इस्लाम
को हमेशा, शान्ति का धर्म बताने की चेष्टा की गयी है, लेकिन नज़र उठा कर और
दिमाग पर जोर डाल कर, सोचें और देखें, तो इस्लाम के कुछ बड़े-बड़े
अनुयायियों को, पूरा विश्व क्रूरता और आतंक का पर्याय ही मानता है, सोचती हूँ,
उनके बारे में हिन्दुस्तान के आम मुसलमान क्या सोचते हैं ? मसलन सद्दाम हुसैन, ईदी अमीन, गद्दाफी, लुइस फराखान, यासर अराफात, दाऊद इब्राहिम, अबू निदाल, आदि, उनके अपराधों, आतंक और क्रूरता
के बारे में, कुछ भी कहना लगभग असंभव है, आज विश्व इन्हें मानवता पर कलंक
के नाम से ही याद करता है, दूसरी और कोई विशेषता तो इनमें थी नहीं...
हैरानी की बात यह भी है कि इनके ज़ुल्म,
इनके अपने लोगों पर भी कम नहीं रहा है...इन्होने पूरी दुनिया को हिंसा और हत्या से आतंकित कर दिया है/था, वैसे
जहाँ भी मुसलमान शासक होता है, वहाँ एक आतंक का माहौल होता ही है,
इस्लामिक देशों में भी अगर आप जाएँ, तो अजीब दहशत का माहौल मिलेगा आपको, चुप्पी तो मिलेगी लेकिन शान्ति नहीं...
भारत में भी, जहाँ मुस्लिम मोहल्ला होता है, आप वहाँ से सिर्फ गुज़र कर देखें, आपको पता चल जाएगा, ये इलाका मुस्लिमों का है, वहाँ की गतिविधियाँ ही अलग होतीं हैं, एक तरह की बर्बरता वहाँ की हवा में ही होती है, एक अजीब सी सनसनी होती है वहाँ, और गन्दगी की तो बस पूछिए मत...इन बातों को अगर हम छोड़ भी दें तब भी, दुनिया के किसी भी कोने में, आप कोई भी एक अखबार उठा लीजिये और ध्यान दीजिये तो, आतंकवादी गतिविधियों में 98% मुसलमान शामिल हैं... आज कहीं भी बम फूटे तो, बस एक ही नाम ज़हन में आता है 'मुस्लिम आतंकवादी' । कनाडा में सिखों को उनकी पगड़ी की वजह से 'ओसामा बिन लादिन' बुलाया जाता है, क्योंकि यहाँ के लोगों के लिए पगड़ी तो सिर्फ पगड़ी है। सिखों की पगड़ी और बिन लादिन की पगड़ी में वो फर्क नहीं कर पाते हैं।
आज हिन्दुस्तानी बच्चे, फ्लाईंग स्कूल ज्वाइन नहीं कर पाते, क्योंकि इनके नामाकूल आतंकवादियों ने रास्ता मुश्किल कर दिया। छोटे-छोटे हवाई जहाजों पर ट्रेनिंग लेकर इन्होंने, कितनी ही जगहों पर विषाक्त रसायन का छिडकाव किया। यहाँ की अमन-पसंद आवाम को मिटाने की कोशिश की। ऐसी ही ट्रेनिंग का सबब है 911 का हादसा। 18-25 साल के नवयुवकों को, ख़ास करके जो साउथ एशियन मूल के हैं, और जिनका रंग लगभग इन आतंकवादियों जैसा है, इनकी करनी का खामियाज़ा भुगतना पड़ता है । आज हर हवाई-अड्डा, हर ट्रेन स्टेशन पर हमारे घरों के यंग लड़कों को, शक की नज़र से देखा जाता है, उनको रोका जाता है, उनकी हर तरह से तलाशी ली जाती है, क्योंकि इन कमज़र्फों ने अपनी औलादों को आतंकवादी बनाया हुआ है। और क्योंकि हमारे बच्चों का रंग इनके रंग से मेल खाता है, हमारे बच्चे भी गेंहूँ के साथ घुन के तरह, पिस जाते हैं।
भारत में भी, जहाँ मुस्लिम मोहल्ला होता है, आप वहाँ से सिर्फ गुज़र कर देखें, आपको पता चल जाएगा, ये इलाका मुस्लिमों का है, वहाँ की गतिविधियाँ ही अलग होतीं हैं, एक तरह की बर्बरता वहाँ की हवा में ही होती है, एक अजीब सी सनसनी होती है वहाँ, और गन्दगी की तो बस पूछिए मत...इन बातों को अगर हम छोड़ भी दें तब भी, दुनिया के किसी भी कोने में, आप कोई भी एक अखबार उठा लीजिये और ध्यान दीजिये तो, आतंकवादी गतिविधियों में 98% मुसलमान शामिल हैं... आज कहीं भी बम फूटे तो, बस एक ही नाम ज़हन में आता है 'मुस्लिम आतंकवादी' । कनाडा में सिखों को उनकी पगड़ी की वजह से 'ओसामा बिन लादिन' बुलाया जाता है, क्योंकि यहाँ के लोगों के लिए पगड़ी तो सिर्फ पगड़ी है। सिखों की पगड़ी और बिन लादिन की पगड़ी में वो फर्क नहीं कर पाते हैं।
