Saturday, April 28, 2012

दुल्हन में वो दुल्हनियत नहीं थी...

एक शादी में जाना हुआ था इंडिया में, सब कुछ बहुत भव्य था, साज-सिंगार, खान-पान एक से बढ़ कर एक....शादी के कार्ड  से लेकर विवाह समारोह भव्यता का हर रंग लिए हुए...लेकिन एक कमी बहुत ज्यादा महसूस हुई.... दुल्हन में वो दुल्हनियत नहीं थी...
अब हम डिक्लेयर्ड बुजुर्ग हैं...इसलिए अब तो हम ई सब बात कह ही  सकते हैं...दुल्हन का चकर-मकर देखना , ठहाके लगा कर हँसना, दुल्हे से लिपटना-चिपटना...सबको आखें फाड़-फाड़ कर देखना ...अपनी ही शादी में सबसे ज्यादा नाचना....हमको तो अच्छा नहीं लगा...बाकी आप लोग जाने...

कांफिडेंस (आत्मविश्वास) और बिंदासपने में फर्क तो होता ही होगा...
अगर हम दूल्हा होते तो, हमको छुई-मुई, लजाई सी दुल्हन ही पसंद आती, हंटरवाली दुल्हन हमको नहीं भाती...
आस पास देखने से भी अब लगने लगा है, लड़कियों में भी लड़कियों के गुण कम होने लगे हैं, पुरुषों से टक्कर लेते-लेते नारी सुलभ गुण ही कहीं गायब न हो जाए बालिकाओं में, लेकिन हमरे बोलने से का होता है...जो होना है ऊ तो होगा ही...बाकी आपलोग हो जाइए शुरू....हम तैयार हैं झेलने के लिए...अभी तक नारी ही जो हैं हम...

हाँ नहीं तो...!!

तेरी आँखों के सिवा दुनिया में..