात सिर्फ़ कुछ मुट्ठी भर लोगों पर लागू है, इसलिए यह बात सब पर लागू नहीं होती... मेरा यह लेख किसी का भी दिल दुखाने या किसी भी प्रकार की ग़लत भावना पर नहीं लिखा गया है...मैंने वही लिखा है जो देखती रही हूँ, अगर मेरी सोच ग़लत है..तो आप सबसे विनती करुँगी, जो सही बात है वही मुझे बताइए...साथ ही अपनी टिप्पणी देते वक्त इस बात का भी ख्याल रखियेगा कि सभी एक सामान नहीं हैं, भाषा में शालीनता होनी ही चाहिये ताकि सभी आपकी अमूल्य टिप्पणी पढ़ सकें...
सही कह रही हैं.
ReplyDeleteAapne sahee likha hai aisa hota hai , ho raha hai
ReplyDeleteaur hota rahega . koi bhee sarkar kisee bhee tabke ko naraz nahee karana chahtee election bhee to jeetane hote hai.......desh ke prati nishta kuch hai jo mahsoos nahee karate........ :(
गद्दारी जिनके खून के कतरे-कतरे में हो उनसे और उमीद भी क्या कर सकते हैं । हमें याद है जिस दिन भारत ने 20-20 बर्ड कप फाईनल में पाकिस्तान को हराया तो जम्मू में कुछ विद्यार्थी जशन मनाने लगे परिणामस्वारूप उसी विस्वविद्यालय के मुसलिम छात्रों ने उन पर हमला कर दिया और इन छात्रों को बुरी तरह से नुकसान पहुंचाया जब मामला सरकार तक गया तो ततकालीन सरकार ने भी इन भारत विरोधियों का ही पक्ष लिया । इस मानसिकता के लोग जिस पत्र में खाते हैं उसी में छेद करना अपनी शान समझते हैं लानत है ऐसे गद्दारों पर
ReplyDeleteअदा जी, आज ऐसा ही एक बढ़िया सन्देश मुझे इमेल से मिला था, आपकी इजाजत के बिना यहाँ पोस्ट कर रहा हूँ ;
ReplyDeleteAN AMERICAN VISITED INDIA AND WENT BACK TO AMERICA
WHERE HE MET HIS INDIAN FRIEND WHO ASKED HIM
HOW DID U FIND MY COUNTRY
THE AMERICAN SAID IT IS A GREAT COUNTRY
WITH SOLID ANCIENT HISTORY
AND IMMENSELY RICH WITH NATURAL RESOURCES.
THE INDIAN FRIEND THEN ASKED ….
HOW DID U FIND INDIANS …….??
INDIANS??
WHO INDIANS??
I DIDN'T FIND OR MET A SINGLE INDIAN
THERE IN INDIA …….
WHAT NONSENSE??
WHO ELSE COULD U MET IN INDIA THEN……??
THE AMERICAN SAID ……..
IN KASHMIR I MET A KASHMIRI–
IN PUNJAB A PUNJABI—–
IN BIHAR,MAHARASTRA, RAJASTHAN, BENGAL ,TAMILNADU,KERALA
BIHARI,MARATHI, MARWADI, BENGALI,TAMILIAN, MALAYALI………
THEN I MET
A MUSLIM,
A HINDU
A CHRISTIAN,
A JAIN,
A BUDDHIST
AND MANY MANY MANY MORE
BUT NOT A SINGLE INDIAN DID I MEET
…………………………………………………………...
THINK HOW SERIOUS THIS JOKE IS……………..
THE DAY WOULD NOT BE FAR OFF WHEN INDEED WE WOULD
BECOME A COLLECTION OF NATION STATES AS SOME
REGIONAL ANTI-NATIONAL POLITICIANS WANT ...
FIGHT BACK -
ALWAYS SAY I AM INDIAN
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JAI HIND
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Regards,
A
True Indian
Request you all to contribute in awareness by forwarding the mail !!!
With warm regards,
No Name, Just An Indian....!!
