Monday, April 2, 2012

छोटी-छोटी बातें...!!


मेरी एक सहेली का, मायका और ससुराल हमारे ही शहर में है, मेरी जैसी के लिए, ये बहुत ही बड़ी बात है, मुझे तो अपने मायके और ससुराल दोनों से मिलने के लिए, सात समुन्दर पार जाना पड़ता है, कम से कम १५ दिन की छुट्टी, चाहिए होती है, जिसमें से, आने जाने में ही ५ दिन निकल जाते हैं, बाकी के दस दिन, भाग-भाग कर मिलने का कार्यक्रम होता है, और हिल जाता है, पूरा बजट...हाँ नहीं तो..!! फिर भी जो ख़ुशी मिलती है, उसकी तुलना में ये सारी बातें कोई मायने नहीं रखतीं हैं..

खैर, तो बात हो रही थी, मैं और मेरी सहेली की...एक दिन हम साथ-साथ शौपिंग करने गए, लौटते वक्त हमदोनों उसके मायके भी चले गए, अभी बैठे हुए कुछ ही देर हुई थी, कि मेरी सहेली की माता जी आ गयीं, आते साथ ही उन्होंने ने मेरी सहेली के, सारे ससुराल वालों को भला-बुरा कहना शुरू कर दिया, सास-ससुर, ननद, देवर, जेठ किसी को भी नहीं छोड़ा, यहाँ तक कि मेरी सहेली को भी डांटने लगीं, कि तुमने अपनी ननद को फलाँ चीज़ क्यूँ दी, अपनी सास को पैसे क्यूँ दिए...इत्यादि-इत्यादि, 
मैं सारी बातें सुन कर स्तब्ध थी, और मेरी सहेली एम्बेरेस्ड, वो क़ातर नज़रों से मेरी तरफ देख रही थी, उसकी आँखों में मुझे अपने मायके ले कर आने का पछतावा साफ़ झलक रहा था...

मुझे मेरी सहेली की माता जी की बातें, बिलकुल भी पसंद नहीं आयीं, लगा, बच्चों की पहली गुरु तो माँ ही होती है, और अगर बुनियाद की पहली ईंट ही, सही नहीं पड़े तो ईमारत का क्या कसूर !! इसीलिए सोचा, अपना यह अनुभव आप लोगों से साझा कर लूँ, आखिर हममें से भी तो, कितनी माएँ हैं, और शायद कुछ बेटियों की ही माँ हों, कम से कम मैं तो हूँ ही...

हर माँ को अपनी बेटी को, ससुराल में मिल-जुल कर रहने की ही सीख देनी चाहिए, ना कि घृणा और कटुता के बीज बो कर, रहना बताना चाहिए...

बहुत सारी युवतियाँ, ऐसी ही स्थिति से गुज़रती हैं, जो बुद्धिमानी और विवेक से काम लेती हैं, उनका जीवन शांति से बितता है, लेकिन कुछ ऐसी भी होती होंगी, जो इस तरह की गलत सीख को अपनाती हैं और जीवन में मुसीबत मोल ले लेती हैं, खुद तो परेशान रहतीं ही हैं..घर की सुख-शान्ति भी समाप्त कर देतीं हैं...

इसलिए समझदार माँओं को चाहिए, कि अपनी बेटियों को छोटी-छोटी बातों को, नज़रंदाज़ करने की सीख दें और ससुराल में सहयोगात्मक रवैय्ये के साथ, हंसी-ख़ुशी रहने को प्रेरित करें...