आज हिन्दुस्तानी बच्चे, फ्लाईंग स्कूल ज्वाइन नहीं कर पाते, क्योंकि इनके नामाकूल आतंकवादियों ने रास्ता मुश्किल कर दिया। छोटे-छोटे हवाई जहाजों पर ट्रेनिंग लेकर इन्होंने, कितनी ही जगहों पर विषाक्त रसायन का छिडकाव किया। यहाँ की अमन-पसंद आवाम को मिटाने की कोशिश की। ऐसी ही ट्रेनिंग का सबब है 911 का हादसा। 18-25 साल के नवयुवकों को, ख़ास करके जो साउथ एशियन मूल के हैं, और जिनका रंग लगभग इन आतंकवादियों जैसा है, इनकी करनी का खामियाज़ा भुगतना पड़ता है । आज हर हवाई-अड्डा, हर ट्रेन स्टेशन पर हमारे घरों के यंग लड़कों को, शक की नज़र से देखा जाता है, उनको रोका जाता है, उनकी हर तरह से तलाशी ली जाती है, क्योंकि इन कमज़र्फों ने अपनी औलादों को आतंकवादी बनाया हुआ है। और क्योंकि हमारे बच्चों का रंग इनके रंग से मेल खाता है, हमारे बच्चे भी गेंहूँ के साथ घुन के तरह, पिस जाते हैं।
धर्म के नाम पर कत्लेआम ये चंगेजखाँ के वंशज, आज से नहीं कर रहे हैं। भारत को मुसलमानों ने 7 वीं शताब्दी से ही आतंकित करना शुरू कर दिया था, इतिहास गवाह है, भारत भर में मुस्लिम शासनों ने अद्वितीय आतंक और अत्याचार का एक रिकार्ड कायम किया है और समकालीन मुस्लिम उसी रक्तपात को अब विस्तार दे रहे हैं, इनके घोर अत्याचार का, एक-एक सबब, इतिहास के पन्नों में दर्ज है, कैसे इन्होंने गैर मुसलमानों को निशाना बनाया, उनका धन लूटा, उनकी महिलाओं का अपहरण किया, उनके पूजा घरों को मस्जिदों और मकबरों में तब्दील किया, और तुर्रा ये कि ऐसा करना, मुसलामानों ने अपना पवित्र कर्तव्य माना है, ऐसे कृत्यों को करने वालों को 'ग़ाज़ी' का प्रतिष्ठित ख़िताब दिया गया है, जो उत्पीड़कों के लिए अर्जित, महान इस्लामी महिमा और महानता का एक प्रशस्ति पत्र माना जाता रहा ।
औरंगजेब, पिछले मुस्लिम सम्राटों में से एक ऐसा क्रूर शासक था, जो पूरे साल, हर रोज, 10,000 हिंदुओं की हत्या करता था, उसने अकेले ही कम से कम 3,650,000 हिंदुओं की हत्या की है और 11,000 से अधिक हिंदू मंदिरों के विनाश के लिए जिम्मेदार है...
मुसलामानों
ने ही भारत के तीन टुकड़े कर दिए, और कश्मीर जैसे सुन्दर प्रदेश को
नेस्तनाबूत
करके रख दिया, आज भी पाकिस्तान जैसे इस्लामिक देश की अर्थव्यवस्था,
प्रायोजित आतंवाद से ही चलती
है...यह एक तरह का कुटीर उद्योग है पाकिस्तान का, आतंकवादियों की फसल उगाओ,
उनसे हमला करवाओ, और फिर बड़े-बड़े देशों से पैसे ऐंठों, यह देश बस ऐसे ही
पैसों से चल रहा है...शायद कुरआन ने उन्हें यही सिखाया हो...
मुसलमान
कहते हैं नशा हराम है, लेकिन अफगानिस्तान का चप्पा-चप्पा अफीम की ही खेती
करता है, और तालेबान जो, इस्लाम का महान रक्षक है, सारे आतंकी हमले इन्हीं
अफीमों की खेती के पैसों से ही करवाता
है, मतलब यह कि इस्लाम के नाम पर आप, नशा भी कर सकते हैं, और नशे का
व्यापार भी, और दूसरे के बच्चों को बर्बाद भी, यह पाप या गलत नहीं है...