अदा जी यही बात हमारे भी दिमाग में कई बार आई...वो दावा तो करते हैं की उनके प्रति सौतेला व्यवहार किया जा रहा है ..परन्तु है उल्टा ही ..बल्कि वो इस देश के प्रति सौतेला व्यवहार करते हैं....खैर भारत तो हमेशा से ही सहन शील और शांति प्रिय रहा है...पर हाँ पकिस्तान में भारत की जीत पर सिर्फ मातम मनाया जाता होगा ये बात पक्की है
ReplyDeleteआपने दुखती रग़ पर हाथ रख दिया ... इस बात को मैंने बड़ी शिद्दत से महसूस किया है ... और ये बात काफी बड़े पैमाने पर होती है ... शायद इन लोगों को पता नहीं है कि पार्टीशन के बाद हिन्दुस्तानी मुसलामानों की क्या इज्जत है पाकिस्तान में ... दोयम दर्जे के माने जाते हैं ... और आप शालीनता की बात करती हैं ? ऐसे गद्दारों पर तो कुत्ते छोड़ कर नुचवा लिया जाना चाहिए ... ऐसा नहीं है कि हमारे देश में राष्ट्र भक्त मुसलमान नहीं हैं ... कई तो मिसाल हैं राष्ट्रभक्ति के ... पर ऐसे गद्दारों के प्रति हमारे मन में ज़रा सी भी सहानुभूति नहीं होनी चाहिए
ReplyDelete.......गद्दार तो गद्दार हैं वो अपने घर में भी इसी तरह गद्दारी करते होंगे .....
मजहब के नाम पर
दुनियाको बाँटने वालो
पडोसी की जीत पर
मिठाइयाँ बांटने वालो
आतंक के रहनुमाओं की
जूतियाँ चाटने वालो
माँ भारती की अस्मत को
कतरा कतरा काटने वालो
अफजल या कसाब होगा
हमें विचलित करना
उनका ख्वाब होगा
इन्साफ अभी तक बाकी है
ये न समझना छोड़ देंगे
एक ऊँगली जो उठी हमारी तरफ
उसे हाथ सहित ही तोड़ देंगे
अदाजी सब से पहले तो आप बधाई स्वीकार करें स्र्वप्रथम हिन्दी ब्लागर होने की। बहुत खुशी हुयी जान कर ।अलेख बहुत अच्छा है ये बातें हर हिन्दोस्तानी का दिल कचोटती हैं मगर सब शायद बेबस हैं। बहुत बहुत शुभकामनायें
ReplyDeleteअदा जी,
ReplyDeleteआज जो आपने लिखा है बस गज़ब ही लिखा है...एक ऐसा सच जो बहुतों के मन में उठता होगा लेकिन इन भावनाओं को दबा लिया जाता होगा....ये भी मानती हूँ कि सब एक से नहीं होंगे पर अधिकांशत: लोग अपने हक की बात करते हैं लेकिन मन से वो इस देश से नहीं जुड़े हैं...हमारे देश की यही विडंबना है कि बहुत शांति प्रिय देश है..यूँ ही नहीं विदेशियों ने इस पर इतने वर्ष शासन किया है...आज कोई भी सरकार आये अपनी वोटों की राजनीति करती है...कश्ह समय रहते सरकार और आवाम की आँख खुल सके....
इस लेख के माध्यम से बहुत ज्वलंत प्रश्न उठाया है....शुभकामनायें
ये बात हिन्दुस्तान का हर व्यक्ति महसूस करता है, और हर बार महसूस करता है, आपने एक ऐसे मुद्दे को सामने किया है जो हर किसी के मन में हमेशा से थी लेकिन कोई कहता नहीं है, लेकिन होगा क्या, यह सोच ऐसी नहीं है जिसे रातों रात बदला जा सकता है, शायद कभी भी नहीं बदला जा सकता है, बहुत ही सार्थकआलेख,
ReplyDeleteNikhil ji ne kaha :
ReplyDeleteCricket ke saath aisa vyohar bilkul pasand nahi aata hai ada ji
ekdam sahi baat likh di hain aap
mera comment print nahi karta hai apka blog, isikiye email se bhejna padta hai,
chhap dijiyega
shukriya
क्रिकेट के बारे में आपकी बात से सौ फ़ीसदी सहमत होते हुये भी युद्ध जैसी स्थिति में आपके कयास से मैं सहमत नहीं हो पा रहा हूं। मुश्किल के समय में यथा कारगिल-संकट, ताज-हमला आदि के समय मुस्लिम वर्ग की तरफ़ से त्वरित विरोध प्रदर्शन आदि किये गये थे। हालांकि यह परिवर्तन गोधरा-कांड के बाद ज्यादा प्रकट हुआ है, यह भी एक सत्य है। आपने जैसा कि कहा भी है कि मुस्लिम भारतीयों में भी देशभक्त लोग है, मेरा भी यही मानना है कि ऐसे लोगों की संख्या बढ़े तो देश को मजबूती मिलेगी।
ReplyDeleteAapne 100 pratishat sachi baat kahi hai aisa hi hota hai ...!
