अगर सोचो तो, चलने की प्रक्रिया, कितनी सहज
लगती है,पहले एक पाँव आगे रखो, फिर दूसरा, पहला पाँव फिर खुद ही, उठ कर
आगे पहुँच जाता है, न दूसरा पाँव कभी सोचता, कि पहला पाँव कैसे रखा था, और न
ही पहला पाँव, कभी दूसरे पाँव से कुछ पूछता है...ठीक वैसे ही, बाप के गुण बेटे में कब और कैसे आ जाते हैं, कहाँ पता चलता है...वो तो बस आ जाते हैं...
रात के २.३० बजे हैं, अभी अभी वो हॉस्पिटल से लौटी है, बाथरूम में आईने के सामने खड़ी होकर, वो सोच रही है, पहले और अब के चेहरे में बहुत ज्यादा फर्क नहीं है....उन दिनों, आईने में उसका चेहरा, एब्सट्रैक्ट पेंटिंग की तरह लगा करता था, जिसपर उसके पति द्वारा भरे गए काले, नीले, लाल रंग होते थे, और अब भी वो एब्सट्रैक्ट पेंटिंग ही लगता है, फर्क सिर्फ इतना है, अब रंगों की जगह, वक्त के थपेड़ों और जीवन की गुत्थियों की सारी लकीरों ने, ले ली है..
शादी के बाद ही उसे पता चल गया था कि, पति के हाथों से पीटने के लिए, कोई विशेष कारण का होना आवश्यक नहीं...अगर पालक में हल्दी डाल दे, तो पिट जाती है, कि पालक में हल्दी क्यूँ डाली, न डाले तो पिट जाती है, के पालक में हल्दी क्यों नहीं डाली, पति के आक्रोश की वजह जो भी हो, पिटना उसे ही होता था, दो बच्चे हो चुके थे, अब बड़ा बेटा १६ साल का था, और छोटा १२ साल का...
धीरे-धीरे उसने पेंटिंग बनना, अस्वीकार कर दिया, और उस घर की दीवार से, खुद को उतार लिया .. कठिन था सब कुछ, बहुत कठिन, बच्चे कहाँ समझ पाए थे, ऐसा क्यूँ हुआ था..??
अब तो, ७ साल हो गए उसे सिंगल मदर बने हुए, उसने अपनी कोशिश में कोई कमी नहीं रखी, लेकिन हर काम अकेले करना भी, कौन सा आसान है, जब तक बच्चे छोटे थे, समस्याएं, काबू में थीं...बढ़ते लड़कों की अपनी समस्याएं होतीं हैं, जिनको पिता ही समझ सकता है, लेकिन उसके घर में, पिता जैसी चीज़ है भी कहाँ, वही है अकेली, पिता भी और माता भी, कारण जो भी था, बड़ा बेटा आज तक अपनी माँ को ही, दोषी मानता रहा, उनके तलाक़ के लिए, किसी दूसरे पुरुष से, वो अपनी माँ को, बात भी करते हुए देख लेता...तो अन्दर तक उबल जाता है, टीनेज बच्चों को पालना अकेली माँ के लिए, आसान नहीं होता, उनके शारीरिक परिवर्तन की समस्याएं, उनके होम वर्क, उनके एक्स्ट्रा करीकुलर एक्टिविटी, उनकी इच्छाएं, उनकी कुंठाएं, सब कुछ तो होता हैं, आखिर वो अपने आप में, एक पूरा जीवन जो होते हैं...इन बच्चों के जीवन के साथ-साथ, उसका अपना जीवन, अपनी समस्याएं, घर का काम, नाते-रिश्ते, सामाजिक जिम्मेदारियां और नौकरी, कुलमिला कर, वो खुद को आकंठ डूबी हुई पाती है, अपने आप में और अपने बच्चों में...
कल उसे अपने 'unit की programming ' हर हाल में पूरी कर देनी है, सबके units , testing में कल पहुँच जाने हैं, उसे एक module में प्रॉब्लम हो रही है, इसलिए आज उसने विशी को बुलाया है घर पर ही, C ++ में मास्टर है वो, विशी समय से आ गया था, उसे उम्मीद थी कि काम, दो-तीन घंटे का होगा, लेकिन बात उतनी सिम्पल नहीं थी, जितना उसने सोचा था, काम करते-करते रात हो ही गयी, और विशी को उसे डिनर, ऑफर करना ही पड़ा..आखिर ९-३० बजे काम ख़त्म हुआ और विशी चला गया...
