इस आलेख के अंश यहाँ से लिए गए हैं..http://www.indiaagainstcorruption.info/2011/05/some-hidden-facts-about-the-nehru-gandhi-dynasty/
१९५० में संयुक्त राष्ट्र संघ ने भारत के समक्ष, स्थायी सदस्यता का प्रस्ताव रखा था, नेहरु ने उसमें भी शामिल होने से इनकार कर दिया, और चीन से कह दिया, वो यह सदस्यता ले ले...नेहरु की कई बेवकूफियों में, एक बहुत बड़ी बेवकूफी थी, चीन जाकर स्टेटमेंट देना कि , तिब्बत, भारत का हिस्सा नहीं है, बल्कि, सिक्किम भारत का हिस्सा है, फल यह हुआ कि चीन ने १९६२ में भारत पर हमला बोल दिया...हमारी सन्य शक्ति तब इतनी मजबूत भी नहीं थी...फलस्वरूप, अच्छा-ख़ासा खामियाज़ा भुगतना पड़ा...आज भी हमारी हज़ारों एकड़ ज़मीन चीन के कब्ज़े में है...
हाँ नहीं तो...!!
कल लेकर आयेंगे..बाकियों का भी खुलासा..STAY TUNED..!!
गाँधी परिवार कहें या, नेहरु परिवार, क्या फर्क पड़ता है.....क्योंकि हक़ीक़त में ये, इनदोनो में से कोई नहीं हैं...
नेहरु परिवार की शुरुआत होती है, गयासुद्दीन गाज़ी नामक आदमी से, जो मोतीलाल नेहरु का बाप था...वो एक मुग़ल था, १८५७ के सिपाही ग़दर से पहले, जब हिन्दुस्तान का बादशाह, बहादुर शाह ज़फर था, तब गयासुद्दीन गाज़ी, दिल्ली शहर में कोतवाल था...उन्हीं दिनों हिन्दुस्तान में १८५७ की ग़दर की शुरुआत हो गई थी और अँगरेज़ चुन-चुन कर मुगलों को मारने लगे, ताकि कोई मुग़ल सिर न उठा सके, ऐसे में, अपनी जान बचा कर गयासुद्दीन भी भाग खड़ा हुआ, पकड़े जाने के डर से उसने अपना नाम बदल कर, हिन्दू नाम, गंगाधर रख लिया, और क्योंकि वो, लाल किला के पास ही, नहर के किनारे बस गया, अपना उपनाम उसने नहरू, रख लिया जो कालान्तर में नेहरु हो गया...इस तरह छल से गयासुद्दीन गाजी बन गया गंगाधर नेहरु...
नेहरु परिवार की शुरुआत होती है, गयासुद्दीन गाज़ी नामक आदमी से, जो मोतीलाल नेहरु का बाप था...वो एक मुग़ल था, १८५७ के सिपाही ग़दर से पहले, जब हिन्दुस्तान का बादशाह, बहादुर शाह ज़फर था, तब गयासुद्दीन गाज़ी, दिल्ली शहर में कोतवाल था...उन्हीं दिनों हिन्दुस्तान में १८५७ की ग़दर की शुरुआत हो गई थी और अँगरेज़ चुन-चुन कर मुगलों को मारने लगे, ताकि कोई मुग़ल सिर न उठा सके, ऐसे में, अपनी जान बचा कर गयासुद्दीन भी भाग खड़ा हुआ, पकड़े जाने के डर से उसने अपना नाम बदल कर, हिन्दू नाम, गंगाधर रख लिया, और क्योंकि वो, लाल किला के पास ही, नहर के किनारे बस गया, अपना उपनाम उसने नहरू, रख लिया जो कालान्तर में नेहरु हो गया...इस तरह छल से गयासुद्दीन गाजी बन गया गंगाधर नेहरु...