ReplyDeleteAabhar
क्या पकिस्तान में भी ऐसा ही होता है ??? क्या जब-जब भारत जीतता है, वहाँ भी भारत के प्रति अनुराग रखने वाले, खुशियाँ मनाते होंगे ??? क्या वहाँ भी ये पटाखा छोड़ पाते होंगे ??? मैं सचमुच जानना चाहती हूँ....
ReplyDeleteया फिर सिर्फ़ भारत ही एक ऐसा देश है जो सचमुच बहुत सहनशील है....???
पाकिस्तान से लोग अभी भी भाग कर हिंदु्स्तान मे शरण ले रहे हैं। हमारे 36गढ मे बहुत आए हैं लेकि्न वापस नही जा रहे। अगर वहां इनके लिए सम्मान की स्थिति होती तो वापस जाते यहां क्यों शरण लेते? यह भारत ही है जहां सबका सम्मान है। ये सही है कि हम बहुत ही सहनशील हैं क्योंकि हमारी हजारों साल की वि्रासत है और लाखों साल का इतिहास------------बहुत अच्छी पोस्ट-आभार
मैं कभी भी इन मुट्ठीभर लोगों के लिये लिखना पसंद नहीं करता हूँ, डर रहा हूँ इसलिये नहीं, बल्कि इसलिये क्योंकि उन्हीं में से मेरे कुछ जिगरी दोस्त हैं, जिन्हें खुद भी यह सब अच्छा नहीं लगता पर क्या करुँ आज आपने दुखती रग पर हाथ रख दिया है, ये सब हमने बहुत देखा है, ऐसे छोटे पाकिस्तान हमने बहुत सी जगह देखे हैं, और हम भारत के सहनशील "हिन्दू" कुछ नहीं कर पाते हैं, अरे आग लगा देनी चाहिये इन पटाखे छोड़्ने वालों में, इनको मिसाईल पर बैठाकर पाकिस्तान पहुँचा देना चाहिये। जब वहाँ वाले इनके कौम वाले इनको लात मारकर "काफ़िर" कहकर बुलायेंगे तब इनको वापिस अपनी अभिव्यक्ति की आजादी वाला भारत याद आयेगा।
ReplyDeleteअगर पीठ में छुरा घोंपने वाले की खुशी में हमारे यहाँ के लोग खुश होते हैं, तालिबानी हुकुमत से प्रसन्न होते हैं, तो क्यों नहीं सीमा पार करके वहाँ अपनी ऐसी तैसी करवाने नहीं चले जाते हैं, जाओ "मियां" जब तुम्हें वहाँ के "मियां" और "चचा" लात मारेंगे तब भी तुम्हें समझ में नहीं आयेगा।
अब मैं नहीं लिख पा रहा हूँ, क्योंकि अपशब्द में लिखना नहीं चाहता। अदा जी ने पहले ही लिख दिया है कि भाषा संयमित रखें पर हमसे इतना संयम नहीं रखा जा रहा।
और आखिरी में ये भावनात्मक आतंकवाद को मेरी कर्री और भद्दी सी $%^$%^%^&@$!!@#!@##$%^, माफ़ कीजियेगा अदा जी, पर बात ही कुछ ऐसी है।
आप इस टिप्पणी को मोडरेट करने का अधिकार रखती हैं, अगर आप को भाषा संयमित न लगे तो...। वैसे मुझे नहीं लगता है.. कि मैंने संयम खोया है क्योंकि मैं बहुत ही सहनशील "हिन्दू" हूँ, भारतीय हूँ, पता नहीं क्या कहना चाहिये।
कोई नई बात नहीं
ReplyDeleteयहाँ तो ऐसे भी हैं जो लंदन में बारिश होने पर छाता तान लेते हैं :-)
बी एस पाबला
sab log ese nahi hote bilkul sahi kaha hai aapne,jo achhe hote hain wo Kalaam sahab jaise hote hain,Veer Abdul hameed jaise hote hain. pta nahi in chand logo ki maansikta kaise sudhregi.