कहते हैं इतिहास खुद को दोहराता है, आज इतिहास ने खुद को दोहराने की दिशा में पहला कदम रखा है...आज उसे लगा कि, क्रोध, आक्रोश वंशानुगत बीमारियाँ भी हो सकतीं हैं, आज उसे अपने बड़े बेटे में भी यही लक्षण, बहुत साफ़-साफ़ परिलक्षित हुए थे, बिलकुल उसके बाप की तरह...'रात के ११ बजे, म्यूजिक इतनी तेज़ क्यूँ बजाते हो, बस इतना ही तो कहा था, उसने अपने १६ साल के बेटे से ...और उसी पल उसने, अपने १६ साल के बेटे को, अपने पिता में तब्दील होते हुए देखा, १६-१७ साल के लड़के डील-डौल में भी कम नहीं होते, ये तो अच्छा हुआ कि वो झट से झुक गयी थी, वर्ना बेटे का घूंसा, उसके चेहरे पर ही पड़ना था, घूंसा शीशे की खिड़की तोड़कर, बाहर निकल गया था, और बेटे के हाथ पर शीशे ने लम्बा चीरा लगा दिया, इतना खून देख कर उसका कलेजा मुँह को आ गया था, आखिर था तो वो उसका बेटा ही...और वो, एक अदद माँ....सबकुछ भूल कर उसने, अपने बेटे को समेटा था....भाग कर वो उसे अस्पताल ले कर गयी थी, १२ टाँके लगे हैं, डॉक्टोर्स को बात कुछ जम नहीं रही थी, डॉक्टर ने तो एक पुलिसवाला भी बुला लिया था, उन्हें शक हो रहा था, बात ज़रूर कुछ और है, वो उससे बार-बार पूछते रहे थे, क्या हुआ था, और एक ही झूठ, वो बार-बार कहती रही...मेरे जूतों से उलझ कर मेरा बेटा गिर पड़ा था...
कहते हैं इतिहास खुद को दोहराता है, आज इतिहास ने खुद को दोहराने की दिशा में पहला कदम रखा है...आज उसे लगा कि, क्रोध, आक्रोश वंशानुगत बीमारियाँ भी हो सकतीं हैं, आज उसे अपने बड़े बेटे में भी यही लक्षण, बहुत साफ़-साफ़ परिलक्षित हुए थे, बिलकुल उसके बाप की तरह...'रात के ११ बजे, म्यूजिक इतनी तेज़ क्यूँ बजाते हो, बस इतना ही तो कहा था, उसने अपने १६ साल के बेटे से ...और उसी पल उसने, अपने १६ साल के बेटे को, अपने पिता में तब्दील होते हुए देखा, १६-१७ साल के लड़के डील-डौल में भी कम नहीं होते, ये तो अच्छा हुआ कि वो झट से झुक गयी थी, वर्ना बेटे का घूंसा, उसके चेहरे पर ही पड़ना था, घूंसा शीशे की खिड़की तोड़कर, बाहर निकल गया था, और बेटे के हाथ पर शीशे ने लम्बा चीरा लगा दिया, इतना खून देख कर उसका कलेजा मुँह को आ गया था, आखिर था तो वो उसका बेटा ही...और वो, एक अदद माँ....सबकुछ भूल कर उसने, अपने बेटे को समेटा था....भाग कर वो उसे अस्पताल ले कर गयी थी, १२ टाँके लगे हैं, डॉक्टोर्स को बात कुछ जम नहीं रही थी, डॉक्टर ने तो एक पुलिसवाला भी बुला लिया था, उन्हें शक हो रहा था, बात ज़रूर कुछ और है, वो उससे बार-बार पूछते रहे थे, क्या हुआ था, और एक ही झूठ, वो बार-बार कहती रही...मेरे जूतों से उलझ कर मेरा बेटा गिर पड़ा था...
अब
वो सोच रही है...क्या झूठ बोल कर, उसने अपने बेटे को सचमुच बचा लिया ?
नहीं ! मुझे इतिहास को बदलना होगा, इस 'अब्यूस' को यहीं रोकना होगा, कल
ही वो पुलिस को, सबकुछ बता देगी, उसके बेटे को उसकी मदद चाहिए, अभी ही सही समय है, बाद में देर हो जायेगी, और यही एक तरीका है, दूसरा कोई नहीं, यही सही रास्ता भी है, शायद बेटे को Juvenile Detention में रखा जायेगा, अब रखा जाएगा तो रखा जाएगा, क्या कर सकते हैं, वर्ना इस शुरुआत का
अंत कहाँ होगा ? बहुत ज्यादा क्रोध, बीमारी है और हाथ उठाना 'अब्यूस', इसका इलाज होना ही
चाहिए, समय रहते अगर बेटा ठीक हो गया, तो शायद, कहीं एक और कैनवास बच
जाएगा, रंगे जाने से....मन में एक विश्वास लिए, वो हो गयी बिस्तर के हवाले, कल शायद होगी, एक नयी सुबह !!
वोई तो..!!
वोई तो..!!