इस आलेख के अंश यहाँ से लिए गए हैं..http://www.indiaagainstcorruption.info/2011/05/some-hidden-facts-about-the-nehru-gandhi-dynasty/
फ़िरोज़ खान के पिता का नाम, नवाब खान था, फ़िरोज़ खान की माँ पारसी थी, उसका उपनाम गैनडी था, जो एक पारसी उपनाम माना जाता है...फ़िरोज़ की माँ ने शादी के वक्त इस्लाम कबूल कर लिया था...यही वजह है बाद में फ़िरोज़ खान को, उपनाम 'गैनडी', जो उसकी माँ का उपनाम था, दे दिया गया, जिसे धीरे से 'गाँधी' कर दिया गया...मिलते जुलते नामों को अपना कर, देश की भोली जनता को अच्छा-ख़ासा बेवकूफ़ बनाया गया था...फ़िरोज़ ने, शादी का प्रस्ताव इंदिरा के समक्ष उसके १६वें जन्मदिन से पहले ही रखा था, जिसे इंदिरा के घर वालों ने सीधे से ख़ारिज़ कर दिया था, इंदिरा के घर वालों की नज़र में, इंदिरा उस समय बहुत छोटी थी और फ़िरोज़ किसी भी हाल में उसके काबिल नहीं था.....एक कारण यह भी था कि, उनदिनों फ़िरोज़ और कमला नेहरु के प्रेम सम्बन्ध की बातों का बाज़ार भी बहुत गर्म था, कमला नेहरु और फ़िरोज़ खान के पोस्टर भी इलाहबाद की सड़कों की शोभा बढ़ा रहे थे, और जनता को इस अनुचित सम्बन्ध पर सख्त एतराज़ भी था....नेहरु तब जेल में थे और उनके लिए मुंह दिखाना मुहाल हो गया था....कमला नेहरु ने इस शादी का पुरजोर विरोध किया था, उन्होंने इंदिरा से कहा था, ये शादी करके वो अपने जीवन कि सबसे बड़ी गलती करेगी, जवाहलाल भी इस शादी के विरोध में थे, शायद उन्हें , कमला और फ़िरोज़ के समबन्ध पर उतना यक़ीन न भी रहा हो, लेकिन इतना ज़रूर यक़ीन था कि फ़िरोज़ ने कोई न कोई बदसलूकी की है कमला के साथ...इसलिए ऐसे इंसान को वो अपना दामाद क़बूलने को हरगिज़ भी तैयार नहीं थे...
हालांकि, इंदिरा के विवाहेतर रिश्तों के लिए कुछ हद तक, फ़िरोज़ गांधी की लगातार बेवफ़ाई, और उनके एकाकी जीवन, को कारण माना जा सकता है, कहा जा सकता है कि फ़िरोज़ के इस व्यवहार ने इंदिरा को ऐसा करने के लिए उकसाया था, फ़िरोज़ के अन्तरंग सम्बन्ध कई महिलाओं से थे, जैसे, भारतीय संसद की ग्लैमर गर्ल तरकेश्वरी सिन्हा, मह्मुना सुल्ताना और सुभद्रा जोशी..फ़िरोज़ गाँधी की महिला मित्रों में और भी नाम आते हैं जैसे एक खूबसूरत नेपाली लड़की जो ओल इंडिया रेडियो में कार्यरत थी, और एक तलाक़शुदा ब्रह्मण परिवार की महिला जो केरल की थी...
इंदिरा गाँधी, ने अपने शासन काल में बहुत सारी गलतियाँ भी की थीं...जिसमें, धीरू भाई अम्बानी की आउट ऑफ़ वे जाकर मदद करना, पूर्वी पाकिस्तान में 'मुक्तिवाहिनी सेना' का समर्थन करना, जो राजनितिक दृष्टि से तो ठीक था लेकिन उन ४० लाख अवैध अप्रवासियों को नज़रंदाज़ कर देना, जिन्होंने पश्चिमी बंगाल में अवैध रूप से प्रवेश किया और जिनकी संख्या आज २ करोड़ हो गई है, बहुत भारी गलती थी...इंदिरा गाँधी ने, १९७१ के युद्ध में क़ैद किए गए ९०,००० पाकिस्तानी सैनिकों को तो बिना शर्त छोड़ दिया, लेकिन भारतीय सैनिकों को, जो पाकिस्तान में वार ऑफ़ प्रिजनर्स थे, उन्हें पाकिस्तान से लाना भूल गईं..इंदिरा गाँधी ने हिन्दुस्तानी फौजियों के बलिदान और शौर्य का भी अपमान कर दिया जब बिना शर्त, पाकिस्तान को हज़ारों एकड़ ज़मीन वापिस कर दी, जिसे हमारे जवानों ने अपने प्राणों की आहुति देकर जीता था...