ReplyDeleteVIKAS PANDEY
http://vicharokadarpan.blogspot.com/
अब एक ही घर में इतने सारे देवी-देवता होंगे तो सहनशीलता तो बचपन से ही आने लगेगी ही न...
ReplyDeleteयह कुछ ऐसे लोग हैं.... जो कुंवारी माँ की पैदाइश हैं.... क्या किया जा सकता है इनका....?
ReplyDelete.
ReplyDelete.
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राँची में ही एक और बहुत बड़ा इलाका है हिंदपीढ़ी जहाँ, इसी धर्म विशेष के लोग रहते हैं, जब भी पकिस्तान क्रिकेट में जीतता है, यहाँ रहने वाले कुछ लोग ऐसा ज़श्न मनाते हैं, यहाँ खुशियों का ऐसा माहौल होता है कि शायद पकिस्तान में भी ना हो,
आदरणीय अदा जी,
एकदम सही ऑब्जर्वेशन है आपका...ऐसा होता है और मुल्क में कई जगहों पर होता है... कई जगह तो प्रशासन की ड्रिल ही होती है कि भारत-पाक का मैच है तो तनाव होगा, अत: अतिरिक्त चौकसी भी रखी जाती है।
यही नहीं, नेट पर भी आपको कुछ लोग ओसामा, अल कायदा और पाकिस्तान को डिफेंड करते मिलेंगे... २६/११ में कोई इस्लामी जेहादी शामिल नहीं था, यह सब कहते लेख भी मिलेंगे आपको नेट पर...
वजह सिर्फ एक ही है...इस्लाम की रूढ़िवादी विचारधारा जो इस्लाम को ही एकमात्र ईश्वरीय धर्म मानती है...अपने ईश्वर को ही सच्चा ईश्वर मानती है...व मजहब और ईश्वर के प्रति पूर्ण समर्पण को देश, समाज के कानून, परिवार, माता-पिता आदि से ऊपर एकमात्र जीवन लक्ष्य मानती है... वंदे मातरम का विरोध भी इसीलिये होता है... कहने वाले तो यहाँ तक कहते हैं कि वंदना ईश्वर के अतिरिक्त किसी की भी नहीं की जा सकती...माँ की भी नहीं...
अब जब धर्म के प्रति इतनी धर्मांधता भर जाती है दिमाग में... तो स्वधर्मी, भले ही वह शत्रु देश पाकिस्तान का ही क्यों न हो, अपना सगा लगने लगता है... व अपने स्वयं के देश के खिलाड़ी बेगाने, कुछ धर्मांधों को...
आज सारे विश्व में जो जेहादी आतंकवाद चल रहा है... चीन और रूस जैसे मुल्क तक अछूते नहीं रहे इस से...उस सब के पीछे भी यही धर्मांधता है।
जो चीज खास तौर पर परेशान करती है वह यह है कि हर कोई कहता है कि धर्मांध लोग गिने चुने हैं... अधिकतर वैसे नहीं हैं... पर सारे समुदाय को यही कठमुल्ले हांके रखते हैं अपने एजेंडे पर... जबकि अन्य धर्मों में भी धर्मांध हैं पर बहुमत उनको कोई महत्व नहीं देता और वे हाशिये पर हैं।
आभार!
अदा दीदी आज तो आपने दूखती रग पर हाथ रख दिया , मेरा क्रिकेट से बहुत लगाव है । ऐसा वाकया मेरे सामने भी हुआ है , मन तो किया इन देश के गद्दारो को कई जूते मारूं । इन्हे शर्म भी नहीं आती , जिस थाली में खाते हैं उसी मे छेद करने में लगे है । अभी के लिए बस , और सुबह , अभी सोने जा रहा हूँ ।
ReplyDeleteमैंने भी कई टुकड़ों में पकिस्तान देखे हैं.. वैसे मुझे ऐसे भी मित्र उसी धर्म के मिले हैं जो भारत के हारने पर हमारी-आपकी तरह खाना नहीं निगल पाते हैं.. और कई दिनों तक हमारे खिलाडियों को गरियाते रहते हैं कि इसी के कारण भारत मैच हांरा..
