Monday, February 22, 2010

जानते हो !!


जानते हो !!
जिस पल तुमने मुझे
छूआ था
मैं अँकुरा गई 
तुम्हारे प्रेम की
जडें मेरी शाखाएँ 
बन कर
मेरे वजूद को
वहीँ खड़ा कर गईं 
जहाँ तुम्हारी
बाहों में मेरी साँसें 
पत्तों की तरह
लरजती हैं 
मेरे होठों के फूल 
मुस्कुरा उठते हैं
और उनकी ख़ुशबू 
बिखर जाती है
तुम्हारे आस-पास
कौन रोकेगा मुझे
तुम्हारी साँसों 
में उतरने से 
तुम्हारे पोर-पोर में
में बसने से ?
मैं कहीं नहीं हिलूँगी
इतना जान लो तुम....

33 comments:

  1. और तो सब ठीक है बस प्रीतम के लिए साथ ऑक्सीजन के सिलेंडर का इंतज़ाम और करके रख लिया जाए...

    जय हिंद...

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  2. पूर्ण समर्पण को अभिव्यक्त करती हुई सुन्दर रचना!

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  4. Agadh prem aur samarpan ke bhav liye hai aapkee rachana............Mubarakvad kee haqdar bhee hai...........

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  6. कौन रोकेगा मुझे
    तुम्हारी साँसों
    में उतरने से
    तुम्हारे पोर-पोर में
    में बसने से ?

    एक गहरा अहसास,भाव भरा।
    सुंदर कविता-आभार

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  7. खूबसूरत पंक्तियां

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  8. गहरे एहसास और भाव से अभिव्यक्त यह रचना बहुत पसंद आई शुक्रिया

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  9. बहुत भावनापूर्ण श्रृंगाररस से परिपूर्ण रचना....सुन्दर अभिव्यक्ति..

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  10. bahut sundar anubhuti ko behad khoobsurat dhang se pakda hai..badhai

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  11. छुअन पर अंकुराने के भाव समर्पण का चरम है.. जो प्रेम के लिए सबसे आवश्यक तत्व है... साँसों का पत्तो की तरह लरजना वाकई उम्दा प्रयोग है.. प्रेम रस से ओत प्रोतरचना..

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  12. वाह इस अदा पर कौन ना मर मिट जायेगा? बहुत भावमय रचना है बधाई । खुशदीप की बात ध्यान से सुन लो अदा जी___

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  13. क्या बात है अदा जी ! फागुन का असर दीख रहा है :) ...बहुत खुबसूरत नाजुक से अहसास वाली रचना.

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  14. पहले समर्पण भाव की सहज अभिव्यंजना !
    फिर सजग प्रतीति कराने का उपक्रम कि
    "कौन रोकेगा मुझे तुम्हारी साँसों में उतरने से",और फिर क्या ठसक से कही गयी पंक्तियाँ - "मैं कहीं नहीं हिलूँगी/इतना जान लो तुम...."

    हैरान करती जाती है हर क्षण !

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  15. बड़ी ख़ूबसूरत रचना है....मीठा सा अहसास लिए

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  16. जानते हो !!
    जिस पल तुमने मुझे छूआ था
    मैं अंकुरा गयी
    कितना मासूम और सात्विक एहसास संजोया है
    बहुत ही खूबसूरत

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  17. जानते हो !!
    जिस पल तुमने मुझे
    छूआ था
    मैं अंकुरा गयी
    तुम्हारे प्रेम की
    जडें मेरी शाखाएं
    बन कर
    Kitne sundar alfaaz hain!

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  18. बहुत सुन्दर , कोमल, निर्मल अहसास लिए रचना।
    अदा जी आनंद आ गया।

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  19. athah prem aur sachchi lagan se judi ,gahri rachna ati sundar

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  20. एहसास को प्रकट करने के लिए शब्द नहीं हैं हमारे पास

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  21. पूरी कविता अहसास से पूर्ण है ......

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  22. बहुत सुन्दर भाव!!

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  23. तुम्हारे आस-पास
    कौन रोकेगा मुझे
    तुम्हारी साँसों
    में उतरने से
    तुम्हारे पोर-पोर में
    में बसने से ?
    मैं कहीं नहीं हिलूँगी
    इतना जान लो तुम....


    bahut sunder abhivayakti
    pyaar mein khoobsurat ehsaas

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  24. अँकुराना
    पत्तों की तरह लरज जाना
    .. यूँ प्रगल्भ हो
    स्पर्श के प्रथम पल को जीना..
    प्रेम पथ पर इतना आगे बढ़ जाना!
    फिर धिराना...

    बताइए कौन सा छ्न्द ऐसे भाव सहेजेगा
    ?
    ..
    शुभकामनाएँ कि यह ज्योति यूँ ही उठती रहे ।

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  25. hnm...

    तस्वीर बनाए क्या कोई क्या कोई लिखे तुझ पर कविता.....
    रंगों , छंदों में समाएगी.......................

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  26. जिस पल
    तुमने मुझे छूआ था
    मैं अंकुरा गयी
    'अंकुरा गयी' इस शब्द का प्रयोग जबरदस्त लगा....
    कविता में छू लेने वाले भावों का अद्भुत प्रवाह है!

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  27. नमन इस समर्पण की भावना को और धन्य है आपका धमकाने का अंदाज :-
    ’कौन रोकेगा मुझे
    तुम्हारी साँसों
    में उतरने से
    तुम्हारे पोर-पोर में
    में बसने से ?
    मैं कहीं नहीं हिलूँगी
    इतना जान लो तुम...

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  28. कौन रोकेगा मुझे
    तुम्हारी साँसों
    में उतरने से
    तुम्हारे पोर-पोर में
    में बसने से ?
    मैं कहीं नहीं हिलूँगी
    इतना जान लो तुम....

    सच... कौन रोकेगा इस समर्पिता को ....और अगले ही पल गहन प्रेम मिश्रित धमकी भी ...मन मोह गयी इस समर्पिता की दादागिरी ....

    हँसे नहीं तो कोटा पूरा नहीं होगा ...मैं कहीं हिलने वाली नहीं ...सच्ची इस भारी भरकम काया को हिलाना इतना आसान कहाँ है ...२-३ क्रेन लगेंगी आपको हिलाने में ...:):):):)

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  29. बहुत ही उम्दा अभिव्यक्ति लगी दीदी ।

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  30. Namaste :)

    तुम्हारे आस-पास
    कौन रोकेगा मुझे
    तुम्हारी साँसों
    में उतरने से
    तुम्हारे पोर-पोर में
    में बसने से ?
    मैं कहीं नहीं हिलूँगी
    इतना जान लो तुम....

    Perfect!!! Great work done :)
    I loved the overall concept.

    Prem Sahit,
    Dimple

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  31. kavita aapne bahut hi kamaal ki likhi hai.

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