लगता है ब्लॉग जगत में 'श्लीलता' 'अश्लीलता' की जंग ऐसे अभी ख़तम होने वाली नहीं है, इस विषय में जानकारी रखने वाले बहुत हैं...एक हम ही ठहरे बुद्धू....हाँ नहीं तो..!
बताइये ! यहाँ लोगों को कितना पता है, कि 'श्लीलता' 'अश्लीलता', का क्षेत्रफल क्या होता है..? उसकी सीमा रेखा क्या होगी...?? वगैरह-वगैरह, कई जगहों पर, देख रही हूँ, इस SO CALLED 'कविता ' की जम कर हिमायत करते हुए लोगों को...नहीं पसंद करने वालों को, कोसते लोगों को, देख-देख कर अब तो मुझे इन हिमायतियों पर दया भी आने लगी है, उनका दुःख मुझसे देखा नहीं जा रहा है अब...
मेरे पास एक बहुत बढ़िया आईडिया है, इस झगडे को अंत करने का, और मुझे यकीन है कि, कविता या इस विषय के हिमायतियों में से, किसी को न कोई दिक्कत होगी, न ही एतराज़, इसे मानने में...
बात ये है, इस विषय में और, इस तरह की कविता की लिखाई, अब शुरू हो ही गयी है...कुछ लोगों को बहुत पसंद भी आई है..और ऐसी कवितायें बहुत कम उपलब्ध भी हैं...तो क्यूँ न इस विषय को और विस्तार दिया जाए...बस मेरा विनयपूर्वक निवेदन है, उन सारे हिमायतियों से, जिन्हें इतनी अच्छी लगी है, यह कविता, या तो खुद ही लिख लें या फिर अपनी-अपनी बीवियों से लिखवा लें, बल्कि, अपनी बीवियों की आप, थोड़ी मदद करें लिखने में....जब लिख जाए यह सुन्दर साहित्य, आप सभी, अपनी बीवियों की, खूबसूरत सी, एक-एक तस्वीर लें..और कविता के साथ छाप दें, अपने ब्लॉग पर, और हाँ, एक बहुत लुभावना सा शीर्षक देना मत भूलियेगा...शीर्षक ज़रा 'बोल्ड' हो तो अच्छा रहेगा....आपके मन की भी बात हो जायेगी, नाम भी हो जाएगा...और आपका मान भी रह जाएगा, और सबसे बड़ी बात, आपकी साख भी बच जायेगी...
कोई कुछ नहीं कहेगा उसके बाद...देख लीजियेगा...आप सपरिवार खुश, आपकी अभिव्यक्ति भी खुश, और जिनके-जिनके दिल को, ठेस लगी है, हम जैसे बेवकूफों की भर्त्सना करने से...वो भी खुश...
बस आप लोग खुश रहिये, हम तो यही चाहते है, काहे को एक कविता के पीछे इतने लोग अपना दिमाग ख़राब कर रहे हैं...मेरा आइडिया मान लीजिये ऐसी कवितायें, थोक में आ जायेंगी...फिर करते रहिएगा विमर्श..
एक और अच्छी बात होगी, हम जैसों को भी आदत हो जायेगी, ऐसी चीज़ें देखने पढ़ने की, आखिर आदत हो ही गयी न हमको...इश्क कमीना, ऐ गनपत चल दारू ला..की..!!
बस फिर देर किस बात की है, हुज़ूर...!! शुरू हो जाइए, आज से अभी से...इसी पल से..अश्लीलता का इन्कलाब ले ही आइये....!!
एक और अच्छी बात होगी, हम जैसों को भी आदत हो जायेगी, ऐसी चीज़ें देखने पढ़ने की, आखिर आदत हो ही गयी न हमको...इश्क कमीना, ऐ गनपत चल दारू ला..की..!!
बस फिर देर किस बात की है, हुज़ूर...!! शुरू हो जाइए, आज से अभी से...इसी पल से..अश्लीलता का इन्कलाब ले ही आइये....!!
हमारी तो देखी जायेगी..
हाँ नहीं तो...!!