इन्हीं, गयासुद्दीन गाज़ी या गंगाधर नेहरु के वंशज हुए जवाहरलाल नेहरु,
जवाहरलाल नेहरु के पिता का नाम मोती लाल नेहरु था, और पत्नी का नाम कमला कॉल,
जवाहर लाल नेहरु की पत्नी की मौत तपेदिक से स्विट्जरलैंड में हो गई
थी...
जिन्हें हम सभी चाचा नेहरु के नाम से जानते हैं, उनके प्रेम के
रहस्यमय सम्बन्ध अनेक कन्याओं से थे, जिनमें एक बनारस की लड़की भी
थी...जवाहर लाल नेहरु, धुम्रपान, मदिरापान के अलावा, कई किशोरवय की
लड़कियों से भी सम्बन्ध रखते थे...उनका सबसे 'चर्चित गुप्त प्रेम सम्बन्ध'
रहा लार्ड माउंट बैटन की पत्नी एडविना बैटन के साथ...हिन्दुस्तान की आज़ादी
और उनके प्रधानमन्त्री बनने के बाद भी यह प्रेम प्रसंग, जारी रहा, एडविना को
नेहरु १९४८-१९६० तक लगातार पत्र लिखते रहे थे, उन प्रेम पत्रों में गुलाब
की पंखुड़ियां भी हुआ करतीं थीं...कहते हैं उन सारे पत्रों को अगर इकठ्ठा
करके तौला जाए, तो ५-६ पाउंड वजन हो ही जाएगा, मतलब लगभग २ किलो, तो ये हाल नए-नए राष्ट्र के नए-नए प्रधानमन्त्री का था ..ऐसी लगन वाले प्रेमी थे हमारे देश के प्रथम
प्रधानमंत्री...:)
इसके अलावा नेहरू का प्रेम सम्बन्ध, सरोजिनी
नायडू की बेटी, पद्मजा
नायडू, के साथ भी था, जिन्हें नेहरु ने बंगाल के राज्यपाल के रूप में
नियुक्त किया था, कहते हैं, नेहरु अपने बेडरूम में, पद्मजा
नायडू की तस्वीर भी रखा करते थे, जो इंदिरा को नागवार गुजरती थी और वो
अक्सर वो तस्वीर उनके कमरे से हटा देती थी, कभी-कभी यह तस्वीर दोनों
बाप-बेटी के बीच तनाव का कारण भी बन जाती थी...
कहते हैं, इसके अलावा बंगलौर के एक कान्वेंट में श्रद्धा माता नामक एक सन्यासिन से भी उनके सम्बन्ध थे, यहाँ तक कहा जाता है कि, एक बेटा पैदा हुआ था और वह एक ईसाई मिशनरी बोर्डिंग स्कूल में रखा गया था, बच्चे की जन्म की तारीख से ३० मई, १९४९ बतायी जाती है...
कहते हैं, इसके अलावा बंगलौर के एक कान्वेंट में श्रद्धा माता नामक एक सन्यासिन से भी उनके सम्बन्ध थे, यहाँ तक कहा जाता है कि, एक बेटा पैदा हुआ था और वह एक ईसाई मिशनरी बोर्डिंग स्कूल में रखा गया था, बच्चे की जन्म की तारीख से ३० मई, १९४९ बतायी जाती है...
