तुम्हारी हर दगाबाज़ी हमें जी भर रुलाती है
सबेरा जब भी होता है तो हम सब भूल जाते हैं
यहाँ ये कैसी दुनिया है जिसे आभासी कहते हैं
अगर पत्थर वो झूठे हैं, क्यूँ सच्चे चोट खाते हैं ?
ये दिल इस दर्द के जज़्बात से जब भी लरजता है
पकड़ कर डाल हम ख़ामोशियों के झूल जाते हैं
बड़ा है कौन यां ग़र तुम, कभी इस बात को सोचो
चमारों के छुए पर ये बिरहमन क्यूं नहाते हैं..?
चमारों के छुए पर ये बिरहमन क्यूं नहाते हैं..?
सभी देवर से क्यूँ बनकर के भाभी जाँ बुलाते हैं ?