इक दिन में हम कई बार, देखो ना ! मर जाते हैं
क़ब्र के अन्दर, कफ़न ओढ़ कर, काहे को डर जाते हैं
राह में तेरे संग चलते हैं, और दामन भी बचाते हैं
आँखों में फ़िर धूल झोंक कर, अपने घर आ जाते हैं
साजों की हिम्मत तो देखो, बिन पूछे बज जाते हैं
पर उनपर कोई थाप पड़े तो, गुम-सुम से हो जाते हैं
चुल्लू चुल्लू पानी लेकर, हम कश्ती से हटाते हैं
वो पलक झपकते सागर बन, और इसे भर जाते हैं
देखें तुझको या ना देखें, दूर कहाँ रह पाते हैं
हवा भी ग़र छू कर गुज़रे, हम वहीं तर जाते हैं
लगता है, पिछली पोस्ट में गलती से मिश्टेक हो गया है...
गलत गाना लग गया था...ये रहा..जब से तेरे नयना मेरे नयनों से लागे रे...
आवाज़ 'अदा' की...