भारत की स्वाधीनता में नेहरु का कितना हाथ था, ये कहना ज़रा मुश्किल है,
क्योंकि उनका ज्यादातर वक्त तो बीतता था, एडविना के साथ, हनीमून मानाने में, कभी शिमला, तो कभी यहाँ, तो कभी वहाँ... हाँ भारत के
विभाजन में उनका बहुत बड़ा हाथ रहा है, जिन्ना और नेहरु दोनों ही
प्रधानमन्त्री बनने को इच्छुक थे, जिन्ना ने इसलिए कांग्रेस से त्याग पत्र
दे दिया और मुस्लिम लीग ज्वाइन कर लिया, साथ ही पाकिस्तान एक अलग राष्ट्र
की डिमांड भी कर दी...हिन्दुस्तान के प्रधानमंत्री पद के लिए कोंग्रेस में
वोट डाला गया, कुल मिला कर १५ वोट डाले गए थे, जिसमें से १४ सरदार वल्लभ
भाई पटेल को मिले और एक नेहरु को...नेहरु ने उसी वक्त अपनी चाल चल के
महात्मा गाँधी को ब्लैक मेल कर दिया, उन्होंने धमकी दी, अगर गाँधी जी ने
उनका समर्थन नहीं किया तो वो कोंग्रेस भंग करवा देंगे और भारत को ५४५
टुकड़ों में बँटवा देंगे, और यही अंग्रेजों की असली योजना भी थी...अगर
कोंग्रेस पार्टी एकमत होकर अपने प्रतिनिधि का चुनाव नहीं कर पाती, तो
अंग्रेजों को बहाना मिल जाता, भारत नहीं छोड़ने का, क्योंकि वो कह सकते थे,
बिना किसी मजबूत प्रतिनिधित्व के हम देश को ऐसे छोड़ कर नहीं जा सकते हैं,
नेहरु ने अपने स्वार्थ के लिए, पूरे राष्ट्र को, दाँव पर लागाने में एक पल
भी देर नहीं की....इसीलिए, हार कर गाँधी जी ने सरदार पटेल को, उम्मीदवारी से
अपना नाम हटा लेने का आदेश दे दिया...गाँधी, किसी भी कीमत पर फिरंगियों को, भारत में बैठे रहने का,
कोई मौका नहीं देना चाहते थे....लेकिन ऐसे संकट के समय पर, कैसे आर्म-ट्विस्टिंग की जाती है, ये कला नेहरु को बखूबी आती थी, नेहरु ने गरीबों और शहीदों की लाशों पर चढ़ कर अपना राजनीतिक स्वप्न पूरा कर लिया था, आज भी सोचती हूँ, वो लाल गुलाब जो नेहरु कोट की शोभा बढाता है, उसका अपना रंग है या हमारे शहीदों का खून ???
१९५० में संयुक्त राष्ट्र संघ ने भारत के समक्ष, स्थायी सदस्यता का प्रस्ताव रखा था, नेहरु ने उसमें भी शामिल होने से इनकार कर दिया, और चीन से कह दिया, वो यह सदस्यता ले ले...नेहरु की कई बेवकूफियों में, एक बहुत बड़ी बेवकूफी थी, चीन जाकर स्टेटमेंट देना कि , तिब्बत, भारत का हिस्सा नहीं है, बल्कि, सिक्किम भारत का हिस्सा है, फल यह हुआ कि चीन ने १९६२ में भारत पर हमला बोल दिया...हमारी सन्य शक्ति तब इतनी मजबूत भी नहीं थी...फलस्वरूप, अच्छा-ख़ासा खामियाज़ा भुगतना पड़ा...आज भी हमारी हज़ारों एकड़ ज़मीन चीन के कब्ज़े में है...
गाँधी जी ने कई बार कहा था, स्वाधीनता के बाद
कोंग्रेस पार्टी का विलय हो जाना चाहिए, गाँधी का विश्वास कांगेस पार्टी से ख़त्म हो चुका था, इसलिए उन्होंने अपना नाम, पार्टी
से वापिस ले लिया था और अंतिम समय तक, वो कोंग्रेस से बाहर ही रहे...
देश की स्वाधीनता से गाँधी कितने ख़ुश थे इस बात से भी पता चलता है.. वो १५
अगस्त १९४७, को दिल्ली में आज़ादी का ज़श्न मनाने की जगह कलकत्ते में, अकेले
पड़े हुए थे...
