जानते हो !!
जिस पल तुमने मुझे
छूआ था
मैं अँकुरा गई
तुम्हारे प्रेम की
जडें मेरी शाखाएँ
बन कर
मेरे वजूद को
वहीँ खड़ा कर गईं
जहाँ तुम्हारी
बाहों में मेरी साँसें
पत्तों की तरह
लरजती हैं
मेरे होठों के फूल
मुस्कुरा उठते हैं
मेरे होठों के फूल
मुस्कुरा उठते हैं
और उनकी ख़ुशबू
बिखर जाती है
तुम्हारे आस-पास
कौन रोकेगा मुझे
तुम्हारी साँसों
में उतरने से
तुम्हारे पोर-पोर में
में बसने से ?
मैं कहीं नहीं हिलूँगी
इतना जान लो तुम....
और तो सब ठीक है बस प्रीतम के लिए साथ ऑक्सीजन के सिलेंडर का इंतज़ाम और करके रख लिया जाए...
ReplyDeleteजय हिंद...
पूर्ण समर्पण को अभिव्यक्त करती हुई सुन्दर रचना!
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ReplyDeleteAgadh prem aur samarpan ke bhav liye hai aapkee rachana............Mubarakvad kee haqdar bhee hai...........
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ReplyDeleteकौन रोकेगा मुझे
ReplyDeleteतुम्हारी साँसों
में उतरने से
तुम्हारे पोर-पोर में
में बसने से ?
एक गहरा अहसास,भाव भरा।
सुंदर कविता-आभार
खूबसूरत पंक्तियां
ReplyDeleteएक सिहरन उभार दी.
ReplyDeleteगहरे एहसास और भाव से अभिव्यक्त यह रचना बहुत पसंद आई शुक्रिया
ReplyDeleteबहुत भावनापूर्ण श्रृंगाररस से परिपूर्ण रचना....सुन्दर अभिव्यक्ति..
ReplyDeletebahut sundar anubhuti ko behad khoobsurat dhang se pakda hai..badhai
ReplyDeleteछुअन पर अंकुराने के भाव समर्पण का चरम है.. जो प्रेम के लिए सबसे आवश्यक तत्व है... साँसों का पत्तो की तरह लरजना वाकई उम्दा प्रयोग है.. प्रेम रस से ओत प्रोतरचना..
ReplyDeleteवाह इस अदा पर कौन ना मर मिट जायेगा? बहुत भावमय रचना है बधाई । खुशदीप की बात ध्यान से सुन लो अदा जी___
ReplyDeleteक्या बात है अदा जी ! फागुन का असर दीख रहा है :) ...बहुत खुबसूरत नाजुक से अहसास वाली रचना.
ReplyDeleteपहले समर्पण भाव की सहज अभिव्यंजना !
ReplyDeleteफिर सजग प्रतीति कराने का उपक्रम कि
"कौन रोकेगा मुझे तुम्हारी साँसों में उतरने से",और फिर क्या ठसक से कही गयी पंक्तियाँ - "मैं कहीं नहीं हिलूँगी/इतना जान लो तुम...."
हैरान करती जाती है हर क्षण !
बड़ी ख़ूबसूरत रचना है....मीठा सा अहसास लिए
ReplyDeleteजानते हो !!
ReplyDeleteजिस पल तुमने मुझे छूआ था
मैं अंकुरा गयी
कितना मासूम और सात्विक एहसास संजोया है
बहुत ही खूबसूरत
जानते हो !!
ReplyDeleteजिस पल तुमने मुझे
छूआ था
मैं अंकुरा गयी
तुम्हारे प्रेम की
जडें मेरी शाखाएं
बन कर
Kitne sundar alfaaz hain!
बहुत सुन्दर , कोमल, निर्मल अहसास लिए रचना।
ReplyDeleteअदा जी आनंद आ गया।
athah prem aur sachchi lagan se judi ,gahri rachna ati sundar
ReplyDeleteएहसास को प्रकट करने के लिए शब्द नहीं हैं हमारे पास
ReplyDeleteपूरी कविता अहसास से पूर्ण है ......
ReplyDeleteबहुत सुन्दर भाव!!
ReplyDeleteतुम्हारे आस-पास
ReplyDeleteकौन रोकेगा मुझे
तुम्हारी साँसों
में उतरने से
तुम्हारे पोर-पोर में
में बसने से ?
मैं कहीं नहीं हिलूँगी
इतना जान लो तुम....
bahut sunder abhivayakti
pyaar mein khoobsurat ehsaas
अँकुराना
ReplyDeleteपत्तों की तरह लरज जाना
.. यूँ प्रगल्भ हो
स्पर्श के प्रथम पल को जीना..
प्रेम पथ पर इतना आगे बढ़ जाना!
फिर धिराना...
बताइए कौन सा छ्न्द ऐसे भाव सहेजेगा
?
..
शुभकामनाएँ कि यह ज्योति यूँ ही उठती रहे ।
hnm...
ReplyDeleteतस्वीर बनाए क्या कोई क्या कोई लिखे तुझ पर कविता.....
रंगों , छंदों में समाएगी.......................
जिस पल
ReplyDeleteतुमने मुझे छूआ था
मैं अंकुरा गयी
'अंकुरा गयी' इस शब्द का प्रयोग जबरदस्त लगा....
कविता में छू लेने वाले भावों का अद्भुत प्रवाह है!
Lajawab Di...
ReplyDeleteनमन इस समर्पण की भावना को और धन्य है आपका धमकाने का अंदाज :-
ReplyDelete’कौन रोकेगा मुझे
तुम्हारी साँसों
में उतरने से
तुम्हारे पोर-पोर में
में बसने से ?
मैं कहीं नहीं हिलूँगी
इतना जान लो तुम...
कौन रोकेगा मुझे
ReplyDeleteतुम्हारी साँसों
में उतरने से
तुम्हारे पोर-पोर में
में बसने से ?
मैं कहीं नहीं हिलूँगी
इतना जान लो तुम....
सच... कौन रोकेगा इस समर्पिता को ....और अगले ही पल गहन प्रेम मिश्रित धमकी भी ...मन मोह गयी इस समर्पिता की दादागिरी ....
हँसे नहीं तो कोटा पूरा नहीं होगा ...मैं कहीं हिलने वाली नहीं ...सच्ची इस भारी भरकम काया को हिलाना इतना आसान कहाँ है ...२-३ क्रेन लगेंगी आपको हिलाने में ...:):):):)
बहुत ही उम्दा अभिव्यक्ति लगी दीदी ।
ReplyDeleteNamaste :)
ReplyDeleteतुम्हारे आस-पास
कौन रोकेगा मुझे
तुम्हारी साँसों
में उतरने से
तुम्हारे पोर-पोर में
में बसने से ?
मैं कहीं नहीं हिलूँगी
इतना जान लो तुम....
Perfect!!! Great work done :)
I loved the overall concept.
Prem Sahit,
Dimple
kavita aapne bahut hi kamaal ki likhi hai.
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