ReplyDeleteहिन्दूस्तान में जयचन्दों की कोई कमी नहीं...
ReplyDeleteकिसी ने बिल्कुल सच कहा है कि----दुश्मनों की हमें क्या है जरूरत, सौंप पाल रखें हैं हमने आस्तीनों में.
दी.. मैं चुप रहूँगा... क्योंकि... बोलूँगा तो लोग बोलेंगे कि बोलता है.. ऐसे लोगों के लिए
ReplyDeleteजय हिंद ही काफी है..
कमाल है ये उसी देश में होता है जिसने मौलाना आज़ाद, एपीजे अब्दुल कलाम, अब्दुल हमीद, गायक मोहम्मद रफ़ी, संगीतकार नौशाद, ट्रेजिडी किंग दिलीप कुमार, हॉकी प्लेयर जफ़र इकबाल, मोहम्मद शाहिद, क्रिकेटर मंसूर अली खां पटौदी, ज़हीर ख़ान, यूसुफ़ पठान, इरफ़ान पठान, टेनिस खिलाड़ी सानिया मिर्जा और न जाने ऐसे कितने नामों को देश का मान दुनिया में बढ़ाते देखा है...
ReplyDeleteजय हिंद...
अदाजी, अब क्या कहें? कबूतर को बिल्ली घात लगाकर देख रही थी तो कबूतर ने अपनी आँखें बन्द कर ली और मन ही मन खुश होने लगा कि अब बिल्ली को मैं नहीं देख रहा हूँ तो बिल्ली भी मुझे नहीं देख रही है। ये मुठ्ठी भर लोग हैं ऐसा लोग कहते हैं लेकिन मुठ्ठी का आकार बढ़ता ही जा रहा है। जिसमें हजारों नहीं लाखों लोग समा गए हैं और शायद करोड़ो भी। जब तक कबूतर आँख खोलकर बिल्ली का सामना नहीं करेगा तब तक ऐसा ही होगा।
ReplyDeleteGirijesh Rao ji ka kahna hai :
ReplyDeleteसैयद शहाबुद्दीन की बात है - Indian Muslim नहीं Muslim Indian । ऐसे जश्न वही लोग मनाते हैं जो धर्म को देश से उपर रखते हैं। उनके लिए पाकिस्तान दारुल इस्लाम है जब कि भारत क़ाफिरों की जमीं। पाकिस्तान की विजय को वे इस्लाम की विजय मानते हैं। ऐसे लोग पाकिस्तानी हमले में उधर का ही पक्ष लेंगे। डर के मारे भले खुल कर सामने न आएँ लेकिन दिल उधर ही रहेगा ....
आपराधिक प्रवृत्ति के लोग तो हर समुदाय में हैं जो ऐसे मौकों पर धन कमाने और अपने स्वार्थ चमकाने के लिए कुछ भी कर जाते हैं लेकिन उनमें और आप के लेख में वर्णित लोगों में एक मूलभूत अंतर है। आपराधिक प्रवृत्ति तो दण्ड वगैरह से काबू में आ जाती है लेकिन एक पूरी सोच जो कट्टर सैद्धांतिकता का बुरका ओढ़े हुए है, दण्ड से नहीं दूर होने वाली। जब तक इस्लाम अंतिम सन्देश रहेगा, जब तक क़ुरआन/हदीस की हर बात अकाट्य अतर्क्य ईश्वरीय सन्देश रहेगी, ऐसी समस्याएँ रहेंगी। केवल भारत ही नहीं पूरा विश्व झेल रहा है।
अदाजी,
ReplyDeleteजो आपने लिखा है न सच है, ऐसे ही माहौल में मैं रह रही हूँ. बिलकुल यही सब कुछ मैं आज भी देख रही हूँ, और ये मैच मैच नहीं बल्कि एक युद्ध के तरीके से लिया जाता है. आतिशबाजी और नारे लगाना बड़ी आम बात है. ये यहाँ की हवा पानी और मिटटी में जीकर भी यहाँ के माँ से नहीं हो पाते हैं. किन्तु ये कुछ लोग अपवाद होते हैं नहीं तो कितने हमारे मित्र है, जो सिर्फ इन्सान हैं , मजहब का इंसान से कोई नाता नहीं है. एक इंसानियत ही मजहब होता है हर सच्चे इंसानका.
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रेखा श्रीवास्तव
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