Tuesday, April 10, 2012

कीचड़ में ढेला कौन फेंके ???

देख रहे हैं,
हिंदी ब्लागिंग का,
एक और अवसान,
जहाँ...

असीम साहित्य सौन्दर्य,
कुछ शब्दों में,
संकुचित हो गया, 
साहित्य की निष्ठा पर ,
कुठाराघात हो गया,

तथाकथित... 
बड़े साहित्यकारों का,
हमेशा की तरह ,
निरंकुश हो,
हथियार भांजना,
अपनी...
विकृत भाषा,
निर्वसन शैली,
भावों के उद्दात तरंग,
अभिव्यक्ति का अदम्य आवेग,
लिए चढ़ दौड़ना, 

भ्रष्ट दार्शनिक विवेचना,
और विद्वेषपूर्ण
तार्किक समालोचना,
ब्रांड नामों का विज्ञापन,
आत्ममुग्धता एवं
स्वयम का वंदन,
भोंडा व् थोथा लेखन ,
बन गया अब 
साहित्य सृजन ।

कूद सकते थे हम भी,
इस साहित्यिक समर में,
मगर
कीचड़ में ढेला कौन फेंके  ???

हाँ नहीं तो..!!