इंदिरा गाँधी की सबसे बड़ी भूल और हिन्दुस्तान का काला अध्याय है, 'इमरजेंसी', जिसे १९७७ में इंदिरा गाँधी ने अपने सरकार में बढ़ते भ्रष्टाचार को नहीं रोक पाने और जयप्रकाश नारायण की क्रांति से मुंहकी खाने, के एवज में लगाई थी...आपातकाल की घोषणा ने इंदिरा गाँधी को एक 'तानाशाह' की पदवी भी दे दी...माननेवाले 'इमरजेंसी' का खलनायक, इंदिरा पुत्र, संजय गाँधी को भी मानते हैं,
'इमरजेंसी' संजय के लिए, सत्ता, शक्ति और पैसा का खुल जा सिम सिम था, उसका अपनी माँ, इंदिरा पर, ज़बरदस्त भावनात्मक पकड़ थी...और इस बात का उसने भरपूर फायदा भी उठाया था, तब तक, जब तक इंदिरा झेल पायी थी...बाद में, सत्ता की लोलुपता की लड़ाई में, माँ का प्यार हार गया था...
नेहरु, इंदिरा, आखिर में मोहम्मद युनुस |
इंदिरा गाँधी, धीरेन्द्र ब्रह्मचारी |
प्रियदर्शिनी इंदिरा नेहरु (गाँधी) को ऑक्सफोर्ड
विश्वविद्यालय में भर्ती कराया गया था, लेकिन वहाँ से उसे बाहर का रास्ता
दिखा दिया गया, क्योंकि पढाई में उसका प्रदर्शन अच्छा नहीं था, फिर उसे
गुरुदेव रविन्द्र नाथ ठाकुर के शांतिनिकेतन विश्वविद्यालय में भर्ती कराया
गया था,
लेकिन, गुरुदेव रवीन्द्रनाथ ठाकुर ने ही उसे, उसके बुरे आचरण की वजह से निकाल बाहर किया....यहाँ हम बात कर रहे हैं, हमारे राष्ट्र के प्रथम प्रधानमन्त्री जवाहरलाल नेहरु की एकमात्र संतान की दशा की...पढाई के मामले में प्रियदर्शिनी इंदिरा नेहरु, एक सामान्य छात्रा थी...
कालांतर में, प्रियदर्शिनी नेहरु ने फ़िरोज़ खान नामक नौजवान से विवाह किया, फ़िरोज़ खान, गुजरात के जूनागढ़ क्षेत्र का रहनेवाला
था, फ़िरोज़ खान शराब का किराने का व्यापारी था, अपने इसी काम के सिलसिले में उसे, आनंद भवन. प्रियदर्शिनी इंदिरा नेहरु, के निवास स्थान, जाना पड़ता था..फ़िरोज़ खान, आनंद भवन में भी शराब की सप्प्लाई किया करता था, शायद वहीँ उसकी मुलाक़ात, प्रियदर्शिनी इंदिरा नेहरु से हुई हो....
आनंद भवन पहले इशरत
मंजिल के नाम से जाना जाता था, इशरत मंज़िल नेहरु परिवार से पहले, मुबारक अली नामक वकील के पास थी, और मोतीलाल नेहरु, मुबारक अली के मुलाजिम थे...
