Friday, April 6, 2012

सब्जेक्टिया मिलन..



हमारे प्रेम में इक तो,
ज्योग्राफी का लफड़ा है ।
केमिस्ट्री ठीक है लेकिन, 
हिस्ट्री का झगड़ा है ।
लिटरेचर पर बहस नहीं,
सोसिओलोजी का रगडा है ।
हैं हम आर्ट्स के बन्दे, 
मैथ समझ नहीं पाते,
बायोलोजी के बंधन में,
वो कॉमर्स क्यूँ बतियाते ।
ह्युमानीटी तुम समझ जाओ,
एथिक्स घर में समझा दो ।  
तुम्हें जूलोजी भाती है,
मुझे बोटनी सुहाती है,
बनेगी बात अब कैसे,
इकोनोमिक्स गड़बड़ाती है ।
साइकोलोजी की अगर मानो,
मैनेजमेंट तुम अब कर लो,
अपने घरवालों के,
भेजे में सिविक्स भर दो ।
तुम्हारे घर जब आऊँगी,
सबको बिजिनेस पढ़ाऊँगी,
करुँगी ला की कुछ बातें,
पोलिटिकल साइंस हटाउंगी । 
एन्वैरंमेटल की खातिर, 
कम्युनिकेशन खुला होगा,
लोजिकल बातें बस होंगी,
लोजिस्टिक्स भी जुड़ा होगा,
फिलोसोफी के नियम पहले,
उन सबको बताउंगी,
अगर वो फिर भी न माने,  
फिजिक्स का थर्ड ला लगाऊँगी ।
गर बात बिगड़ जाए,
एविएशन मैं न लाऊँगी,
अड्मिनिसट्रेशन कड़ा करके,
टूरिज्म फिर अपनाउंगी,
मेडिकल बेसिस पर सबको,
रिटायरमेंट मैं दिलाउंगी ।

गाना देखने के लिए ज़रा धीरज से रहे..शुरू में क्रेडिट्स हैं..बस कुछ क्षणों के लिए...