इस्लाम
में सूद लेना हराम है, लेकिन सारे इस्लामिक बैंक, जैसे हबीब बैंक, ये बैंक
वो बैंक, यह काम कर रहे हैं, और यह जायज़ भी मान रहे हैं, तो अपने फायदे
के लिए कुरआन को तोड़ने-मरोड़ने में कोई दिक्कत नहीं है,
इस्लाम
बिना रीढ़ की हड्डी का धर्म है, और कुरआन सारे गलत काम को सही बताने का
कवच...सारे नहीं, लेकिन कुछ मुसलमान सारे गलत काम करते हैं, और उन गलत कामों को क़ुरान से जोड़
कर पवित्र कर देते हैं, जितने भी तस्कर पकडे जाते हैं,
उनमें से ९८% मुसलमान होते हैं, मैं मारीशस में रहती थी, वहाँ के एयर पोर्ट
में, ड्रग लाते हुए पकडे गए लोगों के नामों की एक लिस्ट लगी हुई है, ऊपर
से नीचे तक के सारे-के-सारे नाम, मुस्लिम नाम हैं, ये वो हैं जो ५ वक्त का
नमाज़ पढ़ते हैं और
फिर निकल जाते हैं, ड्रग, सोने, हीरों की तस्करी करने, क्योंकि इनका
क़ुरान, इस्लाम के नाम पर कुछ भी करने की आज्ञा देता है, फिर चाहे वो चोरी
हो, तस्करी हो, ड्रग डीलिंग हो या फिर हत्या हो...सच पूछा जाय तो इस्लाम से
कम्फर्टेबल, कोई धर्म नहीं, इसके अनुयायी कोई भी पाप, कभी भी, और कैसे भी
कर सकते हैं, बस उसे धर्म से जोड़ कर आप आराम से बच सकते हैं...इतना ही
नहीं आपको उस दुष्कर्म के लिए पुरस्कार भी दिया जाएगा..
मुझे
तो इस बात पर भी हैरानी होती है कि, आखिर मुग़ल शासकों को इतिहास में इतना
तवज्जों क्यों दिया गया है ?? जब कि, इनमें से कोई भी हिन्दुस्तानी नहीं
था, न अकबर, न बाबर, न हुमायूँ । ये सारे के सारे लुटेरे थे, जिन्होंने
हमारे देश में आकर, हमारी आवाम को जी भर के लूटा है। फिर भी अकबर महान है
??? वो कैसे ???? भारतीय सरकार ने महाराणा प्रताप, शिवाजी को इतिहास में वो
स्थान क्यों नहीं दिया, जबकि वो अपना देश इन लुटेरों के बचाने के लिए लड़
रहे थे, और ये लुटेरे विदेशी थे। ऐसा
उल्टा इतिहास भारत में ही संभव है। मेरे ख़याल से इस बात के लिए एक मुहीम
चलनी ही चाहिए। इन सारे तुर्कों को भारत के इतिहास के पन्नों से निकाल
फेंकना चाहिए और भारत का सही इतिहास लिखा जाना चाहिए।
पढ़ती
रहती हूँ, इस्लाम का विस्तार हो रहा है...क्यों नहीं होगा भला, ये सबसे
आराम का धर्म है, इस धर्म में पाप, या बुराई से दूर रहने, जैसा कोई बंधन
नहीं है, हर वो काम जिसकी मनाही दूसरे धर्मों में है, इस धर्म में उसकी
पूरी छूट है, किसी को भी आप मार सकते हैं, क्योंकि और कोई कमी सामने वाले
में हो कि न हो, मुसलमान नहीं होने की सबसे बड़ी कमी तो है ही, उस नीरीह
में, फिर कुरान कहता ही है, जो मुसलमान नहीं है, वो काफ़िर है और इस्लाम की
भलाई के लिए आप उसे मार सकते हैं...अब अगर जवान लड़कों को, धर्म के नाम पर
लड़कियों को पटाने का काम दिया जाए, लड़की अगर न पटे तो अपहरण करने का, उससे
ज़बरदस्ती शादी करने का, उसका धर्म परिवर्तन करवाने का, और फिर उनके साथ
बलात्कार करने के लिए पुरस्कार, वेतन दिया जाए, तो क्यों नहीं वो लड़के
कट्टर मुसलमान बनेंगे...इससे बेहतर काम और क्या होगा भला...ये सारे काम
प्रायोजित काम हैं...
कभी कभी तो मुझे ये भी लगता है, और मुझे पूरा शक़ है, इस्लामिक संस्थाएं, इस्लाम के प्रचार के लिए, हिंदी ब्लॉग जगत के
कुछ ब्लोग्स को, प्रायोजित कर रहीं हैं, वर्ना एक आम व्यक्ति के लिए, इतने
सुचारू रूप से, सब कुछ लिखना आसान नहीं है...जिनके घर-परिवार, नौकरी,
बच्चे हों वो लोग भला इतना वक्त कैसे दे सकते हैं और इतने ब्लॉग कैसे बना
सकते हैं ? पल भर में मसौदा कैसे तैयार कर लेते हैं ? ये वही कर सकते हैं,
जो लोग फुल टाइम ब्लॉग्गिंग कर रहे हैं, इस्लाम के नाम पर, इस्लाम के
प्रचार के लिए, ज़रूर यह उनकी रोज़ी-रोटी है और इस काम के लिए उनको पैसा
दिया जा रहा है.. वर्ना एक आम गृहस्थ के लिए, इतना वक्त निकालना नामुमकिन
है. ये तभी संभव है जब, उनका काम ही यही है...
हाँ नहीं तो..!!