यूँ लगा वो, नशे में चूर था
है मोहब्बत की, तश्नगी अनबुझी
है मोहब्बत की, तश्नगी अनबुझी
वो अपनी वफ़ा पे, मगरुर था
न डूबी कश्ती, उन हादसों में
हाँ, तूफाँ का इरादा, ज़रूर था
बोला मेरे घर पे, न आया कभी
है शुबहा मुझे, वो आया ज़रूर था
बोला मेरे घर पे, न आया कभी
है शुबहा मुझे, वो आया ज़रूर था
चाहत में उसकी मैं, चाँद बन गई
इस बात का मुझे भी, ग़ुरूर था