फ़िरोज़ खान के पिता का नाम, नवाब खान था, फ़िरोज़ खान की माँ पारसी थी, उसका उपनाम गैनडी था, जो एक पारसी उपनाम माना जाता है...फ़िरोज़ की माँ ने शादी के वक्त इस्लाम कबूल कर लिया था...यही वजह है बाद में फ़िरोज़ खान को, उपनाम 'गैनडी', जो उसकी माँ का उपनाम था, दे दिया गया, जिसे धीरे से 'गाँधी' कर दिया गया...मिलते जुलते नामों को अपना कर, देश की भोली जनता को अच्छा-ख़ासा बेवकूफ़ बनाया गया था...फ़िरोज़ ने, शादी का प्रस्ताव इंदिरा के समक्ष उसके १६वें जन्मदिन से पहले ही रखा था, जिसे इंदिरा के घर वालों ने सीधे से ख़ारिज़ कर दिया था, इंदिरा के घर वालों की नज़र में, इंदिरा उस समय बहुत छोटी थी और फ़िरोज़ किसी भी हाल में उसके काबिल नहीं था.....एक कारण यह भी था कि, उनदिनों फ़िरोज़ और कमला नेहरु के प्रेम सम्बन्ध की बातों का बाज़ार भी बहुत गर्म था, कमला नेहरु और फ़िरोज़ खान के पोस्टर भी इलाहबाद की सड़कों की शोभा बढ़ा रहे थे, और जनता को इस अनुचित सम्बन्ध पर सख्त एतराज़ भी था....नेहरु तब जेल में थे और उनके लिए मुंह दिखाना मुहाल हो गया था....कमला नेहरु ने इस शादी का पुरजोर विरोध किया था, उन्होंने इंदिरा से कहा था, ये शादी करके वो अपने जीवन कि सबसे बड़ी गलती करेगी, जवाहलाल भी इस शादी के विरोध में थे, शायद उन्हें , कमला और फ़िरोज़ के समबन्ध पर उतना यक़ीन न भी रहा हो, लेकिन इतना ज़रूर यक़ीन था कि फ़िरोज़ ने कोई न कोई बदसलूकी की है कमला के साथ...इसलिए ऐसे इंसान को वो अपना दामाद क़बूलने को हरगिज़ भी तैयार नहीं थे...
इतने विरोध के बावज़ूद, इंदिरा ने फ़िरोज़ से विवाह कर ही लिया, कहते
हैं फिरोज खान ने इंग्लैंड में, लंदन के एक मस्जिद में प्रियदर्शिनी नेहरु से निक़ाह कर लिया था, शादी होते ही फ़िरोज़ खान, फ़िरोज़ गाँधी बन गया, और प्रियदर्शिनी इंदिरा नेहरु, बन गईं मैमुना बेग़म, ये शादी शुरू से ही चरमराई हुई थी और राजीव
के जन्म
के साथ ही, शादी नाम की कोई चीज़ बाक़ी नहीं रही, इंदिरा और फ़िरोज़ अलग रहते
थे, लेकिन राजनीतिक कारणों से उन्होंने तलाक़ नहीं लिया था...
"कैथरीन फ्रैंक' की पुस्तक में प्रियदर्शिनी इंदिरा नेहरु के अन्य प्रेम संबंधों का भी ज़िक्र है, लिखा हुआ है कि प्रियदर्शीनी इंदिरा नेहरु का पहला प्यार, शान्तिनिकेतन
में पढ़ते हुए अपने जर्मन शिक्षक फ्रांक
ओबेर्दोफ़ से हो गया था, यही वो आचरण था, जिसके कारण, प्रियदर्शिनी इंदिरा नेहरु को, शान्तिनिकेतन, के परिसर से गुरुदेव रविन्द्रनाथ ठाकुर ने सीधा यूरोप पहुंचा दिया था, बाद में एम ओ मथाई, जो पिता जवाहरलाल के सचिव थे, से भी प्रियदर्शिनी इंदिरा नेहरु के अन्तरंग सम्बन्ध रहे, धीरेंद्र
ब्रह्मचारी जो उनका योग शिक्षक था उससे भी, मधुर सम्बन्ध थे इंदिरा गाँधी
के और विदेश मंत्री दिनेश सिंह के बारे में भी ऐसी बात कही जाती हैं...
हालांकि, इंदिरा के विवाहेतर रिश्तों के लिए कुछ हद तक, फ़िरोज़ गांधी की लगातार बेवफ़ाई, और उनके एकाकी जीवन, को कारण माना जा सकता है, कहा जा सकता है कि फ़िरोज़ के इस व्यवहार ने इंदिरा को ऐसा करने के लिए उकसाया था, फ़िरोज़ के अन्तरंग सम्बन्ध कई महिलाओं से थे, जैसे, भारतीय संसद की ग्लैमर गर्ल तरकेश्वरी सिन्हा, मह्मुना सुल्ताना और सुभद्रा जोशी..फ़िरोज़ गाँधी की महिला मित्रों में और भी नाम आते हैं जैसे एक खूबसूरत नेपाली लड़की जो ओल इंडिया रेडियो में कार्यरत थी, और एक तलाक़शुदा ब्रह्मण परिवार की महिला जो केरल की थी...