भारत सरकार ने, जवाहरला नेहरु के जन्म स्थान, ७७ मीरगंज, इलाहबाद, को आज तक, जवाहरलाल नेहरु स्मारक नहीं बनाया है, वो बस यूँ ही नहीं है, कारण बहुत दिलचस्प है.....यह एक
वेश्यालय है और पूरे इलाके में बड़ा नामी वेश्यालय है, बहुत अच्छी तरह जाना जाता है, ऐसा नहीं कि ये जगह हाल-फिलहाल वेश्यालय बना है, जी नहीं, यह स्थान वेश्यालय, नेहरु के जन्म से पहले से ही है, जवाहर
के पिता मोतीलाल ने अपने ही घर का आधा हिस्सा 'लाली जान' नामक वेश्या को बेच
दिया था...जो अब 'इमामबाडा' के नाम से जाना जाता है, किसी को शक़ है, तो जाकर
तहक़ीकात कर सकते हैं...बाद में नेहरु परिवार 'आनंद भवन' में स्थानांतरित
हुआ था, 'आनंद भवन' जवाहरलाल नेहरु का जन्म स्थान नहीं है...
अब बात करते हैं, 'अमेठी' की, अक्सर 'अमेठी' को नेहरु परिवार, के बाप की ज़ागीर समझा जाता है, और नेहरु परिवार वैसा ही दिखाता भी है...लेकिन 'अमेठी' से ही जुड़ा हुआ है, मोतीलाल नेहरु का उत्थान...
इटावा के राजा के मृत्यु के बाद इटावा की रानी को अपना राज बचाना मुहाल हो गया था, कारण उसकी कोई औलाद नहीं थी...अंग्रेजों से मुकदमा लड़ने के लिए रानी ने दो वकील किये, एक मुबारक अली और दूसरा वकील मोतीलाल नेहरु, इस मिकदमे के लिए इनदोनों वकीलों ने ५,००००० (पाँच लाख रुपैये) फीस लिया...लेकिन निचली अदालत में वो ये केस हार गए, रानी से कहा गया कि, केस ऊपरी अदालत में लड़ना होगा, रानी हर हाल में जीतना चाहती थी, ऊपरी अदालत में केस दर्ज किया गया, ५,००००० ( पाँच लाख) की फीस फिर ली गई, केस वो फिर हार गए, अब रानी से कहा गया कि, लन्दन के प्रिवी कौंसिल के सामने ये मामला पेश करना होगा, तब ही बात बनेगी, रानी को तो हर हाल में अपना राज्य बचाना था, मोतीलाल और उनके सहयोगी ने कहा, एक अंग्रेज वकील भी करना होगा, इसलिए उन दोनों के आने जाने का खर्चा, बहुत बड़ी रकम उनकी फीस और अंग्रेज वकील की फीस देनी होगी, ये सबकुछ देना होगा...रानी के पास मान जाने के सिवा चारा भी क्या था ...ये सारा पैसा उन दोनों ने रानी से ले लिया, अंग्रेज वकील को भी कुछ पैसे दिए और उससे इस मुसीबत से निकलने का उपाय भी पूछ लिया, अंग्रेज वकील ने जो ने सलाह दी, वो कुछ ऐसी थी...अगर रानी किसी बच्चे को गोद ले ले और यह कह दे कि, राजा की मृत्यु के समय वो गर्भवती थी, तो बात बन जायेगी..और यही हुआ भी, इटावा की रानी अपना राज्य बचा सकी, लेकिन उस मूर्ख रानी को ये नहीं मालूम हुआ कि, ये रास्ता मोतीलाल के भेजे की उपज नहीं थी, अपितु एक अंग्रेज ने ही बताया था यह रास्ता...इस बात से ख़ुश होकर रानी ने अकूत संपत्ति, मोतीलाल को दिया और अपने राज्य का वो हिस्सा भी दे दिया जिसे 'अमेठी' कहते हैं...तो जी बक्शीश में मिली है, 'अमेठी' और छल-कपट में मिला है वो सारा धन...इसे कहते हैं बिल्ली के भाग से छींका टूटा, जिनके पुरखे लुटेरे थे, जिनके बाप-दादा, चोर, छली-कपटी...वो भ्रष्टाचारी नहीं होंगे तो क्या परोपकारी होंगे ?? और हम मूर्ख अपेक्षा करते हैं इनसे, ईमानदारी की...???? कितने नाईव हैं हम :(
कपड़ा गन्दा हो, आप साफ़ कर सकते
हैं, देह गन्दा हो, आप नहा कर साफ़ कर सकते हैं...लेकिन खून गन्दा हो तो, का उपाय है भला...डाइलिसिस भी
कुछ नही कर सकती है ज़नाब..!!अब बात करते हैं, 'अमेठी' की, अक्सर 'अमेठी' को नेहरु परिवार, के बाप की ज़ागीर समझा जाता है, और नेहरु परिवार वैसा ही दिखाता भी है...लेकिन 'अमेठी' से ही जुड़ा हुआ है, मोतीलाल नेहरु का उत्थान...
