एक पुरानी कविता...
हे माधव क्या समझ पाए तुम राधा का संताप
तुम सर्वज्ञ दीनबंधु हर लेते हो हर पाप
किस दुविधा में डाला उसको, कैसा दिया यह ताप
यह अलौकिक प्रेम तुम्हारा बन गया उसका शाप
राधा घर से बे-घर हो ली
तुमने अपनी दुनिया संजो ली
कभी सोचा क्या हुआ उसका
जो करती रही बस हरी जाप
यह अलौकिक प्रेम तुम्हारा बन गया उसका शाप
जब तक चाह उसे घुमाया
वन-कानन में रास रचाया
यूँ उड़ा दिया ह्रदय से
जैसे जल बने भाप
यह अलौकिक प्रेम तुम्हारा बन गया उसका शाप
कान्हा तुम भी अलग नहीं हो
पुरुष वर्ग से विलग नहीं हो
खेल-खेल ठुकराया है
राधा-मीरा सब एक माप
यह अलौकिक प्रेम तुम्हारा बन गया उसका शाप
भामा, रुक्मणी, मीरा या राधा
कैसे जीव-ब्रह्म का रिश्ता है साधा ?
सबने तुमको ह्रदय बसाया
तुम करते रहे मजाक
यह अलौकिक प्रेम तुम्हारा बन गया उसका शाप
क्या कहा राधा का दुःख था ही कितना ?
अरे ! सम्पूर्ण भुवन में दुःख है जितना
सोच के देखो कभी कृष्ण तो
ह्रदय जायेगा काँप
यह अलौकिक प्रेम तुम्हारा बन गया उसका शाप
कभी सोचा कहाँ गयी, क्या हुआ था उसको
तुमने ह्रदय बसाया जिसको
बौरा गयी तुम्हें ढूंढ़ ढूंढ़
निगल गया मरू-ताप
यह अलौकिक प्रेम तुम्हारा बन गया उसका शाप
ye kya Di, telepathy jaanti ho lagata hai :)
ReplyDeletehttp://kavyamanjusha.blogspot.com/
राधा का संताप-उत्तम अभिव्यक्ति.
ReplyDeleteBahut hi khoobsurat chitra dhoondha di... kavita bhi lajawab hai... lekin maine kahin padha tha ki Radha ji ne swayam prem ke adarsh ke pratishthapan ke liye Krishna ke vivah prastaav aur unke sath Dwarika jane ko mana kar diya tha...
ReplyDeletesanyog ki aaj meri post bhi sath me prakashit hui..(sath me dheer se poochh raha hoon kal aap theen nahin kya... ha ha ha.)
ReplyDeleteअद्भुत चित्र और बेहतरीन रचना
ReplyDeleteराधा के संताप को भला समझा ही किसने
राधा का चित्र बहुत सुन्दर लगा...
ReplyDeleteकविता के भाव-पक्ष पर अभी कुछ कहने का मन नहीं है..
बेहतरीन !
ReplyDeleteसुन्दर भावाभिव्यक्ति!
ReplyDeleteमानवीय भावनाओं के अनुसार यह प्रेम का एक दूसरा पक्ष अवश्य है किन्तु कृष्ण ने राधा को भी विस्मृत नहीं किया। वे तो कृष्ण की आत्मा थीं। कृष्ण ब्रह्म हैं और राधा माया!
हमारे पूर्वज कवियों ने राधा को कृष्ण से भी उच्च स्थान दिया है इसी लिये कहा हैः
वृन्दावन ने वृक्ष को मरम ना जाने कोय।
डार पात फल फूल में राधे राधे होय॥
विख्यात फाग रचयिता 'चन्द्रसखी' के अनुसार राधा ने ही कृष्ण को नृत्य की शिक्षा दी। वे लिखते हैं:
नचन सिखावै राधा प्यारी
हरि को नचन सिखावै राधा प्यारी
जमुना पुलिन निकट वंशीवट
शरद रैन उजियारी
हरि को नचन ...
रूप भरे गुण हाथ छड़ी लिये
डरपत कुंज बिहारी
हरि को नचन ...
कविता पहले भी पढ़ चुकी हूँ ...मगर यह विषय बार बार पढने पर भी नवीन और प्रासंगिक लगता है ...कृष्ण और राधा के अलौकिक प्रेम पर कोई प्रश्न खड़ा ही नहीं किया जा सकता .... मगर इससे राधा ने संताप ही झेला ...
ReplyDeleteकृष्ण के मथुरा जाने के बाद राधा का क्या हुआ ...यह प्रश्न मुझे भी बहुत सालता रहा है ...जब तब
भागवत कथा के दौरान कई बार जानना चाहा मगर इसका जवाब आज तक मिला नहीं ...
पौराणिक पत्रों पर आपका चिंतन और काव्य भाव अधिक मुखर होता है ...बहुत सुन्दर प्रविष्टि ...