इंदिरा गाँधी, ने अपने शासन काल में बहुत सारी गलतियाँ भी की थीं...जिसमें, धीरू भाई अम्बानी की आउट ऑफ़ वे जाकर मदद करना, पूर्वी पाकिस्तान में 'मुक्तिवाहिनी सेना' का समर्थन करना, जो राजनितिक दृष्टि से तो ठीक था लेकिन उन ४० लाख अवैध अप्रवासियों को नज़रंदाज़ कर देना, जिन्होंने पश्चिमी बंगाल में अवैध रूप से प्रवेश किया और जिनकी संख्या आज २ करोड़ हो गई है, बहुत भारी गलती थी...इंदिरा गाँधी ने, १९७१ के युद्ध में क़ैद किए गए ९०,००० पाकिस्तानी सैनिकों को तो बिना शर्त छोड़ दिया, लेकिन भारतीय सैनिकों को, जो पाकिस्तान में वार ऑफ़ प्रिजनर्स थे, उन्हें पाकिस्तान से लाना भूल गईं..इंदिरा गाँधी ने हिन्दुस्तानी फौजियों के बलिदान और शौर्य का भी अपमान कर दिया जब बिना शर्त, पाकिस्तान को हज़ारों एकड़ ज़मीन वापिस कर दी, जिसे हमारे जवानों ने अपने प्राणों की आहुति देकर जीता था...
इंदिरा गाँधी की सबसे बड़ी भूल और हिन्दुस्तान का काला अध्याय है, 'इमरजेंसी', जिसे १९७७ में इंदिरा गाँधी ने अपने सरकार में बढ़ते भ्रष्टाचार को नहीं रोक पाने और जयप्रकाश नारायण की क्रांति से मुंहकी खाने, के एवज में लगाई थी...आपातकाल की घोषणा ने इंदिरा गाँधी को एक 'तानाशाह' की पदवी भी दे दी...माननेवाले 'इमरजेंसी' का खलनायक, इंदिरा पुत्र, संजय गाँधी को भी मानते हैं,
'इमरजेंसी' संजय के लिए, सत्ता, शक्ति और पैसा का खुल जा सिम सिम था, उसका अपनी माँ, इंदिरा पर, ज़बरदस्त भावनात्मक पकड़ थी...और इस बात का उसने भरपूर फायदा भी उठाया था, तब तक, जब तक इंदिरा झेल पायी थी...बाद में, सत्ता की लोलुपता की लड़ाई में, माँ का प्यार हार गया था...
"कैथरीन फ्रैंक' की पुस्तक में यह भी कहा गया है कि , प्रियदर्शिनी इंदिरा नेहरु (गाँधी) के द्वीतीय पुत्र ,
संजीव गाँधी, फ़िरोज़ गाँधी के पुत्र नहीं थे, संजीव , मोहम्मद युनुस नामक
शख्स की औलाद थे, ये भी बताया जाता है, जब संजीव (संजय) गाँधी का निधन हुआ था, तो एक ही
व्यक्ति ऐसा था, जो सबसे ज्यादा रोया था, और उस व्यक्ति का नाम है मोहम्मद
युनुस, पुत्र शोक उसे ही हुआ था, इंदिरा गाँधी को हुआ होगा, लेकिन उन्होंने दिखाया नहीं था...
संजीव गाँधी का नाम, संजय गाँधी में तब्दील होने के पीछे भी एक घटना का हाथ
है, इस घटना से ये भी साबित होता है कि, इन बड़े लोगों ने किस तरह,
साम-दाम-दंड-भेद अपना कर, देश के हर कानून को, अपना वर्चस्व बचाने के लिए, तोडा-मरोड़ा है..और देश को गुमराह किया है...हुआ यूँ, कि बर्तानी पुलिस
ने संजीव को एक कार की चोरी के जुर्म में इंग्लैड में गिरफ्तार कर लिया था, ओफ़िशिअल
रिकॉर्ड में, संजीव का नाम, उसका पासपोर्ट नंबर सभी कुछ एक मुजरिम की हैसियत से दर्ज़ हो गया था, इस बात से गाँधी
या नेहरु जो भी कहें, उनकी छवि बिगड़ रही थी, इसका ईलाज निकाला गया, और 'संजीव' से 'संजय' नाम बदल कर, दूसरा पासपोर्ट इशू कर दिया गया.. प्रीटी कूल हाँ....!!!! इस तरह बन गए संजीव गाँधी, संजय गाँधी...
सच पूछा जाए तो, इस परिवार का अपना कुछ है ही नहीं...न ज़ात है और न धर्म है, यहाँ तक कि उनका अपना नाम भी तो अपना नाम नहीं है...बस है तो, खाली फुटानी...!!
हाँ नहीं तो..!!