इटावा के राजा के मृत्यु के बाद इटावा की रानी को अपना राज बचाना मुहाल हो गया था, कारण उसकी कोई औलाद नहीं थी...अंग्रेजों से मुकदमा लड़ने के लिए रानी ने दो वकील किये, एक मुबारक अली और दूसरा वकील मोतीलाल नेहरु, इस मिकदमे के लिए इनदोनों वकीलों ने ५,००००० (पाँच लाख रुपैये) फीस लिया...लेकिन निचली अदालत में वो ये केस हार गए, रानी से कहा गया कि, केस ऊपरी अदालत में लड़ना होगा, रानी हर हाल में जीतना चाहती थी, ऊपरी अदालत में केस दर्ज किया गया, ५,००००० ( पाँच लाख) की फीस फिर ली गई, केस वो फिर हार गए, अब रानी से कहा गया कि, लन्दन के प्रिवी कौंसिल के सामने ये मामला पेश करना होगा, तब ही बात बनेगी, रानी को तो हर हाल में अपना राज्य बचाना था, मोतीलाल और उनके सहयोगी ने कहा, एक अंग्रेज वकील भी करना होगा, इसलिए उन दोनों के आने जाने का खर्चा, बहुत बड़ी रकम उनकी फीस और अंग्रेज वकील की फीस देनी होगी, ये सबकुछ देना होगा...रानी के पास मान जाने के सिवा चारा भी क्या था ...ये सारा पैसा उन दोनों ने रानी से ले लिया, अंग्रेज वकील को भी कुछ पैसे दिए और उससे इस मुसीबत से निकलने का उपाय भी पूछ लिया, अंग्रेज वकील ने जो ने सलाह दी, वो कुछ ऐसी थी...अगर रानी किसी बच्चे को गोद ले ले और यह कह दे कि, राजा की मृत्यु के समय वो गर्भवती थी, तो बात बन जायेगी..और यही हुआ भी, इटावा की रानी अपना राज्य बचा सकी, लेकिन उस मूर्ख रानी को ये नहीं मालूम हुआ कि, ये रास्ता मोतीलाल के भेजे की उपज नहीं थी, अपितु एक अंग्रेज ने ही बताया था यह रास्ता...इस बात से ख़ुश होकर रानी ने अकूत संपत्ति, मोतीलाल को दिया और अपने राज्य का वो हिस्सा भी दे दिया जिसे 'अमेठी' कहते हैं...तो जी बक्शीश में मिली है, 'अमेठी' और छल-कपट में मिला है वो सारा धन...इसे कहते हैं बिल्ली के भाग से छींका टूटा, जिनके पुरखे लुटेरे थे, जिनके बाप-दादा, चोर, छली-कपटी...वो भ्रष्टाचारी नहीं होंगे तो क्या परोपकारी होंगे ?? और हम मूर्ख अपेक्षा करते हैं इनसे, ईमानदारी की...???? कितने नाईव हैं हम :(
हाँ नहीं तो...!!
कल लेकर आयेंगे..बाकियों का भी खुलासा..STAY TUNED..!!