राधा की (पनिहारिन )तस्वीर बहुत मन लुभा रही है ...:)
मेरी पूर्व टिप्पणी में वर्तनी की गलती रह गई है। कृपया "वृन्दावन ने वृक्ष को" को "वृन्दावन के वृक्ष को" पढ़ा जाये।
ReplyDeleteराधा का संताप जानने के लिये राधा सा हृदय होना आवश्यक है । सुन्दर अभिव्यक्ति ।
ReplyDeleteयह अलौकिक प्रेम तुम्हारा बन गया उसका शाप
ReplyDeleteगहन भाव .
कान्हा तुम भी अलग नहीं हो
ReplyDeleteपुरुष वर्ग से विलग नहीं हो
खेल-खेल ठुकराया है
राधा-मीरा सब एक माप
यह अलौकिक प्रेम तुम्हारा बन गया उसका शाप
भामा, रुक्मणी, मीरा या राधा
कैसे जीव-ब्रह्म का रिश्ता है साधा ?
सबने तुमको ह्रदय बसाया
तुम करते रहे मजाक
यह अलौकिक प्रेम तुम्हारा बन गया उसका शाप
सही कहा वाणी नेभी उसकी ऐसी ही प्रेम विरह पर रचना पढ कर आ रही हूँ वैसे कृष्ण के बहाने औरत का दर्द बहुत मर्मस्पर्शी ढंग से लिखा है
कान्हा तुम भी अलग नहीं हो
पुरुष वर्ग से विलग नहीं हो
खेल-खेल ठुकराया है
राधा-मीरा सब एक माप
यह अलौकिक प्रेम तुम्हारा बन गया उसका शाप
भामा, रुक्मणी, मीरा या राधा
कैसे जीव-ब्रह्म का रिश्ता है साधा ?
सबने तुमको ह्रदय बसाया
तुम करते रहे मजाक
यह अलौकिक प्रेम तुम्हारा बन गया उसका शाप
शुभकामनायें
अदा जी, बस यही कहूँगा कि बेहद सुन्दर कविता !
ReplyDeletekm se km ishvriy ttv ko to bina smjhe pryog nhi krna chahiye kya aap ko pta hai ki radha ka shastron me jikr hi nhi hai aap ko prem ki us ki abhivykti ki poori chhoot hai pr jo stya nash mdhy yug me huaa vh to ab mt kro kisi any mt me aisa pryog kr ke dikhao pta chl jayega
ReplyDeletedr.vedvyathit@gmail.com
मेरी ई मेल से भेजी टिप्पणी कहाँ गयी ?मेरा ब्लॉग व्रत टूटा और यहाँ टिप्पणी भी नदारद -इसे कहते हैं गुनाह बेलज्जत
ReplyDeleteArvind ji kahin :
ReplyDeleteआज आपकी यह काव्य सुषमा वैसी ही निखरी है जिसका मैं फैन रहा हूँ -पुराणोक्त /ऐतिहासक पात्रों के मनोभावों के चित्रण में आपको महारत हासिल है -साधुवाद !
कान्हा तुम भी अलग नहीं हो,
ReplyDeleteपुरुष वर्ग से विलग नहीं हो,
खेल-खेल ठुकराया है,
राधा-मीरा सब एक माप,
यह अलौकिक प्रेम तुम्हारा बन गया उसका शाप...
क्या इससे आगे भी किसी के लिए कुछ कहने को बच जाता है...
जय हिंद...
kavita pahle bhi padhi hai....fir se vahi kahungi ..Atisundar
ReplyDeleteOne of your best.
पढ़ा है शायद इस कविता को पहले ! अरविन्द जी ने सही कहा - अभिनव प्रस्तुति है यह ! यही अन्दाज विरल है इस ब्लॉगजगत में ।
ReplyDeleteबेहतरीन कविता । आभार ।
bahut sundar kavita hai, hamesha ki tarah.
ReplyDeleteमैंने तो पहली बार ही पढ़ी...बहुत ही सुन्दर भावाभिव्यक्ति है...राधा के संताप को समझने की कोशिश किसी ने नहीं की सचमुच...ख़ूबसूरत कविता...
ReplyDeleteक्या कहा राधा का दुःख था ही कितना ?
ReplyDeleteअरे ! सम्पूर्ण भुवन में दुःख है जितना
सोच के देखो कभी कृष्ण तो
ह्रदय जायेगा काँप
यह अलौकिक प्रेम तुम्हारा बन गया उसका शाप
...वाह!
दोनों चित्र बहुत कुछ कहते हैं.
कर्तव्य-पथ जब रहा पुकार,
ReplyDeleteनिज सुख का कहां रहा विचार।
देकर राधा को संताप,कहां कृष्ण सुखी रह पाये थे,
हंसते-मुस्कराते थे,क्या अपनी व्यथा कह पाये थे?
मिलन क्षणिक है, विरह सत्य है,
राधा - कृष्ण का प्रेम नित्य है।
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just trying to look at the other side of the coin - और वैसे भी सूरज को दिया दिखाने में दिये का तो कुछ नहीं जाने वाला, हां सूरज की श्रेष्ठता कुछ और बढेगी।
हमेशा की तरह आप की बहुत सुंदर प्रस्तुति।
सही कहा ’मो सम कौन’ ने---विरह में, रोने से कठिन मुस्कुराना होता है, कर्तव्य पथ पर स्वयं के सुख छोडने ही होते हैं---नहीं तो न क्रश्ण --क्रिश्ण बन पाते न राधा -राधा ।
ReplyDelete--एक कथा के अनुसार , राजा ब्रषभानु ही पलायन करके राधा को लेकर दूर देश ( रुक्मिणी के देश )लेजाकर वहां अपना राज्य स्थापित किया, राधा ही रुक्मिणी के नाम से प्रसिद्ध हुई और क्रष्ण से विवाह।
ऐसा मनोहर चित्र आपने चस्पा किया है कि आँखें उसपर से हटती ही नहीं...
ReplyDeleteमैं प्रवीण जी की ही बात दुहराना चाहूंगी...राधा का संताप समझने के लिए राधा बनना पड़ेगा....
यूँ राधा और कृष्ण दो नहीं एक ही थे...इसलिए दो के रूप में देखना ही व्यर्थ है...
बहुत ही खूबसूरत कविता है। इन मिथकों पर जब आप लिखती हो, तो आपका कोई सानी नहीं है यहाँ। बहुत खूब...पाठ्य-पुस्तक में शामिल होने लायक काव्य...यकीनन!
ReplyDeleteकिंतु टिप्पणियों पर हैरान हूँ कि इतने विज्ञ लोग आये और किसी ने भी नहीं बताया कि राधा का हुआ क्या। क्या सचमुच कोई नहीं जानता? आप भी नहीं? मैं नहीं मानता.....
गौतम जी राधा के बारे में निम्न तथय हैं---- १.राधा अपने पति( अनय ) के साथ वहीं रहती रही,जो कन्स का एक नायक था, ब्रज का निवासी तथा मथुरा को दूध की सप्लाई करने वाला ठेकेदार ।
ReplyDelete२. राधा, यसोदा के साथ रही--क्रष्ण --राधा का मिलन पुनः कुरुक्षेत्र में, सूर्य ग्रहण के अवसर पर हुआ, जहां ब्रन्दावन से क्रष्ण व मथुरा से नन्द, यसोदा व राधा आये थे ।
३. राधा क्रिष्ण की वन्सी बन गयी और सदा साथ रही ।
४. महाभारत के अन्त में , अपनी म्रित्यु से पूर्व क्रष्ण व्रन्दावन गये थे व राधा से मिले, उसके पश्चात ही राधा अन्तर्ध्यान हुई ।
YADI AAP RADHA KRISHNA KE ANANYA PREM KO NAHI JANTE SAMAJHATE, TO AISI KAVITA KO RADHA KA NAAM DENA ANUCHIT HAI, PAHLE AAP RADHA MAHABHAV KO SAMJHE
ReplyDeleteमेरे प्रिय पाठकगण,
ReplyDeleteमें एक साधारण स्त्री हूँ...और एक स्त्री की व्यथा ही समझ सकती हूँ....
मुझे नहीं मालूम कि राधा बंसी बन गयी या राधा का भाव क्या था...मैं सिर्फ इतना जानती हूँ...श्री कृष्ण ने उसके साथ क्या किया ..बस
मेरी कवितायें आध्यात्मिक नहीं है...इसी लोक की हैं तथा पूर्ण रूप से मौलिक हैं....
मैं तो सिर्फ वही लिखती हूँ जो मैं स्वयं महसूस करती हूँ...अगर मैं राधा होती तो मुझे कैसा लगता ..बस इतना ही कहना है...
आप सबका आभार...!!
अदा जी,सधारण स्त्री कहकर हम अपने दायित्व से नहीं हट सकते; कवि या साहित्यकार---साधारण स्त्री या पुरुष नहीं होते-अपितु सार्वजनिक काव्य रचने वाले का विशिष्ट सामाज़िक दायित्व होता है--श्रिष्टि की सबसे कठिन श्रिष्टि, काव्य रचना होती है- अतः
ReplyDeleteअनाम जी के कथन में उचित तथ्य है।
----यदि वास्तव में राधा होने या राधा-भाव को समझना है तो ब्रन्दावन जाकर राधा- भाव/ सखी भाव समझें।
राधा कृष्ण की प्रेमिका थी और अनय की पत्नी थी, लेकिन भारत में अधिकांश जगह राधा कृष्ण के मंदिर बने हुए हैं. लेकिन यदि कोई पुरुष दूसरे की पत्नी से आज प्रेम करे तो हंगामा खड़ा हो जाता है. ऐसा क्यों है? भगवान् को हम विवाह इतर प्रेम की अनुमति दे देते हैं किन्तु उनके भक्तों को बेइज्जत करते हैं क़ानून भी इसे जुर्म मानता है. भगवान् को सारी छूट देने वाला समाज भक्तों के मामले में इतना अनुदार क्यों है.......?
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